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अनुच्छेद 370 हटाने पर उच्चतम न्यायालय का फैसला (Supreme Court’s decision on removal of Article 370)

Samsul Ansari December 16, 2023 10:51 178 0

राजनीति  

संदर्भ 

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और तत्कालीन राज्य जम्मू एवं कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना निर्णय दिया है।

Supreme Decision

संबंधित तथ्य 

  • अनुच्छेद-370 का निलंबन: उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 370 को निलंबित करने के सरकार के निर्णय को बरकरार रखा और नवनिर्मित केंद्र शासित प्रदेश ‘ जम्मू एवं कश्मीर’ में 30 सितंबर, 2024 तक विधानसभा चुनाव कराने का आदेश दिया। 
    • न्यायालय ने लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुनर्गठित करने के निर्णय का समर्थन किया।
  • राष्ट्रपति के आदेश की वैधता: न्यायालय ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए संविधान आदेश (Constitution Order-CO) संविधान ( जम्मू एवं कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019 की वैधता को भी माना।

अनुच्छेद 370 के बारे में

  • संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को भारतीय संघ में विशेष दर्जा प्रदान करता था।
  • इसने राज्य के संबंध में केंद्र की विधायी शक्तियों को प्रतिबंधित कर दिया और राज्य विधायिका को वित्त, रक्षा, विदेशी मामलों और संचार को छोड़कर अन्य सभी मामलों में अपने कानून बनाने का अधिकार दिया।

अनुच्छेद 35A

  • राष्ट्रपति आदेश: इसे क्षेत्रीय नियमों के पुराने प्रावधानों को जारी रखने के लिए वर्ष 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से पेश किया गया था।
  • राज्य का स्थायी निवासी: इसने जम्मू एवं कश्मीर राज्य विधानमंडल को राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करने का अधिकार दिया।
  • बाहरी लोगों पर प्रतिबंध: इसने बाहरी लोगों को स्थायी रूप से बसने, भूमि खरीदने, स्थानीय सरकारी नौकरियाँ प्राप्त करने या शिक्षा छात्रवृत्ति पाने से रोक दिया।

अनुच्छेद 370 का कालक्रम

  • 26 अक्टूबर, 1947: महाराजा हरि सिंह ने भारतीय डोमिनियन (Dominion of India) में विलय के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए।
  • 26 जनवरी, 1950: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 यह तय करता था कि भारत, विलय समझौते (Instrument of Accession) में निर्धारित क्षेत्रों के बाहर जम्मू एवं  कश्मीर सरकार  की सहमति के बगैर कोई कानून नहीं बनाएगा।
  • 26 जनवरी, 1950: भारत के राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 370 के तहत संविधान ( जम्मू एवं कश्मीर पर लागू) आदेश, 1950 जारी किया।
    • विलय पत्र में यह सहमति व्यक्त की गई थी कि संघीय सरकार राज्य के बाहरी मामलों, संचार और रक्षा का प्रबंधन करेगी।
  • 31 अक्टूबर, 1951: जम्मू एवं कश्मीर की संविधान सभा का गठन किया गया।
  • दिल्ली समझौता, 1952: : इसने जम्मू एवं कश्मीर सरकार को अवशिष्ट शक्तियाँ निहित कर दीं। 
  • 14 मई, 1954: वर्ष 1952 के दिल्ली समझौते में सहमत शर्तों को लागू करने के लिए राष्ट्रपति का आदेश जारी किया गया।
  • 17 नवंबर, 1956: जम्मू एवं कश्मीर का संविधान लागू हुआ।
  • प्रेम नाथ कौल बनाम भारत संघ, 1959: उच्चतम न्यायालय ने माना कि सभी राष्ट्रपति आदेश संविधान सभा की मंजूरी के अधीन हैं।
  • पूरनलाल लखनपाल बनाम भारत के राष्ट्रपति, 1962: उच्चतम न्यायालय ने माना कि राष्ट्रपति के पास जम्मू एवं कश्मीर में संवैधानिक प्रावधानों में संशोधन करने की व्यापक शक्तियाँ हैं।
  • संपत प्रकाश बनाम जम्मू एवं कश्मीर राज्य, 1968: उच्चतम न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 370 संविधान की एक स्थायी विशेषता है।
  • मकबूल दमनू बनाम जम्मू एवं कश्मीर राज्य, 1972: राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 367 को संशोधित करने का आदेश जारी किया।
  • भारतीय स्टेट बैंक बनाम संतोष गुप्ता, 2016: उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि अनुच्छेद 370  का प्रभाव केवल संविधान सभा की सिफारिश के बाद ही समाप्त होगा।
  • 20 जून, 2018: जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन।
  • 19 दिसंबर, 2018: जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाया गया। 
  • 5 अगस्त, 2019: राष्ट्रपति ने ‘संविधान सभा’ के अर्थ में संशोधन करने के लिए एक आदेश जारी किया।
  • 6 अगस्त, 2019: अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया। 
  • 9 अगस्त, 2019: जम्मू एवं कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया।

