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भगदड़ और भीड़ प्रबंधन

Lokesh Pal February 20, 2025 02:59 30 0

संदर्भ

हाल ही में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर प्रयागराज जाने वाली ट्रेन में सवार होने के लिए यात्रियों की भीड़ बढ़ने के कारण मची भगदड़ में 18 लोगों की मृत्यु हो गई थी।

भगदड़ (Stampede) क्या है?

  • भगदड़ को भीड़ की आवेगपूर्ण सामूहिक हलचल या उनकी व्यवस्थित गति में व्यवधान के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जिसके कारण चोट एवं मौत की घटनाएँ होती हैं, जो प्रायः किसी खतरे की आशंका, भौतिक स्थान की हानि या किसी संतुष्टिदायक चीज को प्राप्त करने की इच्छा के कारण होती है।
  • भारत में भगदड़ की स्थिति: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2000 से वर्ष 2013 तक भारत में भगदड़ के कारण लगभग 2,000 मौतें हुईं।
    • ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ डिजास्टर रिस्क रिडक्शन’ (International Journal of Disaster Risk Reduction-IJDRR) द्वारा प्रकाशित वर्ष 2013 के एक अध्ययन में बताया गया है कि भारत में होने वाली 79% भगदड़ की घटनाएँ धार्मिक आयोजनों एवं तीर्थयात्राओं के कारण होती हैं। 
  • भगदड़ के प्रकार
    • एकदिशीय भगदड़ (Unidirectional Stampede): यह तब घटित हो सकती है, जब एक ही दिशा में आगे बढ़ रही भीड़ को बल के रूप में अचानक सकारात्मक या नकारात्मक परिवर्तन का सामना करना पड़ता है, जिससे उसकी गति बदल जाती है।
      • सकारात्मक शक्ति एक ‘अचानक रुकने’ की स्थिति हो सकती है, जैसे कि अवरोध और अवरुद्ध निकास।
      • बल एक टूटे हुए अवरोध या स्तंभ के समान होता, जो लोगों के एक समूह को गिरा देती है।
    • कोलाहलपूर्ण भगदड़ (Turbulent Stampede): ऐसा तब होता है जब भीड़ अक्सर घबराहट या अनियंत्रित गति के कारण अलग-अलग दिशाओं से आती है।

भगदड़ का मनोविज्ञान

  • उन्मादी व्यवहार (Craze Behaviour): समाजशास्त्री नील जे स्मेलसर (Neil J Smelser) ने सामूहिक व्यवहार के सिद्धांत (1962) में उन्माद को ‘सकारात्मक इच्छा-पूर्ति विश्वास के आधार पर कार्रवाई के लिए लामबंदी’ (Mobilisation for action based on a positive wish-fulfillment belief) के रूप में परिभाषित किया है, जो तर्कसंगत या तर्कहीन हो सकता है। 
  • ब्लैक होल घटना (Black Hole Phenomenon): इस घटना का वर्णन हेलबिंग (Helbing) ने जर्नल ऑफ स्टैटिस्टिकल फिजिक्स (Journal of Statistical Physics) में वर्ष 2014 के एक पेपर में किया था। 
    • बल शृंखला (Force Chains): इसके अनुसार, एक सघन वातावरण में लोगों के शरीरों के बीच संपर्क के कारण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भौतिक बल संचारित होता है, जो एकत्रित होकर अप्रत्याशित ‘बल शृंखला’ का निर्माण कर सकता है, जो व्यक्तियों को विभिन्न दिशाओं से धकेलता है। 
    • ब्लैक होल (Black Hole): अंततः धक्का-मुक्की इस स्तर तक पहुँच सकती है कि एक या एक से अधिक व्यक्ति ठोकर खाकर गिर सकते हैं, जिससे भीड़ में एक ‘होल’ बन जाता है और बल संतुलन बिगड़ जाता है। साथ ही आस-पास की भीड़ को भी पीछे से धक्का दिया जा रहा होता है, किंतु अब आगे से कोई धक्का नहीं आता है क्योंकि एक प्रकार के ‘होल’ बन जाने के कारण और लोगों के अधिक ठोकर खाने एवं गिरने की संभावना बनी रहती है।

