100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) उत्सर्जन और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव

Lokesh Pal July 15, 2025 02:01 17 0

संदर्भ

हाल ही में पर्यावरण मंत्रालय ने भारत के अधिकांश ताप विद्युत संयंत्रों को ‘फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन’ (Flue Gas Desulphurisation- FGD) प्रणाली स्थापित करने से छूट दे दी है, जो सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) उत्सर्जन में कटौती के लिए डिजाइन की गई है।

संबंधित तथ्य

  • इस निर्णय का प्रभाव पूरे भारत में लगभग 180 ताप विद्युत संयंत्रों और 600 इकाइयों पर पड़ेगा।
    • SO2, विद्युत संयंत्रों में कोयले के दहन का एक उपोत्पाद है और द्वितीयक कण पदार्थ (Secondary Particulate Matter) का निर्माण करके वायु प्रदूषण में योगदान देता है।

  • वर्ष 2015 का नीतिगत अधिदेश: पर्यावरण मंत्रालय ने वर्ष 2018 तक सभी कोयला-आधारित संयंत्रों में FGD स्थापना को अनिवार्य कर दिया है, जिसकी समय-सीमा कई बार बढ़ाई गई है।
    • ताप विद्युत संयंत्रों (Thermal Power Plants-TPPs) की श्रेणियाँ
      • श्रेणी A (इकाइयों का 11%): राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) या 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों के 10 किलोमीटर के दायरे में स्थित हैं।
        1. FGD स्थापना की अंतिम तिथि: 30 दिसंबर, 2027।
      • श्रेणी B (इकाइयों का 11%): गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों (Critically Polluted Areas- CPA) या गैर-प्राप्ति शहरों (Non-attainment cities- NAC) [जो पाँच वर्षों से राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (National Ambient Air Quality Standards- NAAQS) को पूरा नहीं कर रहे हैं] के निकट स्थित।
        1. FGD स्थापना पर निर्णय विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (Expert Appraisal Committee- EAC) पर निर्भर करेगा।
        2. FGD स्थापना की अंतिम तिथि: 30 दिसंबर, 2028।
      • श्रेणी C (78% इकाइयाँ): FGD सिस्टम स्थापित करने से छूट प्राप्त।

सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) क्या है?

  • सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) एक रंगहीन, तीखी गंध वाली अभिक्रियाशील गैस है, जो आमतौर पर जीवाश्म ईंधन, विशेष रूप से कोयले के दहन से उत्सर्जित होती है।
  • यह एक महत्त्वपूर्ण वायु प्रदूषक है, जो श्वसन रोगों, हृदय संबंधी समस्याओं तथा पर्यावरणीय क्षरण से जुड़ा है।
  • भारत विश्व स्तर पर SO₂ का सबसे बड़ा उत्सर्जक है, जिसका मुख्य कारण कोयला आधारित विद्युत उत्पादन है।

छूट का औचित्य

  • भारतीय कोयले में सल्फर की मात्रा कम होती है: भारतीय कोयले में सल्फर की मात्रा कम (0.3%-0.5%) होती है।
    • जन स्वास्थ्य पर न्यूनतम प्रभाव: अधिकांश क्षेत्रों में SO₂ का स्तर अनुमेय सीमा से नीचे है।
  • उच्च लागत: FGD स्थापित करना महँगा (लगभग ₹1.2 करोड़ प्रति मेगावाट) है।
    • 97,000 मेगावाट की नई क्षमता में FGD स्थापित करने की कुल लागत ₹1,16,400 करोड़ तक पहुँच सकती है।
  • विद्युत शुल्क: FGD विद्युत शुल्क में ₹0.72 प्रति kWh तक जोड़ सकते हैं।
    • शुल्कों में इस वृद्धि का 80% से अधिक FGD तकनीक की स्थिर लागतों के कारण है, और परिवर्तनीय लागत में वृद्धि सभी मामलों में ₹0.1 प्रति kWh से कम है।
  • सीमित विक्रेता क्षमता: भारत में बहुत कम विक्रेता FGD स्थापित कर सकते हैं।
    • इससे पिछली समय सीमाओं को पूरा करने में देरी हुई है।
  • वैकल्पिक प्रदूषण नियंत्रण पर ध्यान: सरकार पार्टिकुलेट मैटर (PM) पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
    • पार्टिकुलेट मैटर को नियंत्रित करने के लिए इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर (ESP) सस्ते और अधिक प्रभावी हैं।
  • CO₂ उत्सर्जन और जलवायु संबंधी चिंताएँ: FGDs के कारण CO₂ उत्सर्जन में वृद्धि हो सकती (वर्ष 2030 तक 69 मिलियन टन) है।
    • SO₂ उत्सर्जन में कमी के बावजूद, इससे ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि हो सकती है।
  • अधिकांश संयंत्रों को छूट: 80% संयंत्रों को छूट दी गई है, खासकर वे जो प्रमुख जनसंख्या केंद्रों से दूर हैं।
    • बड़े शहरों और प्रदूषित क्षेत्रों जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