  • लैंगिक भेदभाव: इसके अनुसार, यदि जम्मू एवं कश्मीर की महिला निवासियों ने पूर्ववर्ती राज्य के बाहर के व्यक्ति से विवाह किया हो तो उन्हें राज्य में उनकी पैतृक संपत्ति के अधिकार से वंचित कर दिया जाता था।

अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण

  • राष्ट्रपति के आदेशों का पारित होना: दो तरह के राष्ट्रपति आदेश ‘संविधान (जम्मू एवं कश्मीर के लिए आवेदन) आदेश’- 272 और 273 क्रमशः 5 एवं 6 अगस्त, 2019 को पारित किए गए थे।
    • अनुच्छेद 370(3) ने राष्ट्रपति को यह घोषित करने की शक्ति दी कि अनुच्छेद 370 लागू नहीं रहेगा। इस प्रावधान के तहत, राष्ट्रपति के लिए ऐसी घोषणा जारी करने के लिए जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक थी। हालाँकि, राज्य की संविधान सभा वर्ष 1957 में भंग कर दी गई थी।
    • संविधान (जम्मू एवं कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019- 272: इसे अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से पहले प्रथम कदम के रूप में पारित किया गया था।
    • इसने संविधान (जम्मू-कश्मीर पर लागू) आदेश, 1954 को हटा दिया और घोषणा की कि भारत के संविधान के सभी प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू होंगे।
    • अनुच्छेद 367 में संशोधन: संविधान (जम्मू-कश्मीर पर लागू) आदेश- 272 ने संविधान के अनुच्छेद 367 में संशोधन किया और अनुच्छेद 367 में एक खंड जोड़ा, जिसमें कहा गया कि अनुच्छेद 370 के खंड (2) में संदर्भित अभिव्यक्ति ‘राज्य की संविधान सभा’ को ‘राज्य की विधान सभा’ के रूप में पढ़ा जाना चाहिए।
    • चूँकि, जम्मू-कश्मीर के विघटन के कारण वहाँ कोई विधानसभा नहीं थी और राज्य राष्ट्रपति शासन के अधीन था, इसलिए संसद की सिफारिश को विधानसभा की सिफारिश के बराबर माना जाता था।
    • सरकार को पुनर्परिभाषित करना: CO 272 ने अनुच्छेद 367 में अतिरिक्त खंड पेश किए, जिसमें कहा गया कि ‘जम्मू-कश्मीर सरकार’ के संदर्भ को ‘जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल’ के रूप में माना जा सकता है।
    • इसके बाद, संसद ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की सिफारिश करते हुए एक वैधानिक प्रस्ताव पारित किया।
  • संविधान (जम्मू एवं कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019/CO 273 आदेश: राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 370 (3) के तहत CO 273 जारी किया, जिसके अनुसार, अनुच्छेद 370 के सभी खंड 6 अगस्त 2019 से लागू नहीं होंगे। इस प्रकार जम्मू एवं कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द कर दिया जाएगा।

निरसन का प्रभाव

  • जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान की प्रयोज्यता: इनके तहत, भारत का पूरा संविधान जम्मू-कश्मीर पर लागू किया गया और अनुच्छेद 370 के सभी प्रावधानों को अमान्य घोषित कर दिया गया।
  • विशेष दर्जे की समाप्ति: इसके निरसन ने पूर्ववर्ती राज्य जम्मू एवं कश्मीर को प्रदत्त विशेष दर्जा समाप्त कर दिया। केंद्र ने जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों -जम्मू & कश्मीर और लद्दाख में पुनर्गठित किया।

संविधान सभा और विधान सभा के बीच अंतर

  • संविधान सभा को संविधायी शक्ति का प्रयोग करते हुए संविधान के निर्माण करने का कार्य सौंपा गया था।
  • संविधान में संशोधन का अधिकार संविधायी शक्ति से लिया गया था। चूँकि, विधान सभा के पास यह शक्ति नहीं है,  इसलिए इसे संविधान सभा के समकक्ष नहीं माना जा सकता है।

अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के विरुद्ध तर्क

  • स्थायी घटक: अनुच्छेद 370 एक “अस्थायी प्रावधान” नहीं था और जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के विघटन के बाद इसने स्थायित्व ग्रहण कर लिया था। 
  • अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का अधिकार: यह तर्क दिया गया कि संविधान सभा के विघटन के बाद इस खंड को निरस्त नहीं किया जा सकता है।
    •  तर्क दिया कि संविधान का अनुच्छेद 354 संसद को जम्मू-कश्मीर की विधायिका के रूप में कार्य करने से रोकता है, इस प्रकार, उसके पास अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की कोई शक्ति नहीं है।
    • अनुच्छेद 356 के तहत शक्ति का उपयोग अपरिवर्तनीय संवैधानिक परिवर्तन लाने के लिए नहीं किया जा सकता है।
  •  अनुच्छेद 370(1)(d) के तहत राष्ट्रपति की शक्तियाँ: इस अनुच्छेद के तहत राष्ट्रपति की शक्ति एक “संविधायी शक्ति” नहीं थी, बल्कि केवल “संशोधनों और अपवादों” के साथ प्रावधानों को लागू करने की शक्ति थी।
  • इस प्रकार, अनुच्छेद 370 को केवल तभी निरस्त किया जा सकता था जब इसका प्रस्ताव राज्य की संविधान सभा से आया हो।
  • राज्य का द्विभाजन: याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों – जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करना संविधान के अनुच्छेद 3 का उल्लंघन है।
    • अनुच्छेद 3 भारतीय संघ के संघीय स्वरूप को कम करने की सीमा को निर्धारित करता है।
  • जम्मू-कश्मीर के संविधान की प्रयोज्यता: यह तर्क दिया कि केंद्र की कार्रवाई ने जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 147 का उल्लंघन किया है।

भारत के संविधान का अनुच्छेद 1: यह प्रावधान करता है कि भारत राज्यों का एक संघ है।

  • अनुच्छेद 1 में ‘भाग III राज्यों’ का संदर्भ दिया गया है, और जम्मू एवं कश्मीर को भारत के संविधान की पहली अनुसूची में भाग III राज्य (2019 से पहले) के रूप में सूचीबद्ध किया गया था।

 जम्मू एवं कश्मीर के संविधान की धारा 3: यह घोषित करती है कि जम्मू एवं कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है

  •  जम्मू-कश्मीर संविधान की धारा 147: यह धारा 3 में किसी भी संशोधन पर रोक लगाती है।

  • अनुच्छेद 147 के अनुसार, जम्मू-कश्मीर संविधान के अनुच्छेद 3 और 5 में सीमित संशोधन किए जा सकते हैं। जम्मू-कश्मीर और भारत के संविधान एक-दूसरे के समानांतर और स्वतंत्र थे और सत्ता के कार्यकारी प्रयोग को संवैधानिक प्राधिकार पर प्राथमिकता नहीं दी जा सकती। 

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय

  •  जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता पर
    • अदालत ने फैसला सुनाया कि वर्ष 1947 में भारत में विलय के बाद जम्मू-कश्मीर की कोई संप्रभुता बरकरार नहीं रही।
    • पूर्ववर्ती शासक की घोषणा के बावजूद, बाद की घोषणाओं में अन्य रियासतों के समान एकीकरण की पुष्टि की गई।
  • अनुच्छेद 370 की स्थिति अस्थायी या स्थायी: उच्चतम न्यायालय ने ऐतिहासिक संदर्भ और संविधान के भाग XXI में इसके स्थान के आधार पर अनुच्छेद 370 को एक अस्थायी, संक्रमणकालीन प्रावधान के रूप में माना है।
    • यह प्रावधान राज्य में विशेष परिस्थितियों के कारण अपनाया गया था, जब राज्य युद्ध की स्थिति का सामना कर रहा था
  • अनुच्छेद 370 की अस्थायी प्रकृति: न्यायालय ने ऐतिहासिक संदर्भ और संविधान के भाग XXI में इसके स्थान के आधार पर अनुच्छेद 370 को एक अस्थायी, संक्रमणकालीन प्रावधान के रूप में माना।
  • अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की वैधता: SC ने अगस्त 2019 की राष्ट्रपति की दोनों उद्घोषणाओं को बरकरार रखा।
  • राष्ट्रपति शासन के तहत की गई कार्रवाइयों की वैधता:                
  • एस. आर. बोम्मई बनाम भारत संघ में फैसला: उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 1994 के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें राष्ट्रपति शासन घोषित करने के मापदंडों की घोषणा की गई थी।
    • एस.आर. बोम्मई केस (1994) ने अनुच्छेद 356 के तहत किसी राज्य को भंग करने की राष्ट्रपति की शक्ति निर्धारित की।

उच्चतम न्यायालय के निर्णय की आलोचना

  • संघवाद के लिए खतरा: इस निर्णय से राज्यों के मुकाबले केंद्र सरकार की शक्तियाँ बढ़ती प्रतीत होती हैं, जो पश्चिम बंगाल से लेकर तमिलनाडु तक के राज्यों में नियुक्त राज्यपालों और निर्वाचित अधिकारियों के बीच चल रहे टकराव के बीच राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा दे सकता है। 
  • संसदीय संप्रभुता की चिंताएँ: इस उदाहरण का पालन करते हुए संघ  किसी राज्य में पहले राष्ट्रपति शासन लगाकर उसके विभाजन जैसे कदम के लिए विधानसभा के स्थान पर संसदीय अनुमोदन ले सकता है।

निष्कर्ष

  • भले ही उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण को बरकरार रखा, लेकिन जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल करने और शीघ्र विधानसभा चुनाव कराने के निर्देश लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था के सर्वोच्चता को स्वीकार करते हैं।

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