भगदड़ के लिए जिम्मेदार कारक

  • मानव मनोविज्ञान और दहशत: बड़ी भीड़ में दहशत तेजी से फैलती है, जिससे तर्कहीन बातें शुरू हो जाती हैं। एक बार जब लोगों के मध्य व्यवहार विच्छेद हो  जाता है, तो व्यक्ति आत्म-संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे स्थिति और खराब हो जाती है।
    • हाथरस भगदड़ (वर्ष 2024): भक्त एक उपदेशक के पैर छूने के लिए दौड़ पड़े, जिससे अनियंत्रित संचलन हुआ और 121 लोगों की मौत हो गई।
  • संरचनात्मक कमियाँ और खराब बुनियादी ढाँचा: संकीर्ण रास्ते, कमजोर अवरोध और खराब तरीके से डिजाइन किए गए निकास आवागमन को बाधित करते हैं और अड़चनें उत्पन्न करते हैं।
    • रतनगढ़ मंदिर भगदड़ (वर्ष 2013): पुल पर रेलिंग गिरने से लोगों में अफरा-तफरी मच गई, जिससे 121 लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक लोग घायल हो गए।
  • भीड़ का उच्च घनत्व: जब भीड़ का घनत्व 4 व्यक्ति प्रति वर्ग मीटर से अधिक हो जाता है, तो आवागमन मुश्किल हो जाता है, जिससे भगदड़ का जोखिम बढ़ जाता है।
    • वैष्णो देवी मंदिर (वर्ष 2022): मंदिर में प्रवेश करने वाले तीर्थयात्रियों की अचानक भीड़ के कारण दम घुटने एवं कुचलने से 12 भक्तों की मौत हो गई।
  • भीड़ प्रबंधन का अभाव और समन्वय की कमी: सुरक्षा कर्मियों, कार्यक्रम आयोजकों और स्थानीय अधिकारियों के बीच अस्पष्ट जिम्मेदारियों के कारण आपात स्थितियों के दौरान कुप्रबंधन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
    • महाकुंभ मेला भगदड़ (वर्ष 2025): अधिकारी  भीड़ के आकार का अनुमान लगाने में विफल रहे, जिसके कारण प्रयागराज में संगम घाट पर भीड़ उमड़ पड़ी, जिससे 30 लोगों की मृत्यु हो गई और 60 लोग घायल हो गए।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority-NDMA) के अनुसार, खराब योजना और कई एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी भारत में बार-बार होने वाली भीड़ आपदाओं के प्रमुख कारण हैं।

  • अफवाहें एवं गलत सूचनाएँ: बम की धमकियों या ढहने वाली इमारतों की अफवाहों जैसे झूठी अफवाहें अचानक दहशत उत्पन्न करती हैं।
    • चामुंडा देवी मंदिर (वर्ष 2008): बम की झूठी अफवाह के कारण लोगों में दहशत फैल गई, जिसके परिणामस्वरूप 220 से अधिक लोगों की मौत हो गई।
  • अपर्याप्त आपातकालीन निकास और भागने के रास्ते: ठीक से नियोजित निकास की कमी के कारण सीमित स्थानों में कुचलने एवं दम घुटने की घटनाएँ होती हैं।
    • उपहार सिनेमा अग्निकांड (वर्ष 1997, दिल्ली): आपातकालीन निकास द्वार बंद कर दिए गए थे, जिससे बचने का रास्ता बंद हो गया, जिसके कारण धुएँ के कारण 59 लोगों की मृत्यु हो गई।
  • धार्मिक या सांस्कृतिक उत्साह के कारण अचानक भीड़ का उमड़ना: बड़े स्तर पर धार्मिक समारोहों में प्रायः  अप्रत्याशित भीड़ उमड़ती है, जिससे उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है।
    • सबरीमाला मंदिर (वर्ष 2011): संकीर्ण मार्ग से जाने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या में वृद्धि के कारण भीड़ नियंत्रण की कमी के कारण 100 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई।

भगदड़ कैसे मौत का कारण बनती है:

