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विश्व जनसंख्या की स्थिति 2025: UNFPA

Lokesh Pal June 12, 2025 02:58 32 0

संदर्भ

हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) ने वर्ष 2025 स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन (SOWP) रिपोर्ट जारी की, जिसका शीर्षक, ‘द रियल फर्टिलिटी क्राइसिस (The Real Fertility Crisis’)’ है।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (United Nations Population Fund- UNFPA) के बारे में 

  • यह संयुक्त राष्ट्र महासभा का एक सहायक अंग है तथा लैंगिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
  • स्थापना: इसकी स्थापना वर्ष 1967 में एक ट्रस्ट फंड के रूप में की गई थी और वर्ष 1969 में इसका संचालन शुरू हुआ।
    • वर्ष 1987 में, इसका परिवर्तित कर, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष कर दिया गया, लेकिन मूल संक्षिप्त नाम, ‘UNFPA’ (संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या गतिविधियों के लिए कोष) को बनाए रखा गया।
  • उद्देश्य: UNFPA स्वास्थ्य (SDG 3), शिक्षा (SDG 4) और लैंगिक समानता (SDG 5) पर सतत विकास लक्ष्यों से निपटने के लिए प्रत्यक्ष रूप से कार्य करता है।
  • वित्तपोषण: UNFPA पूर्णतया अनुदानकर्ता सरकारों, अंतर-सरकारी संगठनों, निजी क्षेत्र और फाउंडेशनों और व्यक्तियों के स्वैच्छिक योगदान द्वारा समर्थित है, न कि संयुक्त राष्ट्र के नियमित बजट द्वारा।
  • विश्व जनसंख्या रिपोर्ट की स्थिति: UNFPA का वार्षिक प्रमुख प्रकाशन, वर्ष 1978 से प्रकाशित।

रिपोर्ट की मुख्य बिंदु

भारत के आँकड़े

  • वर्तमान जनसंख्या (2025)
    • भारत: 146.39 करोड़ (विश्व स्तर पर उच्चतम), 2060 के दशक में 170 करोड़ तक पहुँचने की उम्मीद है, तथा उसके बाद पुनः गिरावट आयेगी। 
    • चीन: 141.61 करोड़।
  • कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate- TFR)
    • भारत का TFR: 1.9 (प्रतिस्थापन स्तर 2.1 से नीचे)।
    • राष्ट्रीय स्तर पर प्राप्त प्रतिस्थापन-स्तर प्रजनन क्षमता (SRS 2021: TFR 2.0) था।
  • जनसांख्यिकीय विभाजन
    • 68% कार्यशील आयु वर्ग की जनसंख्या (15-64 वर्ष)
    • युवा जनसंख्या: 24% (0-14 वर्ष), 17% (10-19 वर्ष), 26% (10-24 वर्ष)।
    • बुजुर्ग (65+ वर्ष): 7% (बढ़ने की उम्मीद है)।
  • जीवन प्रत्याशा: पुरुष: 71 वर्ष, महिला: 74 वर्ष।
  • प्रजनन स्वास्थ्य और अपूर्ण आवश्यकताएँ
    • भारत में लगभग 36% महिलाएँ अनइच्छित या अनवांछित  गर्भधारण धारण करती है
    • 30% निम्नलिखित कारणों से वांछित परिवार का आकार प्राप्त नहीं कर पाते हैं:
      • वित्तीय बाधाएँ (38%), नौकरी की असुरक्षा (21%), बच्चे की देखभाल की कमी (18%)।
      • स्वास्थ्य बाधाएँ (बांझपन, मातृ देखभाल की खराब पहुँच)।
    • किशोरावस्था प्रजनन दर: 14.1 प्रति 1,000 लड़कियाँ (15-19 वर्ष) (चीन, श्रीलंका से अधिक)।

