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सर्वोच्च न्यायालय ने दिव्यांगता कोटे के आवंटन पर सवाल उठाए

Lokesh Pal September 17, 2025 02:20 37 0

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से प्रश्न किया कि सामान्य श्रेणी की कट-ऑफ पार करने वाले मेधावी दिव्यांगजनों (Persons with Disabilities- PwD) को अनारक्षित सूची में क्यों नहीं स्थानांतरित कर दिया जाता, जिससे अन्य लोगों के लिए आरक्षित सीटें बच जाती हैं।

प्रोजेक्ट एबिलिटी इंपॉवरमेंट (Project Ability Empowerment) के बारे में 

  • कार्यक्षेत्र: दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम के अनुपालन की निगरानी, ​​देखभाल की गुणवत्ता का आकलन और समुदाय-आधारित विकल्पों के लिए सुधारों की सिफ़ारिश करना।
  • नेतृत्व: नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (National Law School of India University- NLSIU), बंगलूरू कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पुडुचेरी और लक्षद्वीप के संस्थानों की देख-रेख करेगा।

सर्वोच्च न्यायालय की हालिया टिप्पणियों के बारे में

  • ऊर्ध्वगामी गतिशीलता का सिद्धांत: पीठ ने कहा कि इस तरह की ऊर्ध्वगामी गतिशीलता से मना करना दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत आरक्षण के उद्देश्य को विफल करता है।
  • शत्रुतापूर्ण भेदभाव: न्यायालय ने कहा कि OBC/SC/ST उम्मीदवारों को योग्यता के आधार पर ऊर्ध्वगामी गतिशीलता प्रदान की जाती है, लेकिन दिव्यांगजनों को नहीं, जिससे “शत्रुतापूर्ण भेदभाव” उत्पन्न होता है।
  • आरक्षण का उद्देश्य: आरक्षण का उद्देश्य दिव्यांगजनों को मुख्यधारा में लाना है, न कि उन्हें निश्चित सीटों तक सीमित रखना।
  • विविधता का दृष्टिकोण: दिव्यांगता को एक कमी के रूप में नहीं, बल्कि कानूनी और संस्थागत ढाँचों की समावेशिता की परीक्षा के रूप में देखा जाना चाहिए।
  • प्रोजेक्ट एबिलिटी इंपॉवरमेंट: सर्वोच्च न्यायालय ने “प्रोजेक्ट एबिलिटी इंपॉवरमेंट” की भी शुरुआत की, जिसके तहत आठ राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों (National Law Universities- NLU) को संज्ञानात्मक दिव्यांगता वाले व्यक्तियों के देखभाल संस्थानों की राष्ट्रव्यापी निगरानी करने का दायित्व सौंपा गया।