  • अभिघातजन्य श्वासावरोध (Traumatic Asphyxia): यह वक्ष (Thorax) और/या ऊपरी उदर (Upper Abdomen) के बाहरी संपीडन के कारण श्वसन की आंशिक या पूर्ण समाप्ति की स्थिति है।
    • NDMA रिपोर्ट, वर्ष 2014 के अनुसार, संपीडन श्वासावरोध (वक्ष एवं पेट पर बाह्य दबाव) भगदड़ में मृत्यु का सर्वाधिक सामान्य  कारण है।
  • हृद्पेशीय विचलन(Myocardial Infarction) (तनाव एवं घबराहट के कारण दिल का दौरा): भगदड़ के दौरान अत्यधिक तनाव एवं परिश्रम से दिल का दौरा पड़ सकता है, विशेष रूप से बुजुर्गों में।
    • चुन-हाओ शाओ (वर्ष 2018) द्वारा भीड़ आपदाओं पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि भगदड़ में फँसे लोग अक्सर ऑक्सीजन की कमी एवं उच्च तनाव के स्तर के कारण हृदयाघात का शिकार हो जाते हैं।

  • सिर और गर्दन की चोटें (गिरना एवं कुचला जाना): जब व्यक्ति अपना संतुलन खो देते हैं, तो अक्सर दूसरे लोग उन्हें कुचल देते हैं, जिससे सिर, रीढ़ की हड्डी और अंदरूनी हिस्से में घातक चोटें लग जाती हैं।
  • घाव और फ्रैक्चर (ब्लंट फोर्स ट्रॉमा): चलायमान भीड़ द्वारा लगाया गया बल हड्डियों को तोड़ सकता है, गंभीर चोट पहुंँचा सकता है या अंगों को कुचल सकता है।
    • रतनगढ़ मंदिर भगदड़ (वर्ष 2013): एक पुल की रेलिंग ढहने के परिणामस्वरूप 100 से अधिक पीड़ितों को चोटें आई।
  • हाइपॉक्सिया (बंद जगहों में ऑक्सीजन की कमी): सुरंगों, स्टेडियमों या मंदिरों जैसे बंद इलाकों में, भीड़भाड़ के कारण ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जिससे हाइपॉक्सिया से संबंधित मौतों का जोखिम बढ़ जाता है।
  • बिजली का झटका और आग का खतरा: बिजली के तारों और ज्वलनशील पदार्थों के खराब प्रबंधन के कारण भगदड़ के दौरान आग लग सकती है, जिससे बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु हो सकती है।
    • डबवाली अग्नि त्रासदी (वर्ष 1995, हरियाणा): एक स्कूल समारोह के टेंट में आग लग गई, जिसके परिणामस्वरूप 446 लोगों की मृत्यु हो गई क्योंकि लोग फँस गए थे और उनके पास बचने का कोई रास्ता नहीं था।
  • जल-संबंधी भगदड़ में डूबना: जलभराव वाले इलाकों में बड़ी संख्या में लोगों के गिरने से डूबने या लोगों द्वारा कुचले जाने से घायल होने का खतरा रहता है।