वैश्विक सांख्यिकी

  • विश्व जनसंख्या प्रवृत्ति
    • वैश्विक जनसंख्या: ~8.2 बिलियन (2025)।
    • प्रजनन क्षमता में गिरावट: 60% देशों में अब प्रतिस्थापन प्रजनन क्षमता दर कम है (TFR < 2.1)।
    • सर्वाधिक तीव्र जनसंख्या वृद्धि वाले क्षेत्र: उप-सहारा अफ्रीका, एशिया के कुछ हिस्से।
    • घटती आबादी: चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, पूर्वी यूरोप।
  • शीर्ष 5 सर्वाधिक आबादी वाले देश (2025)
    • भारत – 1.46 बिलियन
    • चीन – 1.42 बिलियन (घटती हुई)
    • अमेरिका – 345 मिलियन
    • इंडोनेशिया – 285 मिलियन
    • पाकिस्तान – 245 मिलियन
  • वैश्विक प्रजनन प्रवृत्ति
    • वैश्विक कुल प्रजनन दर (TFR) वर्ष 1950 में प्रति महिला 5 बच्चों से घटकर वर्ष 2024 में 2.25 हो गई, जिसके वर्ष 2050 तक 2.1 (प्रतिस्थापन स्तर) तक पहुँचने का अनुमान (UN DESA, 2024) है।
    • उच्चतम TFR: नाइजर (6.7), सोमालिया (6.1), DR कांगो (5.9)।
    • निम्नतम TFR: दक्षिण कोरिया (0.7), हांगकांग (0.8), सिंगापुर (0.9)।
    • प्रतिस्थापन-स्तर (2.1): केवल 93 देश इस सीमा से ऊपर रह गए हैं।
  • जीवन प्रत्याशा एवं वृद्ध होती आबादी
    • वैश्विक जीवन प्रत्याशा: 73 वर्ष (2025)।
      • उच्चतम: जापान (84.5), स्विटजरलैंड (83.9)। 
      • निम्नतम: मध्य अफ्रीकी गणराज्य (54), चाड (53)।
    • वृद्ध होती आबादी
      • जापान: 65 वर्ष से अधिक आयु के 30% लोग।
      • यूरोप: 20% बुजुर्ग।
      • भारत: 7% बुजुर्ग (लेकिन तेजी से बढ़ रहे हैं)।

क्षेत्रीय असमानताएँ: उच्च और निम्न प्रजनन दर (NFHS-5 डेटा)

  • उच्च प्रजनन क्षमता वाले राज्य: बिहार (TFR 3.0; TWFR 2.2), मेघालय (TFR 2.9; TWFR 2.2), उत्तर प्रदेश (TFR 2.4), झारखंड (TFR 2.3)।
    • कारण: सीमित शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच, कम आयु में विवाह और बड़े परिवारों पर आर्थिक निर्भरता।
  • न्यूनतम प्रजनन क्षमता वाले राज्य: दिल्ली (1.6), पश्चिम बंगाल (1.6), केरल (1.8), तमिलनाडु (1.8), सिक्किम (TFR 1.1; TWFR: 0.91)।
    • कारण: बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, शहरीकरण और आर्थिक अवसर।
  • आशय
    • दक्षिणी/पश्चिमी राज्यों में वृद्ध आबादी में वृद्धि का जोखिम है, जबकि उत्तरी/पूर्वी राज्यों में जनसंख्या वृद्धि हो रही है।
    • संसाधन आवंटन और विकास योजना के संदर्भ में नीतिगत चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।

कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate- TFR) क्या है?

