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भारत में छात्र आत्महत्याएँ

Lokesh Pal March 27, 2025 04:08 56 0

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने तथा आत्महत्याओं को रोकने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया है।

संबंधित तथ्य

  • न्यायालय ने कहा कि छात्रों द्वारा आत्महत्या की घटनाएँ, कृषि संकट के कारण किसानों की आत्महत्याओं से अधिक हो गई हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के एक निर्णय को चुनौती देते हुए एक आदेश में ये टिप्पणियाँ कीं।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने इससे पहले आईआईटी दिल्ली के दो अनुसूचित जाति के छात्रों के माता-पिता की याचिकाओं को खारिज कर दिया था,  जिन्होंने आत्महत्या कर ली थी।

टास्क फोर्स के बारे में

  • 10 सदस्यीय टास्क फोर्स का नेतृत्व सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस. रविंद्र भट कर रहे हैं।

टास्क फोर्स के उद्देश्य और कर्तव्य

  • कारणों की जाँच करना: टास्क फोर्स छात्र आत्महत्याओं के प्रमुख कारणों की पहचान करने के लिए जिम्मेदार है, जिसमें रैगिंग, जाति और लिंग आधारित भेदभाव, यौन उत्पीड़न और मानसिक स्वास्थ्य तथा उपेक्षा शामिल हैं।
  • रूपरेखा का मूल्यांकन करना: वे छात्र आत्महत्याओं को रोकने में उनकी प्रभावशीलता निर्धारित करने के लिए वर्तमान कानूनों और नीतियों का मूल्यांकन करेंगे और आवश्यक संवर्द्धन की सिफारिश करेंगे।
  • सिफारिशें प्रदान करना: कार्य बल सहायता प्रणालियों में अंतराल को पाटने, समावेशी शैक्षणिक वातावरण को बढ़ावा देने और हाशिए पर पड़े लोगों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के उपायों का प्रस्ताव करेगा।

भारत में छात्र आत्महत्या संबंधी आँकड़े

  • NCRB के आँकड़े: वर्ष 2022 में 13,044 छात्र आत्महत्याएँ दर्ज की गईं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 0.3% की मामूली कमी है।
    • पिछले दशक (2013-22) में 1,03,961 छात्रों की आत्महत्या दर्ज की गई, जो पिछले दशक (2003-12) की तुलना में 64% की वृद्धि को दर्शाता है।
  • छात्र आत्महत्याओं में से लगभग आधे के लिए पाँच राज्य जिम्मेदार हैं: महाराष्ट्र (1,764), तमिलनाडु (1,416), मध्य प्रदेश (1,340), उत्तर प्रदेश (1,060) और झारखंड (824) सामूहिक रूप से भारत में छात्र आत्महत्याओं के 49% के लिए जिम्मेदार हैं।
  • क्षेत्रीय वितरण: दक्षिणी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में छात्रों की आत्महत्याओं का अनुपात सर्वाधिक (29%) है।
  • कुल आत्महत्याओं में से छात्र आत्महत्याएँ: भारत में होने वाली सभी आत्महत्याओं में छात्र आत्महत्याएँ 7.6% हैं।
  • किसान आत्महत्या से तुलना: वर्ष 2022 में, भारत भर में कृषि से जुड़े 11,290 लोगों ने आत्महत्या की, जो छात्रों की संख्या से भी कम है।
  • आत्महत्या दरें: हालाँकि पिछले दशक में 0-24 वर्ष की आयु के लोगों की आबादी 582 मिलियन से घटकर 581 मिलियन हो गई, वहीं छात्रों की आत्महत्या 6,654 से बढ़कर 13,044 हो गई।
  • आत्महत्याओं की कम रिपोर्टिंग: सामाजिक उपेक्षा, आत्महत्या के प्रयास, सहायता के विरुद्ध दंडात्मक कानून और अन्य कारकों के कारण छात्रों की आत्महत्याओं की वास्तविक संख्या अधिक होने की संभावना है।
  • मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियाँ: भारत में सात में से एक युवा (15-24 वर्ष की आयु) खराब मानसिक स्वास्थ्य का अनुभव करता है, जिसमें अवसाद और उदासीनता के लक्षण शामिल हैं।
    • सर्वेक्षण में शामिल केवल 41% लोगों ने मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों के लिए सहायता लेने की आवश्यकता महसूस की।
  • मनोचिकित्सकों की कमी: भारत में प्रति 1,00,000 लोगों पर केवल 0.75 मनोचिकित्सक हैं, जो 3:1,00,000 के वांछित अनुपात से बहुत कम है।

