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स्टेट ऑफ ज्यूडिशियरी रिपोर्ट (State of Judiciary Report)

Samsul Ansari December 29, 2023 06:17 305 0

संदर्भ

हाल ही में भारत के उच्चतम न्यायालय के अनुसंधान एवं योजना केंद्र (Centre for Research and Planning) द्वारा ‘स्टेट ऑफ ज्यूडिशियरी’ (State of the Judiciary) रिपोर्ट जारी की गई है।

संबंधित तथ्य:

  • भारत की अनुमानित जनसंख्या 139 करोड़ है और देश के विभिन्न न्यायालयों में  5 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं।
  • लंबित मामलों की संख्या: 1 सितंबर, 2023 तक, पूरे भारत में जिला न्यायालयों में लगभग 4.4 करोड़ मामले लंबित थे, जबकि उच्च न्यायालयों में लगभग 60.75 लाख मामले और उच्चतम न्यायालय में 80,550 मामले लंबित थे।
  • बुनियादी ढाँचे की भूमिका (Role of Infrastructure): निर्णय की गति और गुणवत्ता,  न्यायाधीशों तथा सहायक कर्मचारियों की संख्या एवं पर्याप्त न्यायिक बुनियादी ढाँचे पर भी निर्भर करती है, अवसंरचना के तहत तेजी से बढ़ती हुई सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communication Technology- ICT) तंत्र की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो रही है।

‘स्टेट ऑफ ज्यूडिशियरी’ रिपोर्ट (State of the Judiciary Report) के बारे में

  • ‘स्टेट ऑफ ज्यूडिशियरी’ रिपोर्ट (State of the Judiciary Report) को  उच्चतम न्यायालय के अनुसंधान एवं योजना केंद्र द्वारा जारी किया जाता है।
  • उद्देश्य: ‘स्टेट ऑफ ज्यूडिशियरी रिपोर्ट” पर यह रिपोर्ट उच्च न्यायालयों और जिला न्यायपालिका पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत के न्याय वितरण प्रयासों की वर्तमान स्थिति का अध्ययन करती है।
    • यह रिपोर्ट भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश डॉ. न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ के दृष्टिकोण के अनुरूप तैयार की गई है, जिसका उद्देश्य न्यायपालिका की कार्यप्रणाली को समर्थन प्रदान करना है।
  • रिपोर्ट चार भागों में संरचित (Structured) है:
    • भाग I: न्यायिक अवसंरचना।
    • भाग II: जिला न्यायपालिका के लिए बजट बनाना।
    • भाग III: मानव संसाधन प्रबंधन।
    • भाग IV: न्यायपालिका का ICT सशक्तीकरण।

भारतीय न्यायपालिका से जुड़ी चुनौतियाँ

  • न्यायिक अवसंरचना  का अवसंरचना अंतराल (Infrastructure Gap of Judicial Infrastructure):
    • न्यायालय कक्षों एवं आवासीय इकाइयों का अभाव: जिला न्यायपालिका में 25,081 न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या के लिए, वर्तमान में 4,250 न्यायालय कक्षों और 6,021 आवासीय इकाइयों की कमी है।
      • उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश और गुवाहाटी उच्च न्यायालयों में न्यायालय कक्षों की क्रमशः 38% और 30% की कमी दर्ज की गई।
    • समावेशी और सुरक्षित अवसंरचना का अभाव: बच्चों की देखभाल की सुविधा, दिव्यांगजनों के लिए अलग शौचालय, पार्किंग स्थल आदि का अभाव है।
      • उदाहरण के लिए, केवल 30.4% जिला न्यायालय परिसरों में विकलांग व्यक्तियों के लिए अलग शौचालय हैं और 30% से कम न्यायालय परिसरों में अन्य अवसंरचना सहायता जैसे उभरे हुए फर्श या टैकटाइल पेविंग (Tactile Paving) और व्हीलचेयर उपलब्ध हैं।
  • उचित मानव संसाधन प्रबंधन का अभाव
    • न्यायाधीशों की कमी: न्यायाधीशों की कुल स्वीकृत संख्या के मुकाबले, जिला न्यायपालिका में 5,300 न्यायाधीशों की कमी हैउच्च न्यायालयों में 1,114 न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या के मुकाबले 347 न्यायाधीशों के पद रिक्त हैं।
    • न्यायपालिका में महिलाओं की कमी: जिला न्यायपालिका की कार्यशक्ति में महिलाएँ लगभग 36.3% हैं। उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में महिला न्यायाधीशों का प्रतिनिधित्व क्रमशः 13.4% एवं 9.3% है।
    • भर्ती समय सीमा के अनुपालन का अभाव (Lack of Compliance with Recruitment Timelines): मलिक मजहर सुल्तान बनाम यूपी लोक सेवा आयोग मामले में उच्चतम न्यायालय ने जिला न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियमित भर्ती के लिए एक कार्यक्रम निर्धारित किया है।
      • जिला न्यायाधीश (सीधी भर्ती) परीक्षा के लिए, केवल नागालैंड (106 दिन), ओडिशा (132 दिन) और आंध्र प्रदेश (142 दिन) ने शीर्ष अदालत की समय सीमा के भीतर भर्ती प्रक्रिया पूरी की, जबकि पंजाब और हरियाणा तथा जम्मू एवं कश्मीर ने  क्रमशः 1,270 और 1,173 दिन में अपनी उच्च न्यायिक सेवा भर्ती प्रक्रिया पूरी की।
    • जिला न्यायपालिका में पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधित्व का अभाव: उदाहरण के लिए, रिपोर्ट में अध्ययन किए गए छह राज्यों में अनुसूचित जनजाति या एसटी (ST) वर्ग के लिए आरक्षित कुल 168 सीटों में से 84.5% सीटें खाली रह गई हैं।
  • न्यायपालिका में ICT सक्षमता का अभाव: सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communications Technology- ICT) का अपर्याप्त एकीकरण न्यायपालिका की आधुनिक कानूनी माँगों के अनुकूल होने की क्षमता में बाधा डालता है, जिससे समय पर न्याय देने में बाधा आती है और समग्र न्यायिक प्रभावशीलता कम हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए, जिला न्यायपालिका में केवल 57.4% अदालत कक्षों में न्यायाधीश की डेस्क पर वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग-सक्षम कंप्यूटर हैं।
  • बजट आवंटन की कमी: जिला न्यायपालिका में बुनियादी ढाँचे (अवसंरचना) में व्याप्त कमी के प्रमुख कारकों में भूमि आवंटन में देरी, राज्यों में धन की कमी, कार्यान्वयन एजेंसियों के बीच प्रभावी समन्वय का अभाव और धन के इष्टतम उपयोग की कमी आदि शामिल है।
    • उदाहरण के लिए, केंद्रीय बजट 2023-24 में, कानून और न्याय मंत्रालय का आवंटन ₹4,752 करोड़ है, जो कुल बजट अनुमान का लगभग 0.1% है।