  • परिभाषा: TFR का तात्पर्य वर्तमान प्रजनन दर के तहत एक महिला द्वारा अपने प्रजनन वर्षों (आमतौर पर 15-49 वर्ष) के दौरान जन्म लेने वाले बच्चों की औसत संख्या से है। 
  • 2.1 से ऊपर का TFR जनसंख्या वृद्धि को इंगित करता है, 2.1 के आसपास प्रतिस्थापन-स्तर की प्रजनन क्षमता को इंगित करता है, जबकि 2.1 से नीचे जनसंख्या में गिरावट और आयु वृद्धि का संकेत देता है, जिससे देश के लिए दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक और कार्यबल चुनौतियाँ पैदा होती हैं।

जनसांख्यिकीय लाभांश

  • जनसांख्यिकीय लाभांश से तात्पर्य किसी देश की आयु संरचना में बदलाव के परिणामस्वरूप होने वाली आर्थिक वृद्धि क्षमता से है, मुख्य रूप से तब जब कार्यशील आयु की आबादी आश्रित आबादी से अधिक होती है।
  • भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश कम-से-कम वर्ष 2055 से वर्ष 2056 तक जारी रहेगा। यह वर्ष 2041 के आसपास यह चरम पर होगा, जब इसकी 59% आबादी कार्यशील आयु (20-59 वर्ष) वर्ग की होगी।

कुल वांछित प्रजनन दर (Total Wanted Fertility Rate- TWFR) 

  • यह एक जनसांख्यिकीय माप है जो यह अनुमान लगाता है कि यदि एक महिला को केवल उतने ही बच्चे हों जितने वह चाहती है तो उसके औसतन कितने बच्चे होंगे।
  • यह वांछित और वास्तविक प्रजनन क्षमता के बीच के अंतर को समझने में मदद करता है, जो प्रजनन अधिकारों और परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुँच से जुड़े मुद्दों को प्रदर्शित कर सकता है।

जनसांख्यिकीय लचीलापन 

  • इसका तात्पर्य जनसांख्यिकीय परिवर्तनों, जैसे वृद्धावस्था, प्रवासन, तथा प्रजनन दर में परिवर्तन, का सामना करने तथा उनकी अनुकूलन स्थिति की कम होती क्षमता से है।

भारत में प्रजनन क्षमता में गिरावट के कारण

  • बेहतर महिला शिक्षा और सशक्तीकरण: बढ़ी हुई साक्षरता और उच्च शिक्षा प्राप्ति के कारण विवाह और बच्चे पैदा करने में देरी होती है।
    • NFHS-5 (2019-21) के अनुसार, 12 या उससे अधिक वर्षों की स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाली महिलाओं का कुल प्रजनन दर (TFR) 1.8 है, जबकि बिना शिक्षा प्राप्त करने वाली महिलाओं का TFR 2.8 है।
  • बच्चों के पालन-पोषण की बढ़ती लागत: रिपोर्ट के अनुसार,  विश्व स्तर पर प्रत्येक पाँच में से एक व्यक्ति को यह आशंका है कि माता-पिता बनने की अत्यधिक लागत, नौकरी की असुरक्षा, आवास समस्याएँ और अन्य आर्थिक एवं सामाजिक चिंताओं के कारण वे अपने इच्छित संख्या में बच्चे पैदा नहीं कर पाएंगे।
  • विवाह में देरी और करियर की आकांक्षाएँ: विवाह में देरी से प्रजनन अवधि कम होती है, जिससे TFR कम होता है। कई महिलाएँ शिक्षा या करियर को आगे बढ़ाने के लिए बच्चे पैदा करने में देरी करती हैं।
  • शिशु मृत्यु दर में कमी और बेहतर स्वास्थ्य सेवा: भारत की शिशु मृत्यु दर घटकर 28 प्रति 1,000 जीवित जन्म (SRS 2020) हो गई है, पहले अधिक बच्चों का जन्म इसलिए भी होता था क्योंकि माता-पिता को आशंका रहती थी कि सभी बच्चे जीवित नहीं रहेंगे। इसे ‘बीमा प्रभाव’ (Insurance Effect) कहते हैं।
    • संस्थागत प्रसव अब 88% से अधिक हो गए हैं, जिससे बच्चों के जीवित रहने की दर में और वृद्धि हुई है।
  • बदलते सामाजिक मानदंड और छोटे या एकल परिवार की प्राथमिकताएँ: घरेलू श्रम का असमान विभाजन महिलाओं को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए हतोत्साहित करता है।
    • UNFPA (2025) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 41% महिलाएँ और 33% पुरुष दो बच्चे चाहते हैं, जो छोटे परिवारों की मजबूत सामाजिक स्वीकृति को दर्शाता है।
  • प्रजनन जागरूकता और सरकारी अभियान: हम दो, हमारे दो’, मिशन परिवार विकास और आशा आउटरीच कार्यक्रमों जैसे अभियानों ने छोटे परिवारों के उद्भव में मदद की है।
    • UNFPA की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में देखा गया है कि इस तरह के प्रयासों के माध्यम से ‘प्रजनन अधिकार और आर्थिक समृद्धि एक साथ किस प्रकार आगे बढ़ सकती है’
    • NFHS-5 (2019-21) के अनुसार, अधिकांश राज्यों में उच्च जागरूकता के साथ आधुनिक गर्भनिरोधक का उपयोग 54 से 67% तक बढ़ गया।
  • बांझपन और स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ: सार्वजनिक क्षेत्र में बांझपन देखभाल तक सीमित पहुँच, खराब सामान्य स्वास्थ्य (15%) और सीमित गर्भावस्था-संबंधी देखभाल (14%) जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ प्रजनन क्षमता में कमी का महत्त्वपूर्ण कारण बनती हैं।
    • लगभग 27.5 मिलियन युगल बांझपन की समस्या का सामना करते हैं, तथा यह स्थिति मोटापा, तनाव, धूम्रपान और प्रदूषण जैसे जीवनशैली कारकों के कारण और भी ख़राब (UNFPA रिपोर्ट 2025) हो रही है।

