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संसद की स्थायी समिति द्वारा MSP को वैध बनाने की सिफारिश

Lokesh Pal December 20, 2024 02:24 24 0

संदर्भ

हाल ही में कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण संबंधी संसद की स्थायी समिति ने कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की ‘अनुदान मांगों (वर्ष 2024- 2025)’ पर अपनी पहली रिपोर्ट (अठारहवीं लोकसभा) में किसानों के कल्याण में सुधार के लिए अनेक उपायों के बीच न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानूनी गारंटी लागू करने की सिफारिश की है।

कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण संबंधी संसद की स्थायी समिति

  • कृषि, पशुपालन तथा खाद्य प्रसंस्करण संबंधी स्थायी समिति एक संसदीय समिति है, जो सरकार की कार्यकारी शाखा की निगरानी करती है और मंत्रालयों को सलाह देती है।
  • इतिहास: समिति की स्थापना पहली बार वर्ष 1993 में दसवीं लोकसभा के दौरान की गई थी।
    • इसे मूल रूप से कृषि समिति कहा जाता था, लेकिन वर्ष 2021 में इसके नाम में परिवर्तन कर पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण शीर्षक को इसमें शामिल कर दिया गया।
    • वर्ष 2021 में सहकारिता मंत्रालय को भी इसके अधिकार क्षेत्र में शामिल कर लिया गया।
  • जिम्मेदारियाँ: समिति सरकार की कार्यकारी शाखा की निगरानी कर जवाबदेही सुनिश्चित करती है और मंत्रालयों के कामकाज में सुधार करती है।
    • इसमें कृषि तथा जलवायु अनुकूल खेती के लिए बजटीय आवंटन जैसे मुद्दों पर सिफारिशें भी दी गई हैं।
  • संरचना: लोकसभा के प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमों के नियम 331C के अंतर्गत गठित समिति में 31 सदस्य हैं:
    • लोकसभा के 21 सदस्य, जिन्हें लोकसभा अध्यक्ष द्वारा नामित किया जाता है, तथा।
    • राज्यसभा के सभापति द्वारा नामित राज्यसभा के 10 सदस्य।
    • समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा के समिति के सदस्यों में से अध्यक्ष द्वारा की जाती है।