भारत की न्यायपालिका से जुड़ी प्रमुख ICT  पहल:

  • राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड: वर्ष 2015 में शुरू की गई, राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (National Judicial Data Grid-NJDG) पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, क्योंकि यह देश भर की अदालतों में मामलों के पंजीकरण, निपटान और लंबित मामलों का रियल टाइम डेटा (Data) प्रदान करता है।
  • ई-कोर्ट सेवाएँ: ई-कोर्ट पहल के तहत स्थापित एक पोर्टल वादी को जिला और उच्च न्यायालयों में  लंबित  मामलों की जानकारी प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करता है। यह वादी के लिए एक व्यक्तिगत डिजिटल केस डायरी (Personalized Digital Case Diary) के रूप में कार्य करता है, वादी ‘माय केस (‘My Cases)’ का उपयोग करके कई मामलों के संबंध में स्वचालित अपडेट प्राप्त करने के लिए कर सकता है।
  • वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग: कोविड-19 महामारी के प्रकोप के दौरान ‘न्याय तक पहुँच’ को एक अद्वितीय चुनौती का सामना करना पड़ा। इससे निपटने हेतु न्यायिक पालिका द्वारा न्याय वितरण सुनिश्चित करने हेतु वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग तकनीक के उपयोग को बढ़ावा दिया गया।
  • आभासी (Virtual) कोर्ट रूम सिस्टम: महामारी के बाद न्यायालयों में हाइब्रिड वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग मोड को बढ़ावा दिया गया है। सर्वेश माथुर बनाम पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल मामले में उच्चतम न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने उच्च न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं के निरंतर उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किए।
  • ई-फाइलिंग(e-Filing): इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग सुविधा ने वकीलों को देश के किसी भी हिस्से से किसी भी जिला न्यायालय या उच्च न्यायालय में दस्तावेज दाखिल करके लागत में कटौती करने और समय बचाने में सक्षम बनाया है।
  • इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स का तेज और सुरक्षित स्थानांतरण (Fast and Secured Transmission of Electronic Records-FASTER): FASTER प्रणाली इलेक्ट्रॉनिक संचार चैनल के एक सुरक्षित माध्यम से अनुपालन और उचित निष्पादन के लिए सभी हितधारकों तक  अंतरिम आदेशों, स्थगन आदेशों, जमानत आदेशों और कार्यवाही के रिकॉर्ड की ई-प्रमाणित प्रतियों के प्रसारण की सुविधा प्रदान करती है। 
  • अंतरसंचालनीय आपराधिक न्याय प्रणाली (Interoperable Criminal Justice System -ICJS): ICJS एक मंच पर आपराधिक न्याय प्रणाली के विभिन्न स्तंभों, जैसे अदालतों, पुलिस, जेलों, फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं आदि के बीच डेटा और सूचनाओं के निर्बाध हस्तांतरण को सक्षम करने की एक पहल है।

