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अनुसूचित जाति का उप-वर्गीकरण (Sub-categorization of Scheduled Caste)

Samsul Ansari January 22, 2024 06:25 338 0

संदर्भ

केंद्र सरकार ने केंद्रीय कैबिनेट सचिव के नेतृत्व में सचिवों का एक पैनल गठित किया है, जो अनुसूचित जातियों को ए, बी, सी और डी समूहों में वर्गीकृत करने का कार्य करेगा।

पृष्ठभूमि

  • ध्यातव्य है कि इससे पूर्व प्रधानमंत्री ने मडिगा समुदाय (Madiga community) द्वारा अनुसूचित जाति (Scheduled Castes-SCs) के उप-वर्गीकरण की माँग पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की थी।
  • राज्यों की अलग कोटा की माँग: केंद्र सरकार को आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक जैसी राज्य सरकारों से अनुसूचित जाति (मडिगा सहित) के उप-वर्गीकरण के समर्थन में अनुरोध प्राप्त हुए हैं।
    • उनकी माँग है कि सभी जातियों के बीच लाभ एवं सुविधाओं के समान वितरण को सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जातियों के 15% कोटे के भीतर कुछ जातियों के लिए एक अलग कोटा होना चाहिए।
  • संवैधानिक पीठ द्वारा सुनवाई: फिलहाल यह मामला उच्चतम न्यायालय के सात न्यायाधीशों की पीठ के पास विचाराधीन है।
    • अनुसूचित जाति के बीच उप-वर्गीकरण की शक्ति: SC यह तय करेगा कि क्या राज्यों के पास आरक्षण प्रदान करते समय इन उप-वर्गीकरणों के निर्माण की शक्ति होगी या ऐसी शक्ति केवल राष्ट्रपति के पास निहित होगी।
    • उप-वर्गीकरण की संवैधानिकता: यह अनुसूचित जातियों के बीच उप-वर्गीकरण की संवैधानिकता पर ध्यान केंद्रित करेगा ताकि उनके लिए निर्धारित नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण को संबोधित किया जा सके।
  • हालाँकि, सरकारी पैनल उनकी शिकायतों के समाधान के लिए वैकल्पिक तरीकों का पता लगाएगा।

मडिगा समुदाय (Madiga Community)

  • तेलंगाना में कुल अनुसूचित जाति आबादी में मडिगा समुदाय का प्रतिनिधित्व कम-से-कम 50% है।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य की आबादी में अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी 15% से कुछ अधिक है।
  • इस समुदाय द्वारा चिंता व्यक्त की गई है कि आरक्षण के साथ-साथ अनुसूचित जाति श्रेणी के लिए निर्धारित अधिकांश लाभ पर माला समुदाय ने अधिकार कर लिया है, जबकि मडिगा समुदाय को इससे वंचित कर दिया गया है।

समिति के बारे में

  • समिति की संरचना: इस समिति में केंद्रीय गृह मंत्रालय, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग, जनजातीय कार्य मंत्रालय, कानूनी मामलों के विभाग और सामाजिक न्याय तथा अधिकारिता विभाग के सचिव शामिल हैं।
  • अध्यक्षता: केंद्रीय कैबिनेट सचिव
  • समिति का अधिदेश
  • देश भर में 1,200 अनुसूचित जातियों के बीच सबसे हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए लाभ, योजनाओं और पहलों के उचित वितरण का आकलन करना तथा इसमें सुधार हेतु एक रणनीति तैयार करना।
  •  अनुसूचित जातियों जैसे मडिगा और ऐसे अन्य समूहों के हितों की सुरक्षा करना, जो तुलनात्मक रूप से अधिक उन्नत एवं मजबूत समूहों से प्रभावित हो सकती हैं।

जाति का उप-वर्गीकरण क्या है?