भारत में घटती प्रजनन क्षमता के प्रभाव

सकारात्मक प्रभाव 

  • जनसांख्यिकीय लाभांश के अवसर: न्यूनतम निर्भरता अनुपात एक बड़ी कार्यशील आयु वाली आबादी के माध्यम से उत्पादकता को बढ़ा सकता है।
    • वर्ष 2025 तक, भारत की 68% आबादी कार्यशील आयु वर्ग (15-64) की है, जो जनसांख्यिकीय लाभांश संबंधी अवसर प्रदान करती है।
  • महिलाओं सशक्तीकरण में वृद्धि: प्रजनन क्षमता में कमी प्रायः महिलाओं के लिए अधिक स्वायत्तता और निर्णय लेने की शक्ति से जुड़ी होती है।
    • UNFPA में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि सशक्त प्रजनन विकल्प महिलाओं के लिए बेहतर शिक्षा और रोजगार परिणामों से जुड़े हैं।
  • बेहतर बाल निवेश और शिक्षा: परिवारों के छोटे आकार प्रति बच्चे अधिक संसाधन प्रदान करते हैं, जिससे शिक्षा और देखभाल की गुणवत्ता में सुधार होता है।
  • पर्यावरणीय स्थिरता: कम प्रजनन प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्रों पर दबाव कम करते हैं।
    • वर्ष 2050 तक भारत की अनुमानित TFR में 1.29 की गिरावट प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन को कम कर सकती है, जिससे जलवायु लक्ष्यों में सहायता मिल सकती है।
  • महिलाओं के लिए बेहतर स्वास्थ्य परिणाम: कम गर्भधारण से महिलाओं के लिए कम जटिलताएँ और बेहतर दीर्घकालिक स्वास्थ्य होता है।

