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दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति भेदभाव को रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश

Lokesh Pal July 12, 2024 02:19 123 0

संदर्भ

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि दृश्य मीडिया और फिल्मों में दिव्यांग व्यक्तियों को स्टीरियोटाइप करके दिखाना भेदभाव को बढ़ावा देता है तथा निर्माताओं को दिव्यांगों का मजाक उड़ाने या उन्हें मिथक बनाने के बजाय उनका सही चित्रण करना चाहिए।

  • इस निर्णय को न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला ने ‘पाथ ब्रेकिंग’ बताया, जिसमें ‘अपंग’, ‘अस्थि-दिव्यांग’ आदि जैसे शब्दों के प्रयोग की निंदा की गई, जो दिव्यांग व्यक्तियों को कलंकित करते हैं।

संबंधित तथ्य

  • सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय कार्यकर्ता निपुण मल्होत्रा ​​द्वारा दायर याचिका पर आया, जिसमें सोनी पिक्चर्स द्वारा निर्मित फिल्म ‘आँख मिचौली’ में दिव्यांग व्यक्तियों के कथित असंवेदनशील चित्रण को लेकर उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी। 
  • ऐतिहासिक रूप से दमनकारी प्रतिनिधित्व (Historically  Oppressive Representation): दिव्यांग व्यक्तियों का उपयोग ‘कॉमिक रिलीफ’ प्रदान करने के लिए किया जाता है और उनका मजाक उड़ाया जाता है। फिल्मों एवं लोकप्रिय मीडिया में दिव्यांगता का मजाक उड़ाने के लिए हास्य का इस्तेमाल ऐतिहासिक रूप से होता रहा है।

सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश

  • रूढ़िवादी शब्दों के प्रयोग को हतोत्साहित करना (Discourage Use of Stereotyping Words): न्यायालय ने ‘अपंग’, ‘अस्थिभंग’, ‘व्यथित’, ‘पीड़ित’ और ‘शोषित’ जैसे शब्दों के प्रयोग को हतोत्साहित किया, जो दिव्यांग व्यक्तियों की सामाजिक धारणा में अर्थ का अवमूल्यन करते हैं तथा व्यक्ति की नकारात्मक आत्म-छवि में योगदान करते हैं। 
    • उदाहरण: फिल्म ‘लगान’ में एक दिव्यांग एवं अछूत पात्र का नाम ‘कचरा’ रखा गया था, जिसका अर्थ अपशिष्ट होता है। 
  • समावेशी भाषा: असंवेदनशील भाषा व्यक्तियों की गरिमा के विपरीत है क्योंकि यह समाज द्वारा प्रभावित समूह के साथ वस्तुनिष्ठ सामाजिक व्यवहार को बाधित करती है। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने निर्धारित किया कि संवाद की भाषा समावेशी होनी चाहिए न कि अलगावकारी। 
  • मिथकों को दूर करना (Dispel Myths): फिल्में एवं दृश्य मीडिया दिव्यांगताओं के बारे में मिथकों को बनाए रखने का प्रयास करते हैं, क्योंकि वे कुछ दिव्यांगताओं वाले व्यक्तियों को ‘अति-अपंग’ के रूप में चित्रित करते हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि दिव्यांग व्यक्तियों में असाधारण वीरतापूर्ण क्षमताएँ होती हैं और जिनके पास ऐसी शक्तियाँ नहीं होती हैं, वे सामान्य से भिन्न होते हैं। 
  • सटीक चिकित्सा प्रस्तुति: फिल्मों एवं दृश्य मीडिया सामग्री के निर्माताओं को दिव्यांगता के बारे में भ्रामक विचार प्रस्तुत नहीं करना चाहिए, जिससे किसी स्थिति के बारे में गलत जानकारी फैल सके और यथासंभव चिकित्सा स्थिति का सटीक प्रस्तुतीकरण खोजना चाहिए। 
  • सफलता की कहानियों को उजागर करना: दृश्य मीडिया को दिव्यांग व्यक्तियों की विविध वास्तविकताओं को दर्शाने का प्रयास करना चाहिए, न केवल उनकी चुनौतियों को प्रदर्शित करना चाहिए, बल्कि उनकी सफलताओं, प्रतिभाओं और समाज में योगदान को भी प्रदर्शित करना चाहिए। 
    • उदाहरण: ‘इकबाल’, ‘चंदू चैंपियन’ जैसी फिल्में उन लोगों के जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को दर्शाती हैं, जो दिव्यांग होते हुए भी चुनौतियों का सामना कर सफल हुए। 
  • प्रतिनिधित्व और भागीदारी को सक्षम बनाना: न्यायालय ने प्राधिकारियों को सलाह दी कि वे दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए निर्णय लेते समय, विशेष रूप से सिनेमैटोग्राफ नियमों के तहत, वैधानिक समितियों में उन्हें प्रमुख हितधारकों के रूप में शामिल करें। 
  • संतुलन बनाए रखना: किसी भाषण के संदर्भ, उद्देश्य और समग्र अर्थ पर विचार किया जाना चाहिए, उसके बाद ही इस निष्कर्ष पर पहुँचा जाना चाहिए कि क्या दृश्य मीडिया या फिल्मों में की गई टिप्पणियाँ अपमानजनक थीं, क्योंकि सभी भाषण जो रूढ़िवादिता को बढ़ावा देते हैं, व्यक्तिगत गरिमा के विरुद्ध नहीं होते। 
    • ‘अक्षम करने वाला हास्य’ बनाम ‘दिव्यांगता वाला हास्य’ (Disabling Humour v/s Disability Humour): निर्णय में कहा गया कि ‘अक्षम करने वाला हास्य’ (Disabling Humour) दिव्यांग व्यक्तियों का अपमान करता है, जबकि ‘दिव्यांगता वाला हास्य’ दिव्यांगता को बेहतर ढंग से समझने एवं समझाने का प्रयास करता है।
  • दिव्यांगता के सामाजिक मॉडल को अपनाएँ: निर्णय में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि किस प्रकार दिव्यांगता को व्यक्तिगत त्रासदी मानने वाला चिकित्सा मॉडल अप्रचलित हो गया है और उन्हें एक आधुनिक सामाजिक मॉडल को अपनाने की आवश्यकता है, जो यह मानता है कि दिव्यांगता के बारे में रूढ़िवादिता और उपहास दिव्यांगता के साथ ‘परिचितता की कमी’ (Lack of Familiarity) से उत्पन्न होता है। 
  • पहले से मौजूद कानूनी ढाँचे को लागू करना (Implement the Pre existing Legal Frameworks): न्यायालय ने दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा सिनेमाघरों में फीचर फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन में सुगम्यता मानकों के हाल के मसौदा दिशा-निर्देशों जैसे दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तीकरण के लिए अपनाए गए विभिन्न कानूनों और दिशा-निर्देशों को पूरी भावना से लागू करने को कहा है। 