कृषि संबंधी संसदीय स्थायी समिति की सिफारिश

  • MSP की कानूनी गारंटी: समिति ने किसानों के लिए वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु कानूनी रूप से बाध्यकारी MSP लागू करने की सिफारिश की है।
    • समिति ने इस बात पर जोर दिया कि MSP खाद्यान्न उत्पादन को स्थिर करके और सार्वजनिक वितरण प्रणालियों का समर्थन करके राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के अनुरूप है।
    • इसने विधिक MSP के कार्यान्वयन के लिए एक रोडमैप तथा MSP कवरेज और बाजार मूल्य अंतराल पर संसद को समय-समय पर रिपोर्टिंग का प्रस्ताव दिया है।
  • धान की पराली प्रबंधन के लिए मुआवजा: समिति ने पर्यावरण संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए धान की पराली जैसे फसल अवशेषों के प्रबंधन तथा निपटान के लिए किसानों को मुआवजा प्रदान करने की सिफारिश की।
  • PM-किसान योजना के तहत सहायता में वृद्धि: समिति ने PM-किसान सम्मान निधि योजना के तहत मौद्रिक सहायता को ₹6,000 से बढ़ाकर ₹12,000 प्रतिवर्ष करने का प्रस्ताव रखा।
    • इसने काश्तकारों तथा खेतिहर मजदूरों को ‘मौसम आधारित प्रोत्साहन’ देने की भी सिफारिश की।
    • समिति ने ग्रामीण आय वृद्धि (57.6%) और व्यय वृद्धि (69.4%) के बीच महत्त्वपूर्ण असंतुलन को जिम्मेदार ठहराया, जिससे उधारी को कम करने के लिए अधिक समर्थन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
  • किसानों के लिए ऋण माफी: बढ़ते किसान संकट तथा आत्महत्याओं से निपटने के लिए समिति ने किसान और खेतिहर मजदूर के लिए ऋण माफी योजना की सिफारिश की।
    • इसमें NABARD सर्वेक्षण के आँकड़ों पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें ग्रामीण उधार में वृद्धि दिखाई गई है, जिसमें वर्ष 2021- 2022 तक 52% ग्रामीण परिवार कर्ज में होंगे, जबकि वर्ष 2016- 2017 में यह आँकड़ा 47.4% था।
  • कृषि के लिए बजटीय आवंटन में वृद्धि: समिति ने कृषि के लिए अधिक बजटीय आवंटन का आह्वान किया, जिसमें केंद्रीय योजना में इसके प्रतिशत हिस्से में वर्ष 2020- 2021 में 3.53% से वर्ष 2024- 2025 में 2.54% की गिरावट देखी गई।
    • पूर्ण वृद्धि के बावजूद, वर्ष 2023- 2024 में कृषि की विकास दर घटकर 1.4% रह जाएगी, जो सात वर्षों में सबसे कम है।
  • सार्वभौमिक फसल बीमा: समिति ने प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana- PM-JAY) की समान विषय-वस्तु पर आधारित 2 एकड़ तक की भूमि वाले लघु किसानों के लिए अनिवार्य सार्वभौमिक फसल बीमा लागू करने का सुझाव दिया।
  • खेतिहर मजदूरों के लिए एक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना: इसने खेतिहर मजदूरों के लिए न्यूनतम जीवनयापन मजदूरी के लिए एक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की सिफारिश की ताकि उनके दीर्घकालिक अधिकारों को संबोधित किया जा सके।
  • कृषि विभाग का नाम बदलना: समिति ने कृषि और किसान कल्याण विभाग का नाम बदलकर कृषि, किसान और खेत मजदूर कल्याण विभाग करने का प्रस्ताव रखा ताकि कृषि मजदूर कल्याण पर व्यापक ध्यान दिया जा सकता है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य 

  • MSP वह गारंटीयुक्त कीमत है जो सरकार द्वारा किसानों की उपज खरीदने पर उन्हें दी जाती है।
  • MSP को ऐतिहासिक रूप से वर्ष 1960 के दशक में अत्यधिक उत्पादन के वर्षों के दौरान कीमतों को स्थिर करने तथा फसल की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए प्रस्तुत किया गया था।
  • यह कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों पर आधारित है, जो उत्पादन लागत, मांग-आपूर्ति की गतिशीलता, बाजार के रुझान और फसलों के बीच मूल्य समानता जैसे कारकों का मूल्यांकन करता है।
    • कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के एक संबद्ध कार्यालय CACP की स्थापना जनवरी 1965 में हुई थी।
  • प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (Cabinet Committee on Economic Affairs- CCEA) MSP के स्तर पर अंतिम निर्णय लेती है।

MSP का उद्देश्य

  • MSP का उद्देश्य किसानों की उपज के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करना और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना है।
  • CACP, 23 अनिवार्य फसलों के लिए MSP/FRP की सिफारिश करता है।
    • 7 अनाज (धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ और रागी),
    • 5 दालें (चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर),
    • 7 तिलहन (मूंगफली, रेपसीड-सरसों, सोयाबीन, तिल, सूरजमुखी, कुसुम, नाइजरसीड), और
    • 4 वाणिज्यिक फसलें (खोपरा, गन्ना, कपास और कच्चा जूट)।
      • राज्य सरकार और अन्य हितधारकों के परामर्श से CACP की सिफारिशों के आधार पर गन्ने के लिए उचित तथा लाभकारी मूल्य (Fair and Remunerative Prices- FRP) तय किया गया।
  • इसके अतिरिक्त, तोरिया तथा छिलका रहित नारियल के MSP क्रमशः रेपसीड/सरसों और खोपरा के MSP के आधार पर तय किए जाते हैं।