भारत में छात्र आत्महत्या के कारण

  • शैक्षणिक दबाव: माता-पिता और संस्थानों से तीव्र प्रतिस्पर्द्धा तथा उच्च अपेक्षाएँ प्रायः मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देती हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे: मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता की कमी और उपेक्षा के कारण अवसाद, चिंता तथा अन्य विकार हो सकते हैं, जिनका उपचार नहीं किया जाता है।
    • कोई छात्र निर्णय के डर के कारण मदद नहीं माँग सकता है, जिसके परिणामस्वरूप दुखद परिणाम सामने आते हैं।
  • पारिवारिक मुद्दे: घरेलू हिंसा या वित्तीय अस्थिरता सहित परिवार की खराब गतिशीलता छात्रों के लिए तनाव का कारण बन सकती है।
    • प्रदर्शन करने के लिए परिवार के दबाव के कारण छात्र स्वयं को फँसा हुआ महसूस कर सकते हैं।
  • सामाजिक अलगाव: दुर्व्यवहार या साथियों के दबाव के कारण छात्रों में अकेलेपन और अलगाव की भावना उत्पन्न हो सकती है।
  • परामर्श सेवाओं की कमी: स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों तक अपर्याप्त पहुँच के कारण छात्रों को आवश्यक सहायता नहीं मिल पाती है।
  • आर्थिक कारक: शिक्षा का वित्तीय बोझ और परिवार का समर्थन करने की अपेक्षाएँ निराशा का कारण बन सकती हैं।
  • नशीले पदार्थों का सेवन: नशीले पदार्थों या शराब के सेवन से मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ सकती हैं और आवेगपूर्ण कार्यवाहियाँ हो सकती हैं।

छात्र आत्महत्याओं पर अंकुश लगाने के लिए आगे की राह

सरकारी पहल

  • आत्म-क्षति पर दिशा-निर्देश: शिक्षा मंत्रालय ने स्कूलों, परिवारों और समुदायों के बीच समझ और समर्थन को बढ़ावा देने के लिए दिशा-निर्देश प्रस्तावित किए हैं।
    • UMMEED [समझना (Understand), प्रेरित करना (Motivate), प्रबंधित करना (Manage), सहानुभूति रखना (Empathise), सशक्त बनाना (Empower), विकसित करना (Develop)] दिशा-निर्देशों का उद्देश्य “स्कूलों को संवेदनशीलता, समझ बढ़ाने और रिपोर्ट की गई आत्म-क्षति के मामले में सहायता प्रदान करने के लिए दिशा-निर्देश” के रूप में कार्य करना है।
  • रैगिंग विरोधी कानून को मजबूत करना: मौजूदा प्रतिबंधों के बावजूद, घटनाएँ जारी हैं। सरकार को सख्त नियम और अनुपालन लागू करना चाहिए।
  • मानसिक स्वास्थ्य पहल का विस्तार करना: शैक्षणिक संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए समर्पित हेल्पलाइन की सुविधा सहित अधिक धन मुहैया कराना महत्त्वपूर्ण है।

माता-पिता की भागीदारी

  • बच्चों के साथ खुला संवाद: माता-पिता को शैक्षणिक दबाव और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में चर्चा को प्रोत्साहित करना चाहिए, कॅरियर विकल्पों पर अत्यधिक दबाव से बचना चाहिए।
    • चाइल्ड डेवलपमेंट नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जिन बच्चों के माता-पिता सहायक होते हैं और जो दबावों के बारे में बातचीत को प्रोत्साहित करते हैं, उनमें चिंता तथा तनाव से संबंधित लक्षणों का स्तर कम होता है।
  • जब आवश्यक हो तो मार्गदर्शन प्रदान करना: यदि कोई बच्चा परेशान दिखाई देता है, तो पेशेवर मदद लेने में सक्रिय रहें, उनके मानसिक स्वास्थ्य और शैक्षणिक प्रदर्शन दोनों का समर्थन करें।