PWOnlyIAS विशेष

भारत की दिव्यांगता संबंधी पहलों का कालानुक्रमिक विकास

  • वर्ष 1995 – दिव्यांगजन (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम: भारत का पहला व्यापक कानून, जो दिव्यांगजनों के लिए नौकरियों और शिक्षा में 3% आरक्षण प्रदान करता है, समान अवसर पैदा करने पर केंद्रित है।
  • वर्ष 2015 – दिव्यांगजनों के कौशल विकास हेतु राष्ट्रीय कार्य योजना: व्यावसायिक प्रशिक्षण और नौकरी संबंध प्रदान करने के लिए शुरू की गई।
    • इसका उद्देश्य गैर-सरकारी संगठनों और कॉर्पोरेट्स के साथ साझेदारी के माध्यम से वर्ष 2025 तक 25 लाख दिव्यांगजनों को कुशल बनाना है।
  • वर्ष 2015 – सुगम्य भारत अभियान: सार्वजनिक स्थानों, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) और परिवहन को सुलभ बनाने के लिए दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग (DEPwD) द्वारा शुरू किया गया।
  • वर्ष 2016 – दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम: वर्ष 1995 के कानून को प्रतिस्थापित किया गया, मान्यता प्राप्त दिव्यांगताओं की संख्या 7 से बढ़ाकर 21 कर दी गईं और सरकारी नौकरियों में आरक्षण 3% से बढ़ाकर 4% कर दिया गया।
    • धारा 34 के तहत रोजगार में 4% आरक्षण अनिवार्य किया गया।
  • वर्ष 2016 – विशिष्ट दिव्यांगता पहचान पत्र (Unique Disability ID- UDID) परियोजना: सभी दिव्यांगजनों को लाभ प्राप्त करने के लिए एक राष्ट्रीय डेटाबेस और एकल पहचान-पत्र बनाने हेतु शुरू की गई।
    • वर्ष 2023 तक, केवल 40% दिव्यांगजनों को ही UDID ​​जारी किए गए थे, जो कवरेज में अंतराल को दर्शाता है।
  • वर्ष 2018 – कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) दिशा-निर्देश और प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न: स्पष्ट किया गया कि योग्यता के आधार पर अर्हता प्राप्त करने वाले मेधावी दिव्यांगजनों को अनारक्षित श्रेणी में गिना जा सकता है। मंत्रालयों को दिव्यांगजनों की भर्ती के लिए अलग रोस्टर बनाए रखने का भी निर्देश दिया गया।
  • वर्ष 2022 – पदोन्नति में आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: यह माना गया कि दिव्यांगजन सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण के हकदार हैं, जिससे कॅरियर में उन्नति की उनकी संभावना मजबूत होगी।
  • वर्ष 2025 – ऊर्ध्वगामी गतिशीलता पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (विक्रम नाथ और संदीप मेहता पीठ): केंद्र सरकार को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया गया कि क्या मेधावी दिव्यांगजनों को अनारक्षित श्रेणी में स्थानांतरित किया जाता है।

भारत में दिव्यांगता प्रतिनिधित्व की वर्तमान स्थिति

  • कानूनी जनादेश बनाम वास्तविकता: दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत 4% कोटा, लेकिन नौकरियों में केवल ~1.1%।
  • रोजगार (2022): केंद्रीय मंत्रालयों में 21,874 दिव्यांगजन (1.15%)।
  • समूहों के अनुसार
    • समूह A – 1%
    • समूह B – 1.53%
    • समूह D (गैर-सफाई कर्मचारी) – 1.1%
    • समूह C (सफाई कर्मचारी) – 1.93% (उच्चतम)।
  • धीमी वृद्धि: वर्ष 2011 से 2022 तक, दिव्यांग कर्मचारियों की संख्या 15,747 से मामूली रूप से बढ़कर 22,000 हो गई, जो अनिवार्य 4% कोटे से काफी कम है।
  • संरचनात्मक बाधा: भारत में 40% से भी कम दिव्यांगों के पास दिव्यांगता पहचान-पत्र है, जिससे कई लोगों के लिए आरक्षण लाभ प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।

दिव्यांगता-आधारित भेदभाव के बारे में

  • दिव्यांगता-आधारित भेदभाव का तात्पर्य व्यक्तियों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदी दिव्यांगताओं के आधार पर उनके साथ अनुचित व्यवहार, बहिष्कार या अधिकारों और अवसरों से वंचित करने से है।
  • यह तब होता है, जब किसी दिव्यांग व्यक्ति के साथ समान परिस्थितियों में रहने वाले अन्य लोगों की तुलना में अलग या प्रतिकूल व्यवहार किया जाता है।
  • इससे शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा, सार्वजनिक सेवाओं और जीवन के अन्य पहलुओं तक पहुँच में असमानता पैदा हो सकती है।