CACP द्वारा प्रयुक्त उत्पादन लागत के प्रकार

  • A2 लागत: इसमें बीज, उर्वरक, कीटनाशक, किराए पर लिए गए श्रम, ईंधन आदि जैसी सभी भुगतान की गई लागतें शामिल हैं।
  • A2+FL लागत: A2 में अवैतनिक पारिवारिक श्रम का आरोपित मूल्य भी जोड़ा जाता है।
  • C2 लागत: एक अधिक व्यापक लागत, जिसमें A2+FL के साथ-साथ स्वामित्व भूमि तथा निश्चित पूंजी के लिए ब्याज और किराया शामिल है।
  • A2+FL का उपयोग रिटर्न की गणना करने के लिए किया जाता है, जबकि C2 यह सुनिश्चित करने के लिए एक बेंचमार्क के रूप में कार्य करती है कि MSP कम-से-कम प्रमुख उत्पादक राज्यों में उत्पादन लागत को शामिल करे।
  • CACP, MSP निर्धारित करने के लिए केवल A2+FL लागत की गणना (~1.5X (A2+FL) करता है।
    • हालाँकि, C2 लागत का उपयोग CACP द्वारा मुख्य रूप से बेंचमार्क संदर्भ लागत (अवसर लागत) के रूप में यह देखने के लिए किया जाता है कि क्या उनके द्वारा अनुशंसित MSP कम-से-कम कुछ प्रमुख उत्पादक राज्यों में इन लागतों को शामिल करते हैं।

MSP की कानूनी गारंटी के लाभ

  • किसानों के लिए आय सुरक्षा: विधिक MSP यह सुनिश्चित करती है कि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिले, जिससे बाजार में उतार-चढ़ाव के कारण होने वाली आय में अस्थिरता कम हो।
    • वर्ष 2021-22 में सीमित खरीद के कारण केवल 6% किसानों को MSP से लाभ मिला। कानूनी गारंटी से अधिक किसानों तक कवरेज का विस्तार हो सकता है।
    • किसानों को उचित मुआवजा प्रदान करने के लिए उत्पादन की भारित औसत लागत (C2 लागत) से कम-से-कम 50% अधिक MSP निर्धारित करने की स्वामीनाथन समिति की सिफारिश को लागू किया जाना चाहिए।
  • किसान आत्महत्याओं में कमी: सुनिश्चित मूल्य निर्धारण के माध्यम से वित्तीय स्थिरता, ऋण बोझ को कम कर सकती है, जो भारत में किसान आत्महत्याओं का एक प्रमुख कारण है।
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार, पिछले एक दशक में भारत में कृषि क्षेत्र में कार्य करने वाले कम-से-कम 11,290 लोगों ने आत्महत्या की है।
  • फसल विविधीकरण को प्रोत्साहन: कानूनी MSP किसानों को दालों, तिलहनों और बाजरा जैसी वैकल्पिक फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है, जिससे गेहूं और चावल पर निर्भरता कम हो जाएगी।
    • बाजरे के लिए MSP की गारंटी, सतत कृषि को बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2023 के दौरान भारत के प्रयासों के अनुरूप है।
  • ग्रामीण आर्थिक विकास में वृद्धि: किसानों की आय में वृद्धि से ग्रामीण व्यय में वृद्धि होती है, जिससे स्थानीय व्यवसायों तथा अर्थव्यवस्थाओं को प्रोत्साहन मिलता है।
    • नाबार्ड के वर्ष 2022-23 सर्वेक्षण में पाँच वर्षों में ग्रामीण आय में 57.6% की वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है, जो स्थिर कृषि आय के साथ और बढ़ सकती है।
  • खाद्य सुरक्षा और सार्वजनिक वितरण: एक मजबूत MSP मुख्य फसलों के लगातार उत्पादन को सुनिश्चित करता है, जिससे भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System- PDS) को सहायता मिलती है।
    • भारतीय खाद्य निगम ने वर्ष 2019-20 में चावल के 43% और गेहूँ उत्पादन के 36% की खरीद की, जिससे कल्याणकारी योजनाओं के लिए खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित हुई।
  • सीमांत किसानों का सशक्तीकरण: कानूनी MSP से बाजार में लेन-देन औपचारिक हो जाएगा, जिससे बिचौलियों द्वारा शोषण कम हो जाएगा।
    • किसान प्रायः खरीदारों की कमी के कारण MSP से कम कीमत पर अपनी उपज बेचते हैं, विशेष रूप से उन राज्यों में जहाँ बाजार से कम कनेक्टिविटी है।

