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विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति (SOFI) रिपोर्ट

Lokesh Pal July 26, 2024 03:34 146 0

संदर्भ 

विश्व में खाद्य सुरक्षा एवं पोषण की स्थिति (State Of Food Security And Nutrition- SOFI) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर अल्पपोषण की व्यापकता लगातार तीसरे वर्ष पूर्व-कोविड-19 महामारी के स्तर पर बनी हुई है, विश्व स्तर पर 11 में से एक व्यक्ति को भूख का सामना करना पड़ रहा है।

खाद्य सुरक्षा के बारे में

  • परिभाषा: खाद्य सुरक्षा का अर्थ है कि सभी लोगों को, प्रत्येक समय, पर्याप्त, सुरक्षित एवं पौष्टिक भोजन तक शारीरिक, सामाजिक तथा आर्थिक पहुँच प्राप्त हो जो सक्रिय एवं स्वस्थ जीवन के लिए उनकी खाद्य प्राथमिकताओं तथा आहार संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करता हो।
  • खाद्य सुरक्षा के आयाम 
    • भोजन की भौतिक उपलब्धता: भोजन की उपलब्धता खाद्य सुरक्षा के ‘आपूर्ति पक्ष’ को संबोधित करती है एवं यह खाद्य उत्पादन, स्टॉक स्तर तथा शुद्ध व्यापार के स्तर से निर्धारित होती है।
    • भोजन तक आर्थिक एवं भौतिक पहुँच: अकेले पर्याप्त राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय खाद्य आपूर्ति घरेलू खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित नहीं करती है। खाद्य पहुँच को संबोधित करने के लिए खाद्य सुरक्षा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आय, व्यय, बाजार एवं कीमतों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
    • खाद्य उपयोग: खाद्य उपयोग से तात्पर्य है कि शरीर पोषक तत्त्वों का कितने प्रभावी ढंग से उपयोग करता है, जो आहार विविधता, भोजन की तैयारी एवं अंतर-घरेलू वितरण से प्रभावित होता है, जो समग्र पोषण स्थिति को प्रभावित करता है।
    • समय के साथ स्थिरता: खाद्य सुरक्षा समय के साथ स्थिर होनी चाहिए, प्रतिकूल मौसम, राजनीतिक अस्थिरता, या बढ़ती खाद्य कीमतों जैसे आर्थिक कारकों से व्यवधान के बावजूद निरंतर पहुँच बनाए रखनी चाहिए।