    • उप-वर्गीकरण के बारे में: यह जाति समूहों को विभिन्न मानदंडों के आधार पर उप-समूहों में वर्गीकृत करने को संदर्भित करता है।
  • उद्देश्य: यह बड़े जाति समूहों के अंतर्गत विविधता को संबोधित करने और विशिष्ट उप-समूहों को लक्षित लाभ प्रदान करने का प्रयास करता है जिन्हें सामाजिक एवं आर्थिक रूप से वंचित माना जा सकता है।
  • जाति के उप-वर्गीकरण की माँग: समय के साथ, कुछ जातियों और समुदायों ने अपनी विशिष्ट विशेषताओं, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि या सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर मान्यता एवं विशिष्ट विशेषाधिकारों की माँग की है।

जातियों के उप-वर्गीकरण की आवश्यकता

  • असमान अवसर: सुरक्षात्मक और प्रतिपूरक भेदभाव (Protective & Compensatory Discrimination) की नीति से रोजगार, शिक्षा और विधायिका में उप-जातियों के असमान प्रतिनिधित्व की संभावना बनी रहती है।
  • तमिलनाडु में, अरुंधतियार (Arundhatiyar) जाति को अनुसूचित जाति कोटा के भीतर 3% कोटा दिया गया है, न्यायमूर्ति एम. एस. जनार्थनम की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य की अनुसूचित जाति आबादी का 16% होने के बावजूद नौकरियों में उनका प्रतिनिधित्व केवल 0-5% ही था
  • श्रेणीबद्ध असमानताएँ: अनुसूचित जाति समुदायों के बीच श्रेणीबद्ध असमानताएँ रही हैं और यहाँ तक कि हाशिए पर स्थित समुदायों के बीच भी, कुछ समुदायों को बुनियादी सुविधाओं तक कम पहुँच प्राप्त है।
    • उनमें से अपेक्षाकृत अधिक उन्नत समुदाय लगातार लाभ प्राप्त करने में सफल रहे हैं जबकि अधिक पिछड़े वर्गों को पीछे छोड़ दिया गया है।
  • पदानुक्रम पर नियंत्रण : अनुसूचित जातियों का समूह एक समान नहीं है और इसमें विभिन्न सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक विशेषताओं वाले कई समुदाय शामिल हैं। 
  • सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2018-19 में देश में अनुसूचित जाति (SC) के अंतर्गत 1,263 समुदाय थे। 
  • कुछ SC समुदायों ने शिक्षा, रोजगार और सामाजिक-आर्थिक विकास में प्रगति की है, जबकि अन्य समुदाय अभी भी व्यापक पिछड़ेपन का सामना कर रहे हैं।
  • सामाजिक गतिशीलता का संरक्षण : आरक्षण नीति प्रत्येक उप-जाति समूह को समान स्तर पर लाभ प्रदान करने में अप्रभावी रही है जिसके परिणामस्वरूप अनुसूचित जाति के विभिन्न उप-जाति समूहों के बीच प्रतिस्पर्द्धा और संघर्ष बढ़ा है।
  • सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना: सामाजिक न्याय यह सुनिश्चित करने पर जोर देता है कि ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहने वाले समुदायों को उचित और न्यायपूर्ण व्यवहार (Fair & Just Treatment) मिले तथा उनकी विशिष्ट चिंताओं को पर्याप्त रूप से संबोधित किया जाए।
    • उप-वर्गीकरण, विशेष SC उप-समूहों की विशिष्ट दुर्बलताओं और आवश्यकताओं को संबोधित करने में व्यापक लक्षित दृष्टिकोण की अनुमति प्रदान करता है। 
  • संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करना: उप-वर्गीकरण कुछ ही समुदायों में लाभों के एकत्रीकरण को रोकने में सहायता करता है
  • पंजाब राज्य द्वारा वर्ष 1975 में भर्ती के लिए अनुसूचित जातियों के अंतर्गत वरीयता क्रम बनाया गया। 

राष्ट्रपति सूची क्या है?

  • राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद-341 और 342 के तहत अनुसूचित जाति और जनजाति की केंद्रीय सूची को अधिसूचित किया जाता है।
  • सूची में जातियों को बाहर करने या शामिल करने के लिए संसद की सहमति आवश्यक होती है और राज्य सूची में जातियों को एकतरफा तरीके से जोड़ या हटा नहीं सकते हैं।
  • अनुच्छेद-341 के अनुसार, राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित जातियों को अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST ) कहा जाता है।
  • राज्यों में भिन्नता: यह संभव है कि एक राज्य में अनुसूचित जाति के रूप में अधिसूचित कोई जाति दूसरे राज्य में अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत/नामित न हो।
    • राज्यों के बीच अनुसूचित जाति के वर्गीकरण में भिन्नता यह सुनिश्चित करती है कि संबंधित राज्य में किसी विशेष जाति को आरक्षण दिया जाएगा या नहीं।
  • अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, लक्षद्वीप एवं अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में किसी भी समुदाय को SC के रूप में निर्दिष्ट नहीं किया गया है।

अनुसूचित जाति उप-वर्गीकरण के लिए विधिक संघर्ष

  • 1975: पंजाब सरकार द्वारा उप-वर्गीकरण
    • पंजाब सरकार ने अनुसूचित जातियों के 25% आरक्षण को दो श्रेणियों में विभाजित किया:
    • बाल्मीकि और मजहबी सिख समुदायों (आर्थिक और शैक्षिक रूप से सबसे पिछड़े समुदाय) के लिए आरक्षित।
    • इस प्रकार, उन्हें शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार में किसी भी आरक्षण के लिए प्राथमिकता दी जानी थी।
    • अनुसूचित जाति के तहत राज्य के शेष समुदायों को यह अधिमान्य उपचार नहीं मिलता।
  • 1996: न्यायमूर्ति रामचन्द्र आयोग का गठन
    • आंध्र प्रदेश सरकार ने आयोग का गठन किया।
    • सिफारिशें: आयोग इस साक्ष्य के आधार पर राज्य में अनुसूचित जाति के  उप-वर्गीकरण का प्रस्ताव करता है कि SC के अंतर्गत कुछ समुदाय अधिक पिछड़े थे और उनका प्रतिनिधित्व दूसरों की तुलना में कम था।
    • 2000: आंध्र प्रदेश अनुसूचित जाति (आरक्षण का युक्तिकरण) अधिनियम
      • आंध्र प्रदेश सरकार ने एक अधिनियम पेश किया।
      • इस अधिनियम में राज्य में पहचाने गए अनुसूचित जाति समुदायों की एक विस्तृत सूची और उनमें से प्रत्येक को प्रदान किए गए आरक्षण लाभ का कोटा शामिल था।
  • 2004: ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य
    • वर्ष 2004 में, पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने समानता के अधिकार का उल्लंघन करने के कारण इस अधिनियम को रद्द कर दिया।
    • उच्चतम न्यायालय के तर्क: न्यायालय ने माना कि उप-वर्गीकरण इस श्रेणी के समुदायों के साथ अलग-अलग व्यवहार करके समानता के अधिकार का उल्लंघन करेगा अतः अनुसूचित जाति सूची को एक एकल, समरूप समूह के रूप में माना जाना चाहिए।
    • डॉ. किशन पाल बनाम पंजाब राज्य: इस मामले में, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने वर्ष 1975 की अधिसूचना को निरस्त कर दिया।
  • 2006: पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम
    • पंजाब सरकार ने इस अधिनियम को पारित करके कानून को पुनः लागू करने का प्रयास किया।
  • 2010: उच्चतम न्यायालय में अपील
    • बाद में पंजाब सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की, जिसमें तर्क दिया गया कि वर्ष 2004 के उच्चतम न्यायालय के निर्णय ने गलत रूप से निष्कर्ष निकाला था कि अनुसूचित जाति के आरक्षण के अंदर  उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं है।
  • 2014: दविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य
    • उच्चतम न्यायालय ने यह निर्धारित करने के लिए अपील को पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया कि क्या वर्ष 2004 के ई. वी. चिन्नैया वाद पर पुनर्विचार की आवश्यकता है क्योंकि इसमें कई संवैधानिक प्रावधानों की परस्पर क्रिया की जाँच की आवश्यकता है।
      • संविधान की व्याख्या के लिए उच्चतम न्यायालय की कम-से-कम पाँच न्यायाधीशों वाली पीठ की आवश्यकता होती है।
  • 2018: जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मीनारायण गुप्ता
    • इस मामले में, उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति के अंतर्गत भी “क्रीमी लेयर” (Creamy Layer) की अवधारणा को बरकरार रखा।
    • ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा आरक्षण के लिए पात्र लोगों पर आय की सीमा तय करती है।
    • हालाँकि यह अवधारणा अन्य पिछड़ी जातियों (Other Backward Castes-OBC) पर लागू होती है, परंतु इसे वर्ष 2018 में पहली बार अनुसूचित जाति की पदोन्नति के लिए भी लागू किया गया था।
  • मामला 7 न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष लंबित : चूँकि दविंदर सिंह पीठ और ई.वी. चिन्नैया पीठ दोनों में पाँच न्यायाधीश शामिल थे, इसलिए अब इस मामले की सुनवाई सात न्यायाधीशों की पीठ द्वारा की जा रही है। 