शिक्षण संस्थान

  • परामर्श सेवाओं को बेहतर बनाना: संस्थानों को सुलभ परामर्श सुनिश्चित करना चाहिए और सहकर्मी सहायता कार्यक्रम स्थापित करना चाहिए।
  • तनाव प्रबंधन कार्यक्रम लागू करना: माइंडफुलनेस और संकट का मुकाबला करने की रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करने वाले कार्यक्रमों को पाठ्यक्रम में एकीकृत करना।
    • इंग्लैंड के कई स्कूलों में लागू किए गए “माइंडफुलनेस इन स्कूल्स” कार्यक्रम से पता चलता है कि माइंडफुलनेस प्रशिक्षण में भाग लेने वाले छात्रों ने बेहतर ध्यान, भावनात्मक विनियमन और चिंता में कमी का प्रदर्शन किया।
  • एंटी-रैगिंग नीतियों को मजबूत करना: संस्थानों को सख्त एंटी-रैगिंग उपायों को लागू करना चाहिए और छात्रावासों में छात्रों की सुरक्षा के लिए स्पष्ट रूप से निवारक नियम स्थापित करने चाहिए।

छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को समर्थन देने के लिए सरकारी पहल

  • मनोदर्पण पहल (Manodarpan Initiative): केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने मनोदर्पण की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य छात्रों को मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करना है।
    • इस कार्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना कर रहे छात्रों की सहायता के लिए एक राष्ट्रीय टोल-फ्री हेल्पलाइन और समर्पित वेबसाइट संसाधन शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (National Suicide Prevention Strategy-NSPS): केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) द्वारा नवंबर 2022 में लॉन्च की गई।
    • यह आत्महत्या रोकथाम को संबोधित करने वाली देश की पहली व्यापक नीति है और इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक आत्महत्या मृत्यु दर को 10% तक कम करना है।
  • राजस्थान सरकार की कार्रवाई: राजस्थान सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य सहायता बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं:
    • वर्ष 2022 और वर्ष 2023 में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी दिशा-निर्देश जारी किए गए, जिन्हें जिला प्रशासन द्वारा लागू किया जाता है।
    • जरूरतमंद छात्रों को सीधे सहायता प्रदान करने के लिए 90 मनोवैज्ञानिक परामर्शदाताओं की नियुक्ति की गई।
    • छात्रों की सहायता के लिए विशेष रूप से एक टोल-फ्री हेल्पलाइन की स्थापना की गई।
    • छात्रों में मानसिक संकट के लक्षणों की पहचान करने और आवश्यक हस्तक्षेप प्रदान करने के लिए 10,000 छात्रावास गेटकीपर को प्रशिक्षित किया गया।
  • ‘कोटा में डीएम के साथ डिनर’ पहल: यह अभिनव कार्यक्रम परेशान छात्रों को सहायता और परामर्श के लिए जिला प्रशासन के अधिकारियों से मिलने की अनुमति देता है।
    • यह छात्रों के लिए अपनी चिंताओं को सीधे अधिकारियों के साथ साझा करने के लिए एक सुलभ वातावरण बनाता है।
  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे में सुधार करना और शैक्षणिक संस्थानों के भीतर जागरूकता बढ़ाना है।
    • यह नीति मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और यह सुनिश्चित करने पर केंद्रित है कि छात्रों की सहायता के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों।
  • टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम [टेली-मानस (Tele-MANAS)]: अक्टूबर 2022 में लॉन्च किया गया, टेली-मानस एक 24/7 निःशुल्क टेली-मानस स्वास्थ्य सेवा है।
    • इसका उद्देश्य पूरे भारत में, विशेष रूप से दूरदराज और वंचित क्षेत्रों में सुलभ परामर्श और देखभाल प्रदान करना है।

निष्कर्ष

भारत में छात्रों की आत्महत्या की बढ़ती घटनाएँ एक गंभीर मुद्दा है, जिसके लिए सरकारों, अभिभावकों और शैक्षणिक संस्थानों से सहयोगात्मक कार्रवाई की आवश्यकता है। एक सहायक वातावरण को बढ़ावा देने और संकट के मूल कारणों को संबोधित करके, इसका मुकाबला करना तथा छात्रों के बीच मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना संभव है।

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