हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने शुद्ध उधार सीमा पर केंद्र के विरुद्ध मामले में केरल सरकार को राहत प्रदान करने से इनकार कर दिया।
संबंधित तथ्य
क्या है मामला?
केंद्र सरकार ने 13 मार्च को कहा था कि वह केरल में तत्काल वित्तीय संकट को रोकने के लिए एकमुश्त उपाय के रूप में केवल ₹5,000 करोड़ रूपए ही दे सकती है, जिसके बाद केंद्र और केरल के बीच कानूनी संघर्ष उत्पन्न हो गया।
केरल राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने खंडपीठ को बताया कि केंद्र सरकार द्वारा दी गई राशि पेंशन और वेतन सहित केरल की बुनियादी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूर्ण करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी।
सर्वोच्च न्यायालय का मत
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य को केंद्र से पर्याप्त राहत मिली है और यह सुविधा संतुलन केंद्र पर निर्भर है।
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, यह एक अंतरिम मामला है।
हालाँकि, न्यायालय ने अपने वित्त उधार लेने और विनियमित करने की राज्य की शक्तियों में हस्तक्षेप के संबंध में केंद्र के विरुद्ध राज्य द्वारा दायर याचिका को संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया।
संवैधानिक पीठ द्वारा विचार किए जाने हेतु प्रेषित तथ्य
न्यायालय ने इस मामले को न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ द्वारा विचार किए जाने के लिए स्थानांतरित किया है।
ये प्रश्न संविधान के अनुच्छेद-145 के अंतर्गत आते हैं और इस प्रकार मामला पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ के समक्ष रखा जाएगा।
सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ
परिचय
संवैधानिक पीठ सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ होती है, जिसमें पाँच या उससे अधिक न्यायाधीश शामिल होते हैं।
हालाँकि इन पीठों का गठन नियमित तौर पर नहीं होता है।
सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अधिकांश मामलों की सुनवाई और निर्णय दो न्यायाधीशों (जिन्हें डिवीजन बेंच कहा जाता है) और कभी-कभी तीन सदस्यों की पीठ द्वारा किया जाता है।
संवैधानिक पीठ गठन हेतु अपरिहार्य परिस्थितियाँ
अनुच्छेद-145(3):
अनुच्छेद-145(3) में प्रावधान है कि “इस संविधान की व्याख्या के रूप में अनुच्छेद-143 के तहत किसी संदर्भ की सुनवाई के उद्देश्य से कानून के एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न से जुड़े किसी भी मामले के निर्णयन के उद्देश्य से शामिल होने वाले न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या पाँच होगी।
न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद-293 का उल्लेख किया, जो राज्यों द्वारा उधार लेने से संबंधित है और कहा कि यह प्रावधान अब तक शीर्ष न्यायालय द्वारा किसी भी आधिकारिक व्याख्या के अधीन नहीं था।
न्यायालय ने कहा कि पाँच न्यायाधीशों की पीठ को विशेष रूप से अनुच्छेद-293 के खंड (3) पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और उसकी व्याख्या करनी चाहिए, जिसमें कहा गया है कि “यदि किसी ऋण का कोई हिस्सा अभी भी बकाया है तो राज्य, भारत सरकार की सहमति के बिना कोई ऋण नहीं ले सकता है।”
संविधान के तहत ऋण हेतु प्रावधान
केंद्र और राज्यों द्वारा ऋण लेना: भारत के संविधान के भाग-XII में अध्याय दो ऋण से संबंधित है। अनुच्छेद-292 में केंद्र सरकार और अनुच्छेद-293 में राज्यों द्वारा ऋण लिए जाने संबंधी प्रावधान हैं।
राज्य विधानसभाओं को सशक्त बनाना:अनुच्छेद-293 (1) राज्य विधानमंडलों को राज्य की कार्यकारी शक्तियों को ऋण लेने और गारंटी देने में सक्षम बनाने या उनकी शक्ति को सीमित करने के लिए कानूनी अधिकार प्रदान करता है।
केंद्र की सहमति: अनुच्छेद-293 की धारा (3) और (4) के तहत ऐसे मामलों में जहाँ राज्य सरकारों द्वारा केंद्र से लिए गए ऋण बकाया का भुगतान किया जाना हो, उस स्थिति में नए ऋण प्राप्त करने हेतु केंद्र की सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है और ऐसी सहमति शर्तों के अधीन दी जा सकती है।
केरल सरकार का पक्ष
केरल सरकार ने कहा कि संविधान ने राज्यों को विभिन्न अनुच्छेदों के तहत अपने वित्त को विनियमित करने के लिए राजकोषीय स्वायत्तता दी है और उधार सीमा या ऐसे उधार की सीमा राज्य कानून द्वारा निर्धारित की गई थी।
केंद्र सरकार से संबंधित मुद्दा
न्यायालय ने कहा कि उसके हस्तक्षेप के बाद केंद्र 13,608 करोड़ रुपये जारी करने पर सहमत हुआ था।
यदि केरल अपना मुकदमा वापस ले लेता है तो केंद्र शुरू में 13,608 करोड़ रुपये की अतिरिक्त उधारी की अनुमति देने पर सहमत हुआ था।
न्यायाधीशों ने इस पर आपत्ति जताई और कहा कि केंद्र सरकार संविधान के अनुच्छेद- 131 के अंतर्गत ‘बेलआउट’ की शर्त के रूप में लंबित मुकदमे को वापस लेने पर जोर नहीं दे सकता है।
अनुच्छेद-131 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के पास राज्यों के बीच या किसी राज्य और संघ के मध्य कानूनी मुद्दों पर विशेष और मूल क्षेत्राधिकार है।
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