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जलवायु स्थिति रिपोर्ट 2024

Lokesh Pal March 22, 2025 02:35 51 0

संदर्भ

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization-WMO) द्वारा प्रकाशित जलवायु स्थिति रिपोर्ट 2024 (State of Climate Report 2024) के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग के कारण वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) का स्तर पिछले 8,00,000 वर्षों में अपने उच्चतम बिंदु पर पहुँच गया है।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization-WMO) के बारे में

  • परिचय: यह संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक विशेष एजेंसी है और पृथ्वी के वायुमंडल की स्थिति, व्यवहार, भूमि और महासागरों के साथ इसकी अंतःक्रिया, इसके द्वारा उत्पन्न मौसम और जलवायु तथा जल संसाधनों के परिणामी वितरण पर एक आधिकारिक अभिव्यक्ति है।
  • स्थापना: वर्ष 1950 में।
  • मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्जरलैंड।
  • सदस्यता: 193 सदस्य, जिनमें 187 सदस्य देश और 6 क्षेत्र शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक अपनी स्वयं की मौसम संबंधी सेवाओं का प्रबंधन करता है।
  • अधिदेश: WMO का अधिदेश मौसम विज्ञान (मौसम एवं जलवायु), परिचालन जल विज्ञान और संबंधित भू-भौतिकीय विज्ञान के क्षेत्रों से संबंधित है।
  • शासन संरचना
    • विश्व मौसम विज्ञान कांग्रेस: सर्वोच्च निकाय, जिसमें सभी सदस्यों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। नीतियाँ निर्धारित करने और विनियमन अपनाने के लिए कम-से-कम प्रत्येक चार वर्ष में बैठक होती है।
    • कार्यकारी परिषद: 36 सदस्यों वाला निकाय, जो नीतियों को लागू करने के लिए वार्षिक रूप से बैठक करता है।
    • सचिवालय: महासचिव के नेतृत्व में, चार वर्ष के कार्यकाल के लिए नियुक्त, WMO के प्रशासनिक केंद्र के रूप में कार्य करता है।
  • WMO द्वारा जारी रिपोर्ट
    • वैश्विक जलवायु रिपोर्ट की स्थिति (State of the Global Climate Report)
    • ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन (Greenhouse Gas Bulletin)
    • वैश्विक जल संसाधन रिपोर्ट (Global Water Resources Report)
    • जलवायु सेवाओं की स्थिति रिपोर्ट (State of Climate Services Report )
    • यूनाइटेड इन साइंस रिपोर्ट (वार्षिक, IPCC, UNEP, आदि के साथ सहयोगात्मक)।

जलवायु स्थिति रिपोर्ट, 2024 के बारे में

  • यह रिपोर्ट विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organisation-WMO) द्वारा बाकू में संयुक्त राष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन (COP29) के दौरान जारी की गई।

WMO जलवायु स्थिति रिपोर्ट 2024 के मुख्य निष्कर्ष

  • ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि: वर्ष 2023 में CO₂ का स्तर 420 भाग प्रति मिलियन तक पहुँच गया, जो 8,00,000 वर्षों में सबसे अधिक है।
    • मेथेन (CH₄): 1923 भाग प्रति बिलियन (पूर्व-औद्योगिक स्तरों का 266%)
    • नाइट्रोजन ऑक्साइड (N₂O): 335.8 भाग प्रति बिलियन (पूर्व-औद्योगिक स्तरों का 124%)
  • तापमान में वृद्धि: 175 वर्ष  के अवलोकन रिकॉर्ड में यह सबसे गर्म वर्ष है।
    • वर्ष 2024 पहला वर्ष था, जब वार्षिक रूप से 1.5°C पेरिस समझौते की सीमा पार की गई।
    • यूरोपीय संघ की कोपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा (C3S) का अनुमान है कि सितंबर 2029 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पार हो सकती है। 
  • महासागरों का गर्म होना: महासागर वैश्विक ऊष्मा का 90% अवशोषित करते हैं: महासागरों में ऊष्मा की मात्रा रिकॉर्ड किए गए इतिहास में सबसे अधिक है।
    • समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है, ग्लेशियर तेजी से संकुचित हो रहे हैं।
    • अंटार्कटिक समुद्री बर्फ अब तक दर्ज की गई दूसरी सबसे कम सीमा पर है।