भगदड़ का प्रभाव

  • मानव जीवन की क्षति और चोटें: भगदड़ के कारण दम घुटने, कुचलने और घबराहट के कारण होने वाली चोटों के कारण बड़े पैमाने पर मौतें होती हैं।
    • सऊदी अरब के मीना में वर्ष 2015 में हज के दौरान हुई भगदड़ को दस्तावेजों में इतिहास की सबसे घातक भगदड़ में से एक बताया गया है, जिसमें 2,400 से अधिक लोगों की मौत हुई थी।
  • जीवित बचे लोगों में मनोवैज्ञानिक आघात और PTSD: कई जीवित बचे लोग पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), चिंता और गंभीर भीड़ के डर से पीड़ित हैं।
    • भीड़ की आपदाओं पर किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि कई बचे लोगों में दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक संकट विकसित होता है, जिसमें क्लॉस्ट्रोफोबिया और सार्वजनिक स्थानों का डर शामिल है।
  • बुनियादी ढांँचे और संपत्ति की क्षति: अनियंत्रित भीड़ की आवाजाही से अक्सर अवरोध, पुल, अस्थायी संरचनाएँ ढह जाती हैं और आयोजन स्थल को नुकसान पहुँचता है।
    • शोध से पता चलता है कि भगदड़ में भीड़ का दबाव 4,450 N/m तक पहुँच सकता है, जो स्टील को मोड़ने और दीवारों को ढहाने के लिए पर्याप्त है।
  • आर्थिक प्रभाव और वित्तीय क्षति: भगदड़ के कारण मुआवजा भुगतान, व्यावसायिक राजस्व की हानि और भीड़ नियंत्रण उपायों की लागत में वृद्धि होती है।
    • महाकुंभ मेला भगदड़ (वर्ष 2013, इलाहाबाद): 36 लोगों की मौत के बाद, सरकार को प्रत्येक पीड़ित को ₹5 लाख का मुआवजा देना पड़ा, जिसकी लागत ₹18 करोड़ से अधिक थी।
  • स्वास्थ्य सेवा और आपातकालीन सेवाओं पर दबाव: घायलों की अचानक बढ़ती संख्या के कारण अस्पताल, एंबुलेंस और आपातकालीन प्रतिक्रिया दल पर बोझ बढ़ जाता है।
    • चामुंडा देवी मंदिर भगदड़ (वर्ष 2008): 250 से अधिक लोग मारे गए, जोधपुर के अस्पतालों में अफरा-तफरी मच गई, जिन्हें तत्काल उपचार उपलब्ध कराने में संघर्ष करना पड़ा।
  • शासन और अधिकारियों में जनता के विश्वास का ह्रास: भीड़ को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में विफलता से जनता में आक्रोश, राजनीतिक प्रतिक्रिया और जवाबदेही की माँग होती है।
    • हाथरस भगदड़ (वर्ष 2024): अपर्याप्त सुरक्षा के लिए प्रशासन को आलोचना का सामना करना पड़ा, जिसके कारण अधिकारियों के इस्तीफे एवं न्यायिक जाँच की माँग की गई।
  • सामाजिक और धार्मिक व्यवधान: धार्मिक स्थलों या त्योहारों पर भगदड़ से श्रद्धालुओं में भय उत्पन्न होता है, जिससे भागीदारी कम होती है और सामाजिक तनाव उत्पन्न होता है।
    • भारत में भगदड़ से होने वाली 70% मौतें धार्मिक आयोजनों में होती हैं, जिससे आयोजकों को त्योहार की योजना और भीड़ की सुरक्षा के उपायों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ता है (NDMA, 2014)।

लोगों के एकत्र होने से संबंधित शब्दावली

  • भीड़ (Crowd): प्रायः  अव्यवस्थित या अनियंत्रित तरीके से, बड़ी संख्या में लोग एक साथ इकट्ठे होते हैं।
  • असंयत भीड़ (Mob): लोगों की एक बड़ी भीड़, विशेष रूप से वह जो उपद्रव या हिंसा करने के इरादे से अव्यवस्थित हो।
  • सभा (Assembly): लोगों का एक समूह एक सामान्य उद्देश्य के लिए एक स्थान पर एकत्रित होता है।
  • गैर-कानूनी सभा (Unlawful Assembly): गैर-कानूनी सभा एक कानूनी शब्द है, जिसका उपयोग लोगों के एक समूह का वर्णन करने के लिए किया जाता है, जिसका उद्देश्य जानबूझकर शांति भंग करना होता है।
  • दंगा (Riot): नागरिक अव्यवस्था का एक रूप, जिसे प्रायः अव्यवस्थित समूहों द्वारा अधिकार, संपत्ति या लोगों के खिलाफ हिंसा की अचानक और तीव्र वेग में हमला करने के रूप में देखा जाता है।

प्रभावी भीड़ प्रबंधन और भगदड़ रोकने के लिए NDMA के दिशा-निर्देश

  • सामूहिक सभा वाले स्थानों की क्षमता निर्माण: बुनियादी ढाँचे का विकास लोकप्रियता, आयोजन की आवधिकता, भू-भाग, स्थानीय जनसंख्या, मौसम आदि पर निर्भर होना चाहिए तथा आगंतुकों के लिए भोजन, पानी, स्वच्छता और आश्रय की सुविधाओं के साथ मंच तैयार किए जाने चाहिए।
  • भीड़ नियंत्रण: अवरोधों, कतार प्रबंधन और एकतरफा प्रणालियों का उपयोग करके अंतर्वाह, आवागमन और बहिर्वाह को विनियमित करना।
  • खतरा, जोखिम और भेद्यता विश्लेषण (HRVA): उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करना, खतरों का आकलन करना और घटना-पूर्व शमन योजनाएँ विकसित करना।
  • विफलता मोड और प्रभाव विश्लेषण (FMEA): जोखिम में कमी को प्राथमिकता देने के लिए गंभीरता, आवृत्ति और पहचान की कठिनाई के आधार पर खतरों का मूल्यांकन करना।
  • कार्यवाही का तरीका विकसित करना: कार्य योजना तैयार करना, संसाधन आवंटित करना और सभी हितधारकों के बीच समन्वय सुनिश्चित करना।