नकारात्मक प्रभाव

  • दीर्घावधि में कार्यबल में कमी: पर्याप्त युवा प्रतिस्थापन के अभाव में, भविष्य में श्रम की कमी उत्पन्न हो सकती है।
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, कि भारत की जनसंख्या 2060 के दशक की शुरुआत तक 170 करोड़ तक पहुँच जाएगी तथा इसके बात इसमें गिरावट देखने को मिलेगी, जो संभावित रूप से उसके बाद आर्थिक विकास को सीमित कर देगी।
  • वृद्ध जनसंख्या भार: कम जन्मों के साथ, बुजुर्गों का अनुपात बढ़ता है, जिससे देखभाल और पेंशन का भार बढ़ता है।
    • UNFPA के अनुसार, भारत की बुजुर्ग (65+) आबादी वर्तमान में 7% है,
    • महिलाओं के लिए जीवन प्रत्याशा 74 वर्ष और पुरुषों के लिए 71 वर्ष तक पहुँचने के साथ इसमें तेजी से वृद्धि होने का अनुमान है।
  • क्षेत्रीय जनसांख्यिकी असंतुलन: न्यूनतम प्रजनन क्षमता वाले राज्यों में युवाओं की संख्या में कमी देखने को मिल सकती है, जबकि उच्च प्रजनन क्षमता वाले राज्य अभी भी अधिक जनसंख्या की समस्या से जूझ रहे हैं।
    • बिहार (TFR 3.0) और सिक्किम (TFR 1.0) जैसे राज्य भारत के “उच्च प्रजनन क्षमता-कम प्रजनन क्षमता” संबंधी संघर्ष को दर्शाते हैं, जो समान नीति कार्यान्वयन के लिए चुनौतियाँ पैदा करते हैं।
  • प्रजनन संबंधी आकांक्षाओं की कम उपलब्धि: कई व्यक्ति आर्थिक और सामाजिक बाधाओं के कारण इच्छित संख्या में बच्चे पैदा करने में असमर्थ हैं।
    • UNFPA की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 30% लोगों की प्रजनन संबंधी इच्छाएँ अधूरी रह जाती हैं, जबकि 23% लोग अनपेक्षित गर्भधारण और बच्चें न होने, दोनों का सामना कर रहे हैं।
  • सामाजिक अलगाव और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में वृद्धि: प्रजनन क्षमता में कमी और देर से विवाह के कारण अकेलेपन और परिवार के विखंडन में वृद्धि हो सकती है।
    • UNFPA की रिपोर्ट में प्रजनन संबंधी निर्णयों और दीर्घकालिक कल्याण को प्रभावित करने वाली आधुनिक चुनौतियों में से एक के रूप में बढ़ती “अकेलेपन की महामारी” का उल्लेख किया गया है।
  • पारिवारिक संरचना में व्यवधान: छोटे परिवार पारंपरिक सहायता प्रणालियों को क्षीण करते हैं, जिससे बुजुर्गों का अलगाव बढ़ता है।
    • शहरी क्षेत्रों में एकल परिवार (जैसे, TFR: 1.6) बुजुर्गों की देखभाल की चुनौतियों का सामना करते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में TFR: 2.4 है (एसआरएस 2021)।
  • अपरिवर्तनीय प्रवृत्ति: विकसित देशों के ऐतिहासिक डेटा से ज्ञात होता है कि एक बार प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर से नीचे चली जाती है, तो इस प्रवृत्ति को परिवर्तित करना बेहद कठिन हो जाता है।
    • जापान पहला देश था जिसने प्रजनन दर में गिरावट के प्रभावों का अनुभव किया।
    • बढ़ते निर्भरता अनुपात ने 1990 के दशक से लगभग ‘शून्य जीडीपी वृद्धि’ को जन्म दिया है, और देश बढ़ती सामाजिक सुरक्षा लागतों को पूरा करने के लिए राजकोषीय चुनौतियों का सामना कर रहा है।

प्रजनन एजेंसी से तात्पर्य प्रजनन के बारे में सूचित, सशक्त निर्णय लेने की क्षमता से है, जो कानूनी, राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक बाधाओं से मुक्त है। यह शारीरिक स्वायत्तता और लैंगिक समानता की आधारशिला है।

