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दुष्कर्म पर राज्य के कानून

Lokesh Pal September 06, 2024 12:51 108 0

संदर्भ

पश्चिम बंगाल विधानसभा ने अपराजिता महिला एवं बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक, 2024 [Aparajita Woman and Child (West Bengal Criminal Laws Amendment) Bill, 2024] अर्थात् अपराजिता विधेयक (Aparajita Bill) पारित कर दिया है।

दुष्कर्म पर राज्य विधेयकों और कानूनों का अवलोकन

कोलकाता में एक युवा डॉक्टर के साथ दुष्कर्म एवं हत्या के विरोध में पश्चिम बंगाल विधानसभा ने ‘अपराजिता’ विधेयक पारित कर दिया है, जिसमें दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है।

  • प्रमुख संशोधन: विधेयक निम्नलिखित प्रावधानों में संशोधन करता है: 
    • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) 
    • भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS)।
    • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO)।
  • इसी तरह के विधेयक: पश्चिम बंगाल से पहले, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र विधानसभाओं ने दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड का प्रावधान करने वाले कानून पारित किए थे।
    • इससे पहले मध्य प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश विधानसभाओं ने क्रमशः वर्ष 2017 और वर्ष 2018 में दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया था।

क्या राज्य राष्ट्रीय कानूनों में संशोधन कर सकते हैं?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद-254(2) के तहत राज्य ऐसा कर सकते हैं।

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-254(2): यह राज्य विधानमंडल को समवर्ती सूची के किसी मामले पर केंद्रीय कानून के विपरीत कानून पारित करने की अनुमति देता है, लेकिन केवल तभी जब राज्य कानून को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हो।
    • इसका अर्थ यह है कि राज्य का कानून उस राज्य में मान्य होगा, भले ही वह केंद्रीय कानून से भिन्न हो, बशर्ते कि उसे राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किया गया हो।
  • राष्ट्रपति की स्वीकृति: राष्ट्रपति केंद्र सरकार की सलाह पर चलता है।
    • राष्ट्रपति सहमति देने के लिए बाध्य नहीं हैं। 
    • संविधान में ऐसी कोई समय-सीमा नहीं दी गई है, जिसके भीतर केंद्र सरकार को यह प्रक्रिया पूरी करनी होगी।

भारत में दुष्कर्म की समस्या

  • पिछले वर्ष (2023) में जापान ने दुष्कर्म की परिभाषा को ‘बलपूर्वक यौन-संबंध बनाने’ से ‘गैर-सहमति वाले यौन-संबंध’ तक विस्तारित किया है, जिसका लक्ष्य उन परिदृश्यों की एक विस्तृत शृंखला को शामिल करना है, जहाँ पीड़िता यौन संबंध में शामिल होने की अपनी सहमति को अस्वीकार करने या व्यक्त करने में असमर्थ हो सकती हैं।
  • दुष्कर्म के प्रमुख प्रकार
    • गंभीर दुष्कर्म: तब होता है, जब अपराधी के पास पीड़ित पर अधिकार या नियंत्रण की विशेष स्थिति होती है।
    • दुष्कर्म और हत्या का अपराध: यदि दुष्कर्म के दौरान, अभियुक्त इतनी गंभीर चोट पहुँचाता है कि पीड़िता की मृत्यु हो जाती है या वह वर्धी अवस्था में चली जाती है।
    • सामूहिक दुष्कर्म: यदि एक ही समय में कई लोगों द्वारा एक महिला के साथ दुष्कर्म किया जाता है।
    • बार-बार अपराध करने वाले: यदि किसी व्यक्ति को दूसरी बार दुष्कर्म का दोषी ठहराया जाता है।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) की ‘भारत में अपराध 2022’ रिपोर्ट के निष्कर्ष: वर्ष 2022 के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,45,256 मामले दर्ज किए गए, जो वर्ष 2021 (4,28,278 मामले) की तुलना में 4.0% की वृद्धि दर्शाता है।
    • अधिकांश मामले ‘पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता’ (31.4%) के अंतर्गत दर्ज किए गए, इसके बाद ‘महिलाओं का अपहरण’ (19.2%) और ‘दुष्कर्म’ (7.1%) का स्थान रहा।
  • NCRB की ‘भारत में अपराध 2021’ रिपोर्ट के निष्कर्ष: NCRB के आँकड़ों के अनुसार, भारत में वर्ष 2021 में दुष्कर्म के 31,677 मामले दर्ज किए गए, जबकि वर्ष 2021 में प्रत्येक एक घंटे में महिलाओं के खिलाफ अपराध के लगभग 49 मामले दर्ज किए गए।
    • वर्ष 2020 में दुष्कर्म के मामलों की संख्या 28,046 थी, जबकि वर्ष 2019 में यह 32,033 थी।
    • राज्यों में, राजस्थान (6,337) सूची में सबसे ऊपर था, उसके बाद मध्य प्रदेश (2,947), महाराष्ट्र (2,496) और उत्तर प्रदेश (2,845) थे, जबकि दिल्ली में वर्ष 2021 में 1,250 दुष्कर्म के मामले दर्ज किए गए।
    • दुष्कर्म के लिए अपराध की दर (प्रति लाख जनसंख्या) राजस्थान (16.4) में सबसे अधिक थी, उसके बाद चंडीगढ़ (13.3), दिल्ली (12.9), हरियाणा (12.3) और अरुणाचल प्रदेश (11.1) का स्थान रहा।
    • NCRB के अनुसार, अपराध की अखिल भारतीय औसत दर 4.8 रही।

