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प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को पर्यावरण क्षतिपूर्ति लगाने का अधिकार

Lokesh Pal August 07, 2025 03:54 13 0

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय  ने निर्णय दिया कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PCB) को जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 एवं वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत प्रदूषणकारी संस्थाओं पर पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति लगाने का कानूनी अधिकार है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB)

  • स्थापना: जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत वर्ष 1974 में की गई थी एवं वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ प्रदान की गईं।
  • भूमिका
    • यह भारत में प्रदूषण नियंत्रण हेतु एक सर्वोच्च निकाय है।
    • यह पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को तकनीकी सहायता प्रदान करता है।

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (State Pollution Control Boards- SPCB)

  • स्थापना: जल अधिनियम, 1974 और वायु अधिनियम, 1981 की धारा-4 के अंतर्गत राज्य सरकारों द्वारा स्थापित।
  • भूमिका: राज्य के भीतर पर्यावरण कानूनों और CPCB दिशा-निर्देशों को लागू करना।
  • संरचना: संबंधित राज्य सरकारों द्वारा नामित सदस्य।

निर्णय की मुख्य विशेषताएँ

  • पुनर्स्थापना: न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि प्रदूषित वायु और जल स्रोतों को उनके पारिस्थितिक तंत्र के भीतर मूल और प्राचीन स्वरूप में पूर्णतः पुनः स्थापित करना ही वास्तविक लक्ष्य है।
  • वैधानिक प्राधिकरण: बोर्ड या तो पुनर्स्थापन या प्रतिपूरक क्षतिपूर्ति (मौद्रिक दंड या बैंक गारंटी) लगा सकते हैं:
    • कार्योत्तर (Post-facto), जब पर्यावरणीय क्षति हुई हो, या
    • पूर्वानुमानित (Ex-ante), प्रत्याशित क्षति को रोकने के लिए।
  • प्रमुख धाराएँ
    • धारा 33A – जल अधिनियम, 1974
    • धारा 31A – वायु अधिनियम, 1981
    • ये PCB को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 5 के तहत प्रदत्त शक्तियों के समान, प्रदूषणकारी संस्थाओं को मौद्रिक निर्देश सहित निर्देश जारी करने की अनुमति देते हैं।
  • विधानमंडल को निर्देश
    • इस शक्ति का प्रयोग दोनों अधिनियमों के अंतर्गत अधीनस्थ विधान (नियम और विनियम) जारी होने के बाद ही किया जाना चाहिए।
    • इन नियमों को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानूनी सिद्धांत

  • प्रतिपूर्ति बनाम दंडात्मक क्षति
    • प्रतिपूर्ति क्षति: पर्यावरण को उसकी मूल या लगभग मूल स्थिति में बहाल करने पर केंद्रित।
    • दंडात्मक क्षति: उल्लंघनकर्ता को दंडित करने के लिए।
    • न्यायालय का स्पष्टीकरण: ये अलग-अलग उपाय हैं और इन्हें अलग-अलग माना जाना चाहिए।
  • प्रदूषक भुगतान सिद्धांत: भारतीय पर्यावरण कानून में इसे एक संवैधानिक और वैधानिक दायित्व माना गया है।
    • इस निर्णय ने इस बात पर जोर दिया कि उल्लंघन करने वाले उद्योग पर्यावरणीय क्षति के लिए जिम्मेदार हैं और उन्हें ही इसकी बहाली का खर्च वहन करना होगा।

सहायक निर्णय

  • यह निर्णय वेल्लोर नागरिक कल्याण मंच (वर्ष 1996) और भारतीय पर्यावरण-कानूनी कार्रवाई परिषद (Indian Council for Enviro-Legal Action) (वर्ष 1996) जैसे ऐतिहासिक मामलों पर आधारित था।
  • इन निर्णयों ने पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति को दंडात्मक प्रतिबंधों से अलग, एक संवैधानिक और वैधानिक दायित्व के रूप में रेखांकित किया।
  • इन मामलों ने पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति और प्रदूषक भुगतान सिद्धांत को बरकरार रखा।

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