भारत में प्रजनन प्रबंधन से संबंधी चुनौतियाँ

  • प्रजनन एजेंसी संकट: प्रजनन विकल्पों तक सीमित पहुँच व्यक्तियों को परिवार का वांछित आकार प्राप्त करने से रोकती है।
    • लगभग 30% भारतीय अधिक या कम बच्चों की इच्छा को पूर्ण नहीं करते हैं, और 36% अनपेक्षित गर्भधारण का अनुभव करते हैं (UNFPA रिपोर्ट 2025)।
  • उच्च क्षेत्रीय और सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ: राज्यों, जातियों और आय समूहों में भारी अंतर के कारण प्रजनन क्षमता का प्रबंधन करना मुश्किल है।
    • बिहार में TFR 3.0 है, और सिक्किम में 1.0 है, जो भारत के “उच्च प्रजनन क्षमता-कम प्रजनन क्षमता” संबंधी संघर्ष को प्रदर्शित करता है।
  • अपूर्ण प्रजनन लक्ष्य: लाखों लोग अपनी इच्छित और वास्तविक प्रजनन क्षमता के बीच अंतर का सामना करते हैं, जो कभी अधिक संतान होने और कभी कम संतान होने, दोनों प्रकार की परिस्थितियों का परिणाम है।
    • भारत में, 36% ने अनपेक्षित गर्भधारण से संवंधित विवरण प्राप्त है, एवं 30% ने कहा कि वे अपनी प्रजनन क्षमता की इच्छाओं को पूर्ण करने में सक्षम नहीं हैं, जो प्रणालीगत प्रजनन अंतराल को दर्शाता है।
  • बांझपन और विशेष लैंगिक और प्रजनन स्वास्थ्य (Sexual and Reproductive Health-SRH) देखभाल तक सीमित पहुँच: सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में बांझपन से संबधित सेवाएँ नहीं हैं।
    • भारत में अनुमानित 27.5 मिलियन जोड़े बांझपन की समस्या का सामना कर रहे हैं, फिर भी सार्वजनिक क्षेत्र का समर्थन अपर्याप्त बना हुआ है तथा जो शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित है।
  • शहरी-ग्रामीण अन्तराल की निरंतरता: शहरी केंद्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार नियोजन उपकरण, जागरूकता और सेवाओं तक सीमित पहुँच है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में सात राज्यों में अभी भी प्रतिस्थापन प्रजनन क्षमता तक पहुँच नहीं है, जो सेवा और उन तक पहुँच के अंतराल को दर्शाता है।
  • सांस्कृतिक और लैंगिक मानदंड बाधाएँ: पितृसत्तात्मक मानदंड, पुत्र जन्म को प्राथमिकता और परिवार का दबाव प्रजनन संबंधी निर्णयों में महिलाओं की भूमिका को कम करता है।
    • 19% भारतीयों को भागीदारों या परिवारों की तरफ से कम बच्चे पैदा करने के लिए दबाव का सामना करना पड़ा, जितना वे व्यक्तिगत रूप से चाहते थे।
  • युवा प्रजनन स्वास्थ्य उपेक्षा: विशेषकर गरीब राज्यों में उच्च किशोर प्रजनन क्षमता एक चिंता का विषय बनी हुई है।
    • भारत की किशोर प्रजनन दर 14.1 प्रति 1,000 महिलाएँ (15-19 वर्ष) है, जो चीन (6.6) और श्रीलंका (7.3) से बहुत अधिक है,जिसमे खराब मातृ-शिशु परिणाम से संबंधी खतरा विद्यमान है।

