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अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए RTE छूट के पुनर्विचार पर सर्वोच्च न्यायालय

Lokesh Pal September 04, 2025 03:25 46 0

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों की पीठ ने वर्ष 2014 के प्रमति शैक्षिक एवं सांस्कृतिक ट्रस्ट निर्णय पर पुनर्विचार करने का आह्वान किया, जिसमें शिक्षा के अधिकार अधिनियम से अल्पसंख्यक संस्थानों को पूर्ण छूट दिए जाने पर सवाल उठाया गया था।

पृष्ठभूमि

प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट बनाम भारत संघ (2014)

  • निर्णय: पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाया कि अल्पसंख्यक संस्थानों पर शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों को लागू करना संविधान के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
  • तर्क: न्यायालय ने कहा कि ऐसे स्कूलों पर शिक्षा का अधिकार लागू करने से अनुच्छेद-30(1) के तहत गारंटीकृत उनकी स्वायत्तता और अल्पसंख्यक चरित्र का उल्लंघन होगा।

संविधान के तहत अल्पसंख्यक अधिकार

  • अनुच्छेद 30(1): धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका संचालन करने का अधिकार देता है।
  • पहचान की सुरक्षा: यह प्रावधान अल्पसंख्यक संस्कृति और स्वायत्तता के संरक्षण को सुनिश्चित करता है और शैक्षणिक मामलों में बहुसंख्यकों के हस्तक्षेप को रोकता है।

वर्ष 2002 का 86वाँ संशोधन अधिनियम

  • इसने भारतीय संविधान में अनुच्छेद-21A जोड़कर 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए प्रारंभिक शिक्षा को एक मौलिक अधिकार बना दिया।
  • इसने एक नया मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद-51A(k)) भी जोड़ा गया और 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए शैक्षिक अवसर प्रदान करने हेतु एक अन्य मौलिक कर्तव्य के रूप में संशोधन किया, जिससे मौलिक कर्तव्यों की कुल संख्या बढ़कर ग्यारह हो गई।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के बारे में

  • संवैधानिक आधार 
    • अनुच्छेद-21A (शिक्षा का अधिकार) को क्रियान्वित करने के लिए अधिनियमित, 
    • 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी।
  • मुख्य प्रावधान: धारा 12(1)(C) निजी स्कूलों में प्रवेश स्तर पर वंचित और कमजोर वर्गों के लिए 25% आरक्षण का प्रावधान करती है, जिसके व्यय की प्रतिपूर्ति राज्य द्वारा की जाएगी।
    • धारा 23 शिक्षकों की नियुक्ति के लिए योग्यताओं और सेवा शर्तों से संबंधित है।
      • यह शिक्षकों के लिए न्यूनतम योग्यताओं को अनिवार्य बनाती है, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा अधिकृत शैक्षणिक प्राधिकरण द्वारा निर्धारित किया गया है।

पीठ का मुख्य अवलोकन

  • समान स्कूली शिक्षा के दृष्टिकोण का विखंडन: न्यायाधीशों ने प्रमति के निर्णय की वैधता पर संदेह व्यक्त किया। अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम से छूट दिए जाने से स्कूली शिक्षा प्रणाली विखंडित हो रही है, जो अनुच्छेद-21A के तहत परिकल्पित समावेशिता और सार्वभौमिकता के संवैधानिक आदर्श को कमजोर करती है।
    • तर्क: न्यायालय ने तर्क दिया कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम सभी अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू होना चाहिए, चाहे वे सहायता प्राप्त हों या गैर-सहायता प्राप्त, क्योंकि यह उनके चरित्र को नष्ट नहीं करता है।
  • अनुच्छेदों के बीच कोई टकराव नहीं: न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद-21A (शिक्षा का अधिकार) और अनुच्छेद-30(1) (अल्पसंख्यक अधिकार) सामंजस्यपूर्ण ढंग से सह-अस्तित्व में रह सकते हैं।
  • सामाजिक समावेशन: धारा 12(1)(C) अल्पसंख्यक पहचान को कम किए बिना प्रारंभिक शिक्षा में समानता और सार्वभौमीकरण को बढ़ावा देती है।
  • शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) पर: TET, RTE अधिनियम की धारा 23 के तहत न्यूनतम योग्यताओं में से एक है।
    • अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षण गुणवत्ता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए TET मानदंडों का पालन करना होगा।
  • अंतरिम आदेश: सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि सभी गैर-अल्पसंख्यक स्कूलों को RTE प्रावधानों का पालन करना होगा, साथ ही सेवारत शिक्षकों को उनकी सेवा के शेष वर्षों के आधार पर शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) की आवश्यकताओं के संबंध में राहत भी प्रदान की है।

मामला मुख्य न्यायाधीश के पास भेजे गए चार प्रमुख संवैधानिक प्रश्न

  1. प्रमति निर्णय (2014) पर पुनर्विचार: क्या सार्वभौमिक शिक्षा लक्ष्यों के आलोक में अल्पसंख्यक संस्थानों को दी गई पूर्व छूट पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए?
  2. धारा 12(1)(सी) बनाम अनुच्छेद-30(1): क्या वंचित समूहों के लिए 25% कोटा अल्पसंख्यक संस्थानों की संवैधानिक स्वायत्तता का उल्लंघन करता है?
  3. अनुच्छेद-29(2) की अवहेलना: क्या प्रवेश प्रक्रिया में भेदभाव रहित सिद्धांत की अनदेखी, समानता और अल्पसंख्यक संरक्षण के बीच संवैधानिक संतुलन को कमजोर करती है?
  4. आंशिक बनाम संपूर्ण अमान्यकरण: क्या केवल चुनिंदा प्रावधानों को ही रद्द किया जाना चाहिए था या क्या अल्पसंख्यक संस्थानों के संबंध में संपूर्ण RTE अधिनियम को अमान्य कर दिया जाना चाहिए था?