MSP की कानूनी गारंटी के नुकसान

  • सरकार पर राजकोषीय बोझ: MSP कवरेज का विस्तार करने के लिए खरीद, भंडारण और वितरण के लिए महत्त्वपूर्ण संसाधनों की आवश्यकता होती है।
    • सभी 23 फसलों के लिए MSP लागू करने के लिए प्रतिवर्ष कार्यशील पूंजी के रूप में 6 लाख करोड़ रुपये की आवश्यकता हो सकती है।
  • मुद्रास्फीति संबंधी दवाब: उच्च MSP दरें, खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि कर सकती हैं, जिसका प्रभाव उपभोक्ताओं, विशेषकर गरीबों पर पड़ सकता है।
    • चावल और गेहूं के MSP में 1% की वृद्धि से खुदरा कीमतों में 0.22% की वृद्धि हुई है।
  • राज्य नीति भिन्नता: कृषि नीतियाँ और स्थितियाँ राज्यों में काफी भिन्न होती हैं।
    • सभी के लिए एक ही नीति लागू करना प्रभावी नहीं हो सकता है, जिससे राज्य-विशिष्ट नीतियों की आवश्यकता का संकेत मिलता है।
  • कुछ फसलों की उपेक्षा: कानूनी MSP से गेहूँ और चावल उत्पादन पर अत्यधिक जोर जारी रह सकता है, तथा दालों और बाजरा जैसी अधिक सतत फसलों की उपेक्षा हो सकती है।
    • सुनिश्चित खरीद के कारण अधिकांश फसल उत्पादन में गेहूं और धान का प्रभुत्व है।
  • बाजार में विकृतियाँ: वैधानिक MSP निजी खरीदारों को निर्धारित मूल्य से कम पर फसल खरीदने से रोक सकता है, जिससे सरकार प्राथमिक खरीदार बन जाएगी।
    • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act- NFSA) को खरीद सीमा के कारण अतिरिक्त गेहूँ तथा चावल के भंडारण में पहले से ही चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • पर्यावरण क्षरण: चावल और गन्ने जैसी जल की अधिक खपत वाली फसलों के लिए गारंटीकृत MSP,  भूजल की कमी और मृदा के क्षरण को बढ़ावा देती है।
    • MSP के प्रमुख लाभार्थी पंजाब और हरियाणा को व्यापक पैमाने पर धान की खेती के कारण जल स्तर में भारी गिरावट का सामना करना पड़ रहा है।
  • WTO अनुपालन मुद्दे: कानूनी MSP का WTO के न्यूनतम नियम के साथ टकराव हो सकता है, जो कुल कृषि उत्पादन के 10% तक सब्सिडी को सीमित करता है।
    • भारत को चावल निर्यात के लिए MSP व्यवस्था के अंतर्गत दी जाने वाली सब्सिडी को लेकर विश्व व्यापार संगठन की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।