विश्व में खाद्य सुरक्षा एवं पोषण की स्थिति 2024 के बारे में

  • संकलनकर्ता: विश्व में खाद्य सुरक्षा एवं पोषण की स्थिति 2024 को संयुक्त राष्ट्र की पाँच विशेष एजेंसियों द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया गया है, जो निम्नलिखित हैं:- 
    • खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO)
    • कृषि विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय कोष (International Fund for Agricultural Development- IFAD)
    • संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children’s Fund- UNICEF) 
    • संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (World Food Programme- WFP) 
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO)
  •  प्रारंभ: यह रिपोर्ट ब्राजील में आयोजित ‘G-20 ग्लोबल अलायंस अगेंस्ट हंगर एंड पॉवर्टी टास्क फोर्स’ पर मंत्रिस्तरीय बैठक के संदर्भ में जारी की गई।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • SDG-2 हासिल करने में कमी: नवीनतम SOFI रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में 713 से 757 मिलियन लोगों को भूख का सामना करना पड़ा होगा। 
    • यह आँकड़ा एक सख्त चेतावनी दर्शाता है कि दुनिया सतत् विकास लक्ष्य (SDG)-2 अर्थात् ‘जीरो हंगर’ को प्राप्त करने से काफी पीछे रह गई है, जो कि वर्ष 2030 की समय सीमा से सिर्फ छह वर्ष दूर है।
  • वैश्विक भूख वर्ष 2008-2009 के स्तर पर वापस आ गई है: दुनिया 15 वर्ष पीछे चली गई है, अल्पपोषण का स्तर वर्ष 2008-2009 के बराबर है।
  • वर्ष 2023 में अरबों लोग खाद्य असुरक्षा से जूझ रहे हैं: वर्ष 2023 में, वैश्विक स्तर पर लगभग 2.33 बिलियन लोगों को मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा, यह संख्या वर्ष 2020 में COVID-19 महामारी के दौरान तेज वृद्धि के बाद से काफी हद तक अपरिवर्तित बनी हुई है।
    • खाद्य असुरक्षा का सामना करने वालों में से, 864 मिलियन से अधिक लोगों ने गंभीर खाद्य असुरक्षा का अनुभव किया, जो अक्सर पूरे दिन या उससे अधिक समय तक भोजन के बिना रहते हैं।
  • क्षेत्रीय रुझान संबंधी भिन्नता: वर्ष 2023 अंतर्दृष्टि 
    • अफ्रीका में बढ़ती भुखमरी
      • प्रतिशत: 20.4% आबादी भूख का सामना करती है, जो विश्व स्तर पर सबसे अधिक है।
      • संख्या: लगभग 298.4 मिलियन लोग प्रभावित।
    • एशिया में स्थिर लेकिन उच्च भूख दर
      • प्रतिशत: 8.1% आबादी को भूख का सामना करना पड़ता है।
      • संख्या: 384.5 मिलियन लोग, जो दुनिया की आधी से अधिक भूखी आबादी हैं, एशिया में हैं।
    • लैटिन अमेरिका में प्रगति
      • प्रतिशत: 6.2% आबादी को भूख का सामना करना पड़ता है।
      • संख्या: 41.0 मिलियन लोग प्रभावित।
  • वर्ष 2022 से 2023 के बीच, पश्चिमी एशिया, कैरेबियन एवं अधिकांश अफ्रीकी उपक्षेत्रों में भूख से प्रभावित लोगों की संख्या में वृद्धि हुई थी।
  • भविष्य के रुझान: यदि वर्तमान रुझान जारी रहता है, तो वर्ष 2030 तक 582 मिलियन लोग गंभीर रूप से अल्पपोषित होंगे, जिनमें से आधे अफ्रीका में होंगे।
  • वैश्विक चुनौती 
    • अप्राप्य स्वस्थ आहार: वैश्विक आबादी के एक-तिहाई से अधिक, लगभग 2.8 बिलियन लोग, 2022 में स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ होंगे। स्वस्थ आहार तक आर्थिक पहुँच की कमी वैश्विक आबादी के एक-तिहाई से अधिक को प्रभावित करती है, जो खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण असमानताओं और चुनौतियों को उजागर करती है।
  • आहार सामर्थ्य में आय आधारित असमानताएँ
    • कम आय वाले देश: 71.5% आबादी स्वस्थ आहार का खर्च वहन नहीं कर सकती।
    • निम्न-मध्यम-आय वाले देश: 52.6% आबादी को इस समस्या का सामना करना पड़ा।
    • उच्च-मध्यम आय वाले देश: 21.5% आबादी प्रभावित हुई।
    • उच्च आय वाले देश: 6.3% आबादी स्वस्थ आहार का खर्च वहन नहीं कर सकती।
    •  एशिया एवं उत्तरी अमेरिका और यूरोप में यह संख्या महामारी-पूर्व स्तर से नीचे आ गई, जबकि अफ्रीका में इसमें काफी वृद्धि हुई।
  • खाद्य असुरक्षा के प्रमुख चालक 
    • योगदान देने वाले कारक: क्षेत्रीय संघर्ष, जलवायु परिवर्तनशीलता एवं चरम सीमाएँ, आर्थिक मंदी, अल्पपोषण एवं भूख को बढ़ाने वाले प्रमुख कारक हैं।
    • अंतर्निहित कारक: ये समस्याएँ अंतर्निहित कारकों जैसे कि स्वस्थ आहार तक पहुँच की कमी और उसे वहन न कर पाना, अस्वास्थ्यकर खाद्य वातावरण तथा उच्च एवं सतत् असमानता के कारण और भी जटिल हो जाती हैं।
    • खाद्य असुरक्षा के साथ चुनौतियाँ: रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि खाद्य असुरक्षा के ये कारक न केवल आवृत्ति एवं तीव्रता को बढ़ा रहे हैं बल्कि एक साथ अधिक बार घटित हो रहे हैं। अंतर्निहित मुद्दों के साथ संयुक्त होने पर, ये कारक दुनिया भर में भूखे तथा खाद्य-असुरक्षित लोगों की संख्या में वृद्धि कर रहे हैं।