भारत में प्रजनन क्षमता से संबंधित  सरकारी पहलें

  • राष्ट्रीय जनसंख्या नीति (National Population Policy- NPP), 2000: प्रतिस्थापन-स्तर प्रजनन क्षमता (TFR 2.1) प्राप्त करने का लक्ष्य।
    • स्वैच्छिक और सूचित विकल्प, गर्भनिरोधक तक पहुंँच और मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • मिशन परिवार विकास (वर्ष 2016): इसे 7 राज्यों (बिहार, यूपी, एमपी, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़, असम) के 146 उच्च प्रजनन क्षमता वाले जिलों में लॉन्च किया गया।
    • निःशुल्क गर्भनिरोधक, अंतर रखने के तरीके और व्यवहार परिवर्तन संचार प्रदान करता है।
    • बिहार (TFR 3.0) और उत्तर प्रदेश (TFR 2.7) जैसे TFR> 3 जिलों में जागरूकता बढ़ाने में मदद की।
  • परिवार नियोजन, 2020 (Family Planning- FP2020) और FP,2030 प्रतिबद्धताएँ: भारत वर्ष 2030 तक परिवार नियोजन तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक FP पहल का एक हस्ताक्षरकर्ता है।
    • अंतरा (इंजेक्शन योग्य) और छाया (गैर-हार्मोनल गोलियाँ) जैसे नए गर्भनिरोधक प्रस्तुत किए।
    • अंतिम उपयोगकर्ता तक गर्भनिरोधक पहुँचाने के लिए 3 लाख से अधिक आशा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया गया।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission- NHM): इसमें प्रजनन, मातृ, नवजात, बाल और किशोर स्वास्थ्य (Reproductive, Maternal, Newborn, Child and Adolescent Health- RMNCH+A) रणनीतियांँ शामिल हैं।
    • किशोर प्रजनन क्षमता, मातृ देखभाल और जन्म अंतराल को संबोधित करता है।
    • मासिक धर्म स्वच्छता योजनाओं, सहकर्मी शिक्षकों और किशोर स्वास्थ्य दिवसों का बढ़ावा देता है।
  • आशा कार्यकर्ताओं के लिए योजना: मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) को जन्म अंतराल, गर्भनिरोधक और संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
    • ये ग्रामीण प्रजनन प्रबंधन और जागरूकता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, खासकर युवा माताओं के मध्य।
  • जननी सुरक्षा योजना (Janani Suraksha Yojana- JSY) और जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (anani Shishu Suraksha Karyakram- JSSK): शिशु और मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहित करना।
    • प्रसव पश्चात परिवार नियोजन के द्वारा निःशुल्क प्रसव, परिवहन और प्रसवोत्तर देखभाल प्रदान करना।
  • विवाह आयु और बाल संरक्षण पर कानून: बाल-विवाह प्रतिषेध अधिनियम, (2006) और बालिकाओं के लिए विवाह की कानूनी आयु 21 वर्ष करने के प्रस्तावों का उद्देश्य किशोर गर्भधारण और समय से पहले प्रजनन दर को कम करना है।

विश्व में प्रजनन क्षमता बढ़ाने की नीतियाँ

  • जर्मनी में माता-पिता को अधिक अवकाश और लाभ दिए जाते हैं।
  • डेनमार्क 40 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के लिए राज्य द्वारा वित्तपोषित IVF की सुविधा देता है।
  • हंगरी ने हाल ही में IVF क्लीनिकों का राष्ट्रीयकरण किया है।
  • पोलैंड दो से अधिक बच्चे पैदा करने वाले माता-पिता को प्रत्येक महीने नकद भुगतान करता है।
  • रूस दूसरे बच्चे के जन्म पर माता-पिता को एकमुश्त भुगतान करता है।