दिव्यांगता-आधारित भेदभाव के प्रकार

  • प्रत्यक्ष भेदभाव: जब किसी व्यक्ति को केवल उसकी दिव्यांगता के कारण अवसरों या लाभों से स्पष्ट रूप से वंचित किया जाता है।
    • किसी योग्य उम्मीदवार को उसकी दिव्यांगता के कारण नौकरी पर रखने से मना करना।
  • अप्रत्यक्ष भेदभाव: जब तटस्थ प्रतीत होने वाली नीतियाँ या नियम दिव्यांग व्यक्तियों को अनुपातहीन रूप से नुकसान पहुँचाते हैं।
    • दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए वैकल्पिक प्रारूप प्रदान किए बिना सभी उम्मीदवारों को एक लिखित परीक्षा पूरी करने की आवश्यकता होती है।
  • उचित समायोजन से इनकार: जब आवश्यक संशोधन या समायोजन (जैसे- सुलभ बुनियादी ढाँचे, सहायक प्रौद्योगिकी, या लचीली कार्य स्थितियाँ) प्रदान नहीं किए जाते हैं तो दिव्यांग व्यक्तियों के लिए समान रूप से अवसरों तक पहुँच बनाना मुश्किल हो जाता है।
  • उत्पीड़न: जब किसी दिव्यांग व्यक्ति के साथ मौखिक दुर्व्यवहार, अपमानजनक टिप्पणियाँ या अवांछित व्यवहार किया जाता है, जिससे शत्रुतापूर्ण वातावरण उत्पन्न होता है।
  • प्रणालीगत भेदभाव: जब कानून, नीतियाँ या सामाजिक दृष्टिकोण दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों और आवश्यकताओं को पहचानने में विफल होकर उन्हें स्वाभाविक रूप से नुकसान पहुँचाते हैं।

भारत में कानूनी ढाँचा

  • दिव्यांगजन अधिकार (Rights of Persons with Disabilities- RPwD) अधिनियम, 2016
    • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 भारत के दिव्यांगजन कानूनों को दिव्यांगजन अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (United Nations Convention on the Rights of Persons with Disabilities [UNCRPD]) के अनुरूप बनाने के लिए लागू किया गया था।
      • भारत ने वर्ष 2007 में UNCRPD का अनुसमर्थन किया था।
    • RPwD अधिनियम का उद्देश्य जीवन के सभी पहलुओं में दिव्यांगजनों के अधिकार, समानता और समावेशन सुनिश्चित करना है।
    • वर्ष 2016 के इस अधिनियम ने पूर्ववर्ती दिव्यांगजन (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 का स्थान लिया।

RPwD अधिनियम, 2016 की मुख्य विशेषताएँ

  • दिव्यांगता की विस्तारित परिभाषा: अधिनियम ने मान्यता प्राप्त दिव्यांगताओं की संख्या 7 (1995 के अधिनियम में) से बढ़ाकर 21 कर दी।
    • यह केंद्र सरकार को भविष्य में अन्य दिव्यांगताओं को अधिसूचित करने की भी अनुमति देता है।
  • रोजगार और शिक्षा में आरक्षण: यह अधिनियम सरकारी नौकरियों में दिव्यांगजनों के लिए 4% और उच्च शिक्षा संस्थानों में 5% आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • सुगम्यता: इसके तहत सार्वजनिक भवनों, परिवहन प्रणालियों और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकियों को दिव्यांगजनों के लिए सुलभ बनाया जाना आवश्यक है।
  • सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य: यह अधिनियम दिव्यांगजनों के लिए वित्तीय सहायता, बीमा और पेंशन योजनाओं सहित सामाजिक सुरक्षा उपायों का प्रावधान करता है।
  • राष्ट्रीय और राज्य बोर्ड: यह अधिनियम कानून के कार्यान्वयन की निगरानी और सलाह देने के लिए केंद्रीय और राज्य सलाहकार बोर्डों की स्थापना करता है।

