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शुगर बोर्ड

Lokesh Pal May 28, 2025 04:04 90 0

संदर्भ

बच्चों में शर्करा की खपत के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने पूरे भारत में 24,000 से अधिक विद्यालयों में ‘शुगर बोर्ड’ के निर्माण का आदेश दिया है।

शुगर बोर्ड क्या है?

  • शुगर बोर्ड स्कूलों में लगाई जाने वाली दृश्य प्रदर्शनी हैं, जो आमतौर पर प्रयोग किए जाने वाले पैकेज्ड खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों जैसे कि वातित पेय और जूस में शर्करा की मात्रा दर्शाते हैं।
  • बोर्ड में अनुशंसित शर्करा सेवन स्तर, उच्च शर्करा सेवन से जुड़े स्वास्थ्य जोखिम (जैसे- मधुमेह, मोटापा) और स्वस्थ आहार विकल्प प्रदर्शित किए जाते हैं।

भारत में शुगर बोर्ड की आवश्यकता

  • टाइप-2 मधुमेह में अत्यधिक वृद्धि: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights- NCPCR) ने भारतीय बच्चों में टाइप-2 मधुमेह में अत्यधिक वृद्धि को प्रदर्शित किया है, जो एक ऐसी स्थिति है, जो पहले वयस्कों में अधिक देखी जाती थी।
  • शर्करा का अधिक सेवन: 4-10 वर्ष की आयु के बच्चे अपनी दैनिक कैलोरी का 13% शर्करा के माध्यम से ग्रहण करते हैं, जबकि 11-18 वर्ष की आयु के बच्चे 15% तक शर्करा का सेवन करते हैं, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित 5% की सीमा से तीन गुना अधिक है।
  • घटना दर: हालाँकि राष्ट्रव्यापी डेटा की कमी है, लेकिन भारत में बच्चों और किशोरों में प्रति लाख 397 टाइप-2 मधुमेह के मामले होने का अनुमान है, जो चीन (734/लाख) के बाद दूसरे स्थान पर है।
  • अत्यधिकता का वातावरण: स्कूल के वातावरण में और उसके आस-पास शर्करा युक्त पेय पदार्थों, स्नैक्स और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की आसान पहुँच अस्वास्थ्यकर उपभोग पैटर्न को और बढ़ा देती है।

भारत में खाद्य मानकों के लिए नियामक ढाँचा

  • FSSAI द्वारा निगरानी: भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) खाद्य सुरक्षा और लेबलिंग विनियमों की निगरानी करता है, जिसमें शर्करा, वसा और नमक की मात्रा से संबंधित विनियमन शामिल हैं।
  • लंबित HFSS परिभाषा: भोजन के लिए विशिष्ट उच्च वसा, नमक और शर्करा (HFSS) मानकों को परिभाषित करने के लिए वर्ष 2025 में एक वैज्ञानिक पैनल का गठन किया गया था, लेकिन अभी तक आम सहमति नहीं बन पाई है।
  • वर्तमान विनियमन
    • कोई खाद्य उत्पाद “कम शर्करा” होने का दावा तभी कर सकता है, जब उसमें प्रति 100 ग्राम शर्करा की मात्रा ≤5 ग्राम हो।
    • HFSS सामग्री के लिए कोई अंतिम विशिष्ट सीमा मौजूद नहीं है; भारत वर्तमान में WHO की सिफारिशों का उपयोग करता है।
    • WHO वयस्कों और बच्चों दोनों के लिए दैनिक शर्करा सेवन को 25 ग्राम (छह चम्मच) तक सीमित करने का सुझाव देता है।
  • हेल्थ-स्टार रेटिंग: पैक के सामने लेबलिंग प्रणाली विकास के चरण में है, लेकिन अभी तक इसे क्रियान्वित नहीं किया गया है।

