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राज्य-विशिष्ट आपदाएँ

Lokesh Pal November 27, 2024 04:04 13 0

संदर्भ

तमिलनाडु सरकार ने आधिकारिक तौर पर हीटवेव को राज्य-विशिष्ट आपदा घोषित किया है। साथ ही राज्य ने राहत कार्यों में शामिल लोगों सहित गर्मी से संबंधित कारणों से मरने वाले व्यक्तियों के परिवारों के लिए 4 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की भी घोषणा की है।

हीटवेव के बारे में

  • परिभाषा: हीटवेव अत्यधिक गर्म मौसम की एक लंबी अवधि है, जो किसी विशेष क्षेत्र के लिए सामान्य तापमान से काफी अधिक होती है।
  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा मानदंड
    • अधिकतम तापमान: मैदानी इलाकों के लिए स्टेशन को कम-से-कम 40°C और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए कम-से-कम 30°C रिकॉर्ड करना चाहिए।
    • जब सामान्य रूप से अधिकतम तापमान 40°C से कम या उसके बराबर हो:
      • हीट वेव: सामान्य तापमान से विचलन 5°C से 6°C है।
      • गंभीर हीट वेव: स्टेशन के सामान्य तापमान से विचलन 7°C या उससे अधिक है।
    • जब किसी स्टेशन का सामान्य तापमान 40°C-45°C से अधिक हो:
      • हीट वेव: सामान्य से विचलन 4°C से 5°C है।
      • गंभीर हीट वेव: सामान्य से विचलन 6°C या उससे अधिक है।
    • जब वास्तविक अधिकतम तापमान सामान्य अधिकतम तापमान के बावजूद 45°C या उससे अधिक रहता है, तो लू की घोषणा की जानी चाहिए।

हीटवेव को राज्य विशिष्ट आपदा घोषित करने का महत्त्व

  • तत्काल राहत: यह घोषणा सरकार को अत्यधिक तापमान से प्रभावित लोगों को तत्काल राहत प्रदान करने में सक्षम बनाती है, विशेष रूप से अप्रैल 2024 और मई 2024 में अनुभव की गई भीषण गर्मी के दौरान।
  • राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) का उपयोग: सरकार इन राहत प्रयासों का समर्थन करने के लिए राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष का उपयोग करेगी।
  • राहत सहायता के लिए अतिरिक्त आपदाओं की घोषणा: सरकार ने समुद्री कटाव, आकाशीय बिजली, गरज, बवंडर और आँधी को भी आपदा घोषित किया है।
  • राज्य विशिष्ट आपदाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

राष्ट्रीय आपदा को परिभाषित करने का प्रयास

  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन समिति, 2001: समिति को राष्ट्रीय आपदा को परिभाषित करने वाले मापदंडों पर विचार करने का दायित्व सौंपा गया था।
    • हालाँकि, समिति ने कोई निश्चित मानदंड सुझाया नहीं है।
  • 10वाँ वित्त आयोग (1995-2000): इस प्रस्ताव की जाँच की गई कि यदि कोई आपदा किसी राज्य की एक-तिहाई आबादी को प्रभावित करती है तो उसे ‘अत्यंत गंभीर राष्ट्रीय आपदा’ कहा जाएगा।
    • पैनल ने ‘दुर्लभ गंभीरता की आपदा’ को परिभाषित नहीं किया है।
    • लेकिन कहा कि इसका मूल्यांकन मामले-दर-मामला किया जाना चाहिए, जिसमें तीव्रता, परिमाण, आवश्यक सहायता, राज्य की क्षमता और उपलब्ध राहत विकल्पों जैसे कारकों पर विचार किया जाना चाहिए।
      • उदाहरण: उत्तराखंड में अचानक आई बाढ़ और चक्रवात हुदहुद को बाद में ‘गंभीर प्रकृति’ की आपदाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया।