ऊर्ध्वगामी गतिशीलता का महत्त्व

  • लगातार कम प्रतिनिधित्व: कानूनी प्रावधानों के बावजूद, केंद्र सरकार की नौकरियों में दिव्यांगजनों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है।
  • उच्च पदों पर असमान प्रतिनिधित्व: दिव्यांगजन निचली श्रेणियों में केंद्रित हैं और वरिष्ठ पदों पर उनकी उपस्थिति नगण्य है।
  • भेदभाव पर न्यायिक चिंता: सर्वोच्च न्यायालय ने अन्य आरक्षित श्रेणियों के साथ समानता के अभाव पर चिंता व्यक्त की।
    • अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के उम्मीदवार, जो योग्यता के आधार पर उत्तीर्ण होते हैं, उन्हें सामान्य श्रेणी में स्थानांतरित कर दिया जाता है, लेकिन दिव्यांगजनों को इस ऊपरी स्तर पर जाने से वंचित रखा जाता है, जिसे न्यायालय ने “शत्रुतापूर्ण भेदभाव” कहा है।
  • संवैधानिक समानता: दिव्यांगजनों को उपेक्षित करने से अनुच्छेद-14, 15 और 16 कमजोर होते हैं, जो समानता और समान अवसर की गारंटी देते हैं, साथ ही अनुच्छेद-21 भी कमजोर होता है, जो गरिमा की रक्षा करता है।
  • कोटा प्रभावशीलता: दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण के बिना, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम के तहत बढ़ा हुआ कोटा अपर्याप्त रूप से उपयोग किया जाता है।
    • वर्ष 2016 में आरक्षण को 3% से बढ़ाकर 4% करने के बावजूद, वास्तविक प्रतिनिधित्व लगभग 1% पर स्थिर रहा है, जो दर्शाता है कि नीतिगत उद्देश्य परिणामों में परिवर्तित नहीं हो रहा है।
  • सामाजिक न्याय अधिदेश: दिव्यांगजनों का समर्थन नीति-निर्देशक सिद्धांतों द्वारा अधिदेशित सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाता है।
    • अनुच्छेद-38 और 41 राज्य से दिव्यांगजनों के लिए एक न्यायसंगत सामाजिक व्यवस्था और सहायता सुनिश्चित करने की अपेक्षा करते हैं। इससे आरक्षण प्रतीकात्मकता के बजाय सशक्तीकरण का एक साधन बन जाता है।
  • वैश्विक प्रतिबद्धताएँ: अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के तहत भारत के दायित्वों के अनुसार उसे समावेशी नीतियाँ अपनानी होंगी।
    • वर्ष 2007 से दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UN Convention on the Rights of Persons with Disabilities [UNCRPD]) पर हस्ताक्षरकर्ता होने के नाते, भारत को समान अवसर और गैर-भेदभाव की गारंटी देनी चाहिए तथा सशक्तीकरण को एक अनुपालन आवश्यकता बनाना चाहिए।
  • आरक्षण नीति की वैधता: गतिशीलता निष्पक्षता को बढ़ाती है और आरक्षण को प्रतिबंधात्मक माने जाने से रोकती है।
    • जब मेधावी दिव्यांगजनों को सामान्य पूल में मान्यता दी जाती है, तो इससे वंचित उम्मीदवारों के लिए सीटें आरक्षित हो जाती हैं, जिससे व्यवस्था में विश्वसनीयता और जनता का विश्वास बढ़ता है।
  • आरक्षण नीति की वैधता: यदि आरक्षण केवल आरक्षित सीटों तक सीमित रखा जाता है और योग्यता के आधार पर आगे बढ़ने का अवसर नहीं दिया जाता, तो यह दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण के स्थान पर उनकी प्रगति में बाधा पहुँचा सकता है।
    • गतिशीलता, आरक्षण ढाँचे में विश्वसनीयता, निष्पक्षता और जनता के विश्वास को बढ़ाती है।

कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

  • नीतिगत अस्पष्टता: कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) के स्पष्टीकरणों के बावजूद, सशक्तीकरण संबंधी नियम अस्पष्ट बने हुए हैं।
    • कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) के FAQ (2018) के अनुसार, दिव्यांगजनों को बिना किसी रियायत के अर्हता प्राप्त करने पर अनारक्षित माना जा सकता है, लेकिन मंत्रालय प्रायः इसे लगातार लागू करने में विफल रहते हैं।
  • अपूर्ण डेटा और निगरानी: व्यापक दिव्यांगता रोजगार डेटा की कमी जवाबदेही को कम करती है।
    • वर्ष 2018 के बाद, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग की वार्षिक रिपोर्टों में कई मंत्रालयों को शामिल नहीं किया गया, जिसके परिणामस्वरूप कुल सरकारी कर्मचारियों की संख्या 30 लाख से घटकर 20 लाख हो गई, जिससे दिव्यांगजन प्रतिनिधित्व आधारित डेटा अविश्वसनीय हो गया।
  • भर्ती में संस्थागत पूर्वाग्रह: दिव्यांगजनों को असमान रूप से निम्न-कौशल वाले पदों पर रखा जाता है।
    • केंद्र सरकार में दिव्यांगजनों की सबसे अधिक संख्या ग्रुप C के सफाई कर्मचारियों में है, जो उच्च प्रशासनिक और तकनीकी पदों में समावेशन का अभाव दर्शाता है।
  • प्रमाणन और जागरूकता की कमी: कम पहचान-पत्र कवरेज और जागरूकता की कमी के कारण दिव्यांगजनों का एक बड़ा वर्ग लाभों से वंचित है।
    • 40% से भी कम दिव्यांगजनों के पास वैध पहचान-पत्र होने के कारण, कई दिव्यांगजन कोटा प्रणाली से बाहर रह जाते हैं और गतिशीलता संबंधी अधिकार की माँग नहीं करते हैं।