विनियमन में अंतराल: भारत बनाम यूरोपीय संघ और अमेरिका

  • स्वदेशी बेंचमार्क का अभाव: यूरोपीय संघ और अमेरिका के विपरीत, भारत में BMI, लिपिड प्रोफाइल, इंसुलिन प्रतिरोध आदि जैसे मूल जनसंख्या डेटा के आधार पर देश-विशिष्ट आहार सीमा का अभाव है।
  • यूरोपीय संघ ढाँचा
    • शर्करा सहित पोषक तत्त्वों की अनिवार्य घोषणा।
    • शर्करा, वसा और नमक की मात्रा की त्वरित दृश्य समझ के लिए “ट्रैफिक लाइट” लेबलिंग का कार्यान्वयन।
  • U S फ्रेमवर्क
    • लेबल पर पोषण तथ्यों और दैनिक अनुशंसित सीमा के प्रतिशत के रूप में “अतिरिक्त शर्करा” का खुलासा करना आवश्यक है।
    • FDA स्वास्थ्य दावों को प्रतिबंधित करता है और “स्कूल में स्मार्ट स्नैक्स” जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से स्कूलों में पोषण शिक्षा को बढ़ावा देता है।
  • भारत की चुनौतियाँ
    • कोई कानूनी रूप से बाध्यकारी HFSS सीमा नहीं।
    • जनसंख्या स्तरीय आहार डेटा की सीमित उपलब्धता।
    • निजी और गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों के लिए व्यापक स्कूल पोषण नीतियों का अभाव।

आगे की राह

  • HFSS मानकों को अंतिम रूप देना: FSSAI को भारत के लिए प्रासंगिक वैज्ञानिक और जनसांख्यिकीय साक्ष्य के आधार पर पैकेज्ड फूड और विद्यालयी भोजन दोनों के लिए HFSS संबंधी परिभाषा दी जानी चाहिए।
  • स्वदेशी महामारी विज्ञान डेटा: राष्ट्रीय आहार अध्ययनों की तत्काल आवश्यकता है, जो भारत-विशिष्ट शर्करा सेवन सीमा निर्धारित करने के लिए BMI, इंसुलिन स्तर, जैव रासायनिक संकेतकों और क्षेत्रीय आहार पैटर्न पर विचार करते हैं।
  • शुगर बोर्ड पहल का विस्तार
    • राज्य बोर्डों को CBSE के शुगर बोर्ड मॉडल को अपनाना चाहिए।
    • स्कूलों में बाल रोग विशेषज्ञों और पोषण विशेषज्ञों को शामिल करने वाली कार्यशालाएँ नियमित होनी चाहिए।
    • शुगर बोर्ड को नमक और ट्रांस-फैट की मात्रा से संबंधित दृश्य डेटा को शामिल करना चाहिए।
  • माता-पिता और समुदाय की सहभागिता: NCPCR ने अभिभावक-शिक्षक बैठकों के दौरान माता-पिता को शामिल करने और स्वस्थ खाने की आदतों पर जागरूकता अभियान संचालित करने की योजना बनाई है।
  • व्यापक स्कूल स्वास्थ्य नीति: भारत को HFSS खाद्य पदार्थों के विपणन और पोषण साक्षरता को संबोधित करते हुए एक राष्ट्रीय स्कूल पोषण नीति शुरू करनी चाहिए।
  • लेबलिंग सिस्टम अपनाना: एक स्पष्ट और भारत-विशिष्ट फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग सिस्टम (जैसे- यूरोपीय संघ का ट्रैफिक लाइट या US का शर्करा प्रकटीकरण) शुरू किया जाना चाहिए और लागू किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

शुगर बोर्ड की शुरुआत भारतीय बच्चों में जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों के अति प्रसार से निपटने की दिशा में एक छोटा लेकिन महत्त्वपूर्ण कदम है। इसके प्रभावी होने के लिए, भारत को समग्र विनियामक ढाँचे, स्वदेशी शोध-आधारित आहार मानकों और स्कूलों, विनियामकों, अभिभावकों एवं स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है।

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