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सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रैखिक परियोजनाओं के लिए अनियमित मृदा निष्कर्षण पर प्रतिबंध

Lokesh Pal April 02, 2024 06:01 206 0

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय ने मार्च 2020 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी एक अधिसूचना को अमान्य कर दिया।

संबंधित तथ्य

पर्यावरण मंत्रालय ने मार्च 2020 में सड़क और रेलवे जैसी रैखिक परियोजनाओं के लिए साधारण मृदा के निष्कर्षण को पर्यावरणीय मंजूरी (EC) की आवश्यकता से छूट प्रदान की।

रैखिक परियोजनाएँ (Linear projects)

  • रैखिक परियोजनाएँ सड़कों, फुटपाथों या रेलवे लाइनों के निर्माण या पुनर्निर्माण से संबंधित होती हैं।
    • ये परियोजनाएँ साझा विकास या बिक्री योजना का हिस्सा नहीं होती हैं।

वर्ष 2020 में प्राप्त छूट

पृष्ठभूमि: सितंबर 2006 में, पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत पूर्व पर्यावरण मंजूरी (EC) की आवश्यकता वाली गतिविधियों की रूपरेखा तैयार की।

  • बाद में, जनवरी 2016 में एक दूसरी अधिसूचना में विशिष्ट परियोजना श्रेणियों को इस पर्यावरण मंजूरी आवश्यकता से छूट दी गई।

वर्ष 2020 की छूट: मार्च 2020 में एक तीसरी अधिसूचना में सड़कों और पाइपलाइनों जैसी “रैखिक परियोजनाओं के लिए सामान्य मृदा की निकासी या सोर्सिंग अथवा उधार लेना” को शामिल करने के लिए छूट बढ़ा दी गई।

  • उद्देश्य: इस छूट का उद्देश्य वर्ष 1957 के खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम में संशोधन के साथ सामंजस्य बिठाना था।
    • इन परिवर्तनों ने नए पट्टेदारों को अपने पूर्ववर्तियों द्वारा प्राप्त मंजूरी और लाइसेंस का उपयोग करके दो वर्ष की अवधि के लिए खनन कार्य करने की अनुमति दी।
  • छूट के लिए तर्क
    • सरकार के अनुसार, सामान्य जनता की सहायता के लिए छूट महत्त्वपूर्ण थी।
    • उन्होंने दावा किया कि यह गुजरात में कुम्हारों, किसानों, ग्राम पंचायतों और सड़कों सहित विभिन्न समूहों के लिए लाभदायक होगा।

छूट को चुनौती देने के कारण

  • मृदा की अप्रतिबंधित खुदाई: NGT के समक्ष छूट पर मुख्य रूप से सवाल उठाया गया क्योंकि इसने मृदा की अप्रतिबंधित खुदाई की अनुमति दी थी, जिसे अनुचित और भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 के उल्लंघन के रूप में देखा गया था।
  • विरोधाभासी नियम: यह छूट उस नियम के विरुद्ध थी, जिसके अनुसार परियोजनाओं को पहले से पर्यावरणीय मंजूरी (EC) मिलनी चाहिए, जैसा कि वर्ष 2012 में पिछले मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय लिया था।
  • जनता की राय को शामिल न करना: मंत्रालय ने वर्ष 2020 की अधिसूचना जारी करने से पहले जनता की राय न माँगकर सही कानूनी कदमों का पालन नहीं किया।
    • उन्होंने कहा कि यह कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान हुआ और इससे निजी खनिकों और ठेकेदारों को लाभ होता दिख रहा है।

छूट के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आलोचना

  • संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन: सर्वोच्च न्यायालय ने इस छूट की व्यापक प्रकृति के कारण इसे संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन करते हुए आलोचना की।
  • ‘रैखिक परियोजनाओं’ की अनुपस्थिति: इसमें ‘रैखिक परियोजनाओं’ की परिभाषाओं की अनुपस्थिति और निष्कर्षण मात्रा तथा क्षेत्र पर विशिष्टताओं की कमी पर प्रकाश डाला गया।
    • न्यायालय ने विशेष रूप से कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान सार्वजनिक सूचना आवश्यकताओं को दरकिनार करने को उचित ठहराने में मंत्रालय की विफलता पर ध्यान दिया।
      • यहाँ तक कि इसके बाद अगस्त 2023 की अधिसूचना को भी अपर्याप्त माना गया, जिसमें रैखिक परियोजनाओं और पर्यावरण सुरक्षा उपायों पर स्पष्टता का अभाव था।

पूर्व न्यायिक जाँच

पर्यावरण संरक्षण (EP) अधिनियम के तहत इसी तरह की छूट को पहले कानूनी जाँच का सामना करना पड़ा था।

  • NGT  द्वारा छूटों को रद्द करना: उदाहरणों में एनजीटी द्वारा वर्ष 2018 में भवन और निर्माण गतिविधियों के लिए छूट को रद्द करना और वर्ष 2015 में पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी (EC) अनुदान को रद्द करना शामिल है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2021 में उल्लंघन श्रेणियों में परियोजनाओं को मंजूरी देने वाली मंत्रालय की अधिसूचना को रोकने के लिए भी हस्तक्षेप किया।
  • केरल उच्च न्यायालय: इसी तरह, केरल उच्च न्यायालय ने मार्च 2024 में शैक्षणिक संस्थानों और औद्योगिक शेडों (Sheds) के लिए वर्ष 2014 की छूट को रद्द कर दिया।

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