उच्चतम न्यायालय ने यौन उत्पीड़न की 14 वर्षीय पीड़िता को लगभग 30 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दे दी है।
संबंधित तथ्य
यह फैसले बहुत ही असाधारण है क्योंकि लड़की (लगभग 14 वर्ष की) की सुरक्षा को सुनिश्चित किया गया है, साथ ही उसके 30 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति दी गई है।
भारत में गर्भपात में ‘भ्रूण व्यवहार्यता’ का प्रश्न
यह वह समय है, जिसके बाद भ्रूण गर्भ के बाहर जीवित रह सकता है। भ्रूण की व्यवहार्यता आमतौर पर 23-24 सप्ताह (6 महीने) आँकी जाती है।
उत्पत्ति: इस विचार की उत्पत्ति वर्ष 1973 में ‘रो वी वेड’ में अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले से हुई, जिसके तहत भ्रूण की व्यवहार्यता के बिंदु तक गर्भपात को एक संवैधानिक अधिकार बना दिया गया था।
भारत का मामला: भ्रूण व्यवहार्यता (अजन्मे बच्चे का अधिकार) बनाम गर्भपात का अधिकार का प्रश्न एक मामले में उठा है।
उच्चतम न्यायालय की दो सदस्यीय महिला-न्यायाधीश पीठ ने 27 वर्षीय विवाहित महिला को उसकी भ्रूण व्यवहार्यता रिपोर्ट अदालत में पेश किए जाने के बाद 26 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देने पर असहमति जताई।
गर्भपात पर भारत में कानून
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 (MTP अधिनियम): यह निम्नलिखित परिस्थितियों में गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देता है:-
20 सप्ताह तक: यदिएक डॉक्टर की सलाह पर गर्भावस्था के समापन की अनुमति है तो।
20-24 सप्ताह के बीच: गर्भपात की अनुमति है, लेकिन केवल कुछ श्रेणियों के तहत अपवाद के रूप में, दो पंजीकृत चिकित्सा प्रशिक्षुकों द्वारा समाप्ति की माँग करने के अधिकार का मूल्यांकन करने के बाद।
MTP अधिनियम के तहत नियमों की धारा 3B: इसमें जबरन गर्भधारण की सात श्रेणियाँ सूचीबद्ध हैं
महिलाओं की विशेष श्रेणियों (इसमें दुष्कर्म तथा अनाचार से पीड़ित महिलाओं तथा अन्य कमजोर महिलाओं, जैसे-दिव्यांग महिलाएँ और नाबालिग आदि के लिए गर्भकाल/गर्भावधि की सीमा को 20 से 24 सप्ताह करने का प्रावधान किया गया है।
24 सप्ताह के बाद: अनुमोदित सुविधाओं में एक मेडिकल बोर्ड स्थापित करने की आवश्यकता है, जो समाप्ति की अनुमति देने या अस्वीकार करने का निर्णय लेगा, लेकिन केवल तभी जब भ्रूण में पर्याप्त असामान्यता हो।
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