विश्व व्यापार संगठन का न्यूनतम नियम

  • विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) का न्यूनतम नियम, न्यूनतम मात्रा में घरेलू समर्थन के उपयोग की अनुमति देता है, भले ही इससे व्यापार में विकृति उत्पन्न हो।
    • विकसित देश: उत्पादन के मूल्य का 5% तक।
    • विकासशील देश: उत्पादन के मूल्य का 10% तक।
  • शब्द ‘डी मिनिमिस’ लैटिन वाक्यांश ‘डी मिनिमिस नॉन क्यूरेट लेक्स’ से आया है, जिसका अर्थ है ‘कानून छोटी चीजों की परवाह नहीं करता’
  • ‘डी मिनिमिस’ नियम घरेलू समर्थन उपायों पर लागू होता है जो कृषि उत्पादकों के पक्ष में होते हैं, जैसे प्रत्यक्ष उत्पादन सब्सिडी, इनपुट सब्सिडी और बाजार मूल्य समर्थन उपाय।

भारत में MSP से संबंधित कृषि योजनाएँ

  • प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) (वर्ष 2018)
    • उद्देश्य: मूल्य आश्वासन योजनाओं के माध्यम से किसानों को उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करना।
    • घटक
      • मूल्य समर्थन योजना (Price Support Scheme- PSS): NAFED और FCI द्वारा MSP पर दलहन और तिलहन की केंद्रीय खरीद।
      • मूल्य न्यूनता भुगतान योजना (Price Deficiency Payment Scheme- PDPS): किसानों को MSP तथा वास्तविक बाजार मूल्य के बीच के अंतर का मुआवजा दिया जाता है।
      • निजी खरीद और स्टॉकिस्ट योजना (Private Procurement and Stockist Scheme- PPSS): कुछ क्षेत्रों में MSP पर फसलों की खरीद के लिए निजी संस्थाओं को अधिकार दिया गया है।
    • मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में PDPS के अंतर्गत तिलहन के लिए इसे क्रियान्वित किया गया।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (National Food Security Act -NFSA)
    • उद्देश्य: PDS के तहत वितरण के लिए MSP पर चावल और गेहूं की खरीद करके खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना।
    • महत्त्व: प्रमुख खाद्यान्नों के लिए बड़े पैमाने पर MSP-आधारित खरीद का समर्थन करता है।
  • ई-राष्ट्रीय कृषि बाजार, 2016 (e-NAM) 
    • उद्देश्य: किसानों को उचित मूल्य पर उपज बेचने के लिए एक एकीकृत ऑनलाइन बाज़ार बनाना।
    • पारदर्शी नीलामी और बाजार संपर्कों के माध्यम से किसानों के लिए बेहतर मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करना।
  • राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, 2007 
    • उद्देश्य: MSP जागरूकता अभियान सहित कृषि विकास को बढ़ावा देने वाली योजनाओं को लागू करने के लिए राज्यों को लचीलापन प्रदान करना।
    • महत्त्व: खरीद अवसंरचना विकास और किसान प्रशिक्षण कार्यक्रमों जैसी MSP से संबंधित गतिविधियों का समर्थन करता है।
  • भारतीय खाद्य निगम (FCI) द्वारा खरीद योजनाएँ
    • उद्देश्य: PDS तथा बफर स्टॉक के लिए MSP पर गेहूं और चावल जैसे खाद्यान्नों की खरीद करना।
    • महत्त्व: खाद्यान्नों के लिए MSP लागू करने के लिए एक प्रमुख तंत्र के रूप में कार्य करता है।
  • राज्य स्तरीय योजनाएँ
    • मुख्यमंत्री भावांतर भुगतान योजना (मध्य प्रदेश)
      • उद्देश्य: जब बाजार मूल्य MSP से कम हो जाए तो किसानों को ‘मूल्य न्यूनता भुगतान’ उपलब्ध कराना।
      • कार्यान्वयन: किसानों को सोयाबीन, मक्का और धान जैसी फसलों के लिए मुआवजा प्राप्त होता  है।
    • तेलंगाना की रायथु बंधु योजना: MSP पर निर्भरता कम करने के लिए फसल उत्पादन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
    • कर्नाटक की रायथा सिरी योजना: MSP की गारंटी के साथ बाजरे की खेती को बढ़ावा देती है।