PWOnlyIAS विशेष

दिव्यांगता समावेशन पर वैश्विक पहल

  • दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (United Nations Convention on the Rights of Persons with Disabilities- UNCRPD): दिव्यांग व्यक्तियों के लिए गैर-भेदभाव, पहुँच और समान भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु एक वैश्विक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (Office of the High Commissioner for Human Rights [OHCHR]): दिव्यांग व्यक्तियों के मानवाधिकार दायित्वों के अनुपालन हेतु राज्यों की निगरानी करता है।
  • आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organisation for Economic Co-operation and Development [OECD]) दिव्यांगता समावेशन ढाँचा: संरचनात्मक बाधाओं को कम करके दिव्यांग व्यक्तियों को श्रम बाजारों में एकीकृत करने के लिए सरकारों को प्रोत्साहित करता है।

दिव्यांगता समावेशन और रोजगार में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • यूनाइटेड किंगडम – सकारात्मक कार्रवाई और दिव्यांगता विश्वास योजना: नियोक्ताओं को दिव्यांगजनों की सक्रिय भर्ती के लिए मान्यता और प्रोत्साहन दिया जाता है।
    • 20,000 से अधिक नियोक्ता “दिव्यांग प्राथमिकता” आधारित नियोक्ता के रूप में पंजीकृत हैं, जो दिव्यांगजनों के अनुकूल नियुक्ति सुनिश्चित करते हैं।
  • सिंगापुर – सक्षम मास्टरप्लान और स्किल्सफ्यूचर: कौशल प्रशिक्षण, वेतन सब्सिडी और समावेशी कार्यस्थलों के माध्यम से दिव्यांगजनों की रोजगार क्षमता को बढ़ावा देता है।
    • सक्षम मास्टरप्लान, 2030 का लक्ष्य वर्ष 2030 तक दिव्यांगजनों की रोजगार दर को 30% से बढ़ाकर 40% करना है।
  • ऑस्ट्रेलिया – पर्सन्स विद डिसएबिलिटीज (इक्वल ऑपर्चुनिटीज, प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स एंड फुल पार्टिसिपेशन) एक्ट, 1992 और जॉब एक्सेस: दिव्यांगजनों के लिए रोजगार और कार्यस्थल संशोधनों के लिए एक केंद्रीकृत मंच प्रदान करता है।
  • कनाडा – ऐक्सेसिबल कनाडा एक्ट (2019): सुगम्य रोजगार और सेवाओं पर संघीय संस्थानों के लिए बाध्यकारी मानक निर्धारित करता है।
  • यूरोपीय संघ – डिसएबिलिटी राइट्स स्ट्रैटेजी, 2021-2030: इसका उद्देश्य न्यूनतम 60% दिव्यांग रोजगार दर के साथ एक बाधा-मुक्त यूरोप बनाना है।