जाति के उप-वर्गीकरण से संबंधित चुनौतियाँ

  • पहचान और मानदंड: उप-वर्गीकरण के लिए मानदंड निर्धारित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शैक्षिक उपलब्धि या क्षेत्रीय कारकों जैसे मापदंडों पर विचार किया जा सकता है, लेकिन इन मानदंडों पर आम सहमति तक पहुँचना कठिन हो सकता है।
    • वर्ष 1976 और 2005 में उच्चतम न्यायालय के फैसले इस बात पर जोर देते हैं कि ‘SCs जातियाँ नहीं हैं, वे वर्ग हैं’ (SCs Are Not Castes, They Are Class) और उनकी सुरक्षा अस्पृश्यता को संबोधित करने पर आधारित है, न कि अन्य कारकों पर।
  • डेटा सटीकता और उपलब्धता: प्रत्येक समुदाय और उप-समुदाय की सटीक संख्या तथा उनसे संबंधित सामाजिक-आर्थिक डेटा यह तय करने के लिए आवश्यक हैं कि जातियों को कैसे वर्गीकृत किया जा सकता है तथा उन्हें कितना प्रतिशत आरक्षण दिया जाना चाहिए, आदि।
    • विभिन्न अनुसूचित जाति समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर सटीक और अद्यतन डेटा प्राप्त करना एक बड़ी चुनौती है।
  • अंतर-समूह विवादों की संभावना: उप-वर्गीकरण से SC समुदायों के बीच आंतरिक विभाजन और विवाद हो सकते हैं।
    • कुछ समूह लाभ से वंचित महसूस कर सकते हैं, जिससे व्यापक अनुसूचित जाति वर्ग के भीतर सामाजिक तनाव पैदा हो सकता है।
  • विखंडन की संभावना: एक जोखिम है कि उप-वर्गीकरण से SC समुदाय का विखंडन हो सकता है, जिससे उनकी राजनीतिक और सामाजिक पहचान कमजोर हो सकती है।
    • इससे अपने अधिकारों की वकालत करने में उनकी सामूहिक शक्ति कमजोर हो सकती है।

भारत में प्रचलित उप-वर्गीकरण नीति

  • तमिलनाडु: वर्ष 2009 में, राज्य ने अनुसूचित जातियों के 18% आरक्षण के अंदर अरुन्थियार समुदाय के लिए रोजगार और शिक्षा के लिए एक विशेष आरक्षण का प्रावधान किया।
  • बिहार: वर्ष 2007 में, बिहार में ‘महादलित’ (अति पिछड़े दलित) नामक एक समूह बनाया गया, जिसमें 22 अनुसूचित जातियों में से कुछ को बाहर रखा गया।
  • बाद में वर्ष 2015 में, पासवानों को छोड़कर सभी जातियों को महादलित घोषित कर दिया गया। 
  • बिहार ने महादलितों की कल्याण योजना को प्राथमिकता दी और संवैधानिक आरक्षण में छेड़छाड़ नहीं की।
  • हरियाणा: वर्ष 2020 में, इसने ‘वंचित अनुसूचित जातियाँ’ (Deprived Scheduled Castes) नामक अनुसूचित जातियों का एक नया समूह बनाकर कानून के माध्यम से इन्हें शामिल कर आरक्षण को विभाजित किया।
    • इस समूह में चमार और रविदासिया समुदायों को छोड़कर 36 अनुसूचित जातियाँ शामिल थीं।