भारत में FGD इकाइयों की वर्तमान स्थिति

  • केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वर्ष 2015 की नीति के अनुसार, भारत में सभी 537 कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों को वर्ष 2018 तक FGD इकाइयाँ स्थापित करना अनिवार्य है। हालाँकि, अनुपालन धीमा रहा है।
  • अप्रैल 2025 तक, इनमें से केवल लगभग 8% इकाइयों ने ही FGD स्थापित किए हैं, जिनमें से अधिकांश NTPC (सार्वजनिक क्षेत्र) द्वारा स्थापित किए गए हैं।
    • संयंत्र की श्रेणी के आधार पर अनुपालन की समय सीमा को वर्ष 2027, वर्ष 2028 तथा वर्ष 2029 तक बढ़ा दिया गया है।

फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) क्या है?

  • कोयले जैसे जीवाश्म ईंधनों के दहन से निकलने वाली ‘फ्लू गैस’ एक उपोत्पाद के रूप में उत्सर्जित होती है।
    • FGD इकाइयाँ सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) को कम करने पर केंद्रित हैं, जो एक अम्लीय गैस है और जन स्वास्थ्य तथा पर्यावरण दोनों के लिए हानिकारक है।
    • SO₂, FGD प्रणालियों में मूल यौगिकों के साथ अभिक्रिया करके उसे निष्क्रिय कर देती है तथा फ्लू गैस से अलग कर देती है।
  • कार्य प्रणाली: FGD प्रणाली में आमतौर पर रासायनिक प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं, जहाँ चूना पत्थर जैसे अवशोषक पदार्थों का उपयोग फ्लू गैस में मौजूद SO₂ के साथ अभिक्रिया करने के लिए किया जाता है।
    • SO₂ को निष्क्रिय करके पृथक कर दिया जाता है।
  • प्रभावशीलता: FGD प्रणाली फ्लू गैस से 95% तक SO₂ हटा सकती है, जिससे ये SO₂ उत्सर्जन को नियंत्रित करने में अत्यधिक प्रभावी हो जाती है।

FGD प्रणालियों के प्रकार

  • शुष्क अवशोषक का प्रयोग: एक चूर्णित ‘अवशोषक’ (जैसे- चूना पत्थर) को फ्लू गैस में मिलाया जाता है, जो SO₂ के साथ अभिक्रिया करता है। परिणामी यौगिक को इलेक्ट्रोस्टैटिक अवक्षेपकों या फैब्रिक फिल्टरों द्वारा हटा दिया जाता है।
  • नम चूना पत्थर का उपयोग: चूना पत्थर के घोल का उपयोग SO₂ को अवशोषित करने के लिए किया जाता है, जिससे जिप्सम का निर्माण होता है, जिसका औद्योगिक उपयोग (जैसे- निर्माण कार्य) होता है ।
  • समुद्री जल उपचार: तटीय संयंत्रों में उपयोग किया जाता है, जहाँ समुद्री जल SO₂ को अवशोषित करता है और फिर समुद्र में वापस जाने से पहले उसका उपचार किया जाता है।