MSP की कानूनी गारंटी के लिए आगे की राह

  • क्षेत्रीय और फसल-विशिष्ट MSP रणनीति अपनाना: क्षेत्रीय कृषि पद्धतियों के अनुसार MSP कार्यान्वयन को तैयार करना और बाजरा, दलहन और तिलहन जैसी विविध फसलों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना।
    • कर्नाटक जैसे राज्यों ने अपनी राज्य-स्तरीय योजनाओं के तहत रागी और बाजरा के लिए क्षेत्र-विशिष्ट MSP संबंधी प्रयोग किया है।
  • कृषि अवसंरचना को मजबूत करना: बढ़ी हुई MSP संचालन को प्रभावी ढंग से समर्थन देने के लिए मजबूत खरीद प्रणाली, भंडारण सुविधाएँ और परिवहन नेटवर्क विकसित करना।
    • भारतीय खाद्य निगम (FCI) को प्रायः अपर्याप्त भंडारण सुविधाओं के कारण, विशेषतः बंपर फसल के दौरान, बर्बादी की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • संधारणीय कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना: MSP को संधारणीय कृषि प्रोत्साहनों से जोड़ना, जैसे कि कम जल युक्त फसलें और जैविक खेती अपनाना।
    • धान की खेती के कारण भूजल में कमी का सामना कर रहे पंजाब और हरियाणा को MSP गारंटी के तहत बाजरा और दालें उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • पारदर्शी खरीद के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: किसानों के लिए उपज का पंजीकरण करने, MSP दरों की जाँच करने और खरीद प्रक्रियाओं की निगरानी करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म प्रस्तुत करना।
    • E-NAM (राष्ट्रीय कृषि बाजार) ने किसानों को डिजिटल बाजारों में सफलतापूर्वक एकीकृत किया है, जिससे बिचौलियों का शोषण कम हुआ है।
  • किसान जागरूकता कार्यक्रमों का विस्तार करना: किसानों को MSP के लाभों, अधिकारों और कानूनी प्रवर्तन तंत्रों के बारे में शिक्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान संचालित करना।
    • वर्ष 2015 की शांता कुमार समिति की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 6% किसान ही MSP लाभों के बारे में जानते थे, जिससे जागरूकता कार्यक्रमों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
  • WTO अनुपालन सुनिश्चित करना: WTO नियमों के अनुरूप MSP नीतियों को पुनः तैयार करना, जैसे कि सब्सिडी के लिए कृषि उत्पादन के मूल्य का 10% की न्यूनतम सीमा।
    • भारत MSP नीतियों को अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से बचाने के लिए खाद्य सुरक्षा प्रावधानों के अंतर्गत छूट का उपयोग कर सकता है।
  • राष्ट्रीय कृषि मूल्य निर्धारण आयोग की स्थापना करना: उत्पादन लागत, पर्यावरणीय स्थिरता और बाजार की मांग को ध्यान में रखते हुए पारदर्शी तरीके से MSP का स्तर तय करने के लिए एक स्वतंत्र निकाय की स्थापना करना।
    • ऐसा निकाय MSP दरों को राजनीतिकरण से बचा सकता है, तथा किसानों के लिए निष्पक्षता और पूर्वानुमेयता सुनिश्चित कर सकता है।

निष्कर्ष

MSP के लिए कानूनी गारंटी किसान कल्याण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। हालाँकि, इसके सफल होने के लिए, इसे क्षेत्रीय अनुकूलन, बेहतर बुनियादी ढाँचे, जागरूकता और स्थिरता एवं वैश्विक व्यापार मानदंडों के साथ संरेखण के साथ पूरक होना चाहिए। यह समग्र दृष्टिकोण MSP, कृषि विकास और ग्रामीण स्थिरता हेतु एक प्रभावी उपकरण बना सकता है।

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