आगे की राह और सिफारिशें: भारत में प्रजनन क्षमता का प्रबंधन

  • प्रजनन स्वास्थ्य के लिए अधिकार-आधारित दृष्टिकोण को अपनाना: जनसंख्या नियंत्रण से प्रजनन लक्ष्यों की ओर बदलाव, जहाँ व्यक्ति यह निर्णय लेता है कि उसे कब, कितने और कितने बच्चे पैदा करने हैं।
    • UNFPA 2025 प्रजनन लक्ष्यों को जनसांख्यिकीय लक्ष्य के रूप में नहीं बल्कि व्यक्तिगत और मानव अधिकार के रूप में मान्यता देने की सिफारिश करता है।
  • गुणवत्तापूर्ण लैंगिक और प्रजनन स्वास्थ्य (SRH) सेवाओं तक पहुँच का विस्तार करना: गर्भनिरोधक, सुरक्षित गर्भपात, बांझपन उपचार और मातृ स्वास्थ्य सेवा तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना।
  • भारत में 27.5 मिलियन से अधिक बांझ युगल हैं, लेकिन सार्वजनिक प्रजनन सेवाएँ सीमित हैं।
  • स्थानीय हस्तक्षेप के साथ उच्च प्रजनन क्षमता वाले राज्यों को लक्षित करना: बिहार (TFR 3.0), UP (2.7), और मेघालय (2.9) जैसे राज्यों को सांस्कृतिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य सेवा अंतराल को संबोधित करने वाले केंद्रित कार्यक्रमों की आवश्यकता है।
    • मिशन परिवार विकास जैसी क्षेत्र-विशिष्ट योजनाओं का समर्थन करना और जहाँ आवश्यक हो, वहाँ इसका विस्तार करना।
  • माता-पिता बनने में संरचनात्मक बाधाओं को संबोधित करना: बच्चे पैदा करने से जुड़ी आर्थिक चिंताओं को कम करने के लिए चाइल्डकेयर, आवास, शिक्षा और कार्य वातावरण में निवेश  करना ।
  • लगभग 40% भारतीय वित्तीय बाधाओं और 22% आवास संबंधी मुद्दों को वांछित परिवार के आकार को प्राप्त न करने के कारणों के रूप में बताते हैं।
  • परिवार नियोजन सेवाओं में समावेशिता सुनिश्चित करना: अविवाहित व्यक्तियों, LGBTQIA+ समूहों और हाशिए पर स्थित समुदायों तक प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करना।
    • UNFPA पारंपरिक वैवाहिक मानदंडों से परे सेवाओं तक समावेशी, उपेक्षा-मुक्त पहुँच को बढ़ावा देता है।
  • डेटा संग्रह और निगरानी को बढ़ाना: TFR से आगे बढकर कुल वांछित प्रजनन दर (UNFPA), प्रजनन की इच्छा और अपूर्ण जरूरतों के प्रति जागरूक होना।
    • बिहार और मेघालय में TFR > UNFPA (उदाहरण के लिए, बिहार: 3.0 बनाम 2.2) दिखाई देता है, जो अनपेक्षित प्रजनन और पहुँच की कमी को दर्शाता है।
  • सामाजिक मानदंड परिवर्तन और स्वास्थ्य साक्षरता को बढ़ावा देना: उपेक्षा, पुत्र को प्राथमिकता देने और गर्भनिरोधक और बांझपन के बारे में मिथकों को चुनौती देने के लिए अभियान संचालित करना।
    • प्रजनन जागरूकता और शारीरिक स्वायत्तता के लिए सामुदायिक भागीदारों, आशा कार्यकर्ताओं और युवाओं को शामिल करना।

निष्कर्ष:

भारत में प्रजनन दर में 1.9 की गिरावट (UNFPA 2025) शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और प्रजनन अधिकारों में प्रगति को दर्शाती है, लेकिन बढ़ती वृद्ध आबादी और क्षेत्रीय असमानताओं जैसी चुनौतियाँ भी सामने आती हैं। उच्च प्रजनन क्षमता वाले राज्यों में अधिकार-आधारित दृष्टिकोण, समावेशी नीतियाँ और लक्षित हस्तक्षेप सतत् जनसांख्यिकीय अनुकूलन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

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