दुष्कर्म पर बंगाल, आंध्र और महाराष्ट्र विधेयकों की तुलना

पश्चिम बंगाल अपराजिता विधेयक, आंध्र प्रदेश दिशा विधेयक और महाराष्ट्र शक्ति विधेयक की तुलना करने वाली तालिका:

मानदंड  पश्चिम बंगाल: अपराजिता बिल (Aparajita Bill) आंध्र प्रदेश: दिशा बिल (Disha Bills) महाराष्ट्र: शक्ति बिल (Shakti Bill)
गंभीर दुष्कर्म के लिए सजा आजीवन कारावास या मृत्युदंड। दुष्कर्म, सामूहिक दुष्कर्म और बार-बार अपराध करने वालों के लिए मृत्युदंड। दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड की शुरुआत की गई।
दुष्कर्म के कारण मृत्यु या अचेतन अवस्था की सजा अनिवार्य मृत्यु दंड. मृत्यु दंड। जघन्य दुष्कर्म के मामलों में मृत्युदंड।
सामूहिक दुष्कर्म की सज़ा इसके अलावा 18 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। सामूहिक दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड। सामूहिक दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया गया।
बार-बार अपराध करने वाले बार-बार अपराध करने वालों के लिए मृत्युदंड। बार-बार अपराध करने वालों के लिए मृत्युदंड। बार-बार अपराध करने वालों के लिए मृत्युदंड।
एसिड अटैक कठोर आजीवन कारावास। अपर्याप्त डेटा जघन्य एसिड हमलों के लिए मृत्युदंड की शुरुआत की गई।
नाबालिग पर हमले के लिए दंड यौन उत्पीड़न के लिए मृत्युदंड। नाबालिगों के विरुद्ध यौन उत्पीड़न के लिए मृत्युदंड। अपर्याप्त डेटा
विशेष न्यायालय एवं कार्य बल शीघ्र सुनवाई के लिए विशेष अपराजिता टास्क फोर्स और विशेष न्यायालय। महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के लिए विशेष पुलिस दल और विशिष्ट विशेष न्यायालय। विशेष न्यायालय और विशेष पुलिस महानिरीक्षक या पुलिस आयुक्त।
जाँच की समयसीमा जाँच 21 दिनों में पूरी की जाएगी, जिसे 15 दिनों के लिए बढ़ाया जा सकता है। शीघ्र जाँच और सुनवाई, कम समय में। जाँच और परीक्षण के लिए समयसीमा कम कर दी गई।
वेब प्लेटफॉर्म/डेटा शेयरिंग अपर्याप्त डेटा कानून प्रवर्तन के लिए सुलभ महिला एवं बाल अपराधियों की रजिस्ट्री का प्रस्ताव रखा गया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को जाँच अधिकारियों के साथ डेटा साझा करने के लिए बाध्य किया गया।

दुष्कर्म पर राज्य विधेयकों और कानूनों का महत्त्व

पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों द्वारा कड़े कानून लागू करने के लिए उठाए गए कदम महत्त्त्वपूर्ण कानूनी और सामाजिक प्रभाव दर्शाते हैं:-

  • रोकथाम को मजबूत करना: मृत्युदंड निर्धारित करके, इन विधेयकों का उद्देश्य ऐसे जघन्य अपराधों के विरुद्ध मजबूत निवारक के रूप में कार्य करना है।
  • तीव्र जाँच और न्याय: विशेष न्यायालय, टास्क फोर्स और जाँच के लिए कम समय सीमा (जैसे कि पश्चिम बंगाल में 21 दिन) त्वरित न्याय सुनिश्चित करते हैं, जो दुष्कर्म के मामलों में प्रमुख चिंताओं में से एक विलंबित सुनवाई को संबोधित करते हैं।
  • विस्तारित कानूनी दायरा: ये कानून न केवल दुष्कर्म पर ध्यान केंद्रित करते हैं, बल्कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों के अन्य रूपों, जैसे एसिड हमलों के लिए भी अपने कवरेज का विस्तार करते हैं। यह लैंगिक आधारित हिंसा के लिए अधिक व्यापक दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है।
  • बाल संरक्षण पर ध्यान देना: यौन उत्पीड़न के लिए मृत्युदंड की शुरुआत करके, ये कानून बच्चों को यौन हिंसा से बचाने पर जोर देते हैं, जो भारत में बढ़ती चिंता का विषय है।
  • कानून प्रवर्तन को सशक्त बनाना: कार्य बलों और महिला एवं बाल अपराधियों की रजिस्ट्री के निर्माण जैसे प्रावधान कानून प्रवर्तन एजेंसियों की अपराधों को ट्रैक करने, जाँच करने और रोकने की क्षमता को मजबूत करते हैं।
    • उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश के कानून में कानून प्रवर्तन के लिए सुलभ रजिस्ट्री की शुरुआत की गई है, जिससे अपराधियों की निगरानी करने की क्षमता में सुधार हुआ है।