भीड़ प्रबंधन में मीडिया की भूमिका

  • किसी घटना से पूर्व: सुरक्षा प्रोटोकॉल, प्रवेश/निकास मार्ग और अपेक्षित भीड़ के आकार के बारे में जागरूकता फैलाता है।
  • आपदा के समय: वास्तविक समय पर अपडेट, आपातकालीन अलर्ट प्रदान करता है और आपदा प्रतिक्रिया समन्वय में मदद करता है।
  • घटना के बाद: जाँच, सरकारी जवाबदेही और नीतिगत सुधारों को शामिल करता है।
    • उदाहरण: हाथरस भगदड़ (वर्ष 2024) के दौरान, मीडिया रिपोर्टों ने सुरक्षा खामियों को उजागर किया, जिसके कारण नीतिगत समीक्षा की गई।
  • NDMA दिशा-निर्देश: घबराहट और गलत सूचना को रोकने के लिए मीडिया की नैतिक जिम्मेदारी पर बल देना।

भीड़ प्रबंधन में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका

  • निगरानी एवं परिवीक्षण: CCTV कैमरे, AI-आधारित भीड़ घनत्व विश्लेषण और वास्तविक समय ट्रैकिंग के लिए ड्रोन।
  • संचार प्रणाली: भीड़ नियंत्रण के लिए स्वचालित सार्वजनिक पता प्रणाली, SMS अलर्ट और डिजिटल साइनबोर्ड।
  • आपदा पूर्वानुमान और सिमुलेशन: संभावित भीड़ वृद्धि जोखिमों का आकलन करने के लिए AI सिमुलेशन और पूर्वानुमान मॉडलिंग।
    • उदाहरण: NDMA उच्च घनत्व वाली घटनाओं के लिए RFID आधारित ट्रैकिंग और भू-स्थानिक मानचित्रण की सिफारिश करता है।

भीड़ प्रबंधन (Crowd Management)

  • भीड़ प्रबंधन, उपस्थित लोगों की सुरक्षा एवं सुचारू प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए बड़ी सभाओं की योजना बनाने, आयोजन करने और निगरानी करने की व्यवस्थित प्रक्रिया है।
  • इसमें जोखिमों का अनुमान लगाना और संभावित खतरों को कम करने के लिए सबसे खराब स्थिति के लिए योजना बनाना शामिल है।

प्रभावी भीड़ प्रबंधन और भगदड़ रोकने के उपाय

  • भगदड़ जोखिम न्यूनीकरण रूपरेखा: एक बहु-विषयक दृष्टिकोण लागू करना, जिसमें संभावित आपदाओं को कम करने के लिए जोखिम मूल्यांकन, खतरे की पहचान और शमन उपाय शामिल हों।
  • स्थानों का बेहतर डिज़ाइन: भीड़भाड़ को रोकने और सुचारू आवागमन की अनुमति देने के लिए पर्याप्त प्रवेश और निकास बिंदु, स्पष्ट मार्ग और निर्दिष्ट आपातकालीन मार्ग सुनिश्चित करना।
  • लाइव निगरानी एवं परिवीक्षण: सक्रिय प्रबंधन के लिए रुकावटों, दाब निर्माण और संभावित गड़बड़ी का पता लगाने के लिए CCTV, AI-आधारित भीड़ विश्लेषण और वास्तविक समय की निगरानी का उपयोग करना।
  • अंतर-एजेंसी संचार और समन्वय: आपात स्थितियों पर तेजी से प्रतिक्रिया करने के लिए स्थानीय प्रशासन, पुलिस, कार्यक्रम आयोजकों और चिकित्सा टीमों के बीच स्पष्ट संचार चैनल स्थापित करना।
  • भीड़ के आकार और प्रवाह को विनियमित करना: अधिकारियों को सख्त प्रवेश सीमाएँ लागू करनी चाहिए, पूर्व-पंजीकरण प्रणाली का उपयोग करना चाहिए और भीड़ को नियंत्रित करने के लिए भीड़ मार्शलों को तैनात करना चाहिए, विशेषकर धार्मिक और राजनीतिक समारोहों में।
  • आपातकालीन तैयारी और चिकित्सा सुविधाएँ: यह सुनिश्चित करना कि साइट पर एंबुलेंस, ट्रॉमा केयर यूनिट और प्रशिक्षित प्रथम उत्तरदाता उपलब्ध हों, साथ ही संकट की स्थितियों के लिए तैयार रहने के लिए मॉक ड्रिल भी हों।
  • सार्वजनिक जागरूकता और व्यवहार प्रशिक्षण: संकेत, घोषणाओं और सार्वजनिक अभियानों के माध्यम से उपस्थित लोगों को सुरक्षित भीड़ व्यवहार, निकासी प्रक्रियाओं और आत्म-सुरक्षा रणनीतियों के बारे में शिक्षित करना।