सतत् विकास लक्ष्य और दिव्यांगजन सशक्तीकरण हेतु वैश्विक एजेंडा

  • सतत् विकास लक्ष्य 4 – गुणवत्तापूर्ण शिक्षा: समावेशी शिक्षा का आह्वान करता है ताकि दिव्यांगजनों को सीखने के अवसरों तक समान पहुँच सुनिश्चित हो सके।
  • सतत् विकास लक्ष्य 8 – सभ्य कार्य और आर्थिक विकास: कार्यस्थल पर भेदभाव को कम करके दिव्यांगजनों के लिए पूर्ण और उत्पादक रोजगार प्राप्त करने का लक्ष्य रखता है।
  • सतत् विकास लक्ष्य 10 – असमानताओं में कमी: दिव्यांगजनों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समावेशन को स्पष्ट रूप से लक्षित करता है।
  • सतत् विकास लक्ष्य 16 – शांति, न्याय और सुदृढ़ संस्थाएँ: समावेशी संस्थाओं को बढ़ावा देता है, जो दिव्यांगजनों के लिए समान अवसर और न्याय तक पहुँच की गारंटी देती हैं।
  • सतत् विकास लक्ष्य 17 – लक्ष्यों के लिए साझेदारी: दिव्यांगजनों के समावेशन हेतु सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करता है।

आगे की राह

  • गतिशीलता हेतु नीति अधिसूचना: केंद्र सरकार को भर्ती और पदोन्नति में परिवर्तन हेतु एक बाध्यकारी निर्देश जारी करना चाहिए।
    • कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice & Empowerment- MSJE) द्वारा संयुक्त कार्रवाई यह सुनिश्चित कर सकती है कि सभी मंत्रालयों को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पालन करना चाहिए।
  • सेवाओं में नियमों का सामंजस्य: केंद्रीय और राज्य सेवा नियमों को दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप संशोधित किया जाना चाहिए।
    • संशोधनों से यह सुनिश्चित होना चाहिए कि दिव्यांगजनों को OBC/SC/ST के समान ही समानता प्राप्त हो और अन्य के लिए आरक्षित सीटें सुरक्षित रहें।
  • डेटा पारदर्शिता और ऑडिट: दिव्यांगजन प्रतिनिधित्व आधारित डेटा को नियमित रूप से प्रकाशित और सत्यापित किया जाना चाहिए।
    • कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग की वार्षिक रिपोर्ट को अनुपालन के लिए स्वतंत्र ऑडिट के साथ सभी मंत्रालयों में पूर्ण कवरेज प्रदान किया जाना चाहिए।
  • सार्वभौमिक दिव्यांगता पहचान-पत्र कवरेज: सभी पात्र दिव्यांगजनों को पहचान-पत्र प्राप्त हो, यह सुनिश्चित करने के लिए UDID ​​परियोजना में तेजी लाई जानी चाहिए।
    • विशिष्ट दिव्यांगता पहचान-पत्र (Unique Disability ID [UDID]) योजना के पूर्ण कार्यान्वयन से 100% प्रमाणीकरण प्राप्त हो सकता है, जिससे आरक्षण लाभों तक समान पहुँच संभव हो सकेगी।
  • क्षमता निर्माण और संवेदनशीलता: प्रशिक्षण संस्थानों को अपने पाठ्यक्रम में दिव्यांगता अधिकारों को शामिल करना चाहिए।
    • लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (Lal Bahadur Shastri National Academy of Administration [LBSNAA]) और राज्य प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान भर्ती कर्ताओं के लिए उचित समायोजन तथा उन्नतिशील गतिशीलता पर आधारित मॉड्यूल शामिल कर सकते हैं।
  • स्वतंत्र निरीक्षण तंत्र: दिव्यांगजनों के रोजगार और गतिशीलता की निगरानी के लिए एक केंद्रीय निकाय का गठन।
    • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत एक दिव्यांगजन लोकपाल, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग की तरह कार्य कर सकता है, जिससे शिकायत निवारण और अनुपालन सुनिश्चित हो सके।

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय ने फिर से कहा कि आरक्षण एक सीढ़ी है, पिंजरा नहीं। दिव्यांगजन कार्यबल का केवल 1% हिस्सा हैं, जबकि अनिवार्य स्तर 4% है, इसलिए औपचारिक समानता को वास्तविक सशक्तीकरण में बदलने के लिए दिव्यांगों का समर्थन सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है।

  • “किसी समाज का उचित मापदंड यह है कि वह अपने सबसे कमजोर सदस्यों के साथ कैसा व्यवहार करता है” – यह निर्णय दिव्यांगजनों के लिए समानता, सम्मान और न्याय के भारत के संवैधानिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।

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