भारत में खाद्य सुरक्षा का महत्त्व

  •  पोषण संबंधी स्वास्थ्य
    • कुपोषण को रोकना: कुपोषण को रोकने के लिए खाद्य सुरक्षा महत्त्वपूर्ण है, जिससे बच्चों में अवरुद्ध विकास, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली एवं मृत्यु दर में वृद्धि सहित विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं।
    • स्वस्थ विकास को बढ़ावा देना: संतुलित आहार तक पहुँच सुनिश्चित करना बच्चों के समग्र शारीरिक एवं संज्ञानात्मक विकास में सहायता करता है तथा वयस्कों के स्वास्थ्य परिणामों में सुधार करता है।
  •  आर्थिक स्थिरता: खाद्य सुरक्षा यह सुनिश्चित करके गरीबी को कम करने में मदद कर सकती है कि कम आय वाले परिवारों को किफायती एवं पौष्टिक भोजन मिले, जिससे उत्पादकता तथा आर्थिक स्थिरता में सुधार हो सकता है।
  • सामाजिक स्थिरता: पर्याप्त भोजन पहुँच भोजन से संबंधित संघर्षों एवं अशांति के जोखिम को कम करके सामाजिक स्थिरता बनाए रखने में मदद करती है, जो भोजन की कमी या मूल्य वृद्धि के दौरान उत्पन्न हो सकती है।
  • जीवन की गुणवत्ता में सुधार: खाद्य सुरक्षा तनाव को कम करके एवं समुदायों के समग्र कल्याण में सुधार करके जीवन की बेहतर गुणवत्ता में योगदान देती है।
  • शैक्षिक परिणाम 
    • सीखने की क्षमता में वृद्धि: पोषण की दृष्टि से सुरक्षित बच्चों के नियमित रूप से स्कूल जाने, ध्यान केंद्रित करने एवं शैक्षणिक रूप से बेहतर प्रदर्शन करने की अधिक संभावना होती है। यह उच्च शिक्षा प्राप्ति तथा बेहतर भविष्य के अवसरों में योगदान देता है।
    • ड्रॉपआउट दर को कम करना: खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने से बच्चों के बीच ड्रॉपआउट दर में कमी आ सकती है, विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों में, क्योंकि स्कूल भोजन कार्यक्रम स्कूल में रहने के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रदान कर सकते हैं।
  • कृषि का समर्थन: खाद्य सुरक्षा पहल में अक्सर स्थानीय कृषि के लिए समर्थन शामिल होता है, जो सतत् कृषि पद्धतियों को बढ़ावा दे सकता है एवं खाद्य उत्पादन क्षमताओं को बढ़ा सकता है।
  • सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) को पूरा करना: खाद्य सुरक्षा को संबोधित करना कई सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) के अनुरूप है, जिसमें भूख को समाप्त करना (SDG 2) एवं सतत् कृषि सुनिश्चित करना (SDG 12) शामिल है।

भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन: यह मिशन वर्ष 2007 में शुरू किया गया था। इस योजना का उद्देश्य कृषि क्षेत्रों का विस्तार एवं उत्पादकता में सुधार करके चावल, गेहूँ तथा दालों जैसी प्रमुख फसलों का उत्पादन बढ़ाना है। यह मिट्टी की उर्वरता को पुनर्स्थापित करने एवं कृषि अर्थव्यवस्थाओं में सुधार करने के लिए भी कार्य करता है।
  • राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (Rashtriya Krishi Vikas Yojana- RKVY): RKVY योजना वर्ष 2007 में राज्यों को जिला/राज्य कृषि योजना के अनुसार, अपनी कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र विकास गतिविधियों को चुनने की अनुमति देकर कृषि तथा संबद्ध क्षेत्रों के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए एक अंब्रेला योजना के रूप में शुरू की गई थी। 
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act- NFSA), 2013: इस अधिनियम का लक्ष्य देश की लगभग दो-तिहाई आबादी को सब्सिडी वाला खाद्यान्न उपलब्ध कराना है। 
    • यह अधिनियम कानूनी तौर पर 75% ग्रामीण आबादी एवं 50% शहरी आबादी को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सब्सिडी वाला खाद्यान्न प्राप्त करने का अधिकार देता है।
    • पात्र परिवारों की पहचान का कार्य राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा किया जाना है।
    • राशन कार्ड जारी करने के उद्देश्य से 18 वर्ष या उससे अधिक आयु की परिवार की सबसे बुजुर्ग महिला को परिवार का मुखिया माना जाएगा।
  • अंत्योदय अन्न योजना (Antyodaya Anna Yojana): यह लाखों गरीब परिवारों को अत्यधिक सब्सिडी वाला भोजन उपलब्ध कराने के लिए भारत सरकार की प्रायोजित योजना है। 
    • इसके तहत, लक्षित PDS से लाभान्वित होने वाले BPL परिवारों में सबसे गरीब लोगों की पहचान संबंधित राज्य ग्रामीण विकास विभागों द्वारा गरीबी रेखा से नीचे (BPL) सर्वेक्षण के माध्यम से की गई थी। 
  • खाद्य सुरक्षा में सहकारी समितियों की भागीदारी: भारत में, विशेषकर दक्षिणी एवं पश्चिमी क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहकारी समितियाँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
    • तमिलनाडु में, लगभग 94 प्रतिशत उचित मूल्य की दुकानें सहकारी समितियों द्वारा संचालित की जाती हैं।
    • दिल्ली की मदर डेयरी खाद्य सुरक्षा में योगदान करते हुए, दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित नियंत्रित कीमतों पर दूध एवं सब्जियाँ उपलब्ध कराती है।
    • गुजरात की सहकारी संस्था अमूल ने दूध एवं दुग्ध उत्पाद वितरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, जिससे भारत में श्वेत क्रांति की शुरुआत हुई है।

खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में शामिल अंतरराष्ट्रीय संगठन

  • विश्व खाद्य कार्यक्रम (World Food Programme): इसकी स्थापना वर्ष 1961 में खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा रोम, इटली में मुख्यालय के साथ की गई थी।
    • यह संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास समूह (United Nations Sustainable Development Group- UN SDG) का भी सदस्य है, जो सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को पूरा करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों एवं संगठनों का एक गठबंधन है।
    • यह जरूरतमंद लोगों को खाद्य सहायता एवं आपातकालीन राहत प्रदान करता है, तथा भूख राहत एवं पोषण कार्यक्रमों पर कार्य करता है।
  • कृषि विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय कोष (International Fund for Agricultural Development- IFAD): एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान एवं रोम में स्थित संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है। 
    • इसका मिशन का उद्देश्य विकासशील देशों के ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी एवं भूख को समाप्त करना है।
  • खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO): FAO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो भूख से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का नेतृत्व करती है।
    • विश्व खाद्य दिवस प्रत्येक वर्ष 16 अक्टूबर को दुनिया भर में मनाया जाता है। 
    • यह रोम (इटली) में स्थित संयुक्त राष्ट्र खाद्य सहायता संगठनों में से एक है। 

अंतरराष्ट्रीय पहल

  • वैश्विक खाद्य एवं पोषण सुरक्षा पर उच्च स्तरीय कार्य बल (High-Level Task Force- HLTF): HLTF वैश्विक खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने की चुनौती से निपटने के लिए विभिन्न संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों एवं अन्य संगठनों को एक साथ लाता है।
    •  इसका प्राथमिक उद्देश्य दुनिया भर में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के लिए व्यापक तथा एकीकृत प्रतिक्रिया को बढ़ावा देना है।
    •  हाल ही में, HLTF ने अकाल की रोकथाम एवं सबसे अधिक प्रभावित देशों के लिए समर्थन जुटाने पर भी ध्यान केंद्रित किया है।
  • जीरो हंगर चैलेंज: संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, गरीबी को कम करने एवं पर्यावरण की रक्षा के लक्ष्यों के साथ ‘जीरो हंगर चैलेंज’ शुरू किया है। ‘जीरो हंगर चैलेंज’ का अर्थ है:-
    • 2 वर्ष से कम आयु के अविकसित बच्चों की संख्या शून्य हो
    • पूरे वर्ष पर्याप्त भोजन तक 100% पहुँच
    • सभी खाद्य प्रणालियाँ सतत् रूप से कार्य करें
    • छोटे धारकों की उत्पादकता और आय में 100% वृद्धि
    • भोजन की ‘शून्य’ हानि या बर्बादी

