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राज्य सूचना आयोगों की प्रक्रिया में विलंब और रिक्तियाँ

Lokesh Pal October 14, 2025 03:40 16 0

संदर्भ 

हाल ही में सतर्क नागरिक संगठन (SNS) की एक रिपोर्ट के अनुसार,  केंद्रीय और कई राज्य सूचना आयोग (CIC/SICs) या तो अधूरे स्टाफ के कारण पूर्ण रूप से कार्यशील नहीं हैं अथवा पूर्णत: निष्क्रिय हैं, जिसके परिणामस्वरूप RTI अपीलों की सुनवाई में अत्यधिक विलंब हो रहा है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • निष्क्रिय आयोग: झारखंड, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, गोवा, त्रिपुरा और मध्य प्रदेश के छह राज्य सूचना आयोग (SICs) जुलाई 2024 से अक्टूबर 2025 तक नियुक्तियों की कमी के कारण पूरी तरह निष्क्रिय रहे।
  • आंशिक रूप से कार्यरत आयोग:  कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, बिहार और मध्य प्रदेश पूर्ण सदस्यों की नियुक्ति के बिना कार्य कर रहे हैं।
  • केंद्रीय सूचना आयोग (CIC):  वर्तमान में केवल दो सूचना आयुक्त कार्यरत हैं, जबकि मुख्य सूचना आयुक्त सहित नौ पद रिक्त हैं।
  • लंबित अपीलें:  वर्ष 2024 में लगभग 2.4 लाख अपीलें दर्ज हुईं, और जून 2025 तक कुल लंबित अपीलों की संख्या 4 लाख से अधिक हो गई।
  • निस्तारण दर: वार्षिक रूप से 1.8 लाख मामलों के निस्तारण की क्षमता के साथ, वर्तमान स्थिति में लंबित मामलों को समाप्त करने में दशकों लग सकते हैं।
  • सर्वाधिक लंबित मामले वाले राज्य: महाराष्ट्र (95,340), कर्नाटक (47,825), तमिलनाडु (41,059)।
  • संस्थागत कमजोरियाँ
    • प्रशासनिक उपेक्षा: 29 में से 20 आयोगों ने अब तक अपनी वर्ष 2023–24 की वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की है।
    • दंड प्रवर्तन की विफलता: दंड आधारित मामलों में, 98% में किसी भी जनसूचना अधिकारी (PIO) पर दंड नहीं लगाया गया।

प्रभाव

  • जवाबदेही का ह्रास:  लंबे विलंब से RTI अधिनियम का मूल उद्देश्य समयबद्धता एवं  पारदर्शिता निष्फल हो रहा है।
  • नागरिक अधिकारों पर आघात:  नागरिकों को सरकारी निर्णयों और खर्चों से जुड़ी जानकारी प्राप्त करने में वर्षों लग रहे हैं।
  • प्रशासनिक उदासीनता: निगरानी और पारदर्शिता की संस्थागत व्यवस्था कमजोर हो रही है, जिससे लोकतंत्र पर विश्वास कम हो रहा है।

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005

  • स्थापना: संसद द्वारा जून 2005 में पारित और 12 अक्टूबर, 2005 से प्रभावी।
  •  यह अधिनियम लोक प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के सिद्धांत पर आधारित है।
  •  इसने सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम, 2002 को प्रतिस्थापित किया।  संवैधानिक आधार अनुच्छेद-19(1)(a) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार)।
  • उद्देश्य: सरकारी निकायों से सूचना प्राप्त करने का नागरिक अधिकार प्रदान कर पारदर्शिता, जवाबदेही और जन-सशक्तीकरण को बढ़ावा देना।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय।

मुख्य प्रावधान

  • लागू क्षेत्र: सभी केंद्रीय, राज्य और स्थानीय निकायों पर लागू है, यह मंत्रालय, सार्वजनिक उपक्रम (PSUs), और संवैधानिक संस्थाएँ शामिल हैं।
  • अपवाद (धारा 8): राष्ट्रीय सुरक्षा, खुफिया एजेंसियाँ और व्यक्तिगत जानकारी, जब तक कि भ्रष्टाचार या मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़ी न हो।
  • समय-सीमा
    • आवेदन पर 30 दिनों के भीतर उत्तर।
    • जीवन या स्वतंत्रता से संबंधित मामलों में 48 घंटे के भीतर।
  • जनसूचना अधिकारी (PIOs):  प्रत्येक सार्वजनिक कार्यालय में नियुक्त, जो RTI आवेदन की प्रक्रिया प्रबंधन करते हैं।
  • सूचना आयोग (धारा 12–15)
    • केंद्रीय सूचना आयोग (CIC): राष्ट्रीय स्तर पर।
    • राज्य सूचना आयोग (SIC): राज्य स्तर पर।
    • मुख्य सूचना आयुक्त और अधिकतम 10 सूचना आयुक्त।
  • अपील:  यदि PIO द्वारा जानकारी अस्वीकृत या संतोषजनक उत्तर न दिया जाए तो अपील आयोग में दायर की जा सकती है।

स्तर नियुक्ति प्राधिकारी चयन समिति
केंद्रीय सूचना आयोग भारत के राष्ट्रपति प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), लोकसभा में विपक्ष के नेता, प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय मंत्री
राज्य सूचना आयोग राज्यपाल मुख्यमंत्री (अध्यक्ष), विधानसभा में विपक्ष के नेता, मुख्यमंत्री द्वारा नामित राज्य मंत्री

कार्यकाल और सेवा शर्तें

  • मूल अधिनियम (2005):  5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो पहले हो।
  • संशोधित अधिनियम (2019):  कार्यकाल, वेतन और सेवा शर्तें अब केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
  • पद से हटाना:  मुख्य सूचना आयुक्त/आयुक्त को, राष्ट्रपति (केंद्रीय) या राज्यपाल (राज्य) द्वारा, सर्वोच्च न्यायालय की जाँच के बाद सिद्ध दुराचार या अक्षमता की स्थिति में हटाया जा सकता है।

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संवैधानिक और न्यायिक समर्थन

अनुच्छेद-19(1)(a):  “जानने का अधिकार” अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अभिन्न अंग है।

महत्त्वपूर्ण मामले

  • उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राज नारायण (1975): नागरिकों के सरकारी कार्यकलापों को जानने के अधिकार की पुष्टि।
  • भारत संघ बनाम ADR (2002): प्रत्याशियों की संपत्ति और आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी को लोक अधिकार घोषित किया।

इन निर्णयों ने RTI अधिनियम को लोकतांत्रिक जवाबदेही का स्तंभ बनाया।

सतर्क नागरिक संगठन (SNS)

  • स्थापना: वर्ष 2003 में सतर्क नागरिक संगठन (SNS) या ‘सोसायटी फॉर सिटिजन्स विजिलेंस इनिशिएटिव्स’ (SCVI) के रूप में स्थापित, यह एक नागरिक समूह है।
  • उद्देश्य: शासन में पारदर्शिता, जवाबदेही और नागरिक सहभागिता को बढ़ावा देना।
  • मुख्य कार्यक्षेत्र
    • RTI अधिनियम, 2005 के प्रति जागरूकता का प्रसार करना।
    • नागरिकों को सरकारी जानकारी प्राप्त करने के लिए RTI का उपयोग करने हेतु प्रोत्साहित करना।

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