ग्लोबल वार्मिंग पर SO₂ उत्सर्जन का प्रभाव

  • वायुमंडल पर शीतलन प्रभाव: सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) का वायुमंडल पर शीतलन प्रभाव होता है। वायु में उत्सर्जित होने पर, SO₂ जलवाष्प और अन्य यौगिकों के साथ अभिक्रिया करके सल्फेट एरोसोल बना सकता है।
    • ये एरोसोल सूर्य के प्रकाश को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित करते हैं, जिससे पृथ्वी की सतह तक पहुँचने वाले सौर विकिरण की मात्रा कम हो जाती है, जिससे तापमान अस्थायी रूप से कम हो सकता है।
  • अल्पकालिक प्रदूषक: SO₂ वायुमंडल में उपस्थित एक अल्पकालिक प्रदूषक है।
    • इसके कारण होने वाला शीतलन प्रभाव केवल थोड़े समय के लिए, आमतौर पर कुछ दिनों से लेकर सप्ताहों तक, रहता है क्योंकि सल्फेट एरोसोल वायुमंडल से अपेक्षाकृत जल्दी बाहर निकल जाते हैं।
    • अपने अस्थायी शीतलन प्रभाव के बावजूद, SO₂ ग्लोबल वार्मिंग का दीर्घकालिक समाधान नहीं देता है, क्योंकि यह अंततः वायुमंडल से दूर हो जाता है।
  • जलवायु परिवर्तन में योगदान: हालाँकि SO₂ अल्पावधि में पृथ्वी को ठंडा करने में मदद करता है, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभाव समस्याग्रस्त हैं।
    • ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने का समग्र लक्ष्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, मुख्यतः CO₂ को कम करना है, जिनकी वायुमंडलीय जीवनअवधि अधिक होती है।
    • जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्सर्जित CO₂ उत्सर्जन के बाद दशकों, यहाँ तक कि सदियों तक, पृथ्वी को गर्म करती रहती है, जबकि SO₂ का शीतलन प्रभाव तेजी से कम होता जाता है।
  • CO₂ उत्सर्जन: फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) प्रणाली लगाने से CO₂ उत्सर्जन में वृद्धि हो सकती है।
    • FGD ऊर्जा की खपत करते हैं, जिससे प्रणाली को संचालित करने के लिए आवश्यक अतिरिक्त ईंधन से कार्बन उत्सर्जन बढ़ सकता है।
    • विशेषज्ञ समितियों के अनुसार, सभी विद्युत संयंत्रों में FGD लगाने से वर्ष 2025- वर्ष 2030 के बीच 69 मिलियन टन CO₂ की वृद्धि हो सकती है।
  • जलवायु मॉडल पर प्रभाव: SO₂ के शीतलन प्रभाव को प्रायः जलवायु मॉडल में शामिल किया जाता है, लेकिन इसका छोटा जीवनकाल इसे दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन को कम करने का एक अविश्वसनीय समाधान बनाता है।
    • CO₂ उत्सर्जन में समान कमी किए बिना SO₂ उत्सर्जन में कमी करने से शुद्ध तापन प्रभाव हो सकता है, क्योंकि SO₂ का अस्थायी शीतलन प्रभाव CO₂ के कारण होने वाली निरंतर तापन क्षमता से प्रतिस्थापित हो जाता है।
  • नीतिगत निहितार्थ: SO₂ उत्सर्जन का वैश्विक तापन प्रभाव जलवायु नीतियों में एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
    • यद्यपि SO₂ को कम करना वायु गुणवत्ता और जन स्वास्थ्य में सुधार के लिए महत्त्वपूर्ण है, इसे इस तरह से किया जाना चाहिए कि उच्च CO₂ उत्सर्जन के कारण जलवायु परिवर्तन और अधिक न हो।

पर्यावरण और स्वास्थ्य पर सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) का प्रभाव