आगे की राह 

  • धन आवंटन और उपयोग में सुधार: न्यायपालिका के लिए अवसंरचना सुविधाएँ विकसित करने के लिए केंद्र प्रायोजित योजना (CSS) को जिला न्यायालयों में न्यायाधीशों की कार्यशील क्षमता के आधार पर की बजाय अधिकृत संख्या के आधार पर धन आवंटित करने के लिए संशोधित किया जा सकता है।
    • इसके अलावा, धन के समय पर आवंटन और उपयोग के लिए CSS के तहत अनिवार्य शर्तों में भी ढील दी जा सकती है।
    • न्याय प्रणाली में पारदर्शिता और एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए उपयोगिता प्रमाण-पत्र (Utilisation CertificatesUCs) का एक मानक प्रारूप अपनाया जाना भी महत्त्वपूर्ण है।
    • एक आउटकम बजट (एक दस्तावेज जो एक वित्तीय वर्ष में प्राप्त किए जाने वाले मापनीय आउटपुट और परिणामों को निर्धारित करता है) के तहत अगले वित्तीय वर्ष के लिए निर्धारित आउटपुट लक्ष्यों के साथ पिछले वर्षों में हुई प्रगति को भी दर्ज किया जाना चाहिए, जैसा कि दिल्ली में किया जाता है।
  • न्यायाधीशों की समय पर भर्ती: जिला न्यायपालिका में न्यायाधीशों की भर्ती से संबंधित मामलों (cases) के समय पर निपटान के लिए उच्च न्यायालयों में एक समर्पित डिवीजन बेंच स्थापित किया जाना आवश्यक है।
    • राज्यों में भर्ती अधिकारियों को न्यायाधीशों की भर्ती के लिए परीक्षा के सभी चरणों के लिए एक ‘अस्थायी कार्यक्रम (Tentative Schedule)‘ भी प्रकाशित करना चाहिए।
    • राज्यों को आरक्षित श्रेणी में खाली रिक्तियों को भरने के लिए सक्रिय कदम उठाने की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हाशिए पर रहने वाले समुदायों के उम्मीदवार जिला न्यायपालिका का हिस्सा बन सकें।
  • कुशल ICT सक्षमता (Enable Efficient ICT): त्वरित और अधिक प्रभावी ICT सक्षमता के लिए, यह आवश्यक है कि ई-कोर्ट परियोजना के तहत सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए अदालत परिसर में निर्बाध इंटरनेट कनेक्टिविटी हो।
    • जिला न्यायपालिका में एक स्थायी IT कैडर और तकनीकी कार्यबल को मजबूत करने तथा क्षमता निर्माण के लिए न्यायाधीशों, कर्मचारियों एवं वकीलों का नियमित प्रशिक्षण समय की माँग है।
  • समावेशी और सुलभ (Accessible) अवसंरचना: जिला न्यायालयों में क्रेच में बच्चों की देखभाल के लिए एक ‘नामित पद’ को अधिसूचित करने और अदालत परिसरों को विकलांगों के अनुकूल (disabled-friendly) बनाने के लिए मौजूदा संरचनाओं में जगह तलाशने की आवश्यकता है।
    • प्रत्येक अदालत में सांकेतिक भाषा दुभाषियों (Interpreters) का एक व्यापक पूल भी होना चाहिए जिनकी सेवाओं का उपयोग कानूनी स्थितियों (Legal Settings) में पहुँच सुनिश्चित करने के लिए किया जा सकता है।
  • अवसंरचना परियोजनाओं (Infrastructure Projects) के लिए समर्पित भूमि बैंक: एक समर्पित भूमि बैंक जिसमें न्यायपालिका का हिस्सा निर्धारित हो, बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिए उपयुक्त भूमि की पहचान और आवंटन की प्रक्रिया को आसान बना सकता है।
  • समय पर परियोजना समापन: न्याय विकास पोर्टल में निर्धारित समय के अनुसार, संबंधित राज्य एजेंसियों द्वारा निर्माणाधीन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए समय सीमा के पालन करने की आवश्यकता है।
    • वास्तविक समय डेटा प्रदान करने और पारदर्शिता एवं जवाबदेही बढ़ाने के लिए न्याय विकास पोर्टल को नियमित रूप से अद्यतन (Update)  किया जाना चाहिए।
    • बेहतर समन्वय, निगरानी और प्रभावी बजट उपयोग सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय स्तर पर एक निकाय की आवश्यकता है।
  • रक्षा और सुरक्षा  (Ensure Safety and Security): प्रद्युम्न बिष्ट बनाम भारत संघ के आलोक में, एक सुरक्षित बुनियादी ढाँचे को सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक अदालत परिसर में स्थायी अदालत सुरक्षा इकाइयाँ, सख्त एक्सेस कंट्रोल (Access Control) तंत्र और पर्याप्त CCTV  स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • इसके अलावा, जिला न्यायपालिका के बीच आपदा तैयारी संस्कृति को विकसित करने के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अनुसार एक आपदा प्रबंधन योजना भी तैयार की जा सकती है।

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