सिनेमा थिएटरों में फीचर फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन में सुगम्यता मानकों के मसौदा दिशा-निर्देश

  • मंत्रालय: सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (भारत सरकार) ने श्रवण एवं दृष्टि बाधित व्यक्तियों के लिए प्रस्तावित मसौदा दिशा-निर्देशों पर टिप्पणियाँ आमंत्रित की हैं। 
  • लागू: यह उन फीचर फिल्मों के लिए लागू है, जिन्हें वाणिज्यिक उद्देश्य से सिनेमा हॉल/मूवी थिएटरों में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (Central Board of Film Certification- CBFC) द्वारा प्रमाणित किया गया है। 
  • मानक: दिशा-निर्देश में सुगम्यता मानक, भारतीय सांकेतिक भाषा नियम तथा फीचर फिल्मों के मामले में सुगम्यता निर्धारित की गई है। 
    • निर्माता को प्रमाणन के लिए CBFC को फिल्मों के दो सेट प्रस्तुत करने होंगे, एक मूल सेट जनता के लिए तथा दूसरा सेट सुगम्यता सुविधाओं के साथ। 
  • कार्यान्वयन उपाय: इसमें लाइसेंसिंग प्राधिकरण द्वारा शिकायत निवारण, निगरानी और कार्यान्वयन के लिए उपायों का भी प्रस्ताव है। 
  • सहयोग: श्रवण या दृश्य दिव्यांगता वाले व्यक्तियों के लिए सुगम्यता प्राप्त करने के लिए, फिल्म उद्योग को ऐसे दिव्यांग व्यक्तियों के लिए बने संगठनों के साथ सहयोग करना आवश्यक है। 
    • वित्तीय सहायता: उपयुक्त सरकार अपने द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त फिल्मों में सुगम्यता संबंधी विशेषताओं के लिए अनिवार्य वित्तीय सहायता पर विचार कर सकती है। 
  • प्रोत्साहन: राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव, गोवा और मुंबई अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के भारतीय पैनोरमा खंड में विचार के लिए प्रस्तुत फीचर फिल्मों में 1 जनवरी, 2025 से अनिवार्य रूप से बंद कैप्शनिंग और ऑडियो विवरण शामिल करना होगा।

दिव्यांगता के बारे में

  • यह शरीर या मन की कोई ऐसी स्थिति है, जो व्यक्ति के लिए कुछ गतिविधियाँ करना और अपने आसपास की दुनिया के साथ बातचीत करना अधिक कठिन बना देती है। 
  • आयाम
    • हानि: किसी व्यक्ति की शारीरिक संरचना या कार्य अथवा मानसिक कार्यप्रणाली में हानि के उदाहरणों में अंग की हानि, दृष्टि की हानि या स्मृति ह्रास शामिल है। 
    • गतिविधि सीमा: इसमें देखने, सुनने, चलने या समस्या सुलझाने में कठिनाई होती है। 
    • भागीदारी प्रतिबंध: सामान्य दैनिक गतिविधियों में, जैसे कार्य करना, सामाजिक और मनोरंजक गतिविधियों में शामिल होना, तथा स्वास्थ्य देखभाल एवं निवारक सेवाएँ प्राप्त करना। 
  • भारत में जनसंख्या: 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की जनसंख्या 2.68 करोड़ है, जिन्हें ‘दिव्यांग’ के रूप में मान्यता दी गई है, जो कुल जनसंख्या का 2.21% है। 2.68 करोड़ में से 56% (1.5 करोड़) पुरुष हैं और 44% (1.18 करोड़) दिव्यांग हैं। 
  • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016: यह अधिनियम 21 प्रकार की दिव्यांगताओं को मान्यता देता है, जिनमें से कुछ का उल्लेख नीचे किया गया है 
    • गति संबंधी दिव्यांगता, दृश्य संबंधी दिव्यांगता, श्रवण संबंधी दिव्यांगता, भाषण और भाषा संबंधी दिव्यांगता, बौद्धिक संबंधी दिव्यांगता, बहु संबंधी दिव्यांगता, मस्तिष्क पक्षाघात, बौनापन आदि। 

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