पर्यावरणीय प्रभाव

  • अम्लीय वर्षा: SO₂ वायुमंडल में जलवाष्प के साथ अभिक्रिया करके सल्फ्यूरिक अम्ल बनाता है, जो अम्लीय वर्षा का एक प्रमुख घटक है। अम्लीय वर्षा पारिस्थितिकी तंत्रों पर गंभीर प्रभाव डालती है:
    • झीलों, नदियों और आर्द्रभूमि जैसे जलीय पारिस्थितिकी तंत्रों को अम्लीय बना देती है, जिससे जलीय जीवन को नुकसान पहुँचता है और जैव विविधता कम हो जाती है।
    • पौधों की संरचना को कमजोर करके और कैल्शियम व मैग्नीशियम जैसे मृदा पोषक तत्त्वों को कम करके वनस्पति और वनों को नुकसान पहुँचाती है।
    • इमारतों और बुनियादी ढाँचे को क्षरित करती है, जिससे रखरखाव की लागत बढ़ जाती है।
  • कणिका पदार्थ निर्माण: SO₂ अन्य वायुमंडलीय यौगिकों के साथ अभिक्रिया करके सल्फेट बना सकता है।
    • कोयला दहन से उत्पन्न द्वितीयक प्रदूषक भारत के परिवेशी PM 2.5 प्रदूषण में 15% का योगदान करते हैं, जो एक गंभीर जन स्वास्थ्य चिंता का विषय है।
  • दृश्यता में कमी: SO₂ से सल्फेट का निर्माण वायुमंडल में धुँध पैदा करता है, जिससे विशेषतः उच्च प्रदूषण स्तर वाले शहरी क्षेत्रों में दृश्यता कम हो जाती है।

स्वास्थ्य पर प्रभाव

  • श्वसन संबंधी समस्याएँ: SO₂ श्वसन तंत्र के लिए एक प्रबल उत्तेजक है। इसके अल्पकालिक संपर्क से ये समस्याएँ हो सकती हैं:
    • खाँसी, घरघराहट और साँस लेने में तकलीफ।
    • अस्थमा और क्रोनिक ब्रोंकाइटिस का बढ़ना।
    • फेफड़ों में संक्रमण और अन्य श्वसन रोगों का खतरा बढ़ जाता है, खासकर बच्चों और बुजुर्गों में।
  • हृदय संबंधी समस्याएँ: SO₂ के उच्च स्तर के लंबे समय तक संपर्क में रहने से हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है, जिससे बार-बार अस्पताल में भर्ती होने की समस्या हो सकती है और मृत्यु दर भी बढ़ सकती है।
  • कमजोर समूह: पहले से फेफड़ों की बीमारियों से ग्रस्त लोग, बच्चे और बुजुर्ग व्यक्ति SO₂ के संपर्क और इसके हानिकारक प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।