भारत में आपदाओं के बारे में

  • परिभाषा: आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अनुसार, आपदा एक ‘विपत्ति, दुर्घटना, आपदा या गंभीर घटना’ है, जो प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों से उत्पन्न होती है, जिसके परिणामस्वरूप जीवन की भारी हानि, संपत्ति का विनाश या पर्यावरण को नुकसान होता है।

भारत में अधिसूचित आपदाओं के बारे में

  • वर्तमान में, 12 आपदाओं को अधिसूचित आपदा के रूप में वर्गीकृत किया गया है: चक्रवात, सूखा, भूकंप, आग, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटना, कीट हमला और पाला एवं शीत लहर।
  • राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का प्रावधान: किसी प्राकृतिक आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का कोई भी प्रावधान, कार्यकारी या कानूनी नहीं है।
  • राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF): आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 48 (1) (a) के तहत गठित SDRF, अधिसूचित आपदाओं के जवाब के लिए राज्य सरकारों के पास उपलब्ध प्राथमिक निधि है।
    • केंद्र सरकार सामान्य श्रेणी के अंतर्गत आने वाले राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के लिए SDRF आवंटन का 75% योगदान देती है।
    • विशेष श्रेणी के राज्यों (पूर्वोत्तर राज्य, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर) के लिए 90%।
  • राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (NDRF): आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 46 के तहत गठित NDRF, गंभीर प्रकृति की आपदा के मामले में राज्य के SDRF की पूर्ति करता है, बशर्ते SDRF में पर्याप्त धनराशि उपलब्ध न हो।

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005

  • नोडल एजेंसी: केंद्रीय गृह मंत्रालय को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के लिए प्रमुख एजेंसी के रूप में नामित किया गया है।
  • संस्थागत संरचना: राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन ढाँचे की स्थापना करती है।
  • राष्ट्रीय स्तर की संस्थाएँ
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA): आपदा प्रबंधन नीतियाँ  विकसित करता है और प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करता है।
    • राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (NEC): NDMA की सहायता करता है, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना को वार्षिक रूप से  तैयार और अद्यतन करता है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM): आपदा प्रबंधन के लिए प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण करता है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF): आपदा प्रतिक्रिया के लिए विशेष पेशेवर इकाइयाँ।
  • राज्य और जिला प्राधिकरण: राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) और जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) स्थानीय स्तर पर आपदा प्रबंधन की योजना बनाते हैं और उसे लागू करते हैं।
  • वित्तीय तंत्र: राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) और इसी तरह के राज्य और जिला-स्तरीय कोषों के लिए प्रावधान।
  • सिविल और आपराधिक दायित्व: अधिनियम की धारा 51 आदेशों का पालन न करने पर दंडित करती है:
    • 1 वर्ष तक का कारावास, जुर्माना या दोनों।
    • यदि उल्लंघन के कारण मृत्यु हो जाती है, तो कारावास 2 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।

राज्य विशिष्ट आपदाओं/स्थानीय आपदाओं के बारे में

  • राज्य विशिष्ट आपदाएँ/स्थानीय आपदाएँ राज्य की विशिष्ट भौगोलिक, पर्यावरणीय या जलवायु परिस्थितियों के लिए विशिष्ट होती हैं।
  • घोषितकर्ता: राज्य सरकार के पास कुछ प्राकृतिक घटनाओं को ‘स्थानीय आपदाओं’ के रूप में वर्गीकृत करने का विवेकाधिकार है, जिन्हें वे राज्य के स्थानीय संदर्भ में ‘आपदा’ मानते हैं और जो गृह मंत्रालय की आपदाओं की अधिसूचित सूची में शामिल नहीं हैं।
    • उदाहरण: वर्ष 2015 में, ओडिशा ने सर्पदंश को राज्य-विशिष्ट आपदा घोषित किया था।
  • स्थानीय आपदाओं हेतु SDRF का उपयोग: राज्य सरकार ऐसी स्थानीय आपदाओं के पीड़ितों को तत्काल राहत प्रदान करने के लिए राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) के अंतर्गत आवंटित धनराशि का 10% तक उपयोग कर सकती है।
  • शर्त: राज्य सरकार को राज्य विशिष्ट प्राकृतिक आपदाओं को सूचीबद्ध करना होगा तथा राज्य प्राधिकरण अर्थात् राज्य कार्यकारी प्राधिकरण (SEC) के अनुमोदन से ऐसी आपदाओं के लिए स्पष्ट एवं पारदर्शी मानदंड और दिशा-निर्देश अधिसूचित करने होंगे।