राज्य कानूनों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

  • राज्यों में कानूनी विसंगतियाँ: यदि अलग-अलग राज्यों में दंड की अलग-अलग डिग्री है, तो इससे न्याय प्रशासन में असमानताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • मृत्यु दंड पर बहस: मृत्यु दंड के मानवाधिकार निहितार्थों के बारे में चिंताएँ हैं, खासकर यह देखते हुए कि संयुक्त राष्ट्र सहित कई अंतरराष्ट्रीय संगठन इसके उन्मूलन की सिफारिश करते हैं।
  • खंडित आपराधिक न्याय: यदि अलग-अलग राज्यों में दंड की अलग-अलग डिग्री है, तो इससे न्याय प्रशासन में असमानताएँ उत्पन्न हो सकती हैं और समग्र आपराधिक न्याय प्रणाली ,खंडित हो जाएगी।
  • न्यायिक अधिभार: छोटी समयसीमा लागू करने से न्यायपालिका और कानून प्रवर्तन पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे न्याय में देरी हो सकती है, यहाँ तक ​​कि त्वरित कानूनी प्रावधानों के तहत भी।

आगे की राह 

  • एकसमान कार्यान्वयन सुनिश्चित करना: पश्चिम बंगाल और इसी तरह के विधेयकों वाले अन्य राज्यों के लिए अगला महत्त्वपूर्ण कदम संविधान के अनुच्छेद-254(2) के तहत अनिवार्य राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करना है।
    • एक बार राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाए तो राज्यों में इन कानूनों का एक समान कार्यान्वयन और अनुपालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • दंडात्मक उपायों और पुनर्वास में संतुलन: जबकि मृत्युदंड जैसी कठोर सजाएँ निवारक के रूप में कार्य करती हैं, वहीं उन दोषियों के पुनर्वास पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए, जो सुधर सकते हैं।
    • जो मामले मृत्युदंड के योग्य नहीं हैं, उनके लिए प्रभावी पुनर्वास कार्यक्रमों के साथ आजीवन कारावास को समानांतर प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • जाँच और न्यायिक बुनियादी ढाँचे में सुधार: तेजी से सुनवाई के लिए, न्यायाधीशों की भर्ती, विशेष न्यायालयों के निर्माण और अच्छी तरह से प्रशिक्षित कानून प्रवर्तन एजेंसियों सहित पर्याप्त बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता है।
  • व्यापक पीड़ित सहायता प्रणाली: इसमें मनोवैज्ञानिक परामर्श, चिकित्सा देखभाल, वित्तीय सहायता और पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए कानूनी सहायता शामिल है।
    • पीड़ितों की गोपनीयता और सम्मान की रक्षा को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए, विशेषकर उन मामलों में जहाँ मीडिया गोपनीयता मानदंडों का उल्लंघन कर सकता है।
  • जन जागरूकता अभियान: इसमें स्कूलों, कॉलेजों और कार्यस्थलों में लिंग संवेदनशीलता, कानूनी जागरूकता और आत्मरक्षा पर शैक्षिक कार्यक्रम शामिल हैं।
    • महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण बदलने तथा महिलाओं के अधिकारों के प्रति सम्मान को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से अभियान चलाना आवश्यक है।
  • लैंगिक-संवेदनशील पुलिस प्रशिक्षण: पुलिस कर्मियों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए नियमित प्रशिक्षण और संवेदनशीलता कार्यक्रम आवश्यक हैं।
    • यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने में विशेष प्रशिक्षण, पीड़ित-केंद्रित दृष्टिकोण सुनिश्चित करने से दुष्कर्म के मामलों में बेहतर परिणाम सामने आएँगे।
  • राज्यों और केंद्र के बीच सहयोग: राज्यों को केंद्र सरकार के साथ सहयोग करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये कानून राष्ट्रीय कानूनी ढाँचे के अनुरूप हों।
    • सामूहिक दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप सामंजस्यपूर्ण कानून बनेगा जो लिंग आधारित हिंसा में योगदान देने वाले सामाजिक-आर्थिक कारकों को संबोधित करेगा।

निष्कर्ष

इन बहुआयामी रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करके, भारत न केवल सख्त कानूनों की ओर बढ़ सकता है, बल्कि एक ऐसे समाज की ओर बढ़ सकता है, जहाँ दुष्कर्म और यौन हिंसा को व्यवस्थित रूप से रोका जा सके और न्याय प्रभावी तथा मानवीय तरीके से प्रदान किया जा सके।

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