भारत में खाद्य सुरक्षा की चुनौतियाँ

  • कृषि संबंधी बाधाएँ: भारत की कृषि जलवायु परिवर्तन से काफी प्रभावित है एवं मानसून पर निर्भर है। चरम मौसम की घटनाओं तथा बढ़ते तापमान का असर फसल की पैदावार एवं खाद्य उत्पादन पर भी पड़ता है।
    • भूमि विभाजन, पर्याप्त बुनियादी ढाँचे की कमी, कम उत्पादकता, वित्तीय बाधाएँ एवं जल की कमी के मुद्दे भी भारत की कृषि उत्पादकता को प्रभावित करते हैं।
  • अकुशल आपूर्ति शृंखलाएँ: खराब बुनियादी ढाँचा एवं अकुशल आपूर्ति शृंखलाएँ उच्च खाद्य अपव्यय तथा खराबी का कारण बनती हैं। अपर्याप्त भंडारण सुविधाएँ एवं परिवहन संबंधी समस्याएँ खराब होने वाली वस्तुओं के नुकसान में योगदान करती हैं।
  • पोषण ज्ञान: पोषण एवं स्वस्थ खान-पान के तरीकों के बारे में जागरूकता की कमी के कारण भोजन उपलब्ध होने पर भी खराब आहार विकल्प हो सकते हैं।
    • आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों (जैसे- आयरन, विटामिन A एवं आयोडीन) की व्यापक कमी सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा विकास को प्रभावित करती है।
    • भारत को दोहरे बोझ (अल्पपोषण एवं सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी तथा मोटापे का सह-अस्तित्व) का सामना करना पड़ रहा है। 
  • उच्च गरीबी दर: लगातार गरीबी लाखों लोगों को प्रभावित करती है, जिससे उनके लिए लगातार पर्याप्त भोजन प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।
  • कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ: खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में अक्षमताएँ एवं भ्रष्टाचार सहित मुद्दे, उनकी प्रभावशीलता में बाधा बन सकते हैं।
  • माँग में वृद्धि: तीव्र जनसंख्या वृद्धि से खाद्य की माँग बढ़ जाती है, जिससे कृषि प्रणालियों एवं संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।

भारत में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपाय

  • भारत में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए त्रिपक्षीय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
  • उपभोक्ता माँगों का स्थानांतरण: स्वस्थ एवं सतत् आहार की ओर स्थानांतरित होने की आवश्यकता है। 
    • स्थानीय स्तर पर उगाए गए, पौष्टिक, स्वास्थ्यवर्धक एवं सतत् भोजन को बढ़ावा देने के लिए निगम, नागरिक समाज तथा स्वास्थ्य समुदाय सोशल मीडिया प्रभावशाली लोगों के साथ साझेदारी कर सकते हैं।
    • सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मध्याह्न भोजन, रेलवे खानपान एवं धार्मिक संस्थान भी लोगों तक भोजन पहुँच प्रदान करने में मदद कर सकते हैं।
  • किसानों को सहायता: उन्हें लाभकारी एवं पुनर्योजी कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रेरित करके इस दिशा में प्रयास किए जा सकते हैं। 
    • राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन जैसी संबद्ध योजनाओं की फंडिंग बढ़ाने की जरूरत है। 
    • कृषि-पारिस्थितिकी प्रथाओं जैसे कि कृषि वानिकी, संरक्षण कृषि, परिशुद्ध खेती आदि को व्यापक बनाने की आवश्यकता है।
    • किसानों को प्रति हेक्टेयर खेती के लिए इनपुट सब्सिडी से सीधे नकद सहायता की ओर बढ़ने की जरूरत है। 
  • बिचौलियों को हटाना: किसानों से सीधी खरीद को प्राथमिकता देना, स्थायी रूप से काटी गई उपज की खरीद को प्रोत्साहित करना एवं निष्पक्ष व्यापार जैसे अच्छी तरह से स्थापित दृष्टिकोण को लागू करना। 
    • फार्म-टू-फोर्क मूल्य शृंखलाओं को अधिक सतत् एवं समावेशी शृंखलाओं की ओर स्थानांतरित करना। 
    • ‘DeHaat’ एवं ‘Ninjacart’ जैसे युवा कृषि-तकनीकी उद्यमों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • किसानों के लिए अधिक मूल्य हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Producer Organizations- FPOs) के बीच उपज के व्यापार को सक्षम करने की आवश्यकता है।

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