भारत में भीड़ प्रबंधन से संबंधित कानूनी और संवैधानिक प्रावधान

  • संवैधानिक प्रावधान
    • अनुच्छेद-21 (जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार): जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, जिससे सामूहिक समारोहों में लोगों की सुरक्षा करना राज्य का कर्तव्य बन जाता है।
    • अनुच्छेद-19(1)(b) (शांतिपूर्ण तरीके से एकत्र होने का अधिकार): नागरिकों को सार्वजनिक सुरक्षा और व्यवस्था के लिए उचित प्रतिबंधों के अधीन शांतिपूर्ण तरीके से एकत्र होने का अधिकार देता है।
    • अनुच्छेद-47 (सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने का राज्य का कर्तव्य): राज्य को सुरक्षित सार्वजनिक स्थान और आपातकालीन तैयारियाँ सुनिश्चित करने का आदेश देता है।
  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
    • NDMA, SDMA और DDMA को भीड़-संबंधी घटनाओं सहित आपदाओं के प्रबंधन के लिए नीतियाँ और रणनीतियाँ तैयार करने का अधिकार देता है।
    • धारा 24 और धारा 34 संवेदनशील और प्रभावित क्षेत्रों से वाहनों एवं मानव यातायात को नियंत्रित करने और प्रतिबंधित करने की शक्ति प्रदान करती है।
    • धारा 33 जिला प्राधिकरण को आपदा प्रबंधन कार्यों के लिए, यदि आवश्यक हो, जिला या स्थानीय स्तर पर किसी भी अधिकारी या किसी विभाग को नियुक्त करने की अनुमति देती है।
  • पुलिस अधिनियम, 1861: पुलिस द्वारा भीड़ को नियंत्रित करने, सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने और बड़ी सभाओं को विनियमित करने की शक्ति प्रदान करता है।
  • महामारी रोग अधिनियम, 1897: स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों, जैसे कि कोविड-19 महामारी संबंधी नियमों के दौरान सार्वजनिक समारोहों को प्रतिबंधित करने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • मोटर वाहन अधिनियम, 1988: भीड़-भाड़ से संबंधित आपदाओं को रोकने के लिए परिवहन केंद्रों के पास यातायात की आवाजाही, सड़क सुरक्षा और भीड़ नियंत्रण को नियंत्रित करता है।
  • सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 और दिल्ली सिनेमैटोग्राफ नियम, 1953: सिनेमा हॉल और कार्यक्रम स्थलों पर अग्नि सुरक्षा उपायों, भीड़ नियंत्रण नियमों और आपातकालीन निकासों को अनिवार्य बनाता है।

निष्कर्ष

भारत में बड़ी संख्या में लोगों के एकत्रित होने की आवृत्ति को देखते हुए, यह आवश्यक है कि अधिकारियों  को भीड़ के आकार को सख्ती से नियंत्रित करने और पर्याप्त निकासी तथा सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करना चाहिए। सांस्कृतिक या धार्मिक आयोजनों को सुरक्षा हेतु स्वास्थ्य सुविधाओं की तैयारी के साथ-साथ वास्तविक समय में हस्तक्षेप करना आवश्यक है।

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