आगे की राह

  • उप-वर्गीकरण लागू करने के विकल्पों की खोज: केंद्र सरकार को इसके लिए कानूनी विकल्प तलाशने की जरूरत है।
    • उदाहरण के लिए, भारत के  महान्यायवादी (Attorney General of India-AGI) ने राय दी थी कि इसे सुविधाजनक बनाने के लिए एक संवैधानिक संशोधन लाया जा सकता है।
    • NCSC  और NCST ने राय दी थी कि संविधान के अनुच्छेद-16(4) में पहले से ही राज्यों को उन पिछड़े वर्गों के लिए विशेष कानून बनाने का प्रावधान है, जिनका प्रतिनिधित्व कम है।
    • न्यायमूर्ति उषा मेहरा समिति ने अपनी वर्ष 2008 की रिपोर्ट में एक संवैधानिक संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद-341 में खंड (3) को शामिल करने की सिफारिश की, जो राज्य विधायिका को राष्ट्रपति की पुष्टि के अधीन अनुसूचित जाति वर्ग के पुनर्वर्गीकरण को लागू करने का अधिकार देता है।
  • डेटा संग्रह और विश्लेषण: कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, संविधान संसद को SC या ST का उप-वर्गीकरण करने से नहीं रोकता है।
    • हालाँकि, सरकार को विभिन्न अनुसूचित जाति समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर व्यापक और सटीक डेटा संग्रह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
    • यह लाभों के उप-वर्गीकरण को उचित ठहराने और प्रत्येक समुदाय के लिए आवश्यक लाभों के अतिरिक्त हिस्से का मूल्यांकन करने का एकमात्र अनुभवजन्य आधार हो सकता है।
  • विकास संबंधी मानदंड: सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शैक्षिक उपलब्धि और क्षेत्रीय असमानताओं जैसे कारकों पर विचार करते हुए उप-वर्गीकरण के लिए पारदर्शी और समावेशी मानदंड विकसित किये जाएँ।
    • वर्ष 1996 में आंध्र प्रदेश सरकार ने न्यायमूर्ति रामचंद्र राजू आयोग बनाया, जिसने सुबूतों के आधार पर राज्य में अनुसूचित जाति के उप-वर्गीकरण की सिफारिश की कि कुछ समुदाय अधिक पिछड़े थे और दूसरों की तुलना में उनका प्रतिनिधित्व कम था।
  • मध्य मार्ग का अनुसरण : अनुसूचित जाति वर्ग के भीतर विविधता को पहचानने और समुदाय की समग्र एकता बनाए रखने के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है।

NCSC और NCST

  • जानकारी: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (National Commission for Scheduled Castes-NCSC) एक संवैधानिक निकाय है, जिसे अनुसूचित जातियों को शोषण से बचाने और सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में उनके हितों को आगे बढ़ाने एवं उनकी रक्षा करने के लिए बनाया गया था।
  • मूल संविधान: संविधान का अनुच्छेद-338 मूल रूप से एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति की अनुमति देता है।
    • विशेष अधिकारी को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आयुक्त के रूप में नामित किया गया था।
  • अनुच्छेद-338 में संशोधन: संविधान के अनुच्छेद-338 को 65वें संशोधन अधिनियम, 1990 द्वारा संशोधित किया गया, जिसके अंतर्गत पिछले एक सदस्यीय पैनल के स्थान पर अनुसूचित जनजाति (ST) और अनुसूचित जाति (SC) के लिए एक बहु-सदस्यीय राष्ट्रीय आयोग स्थापित किया गया।
  • 89वाँ संशोधन अधिनियम, 2003: अनुच्छेद-338 में संशोधन किया गया और SC एवं ST के लिए तत्कालीन राष्ट्रीय आयोग को वर्ष 2004 से दो अलग-अलग आयोगों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया जो थे:
    • राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) और
    • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes-NCST)।

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