राज्य-विशिष्ट आपदाओं को प्रभावित करने वाले कारक

  • भौगोलिक विशेषताएँ: पर्वत, समुद्र तट और शुष्क क्षेत्र जैसे भूभाग भूस्खलन, बाढ़ और सूखे को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के रूप में 
    • हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर जैसे भूकंपीय क्षेत्रों में स्थित राज्य भूकंप के प्रति संवेदनशील हैं।
    • वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश में चक्रवात हुदहुद।
  • जलवायु परिस्थितियाँ: अत्यधिक तापमान और मौसमी वर्षा के कारण पाला, हीट वेव, बादल फटना और सूखा पड़ता है।
    • उदाहरण: पूर्वोत्तर राज्य और सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्य भारी वर्षा और वनों की कटाई के कारण भूस्खलन के खतरे का सामना करते हैं।
  • जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र: संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र और घनी वनस्पति को कीटों के हमले, वनाग्नि  और पारिस्थितिकी व्यवधान का सामना करना पड़ता है।
    • उदाहरण: वर्ष 2024 में, केरल ने ‘मानव-पशु संघर्ष’ को राज्य-विशिष्ट आपदा घोषित किया।
  • मानवीय गतिविधियाँ: अनियोजित निर्माण, वनों की कटाई और संसाधनों का अति प्रयोग भूस्खलन और सूखे जैसी आपदाओं को बढ़ाता है।
    • उदाहरण: खराब जल निकासी व्यवस्था के कारण चेन्नई, बंगलूरू जैसे शहरों में शहरी बाढ़।
    • शहरी ऊष्मा द्वीप (UHI) प्रभाव: कम हरियाली और उच्च ऊर्जा उपयोग वाले घने शहरी क्षेत्रों में उच्च तापमान और प्रवर्द्धित ऊष्मा तरंगों का जोखिम होता है।

आगे की राह

  • खतरा मानचित्रण: उन्नत GIS और सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करना।
    • उदाहरण: उत्तराखंड में भूस्खलन संभावित क्षेत्रों के मानचित्रण के लिए GIS का उपयोग करना।
  • स्थानीयकृत अनुसंधान: सूचित निर्णय लेने के लिए क्षेत्र-विशिष्ट डेटा में निवेश करना।
    • उदाहरण के लिए, बिहार जैसे बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में स्थानीय नदी पैटर्न, वर्षा और मिट्टी की स्थिति पर डेटा एकत्र करने से बाढ़ प्रबंधन रणनीतियों को तैयार करने में मदद मिल सकती है।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: समय पर और वास्तविक समय अलर्ट प्रसारित करने के लिए मजबूत प्रणाली स्थापित करना।
  • सामुदायिक प्रशिक्षण: स्थानीय समुदायों के लिए नियमित जागरूकता और मॉक ड्रिल आयोजित करना।
  • सतत् शहरी नियोजन: शहरी ताप द्वीप प्रभाव को कम करने के लिए हरित स्थानों को बढ़ाना और इमारतों को अनुकूलित करना।

निष्कर्ष

  • राज्य-विशिष्ट आपदाओं के लिए ऐसे समाधान की आवश्यकता होती है, जो राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन ढाँचे के भीतर स्थानीय कमजोरियों को संबोधित करते हैं।
  • निवारक, शमनकारी और अनुकूली उपायों को प्राथमिकता देकर, भारत अपने राज्यों में विविध आपदा जोखिमों के प्रति लचीलापन बढ़ा सकता है।

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