  • महासागर अम्लीकरण: महासागर की सतह का अम्लीकरण जारी है, जैसा कि वैश्विक औसत महासागर सतह pH में लगातार कमी से पता चलता है।
    • सबसे तीव्र क्षेत्रीय गिरावट हिंद महासागर, दक्षिणी महासागर, पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर, उत्तरी उष्णकटिबंधीय प्रशांत और अटलांटिक महासागर के कुछ क्षेत्रों में दर्ज की गई।
  • विस्थापन: वर्ष 2024 में रिकॉर्ड चरम मौसम की घटनाएँ देखी गईं: उष्णकटिबंधीय चक्रवात, अत्यधिक वर्षा और बाढ़ और सूखा।
    • वर्ष 2024 में वर्ष 2008 के बाद से जलवायु-प्रेरित विस्थापन की सबसे अधिक संख्या देखी गई।
  • ग्लेशियरों का नकारात्मक द्रव्यमान संतुलन: वर्ष 2022-2024 में ग्लेशियरों में तीन वर्ष में सर्वाधिक हानि दर्ज की गई। पिछले 10 वर्षों में से सात वर्षों में ग्लेशियरों का सबसे अधिक नकारात्मक द्रव्यमान संतुलन रहा है।

वर्ष 2024 की रिपोर्ट में जलवायु रुझानों के पीछे के कारण

  • रिकॉर्ड CO₂ और ग्रीनहाउस गैस स्तर
    • जीवाश्म ईंधन का दहन: ऊर्जा के लिए कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस का निरंतर उपयोग।
    • वनों की कटाई: वनों के संकुचन से कार्बन अवशोषण क्षमता में कमी।
    • औद्योगिक उत्सर्जन: सीमेंट, स्टील और रासायनिक उद्योगों से उत्पादन में वृद्धि।
    • कृषि पद्धतियाँ: बड़े पैमाने पर पशुपालन से मेथेन (CH₄) उत्सर्जित होती है और अत्यधिक उर्वरक उपयोग से नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) उत्सर्जन में योगदान होता है।
  •  वैश्विक तापमान में अत्यधिक वृद्धि
    • ग्रीनहाउस प्रभाव तीव्रता: उच्च CO₂, CH₄, और N₂O अधिक गर्मी को रोकते हैं।
    • एल नीनो: वर्ष 2024 की शुरुआत में गर्म समुद्री धाराएँ वैश्विक तापमान को और बढ़ा दिया।
    • शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव: विस्तारित शहर अधिक गर्मी को अवशोषित करते हैं और बनाए रखते हैं।
  • महासागर का गर्म होना और समुद्र स्तर में वृद्धि
    • महासागर 90% अतिरिक्त ऊष्मा को अवशोषित करते हैं: ग्लोबल वार्मिंग के कारण, महासागर ऊष्मा सिंक के रूप में कार्य करते हैं।
    • ध्रुवीय बर्फ की चोटियाँ का पिघलना: ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका से बर्फ के पिघलने की दर  बढ़ गई है।
    • ऊष्मीय विस्तार: जैसे-जैसे जल गर्म होता है, यह फैलता है, जिससे समुद्र का स्तर बढ़ता है।
    • महासागरों द्वारा CO₂ अवशोषण में वृद्धि: अधिक वायुमंडलीय CO₂ समुद्री जल में घुल जाती है, जिससे कार्बोनिक एसिड का निर्माण होता है।
  • चरम मौसम की घटनाएँ और जलवायु-प्रेरित विस्थापन
    • उच्च वायुमंडलीय नमी: अधिक जल वाष्प के कारण तीव्र तूफान एवं बाढ़ आती है।
    • अधिक तीव्र चक्रवात और तूफान: समुद्र का तापमान गर्म होने पर तूफान अधिक तीव्र होते हैं।