वर्ष 2014 के निर्णय पर पुनर्विचार के निहितार्थ

  • अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए: उन्हें 25% वंचित छात्रों को प्रवेश देना पड़ सकता है और स्वायत्तता व जवाबदेही के बीच संतुलन स्थापित करते हुए राज्य के ढाँचों का पालन करना पड़ सकता है।
    • DISE (2021-22) के अनुसार, कार्यान्वयन के बाद से धारा 12(1)(c) के तहत 36 लाख से अधिक बच्चों को प्रवेश दिया जा चुका है।
  • शिक्षा नीति के लिए: सतत् विकास लक्ष्य 4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा) के अनुरूप समावेशी और सार्वभौमिक शिक्षा के लक्ष्य को मजबूत करना।
  • न्यायशास्त्र के लिए: एक व्यापक पीठ समानता सुनिश्चित करने के राज्य के दायित्व के संदर्भ में अल्पसंख्यक अधिकारों के दायरे को पुनर्परिभाषित कर सकती है।
  • शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि: NCERT (2023) ने पाया कि उच्च TET-योग्य शिक्षकों वाले राज्यों में सीखने के बेहतर परिणाम थे (ASER रिपोर्ट)।

आगे की चुनौतियाँ

  • स्वायत्तता संबंधी चिंताएँ: अल्पसंख्यक समूहों का तर्क है कि शिक्षा के अधिकार (जैसे 25% कोटा) का अनिवार्य अनुपालन अनुच्छेद-30(1) के तहत संरक्षित सांस्कृतिक और भाषायी पहचान को नष्ट कर सकता है।
    • प्रमति (2014) मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया था कि अल्पसंख्यक संस्थानों को अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखने के लिए स्वायत्तता प्राप्त होनी चाहिए।
    • कार्यान्वयन: धारा 12(1)(c) के तहत वित्तीय तटस्थता और प्रशासनिक स्पष्टता सुनिश्चित करना एक चुनौती बनी हुई है।
      • राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, शिक्षा के अधिकार की प्रतिपूर्ति में कई वर्षों से देरी हो रही है, जिससे निजी और अल्पसंख्यक संस्थानों पर दबाव बढ़ रहा है।
  • अधिकारों का संतुलन: अनुच्छेद-21A (शिक्षा का अधिकार) को अनुच्छेद-30(1) (अल्पसंख्यक अधिकार) के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए एक अधिकार को दूसरे पर हावी करने के बजाय सामंजस्यपूर्ण व्याख्या की आवश्यकता है।
    • प्रत्येक बच्चे के शिक्षा के अधिकार को अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक संरक्षण के सामूहिक अधिकार के साथ संतुलित करने के लिए सूक्ष्म न्यायशास्त्र की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • संदर्भ-विशिष्ट अनुप्रयोग: सभी अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए एक व्यापक छूट के बजाय तथ्य-विशिष्ट विश्लेषण अपनाना।
    • उदाहरण: कनाडा (ओंटेरियो) में, कैथोलिक स्कूल धार्मिक मूल्यों को बनाए रखते हुए सार्वजनिक पाठ्यक्रम का पालन करते हैं।
  • वित्तीय सुरक्षा उपाय: शिक्षा के अधिकार (RTE) के अंतर्गत अल्पसंख्यक स्कूलों को समय पर लागत की प्रतिपूर्ति सुनिश्चित करना।
  • शिक्षक गुणवत्ता और जवाबदेही: शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) के अनुपालन का विस्तार करना, जिससे स्कूलों के क्षमता निर्माण को बढ़ावा ​​मिल सके।
    • उदाहरण: फिनलैंड में, अल्पसंख्यक-भाषा स्कूलों (जैसे स्वीडिश-माध्यम) सहित सभी स्कूलों को एक समान गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त शिक्षकों को नियुक्त करना होगा।
  • अल्पसंख्यक अधिकारों और समावेशिता का संतुलन: सांस्कृतिक स्वतंत्रता (भाषा, लोकाचार, शिक्षण पद्धति) का सम्मान करते हुए मूल मानकों (पाठ्यक्रम, शिक्षक गुणवत्ता, समावेशिता) को अनिवार्य करना।
    • उदाहरण: सिंगापुर में अल्पसंख्यक मदरसे राज्य की निगरानी में संचालित होते हैं; छात्र धार्मिक-सांस्कृतिक शिक्षा को संरक्षित करते हुए राष्ट्रीय परीक्षाएँ देते हैं।
  • निगरानी ढाँचे को मजबूत करना: स्वायत्तता को कम किए बिना अनुपालन के लिए स्वतंत्र नियामक निकाय स्थापित करना।
    • उदाहरण: ब्रिटेन में, धार्मिक स्कूलों (ईसाई, यहूदी, मुस्लिम) को सार्वजनिक वित्तपोषण प्राप्त होता है, लेकिन उन्हें ‘ऑफस्टेड’ निरीक्षण से गुजरना पड़ता है और मूल विषय पढ़ाना पड़ता है।

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय की समीक्षा में सार्वभौमिक शिक्षा अधिकारों को अल्पसंख्यक स्वायत्तता के साथ संतुलित करना होगा, सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करते हुए समानता, समावेशिता और गुणवत्ता सुनिश्चित करनी होगी, इस प्रकार संवैधानिक नैतिकता के भीतर अनुच्छेद-21A और 30(1) में सामंजस्य स्थापित करना होगा।

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