FGD के विकल्प

  • इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर (ESP): इनका उपयोग मुख्य रूप से ‘फ्लू गैसों’ से सूक्ष्म कणों को एकत्रित करके ‘पार्टिकुलेट मैटर’ (PM) उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
    • PM 2.5 नियंत्रण के लिए लागत प्रभावी और व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इनका उपयोग समग्र प्रदूषण को कम करने के लिए अन्य तकनीकों के साथ किया जा सकता है।
  • कम-सल्फर ईंधन: उच्च-सल्फर वाले कोयले के दहन के स्थान पर, संयंत्र कम-सल्फर वाले कोयले या प्राकृतिक गैस का उपयोग कर सकते हैं। इससे स्रोत आधारित SO₂ उत्सर्जन कम होता है।
    • FGD जैसे व्यापक प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की आवश्यकता कम हो जाती है।
  • द्रवीकृत संस्तर दहन: एक दहन प्रक्रिया, जिसमें दहन कक्ष में चूना पत्थर को कोयले के साथ मिलाया जाता है। यह SO₂ के साथ अभिक्रिया करके जिप्सम बनाता है।
    • SO₂ निष्कासन के लिए पूर्व-दहन विधि, जो पहले से ही उत्सर्जित SO₂ की मात्रा को कम कर सकती है।
  • अमोनिया स्क्रबिंग: इसमें फ्लू गैसों से SO₂ को अवशोषित और निष्प्रभावी करने के लिए अमोनिया का उपयोग शामिल है।
    • यह प्रणाली छोटे या पुराने संयंत्रों में प्रभावी हो सकती है, जहाँ बड़े पैमाने पर FGD स्थापित करना आर्थिक रूप से अव्यावहारिक हो सकता है।
  • उन्नत अवशोषक का प्रयोग: चूना पत्थर या सोडियम-आधारित यौगिकों जैसे चूर्णित ‘अवशोषक’ को SO₂ को अवशोषित करने के लिए फ्लू गैस में मिलाया किया जाता है।
    • यह विधि पूर्ण पैमाने पर FGD प्रणालियों की तुलना में कम खर्चीली है और इसका उपयोग विशिष्ट उत्सर्जन को लक्षित करने के लिए किया जा सकता है।
  • अन्य अवशोषकों के साथ मिलाना: चूना पत्थर के अलावा, अमोनियम हाइड्रॉक्साइड या सोडियम हाइड्रॉक्साइड जैसे अन्य रासायनिक अवशोषकों का उपयोग SO₂ को अवशोषित करने के लिए किया जा सकता है।
    • पारंपरिक चूना पत्थर ‘स्क्रबिंग’ की तुलना में अधिक लचीला और संभावित रूप से सस्ता है।
  • ऑक्सी-ईंधन दहन: इस तकनीक में कोयले का वायु के बजाय शुद्ध ऑक्सीजन में दहन किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप CO₂ की सांद्रता अधिक होती है और SO₂ का पृथक्करण सरल हो जाता है।
    • कम SO₂ उत्सर्जन के साथ-साथ बेहतर कार्बन अवशोषण की संभावना।
  • नवीकरणीय ऊर्जा परिवर्तन: एक दीर्घकालिक समाधान कोयले से सौर, पवन और जल विद्युत जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तन है।
    • इससे SO₂ उत्सर्जन पूरी तरह से कम हो जाएगा, क्योंकि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कोई सल्फर-आधारित प्रदूषक उत्पन्न नहीं करते हैं।
  • कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS): हालाँकि यह मुख्य रूप से CO₂ पर केंद्रित है, लेकिन जब इसे फ्लू गैस उपचार प्रणालियों के साथ एकीकृत किया जाता है, तो CCS सल्फर यौगिक उत्सर्जन को कम करने में भी मदद कर सकता है।
    • यह कोयला संयंत्रों में SO₂ और CO₂ दोनों उत्सर्जनों को कम कर सकता है, जिससे समग्र पर्यावरणीय प्रदर्शन में सुधार हो सकता है।

इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर बनाम फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (FGD)

मापदंड

इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर

फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (FGD)

प्राथमिक उद्देश्य इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर को फ्लू गैसों से पार्टिकुलेट मैटर (PM) को हटाने के लिए डिजाइन किया गया है। फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन प्रणाली का उपयोग उत्सर्जन से सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) को हटाने के लिए किया जाता है।
स्थापना की लागत इन्हें स्थापित करने में प्रति मेगावाट लगभग 25 लाख रुपये की लागत आती है। ये काफी महँगी प्रणाली हैं, जिसकी लागत लगभग 1.2 करोड़ रुपये प्रति मेगावाट है।
प्रदूषण नियंत्रण की दक्षता ये प्रणालियाँ 99% तक पार्टिकुलेट मैटर उत्सर्जन को हटा सकती हैं, जिससे ये अत्यधिक प्रभावी हो जाती हैं। FGD प्रणाली SO₂ उत्सर्जन को कम करती हैं लेकिन PM जैसे अन्य प्रदूषकों पर इनका प्रभाव सीमित होता है।
संसाधन उपभोग इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर्स को कम जल और ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिससे वे अधिक स्थायी होते हैं। FGD प्रणाली अधिक जल और विद्युत की खपत करती हैं, जिससे समग्र पर्यावरणीय और परिचालन भार बढ़ जाता है।
भारतीय कोयला से प्रासंगिकता भारतीय कोयले में राख की मात्रा अधिक होने के कारण ये अत्यधिक प्रासंगिक हैं। उनकी प्रभावशीलता सीमित है, क्योंकि 92% भारतीय कोयले में सल्फर की मात्रा कम है।