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयास

  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (United Nations Framework Convention on Climate Change-UNFCCC): बहुपक्षीय समझौतों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वर्ष 1992 में स्थापित किया गया।
    • यह जलवायु वार्ता के लिए वार्षिक कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP) बैठकों का आयोजन करता है।
  • पेरिस समझौता (2015)
    • लक्ष्य: वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे सीमित करना तथा इसे 1.5°C से कम रखने का प्रयास करना।
    • देश उत्सर्जन कम करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) प्रस्तुत करते हैं।
    • जलवायु वित्त पर ध्यान केंद्रित करना, जिसमें विकसित देश विकासशील देशों की सहायता के लिए प्रतिवर्ष 100 बिलियन डॉलर देने की प्रतिबद्धता जाहिर करते हैं।
  • वैश्विक मेथेन प्रतिज्ञा: वर्ष 2030 तक मेथेन उत्सर्जन को 30% तक कम करने के लिए वर्ष 2021 में COP26 में लॉन्च किया गया।
    • तेल एवं गैस, कृषि तथा अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए 150 से अधिक देश इसमें शामिल हुए हैं।
  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change-IPCC): जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान का आकलन करने वाला संयुक्त राष्ट्र निकाय है।   
    • अपने आकलन के माध्यम से, IPCC जलवायु परिवर्तन पर ज्ञान की स्थिति निर्धारित करता है। 
    • IPCC अपना स्वयं का शोध नहीं करता है।
  • वैश्विक महासागर संधि (2023): इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक दुनिया के 30% महासागरों की रक्षा करना है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक (2021-2030): वन और समुद्री संरक्षण प्रयासों का समर्थन करता है।

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारतीय पहल

  • नेट जीरो प्रतिबद्धता: भारत का लक्ष्य वर्ष 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन प्राप्त करना है, जैसा कि COP-26 में घोषित किया गया था।
    • वर्ष 2022 में UNFCCC को दीर्घकालिक निम्न ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन विकास रणनीतियाँ (Long-Term Low Greenhouse Gas Emission Development Strategies – LT-LEDS) प्रस्तुत की गईं।
    • समानता, जलवायु न्याय और सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं (Common but Differentiated Responsibilities and Respective Capabilities- CBDR-RC) पर आधारित है।
  • अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance-ISA): अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) एक संधि-आधारित अंतर-सरकारी संगठन है।
    • भारत और फ्राँस ने वर्ष 2015 में COP21 पेरिस जलवायु सम्मेलन के दौरान इस गठबंधन की संकल्पना की थी।
    • ISA बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा समाधानों को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है, विशेषकर उच्च सौर विकिरण वाले देशों में।
    • वर्ष 2030 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक निवेश जुटाने के अपने लक्ष्य के साथ, गठबंधन लागत कम करने, नवाचार को बढ़ावा देने और जलवायु लचीलापन हासिल करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • वन संरक्षण एवं वनरोपण
    • वन (संरक्षण एवं संवर्द्धन) अधिनियम, 1980 वन संरक्षण सुनिश्चित करता है।
    • CAMPA के तहत वन भूमि के लिए प्रतिपूरक वनरोपण।
    • पौधरोपण को बढ़ावा देने के लिए एक पेड़ माँ के नाम अभियान (2024)।
    • ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम (2023) वनरोपण को प्रोत्साहित करता है।
    • क्षरित वनों के लिए राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम (National Afforestation Programme-NAP)।
  • तटीय और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण
    • मिष्टी (MISHTI) या ‘तटीय आवास और मूर्त आय के लिए मैंग्रोव पहल’ (Mangrove Initiative for Shoreline Habitats & Tangible Incomes) (2023):
      • 9 तटीय राज्यों और 4 केंद्रशासित प्रदेशों में 540 वर्ग किलोमीटर मैंग्रोव को बहाल करने का लक्ष्य।
      • वर्ष 2024-25 में ₹12.55 करोड़ आवंटित।
  • अद्यतन राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) (अगस्त 2022)
    • उच्च उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्य: वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद उत्सर्जन तीव्रता में 45% की कमी लाना (वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में)।
    • नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य में वृद्धि: वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 50% संचयी विद्युत ऊर्जा क्षमता प्राप्त करना।
    • LiFE (पर्यावरण के लिए जीवन शैली) पहल: स्थायी उपभोक्ता व्यवहार को बढ़ावा देना।

जलवायु परिवर्तन संबंधी कार्रवाइयों के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

  • ऊर्जा संक्रमण चुनौतियाँ
    • कोयले पर अत्यधिक निर्भरता: उदाहरण: भारत अभी भी अपनी 50% से अधिक बिजली उत्पादन के लिए कोयले पर निर्भर है, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा की ओर तेजी से बदलाव करना जटिलहो जाता है।
      • नवीकरणीय ऊर्जा में कमी: सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन मौसम की स्थिति पर निर्भर करता है, जिसके लिए बड़े पैमाने पर बैटरी भंडारण की आवश्यकता होती है, जो महंगा है।
      • ग्रिड अवसंरचना: राष्ट्रीय पॉवर ग्रिड को बड़ी मात्रा में नवीकरणीय ऊर्जा को एकीकृत करने के लिए उन्नयन की आवश्यकता है।
      • विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता: सौर पैनल, पवन टर्बाइन और बैटरी प्रौद्योगिकियों का एक बड़ा हिस्सा आयात किया जाता है, जिससे लागत और निर्भरता बढ़ जाती है।
  • औद्योगिक एवं शहरी चुनौतियाँ
    • तीव्र शहरीकरण: बढ़ते शहरों में ऊर्जा की माँग, वाहनों से होने वाला उत्सर्जन और अपशिष्ट उत्पादन बढ़ता है, जिससे कम कार्बन वाली शहरी योजना बनाना जटिल हो जाता है।
    • बुनियादी ढाँचे का विकास बनाम स्थिरता: राजमार्गों, हवाई अड्डों और औद्योगिक क्षेत्रों के विस्तार से अक्सर वनों की कटाई और पर्यावरण का क्षरण होता है।
      • सीमेंट, स्टील और परिवहन उद्योग ऊर्जा-गहन हैं और उन्हें डीकार्बोनाइज करना जटिल है।
  • कृषि चुनौतियाँ
    • जीवाश्म ईंधन पर कृषि निर्भरता: किसान डीजल पंपों और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर हैं, जिससे कृषि में कार्बन उत्सर्जन कम करना एक चुनौती बन गया है।
  • सीमित और अपर्याप्त जलवायु वित्त: वर्ष 2018 से वर्ष 2022 तक, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं ने वैश्विक जलवायु वित्त में 45% का योगदान दिया, जबकि सबसे कम विकसित देशों (LDCs) को केवल 3% प्राप्त हुआ। (जलवायु वित्त का वैश्विक परिदृश्य, 2024)।
    • भारत ने COP29 में अपनाए गए जलवायु वित्त पर नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (New Collective Quantified Goal on Climate Finance-NCQG) को अस्वीकार कर दिया है और वर्ष 2035 तक प्रतिवर्ष 300 बिलियन डॉलर जुटाने के प्रस्तावित लक्ष्य की आलोचना करते हुए इसे “बहुत कम और बहुत दूर की बात” बताया है।
  • जिम्मेदारी और कार्रवाई में असमानताएँ: विकसित देशों ने ऐतिहासिक रूप से उत्सर्जन में अधिक योगदान दिया है, फिर भी विकासशील देशों को अधिक कठोर परिणामों का सामना करना पड़ता है।
  • ग्रीनवाशिंग जोखिम: कुछ निगम और सरकारें सार्थक कार्रवाई के बिना अपने जलवायु प्रयासों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती हैं।

आगे की राह

  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: तकनीकी प्रगति के बावजूद, वैश्विक आबादी के एक-तिहाई लोगों के पास अभी भी प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली तक पहुँच नहीं है। संयुक्त राष्ट्र ने पाँच वर्षों के भीतर सार्वभौमिक कवरेज सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा है।
  • शमन रणनीतियाँ: नेट-जीरो प्रतिबद्धताओं को मजबूत करना और सख्त कार्बन विनियमन लागू करना।
    • अक्षय ऊर्जा को अपनाने का विस्तार, विशेष रूप से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में।
    • कार्बन कैप्चर और स्टोरेज प्रौद्योगिकियों का विस्तार।
  • अनुकूलन उपाय: जलवायु-अनुकूल बुनियादी ढाँचे में निवेश, विशेष रूप से तटीय और सूखा-प्रवण क्षेत्रों में।
    • खाद्य असुरक्षा से निपटने के लिए सतत् कृषि पद्धतियाँ।
    • कार्बन सिंक को बढ़ाने के लिए वन संरक्षण और वनरोपण।
  • जलवायु वित्तपोषण: वैश्विक जलवायु आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 100 बिलियन डॉलर के लक्ष्य से आगे वित्तपोषण बढ़ाने की आवश्यकता है।
    • जलवायु परिवर्तन के लिए ऋण विनिमय तंत्र का उपयोग जलवायु कार्रवाई में निवेश के बदले ऋण राहत पर वार्ता करने के लिए किया जा सकता है।
    • जलवायु वित्त तंत्र पर निर्णय लेने में वैश्विक दक्षिण देशों को शामिल करना।

निष्कर्ष

वैश्विक जलवायु स्थिति रिपोर्ट 2024 एक चेतावनी प्रस्तुत करती है। जलवायु परिवर्तन अभूतपूर्व गति से बढ़ रहा है, इसलिए सभी स्तरों पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।

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