प्रदूषण नियंत्रण में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • चीन की फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) प्रणाली की सफलता: विश्व में SO₂ का सबसे बड़ा उत्सर्जक, चीन ने अपने कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों में बड़े पैमाने पर FGD प्रणालियों को सफलतापूर्वक लागू किया है।
    • 2000 के दशक की शुरुआत में, चीन ने कठोर SO₂ उत्सर्जन मानकों को अपनाया, जिसके परिणामस्वरूप 2010 के दशक तक उसके लगभग 90% विद्युत संयंत्रों में FGD प्रणालियाँ स्थापित हो गईं।
  • यूरोपीय संघ (EU) वायु गुणवत्ता मानक: EU का औद्योगिक उत्सर्जन निर्देश SO₂, NOx और पार्टिकुलेट मैटर (PM) के लिए बाध्यकारी उत्सर्जन सीमाएँ निर्धारित करता है।
    • EU के सदस्य देशों ने इन कठोर सीमाओं को पूरा करने के लिए FGD प्रणालियों और चयनात्मक उत्प्रेरक न्यूनीकरण (Selective Catalytic Reduction – SCR) जैसी उन्नत प्रदूषण नियंत्रण तकनीकों को लागू किया है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिका में स्वच्छ वायु अधिनियम (CAA) विद्युत संयंत्रों से SO₂ उत्सर्जन को कम करने में सहायक रहा है।
    • अम्ल वर्षा कार्यक्रम एक बड़ी उपलब्धि थी, जिसने SO₂ उत्सर्जन को कम करने के लिए एक ‘कैप-एंड-ट्रेड’ प्रणाली स्थापित की।
    • अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (EPA) ऐसे नियमों को लागू करती है, जिनके कारण कई कोयला संयंत्रों में FGD प्रणालियाँ और शुष्क अवशोषक प्रयोग विधियाँ स्थापित की गई हैं, जिससे वायु गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
  • जापान के एकीकृत प्रदूषण नियंत्रण उपाय: जापान ने औद्योगिक और विद्युत संयंत्रों से उत्सर्जन को सीमित करने के लिए उन्नत दहन तकनीकों और गैस उपचार को अपनाया है।
    • यह गीले चूना पत्थर स्क्रबर के प्रयोग हेतु जाना जाता है, जो उच्च दक्षता के साथ SO₂ को हटाते हैं।

सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) को नियंत्रित करने के लिए सरकारी पहल

  • वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981: यह अधिनियम केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (SPCB) को उद्योगों तथा विद्युत संयंत्रों से SO₂ सहित प्रदूषकों के उत्सर्जन की निगरानी और विनियमन का अधिकार देता है।
  • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986: इस अधिनियम के तहत, सरकार राष्ट्रीय मानकों के अनुपालन को सुनिश्चित करते हुए, विद्युत संयंत्रों, रिफाइनरियों और सीमेंट कारखानों जैसे उद्योगों के लिए SO₂ उत्सर्जन सीमाएँ निर्धारित करती है।
  • राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (National Ambient Air Quality Standards- NAAQS): पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने NAAQS विकसित किया है, जो जन स्वास्थ्य और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए परिवेशी वायु में SO₂ की अनुमेय सांद्रता के स्तर को निर्दिष्ट करता है।
  • BS-VI ईंधन मानक: वाहनों के लिए लागू किए गए भारत चरण VI (BS-VI) मानक, ईंधन में सल्फर की मात्रा को नियंत्रित करते हैं, जिससे ऑटोमोबाइल से SO₂ उत्सर्जन कम होता है।
  • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Programme- NCAP), 2019: पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए इस NCAP का उद्देश्य उच्च प्रदूषण स्तर वाले शहरी क्षेत्रों पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हुए, SO₂ उत्सर्जन को नियंत्रित करने के विशिष्ट उपायों के साथ, शहरों में वायु गुणवत्ता में सुधार लाना है।
  • समीर ऐप और सोशल मीडिया पहल: CPCB ने समीर ऐप विकसित किया है और यह पारदर्शिता तथा जवाबदेही में सुधार करते हुए, SO₂ प्रदूषण नियंत्रण पहलों की प्रगति पर नजर रखने एवं रिपोर्ट करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (जैसे- फेसबुक और ट्विटर) का उपयोग करता है।
  • फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (Flue Gas Desulphurization- FGD) अधिदेश: सरकार ने कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों में फ्लू गैसों से SO₂ हटाने के लिए FGD प्रणाली लगाने का आदेश दिया है। इसका उद्देश्य वायु गुणवत्ता और जन स्वास्थ्य पर SO₂ के हानिकारक प्रभाव को कम करना है।

फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) पर विशेषज्ञ समिति

  • प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (Principal Scientific Adviser- PSA) अजय सूद द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति को भारत के कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों में फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) प्रणालियों की आवश्यकता एवं प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने का कार्य सौंपा गया था।
  • सिफारिशें
    • भारत के 80% कोयला आधारित संयंत्रों को FGD की अनिवार्य स्थापना से छूट दी गई है। इसके बजाय, उच्च जनसंख्या घनत्व वाले या अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
    • केवल प्रमुख शहरों [राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के 10 किलोमीटर के दायरे में या 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों] के निकट स्थित संयंत्रों और अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों या गैर-प्राप्ति शहरों के निकट स्थित संयंत्रों को वर्ष 2027 या वर्ष 2028 तक FGD प्रणाली स्थापित करना अनिवार्य होगा।

आगे की राह 

  • PM नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित करना: PM 2.5 के प्रभावी नियंत्रण के लिए इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रीसिपिटेटर (ESP) को प्राथमिकता देना, क्योंकि ये लागत-प्रभावी हैं और श्वसन संबंधी बीमारियों को कम करते हैं।
  • स्वच्छ ईंधन की ओर संक्रमण: स्रोत आधारित सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने के लिए उच्च-सल्फर वाले कोयले के स्थान पर कम-सल्फर वाले कोयले या प्राकृतिक गैस का उपयोग करना।
  • नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना: सौर, पवन और जल विद्युत ऊर्जा में संक्रमण को तेज करना। इससे सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन कम होगा और दीर्घकालिक स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा।
  • हाइब्रिड प्रदूषण नियंत्रण: लक्षित SO₂ और PM नियंत्रण के लिए ESP और उन्नत सोरबेंट इंजेक्शन जैसी तकनीकों के संयोजन का उपयोग करना, जिससे प्रदूषण कम किया जा सकता है।
  • महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में नियमों को मजबूत बनाना: जन स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए, घनी आबादी और उच्च प्रदूषण स्तर वाले शहरों जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में FGD की स्थापना सुनिश्चित करना।
  • तकनीकी बाधाओं का समाधान करना: FGD स्थापना के लिए प्रोत्साहनों का समर्थन करना  तथा समय सीमा को पूरा करने एवं उचित रखरखाव सुनिश्चित करने के लिए विक्रेता क्षमता बढ़ना।
  • वैश्विक स्तर पर सहयोग करना: भारत के विद्युत क्षेत्र में SO₂ और PM नियंत्रण तकनीकों को बेहतर बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखना।
  • नीतिगत निहितार्थ: SO₂ उत्सर्जन का वैश्विक तापमान पर प्रभाव जलवायु नीतियों में एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
    • हालाँकि SO₂ को कम करना वायु गुणवत्ता तथा  जन स्वास्थ्य में सुधार के लिए महत्त्वपूर्ण है, लेकिन इसे इस तरह से किया जाना चाहिए कि उच्च CO₂ उत्सर्जन के माध्यम से जलवायु परिवर्तन में वृद्धि न हो।

निष्कर्ष 

अधिकांश कोयला-आधारित विद्युत संयंत्रों को अनिवार्य ‘फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन’ (FGD) प्रणाली की स्थापना से छूट देने का हालिया निर्णय आर्थिक व्यवहार्यता और पर्यावरणीय चिंताओं के बीच संतुलन को दर्शाता है। हालाँकि, पार्टिकुलेट मैटर (PM) नियंत्रण को प्राथमिकता देना और स्वच्छ ईंधन तथा नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण दीर्घकालिक जन स्वास्थ्य एवं पर्यावरणीय स्थिरता के लिए महत्त्वपूर्ण है।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.