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भारत में भाषायी धर्मनिरपेक्षता पर सर्वोच्च न्यायालय का रुख

Lokesh Pal March 18, 2025 03:05 47 0

संदर्भ

हाल ही में भारत में भाषायी नीतियों, विशेष रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के संदर्भ में, पर बहस तेज हो गई है।

  • तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने तमिल जैसी क्षेत्रीय भाषाओं के बजाय कथित तौर पर हिंदी थोपने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की है।

भाषायी धर्मनिरपेक्षता का अर्थ

  • भाषायी धर्मनिरपेक्षता का तात्पर्य लोगों के एक समूह पर किसी विशेष भाषा को थोपे बिना सभी भाषाओं के साथ समान व्यवहार एवं समायोजन से है।
  • भाषायी धर्मनिरपेक्षता इस विचार को कायम रखती है कि:
    • किसी भी भाषा को दूसरों पर प्रभावी नहीं होने दिया जाना चाहिए, ताकि निष्पक्ष और समावेशी भाषायी माहौल सुनिश्चित हो सके।
    • नागरिकों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित और बढ़ावा देने का अधिकार है, जिसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद-29(1) के तहत मान्यता प्राप्त है।
    • राज्य को व्यक्तियों या संस्थाओं पर कोई भाषा नहीं थोपनी चाहिए, बल्कि ऐसा माहौल बनाना चाहिए, जहाँ कई भाषाएँ सौहार्दपूर्ण ढंग से सह-अस्तित्व में रह सकें।
    • यह संघवाद एवं भाषायी विविधता को बढ़ावा देता है, राष्ट्रीय एकता सुनिश्चित करते हुए भारत के बहुभाषी चरित्र का सम्मान करता है।
  • उत्तर प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2014) में सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत के भाषा कानून लचीले एवं समायोजनशील हैं, जिनका उद्देश्य भाषायी एकरूपता लागू करने के बजाय भाषायी धर्मनिरपेक्षता को सुरक्षित करना है।

भाषा नीति का ऐतिहासिक संदर्भ

  • संविधान सभा की बहस (1949): के. एम. मुंशी-अयंगर फार्मूले के कारण संविधान में अनुच्छेद-343 को शामिल किया गया, जिसके अनुसार देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा घोषित किया गया, लेकिन राष्ट्रीय भाषा नहीं।
  • एच.एम. सीरवाई की टिप्पणी: संविधान विशेषज्ञ एच.एम. सीरवाई ने कहा कि हिंदी सबसे बड़े समूह द्वारा बोली जाती है, लेकिन यह सभी क्षेत्रों में नहीं बोली जाती।
    • बंगाली, तमिल, मराठी और गुजराती जैसी अन्य भाषाओं का भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव था और वे कुछ मामलों में हिंदी से अधिक विकसित थीं।
  • न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर की टिप्पणी: पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर ने हिंदी को जबरन थोपे जाने का विरोध करते हुए कहा कि भाषायी उग्रवाद देश को विभाजित करेगा, जबकि संघीय बहुलवाद लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखेगा।

भाषा पर संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 351-हिंदी का प्रचार: अनुच्छेद 351 के तहत केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि वह राष्ट्रीय एकीकरण के लिए हिंदी को बढ़ावा दे। हालाँकि, न्यायालयों ने स्पष्ट किया है कि इसका आशय यह नहीं है कि अनिच्छुक नागरिकों पर हिंदी थोपी जानी चाहिए।
  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय (1982): सुनील के.आर. सहस्त्रबुद्धे बनाम निदेशक, आईआईटी कानपुर के मामले में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि किसी भी नागरिक को किसी संस्थान को हिंदी में शिक्षा देने के लिए बाध्य करने का अधिकार नहीं है।
  • अनुच्छेद 29(1)-भाषायी अधिकारों का संरक्षण: यह अनुच्छेद सुनिश्चित करता है कि समाज के सभी वर्गों, चाहे वे बहुसंख्यक हों या अल्पसंख्यक, को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित करने का मौलिक अधिकार है।

शिक्षण के माध्यम पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

  • कर्नाटक राज्य बनाम प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों के संबद्ध प्रबंधन मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि:-
    • छात्रों को अनुच्छेद-19 (भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) के तहत अपनी शिक्षा का माध्यम चुनने का अधिकार है।
    • राज्य प्राथमिक स्तर पर शिक्षा के माध्यम के रूप में किसी विशेष भाषा को लागू नहीं कर सकता है।
  • यह निर्णय पियर्स बनाम सोसायटी ऑफ सिस्टर्स ऑफ होली नेम्स (1924) में अमेरिकी शीर्ष न्यायालय के निर्णय से प्रभावित था, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि बच्चा के अधिकार सिर्फ राज्य की जिम्मेदारी नहीं हैं, माता-पिता एवं अभिभावकों को उनकी शिक्षा तय करने का अधिकार है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 में भाषायी नीति

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) का उद्देश्य बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देना है, मातृभाषा आधारित शिक्षा पर जोर देना और भाषा के चयन में लचीलापन प्रदान करना है।
  • स्कूलों में शिक्षण का माध्यम
    • NEP 2020 में सिफारिश की गई है कि जहाँ तक संभव हो, कक्षा 5 तक (अधिमानतः कक्षा 8 तक एवं उसके बाद भी) शिक्षा का माध्यम मातृभाषा, घरेलू भाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा होनी चाहिए।
    • कक्षा 8 के बाद भी, जहाँ तक संभव हो, घरेलू या स्थानीय भाषा को एक विषय के रूप में पढ़ाया जाना जारी रखना चाहिए।
  • बहुभाषी शिक्षण दृष्टिकोण
    • नीति आधारभूत स्तर से ही द्विभाषिकता (मातृभाषा + अंग्रेजी) को प्रोत्साहित करती है।
    • दो से आठ वर्ष की आयु के बीच छोटे बच्चे जल्दी से भाषा सीख लेते हैं, और बहुभाषिकता संज्ञानात्मक क्षमताओं को बढ़ाती है।

त्रि-भाषा फार्मूला क्या है?

  • त्रि-भाषा फॉर्मूला एक शिक्षा नीति है, जिसे छात्रों को कई भाषाएँ सीखने के लिए प्रोत्साहित करके बहुभाषावाद और राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • इसे पहली बार वर्ष 1968 में पेश किया गया था और पिछले कुछ वर्षों में इसमें संशोधन किया गया है, हाल ही में NEP 2020 में इसे संशोधित किया गया है।
  • वर्ष 1968 की शिक्षा नीति में अनिवार्य किया गया था:
    • हिंदी भाषी राज्य: हिंदी, अंग्रेजी और एक आधुनिक भारतीय भाषा (अधिमानतः दक्षिण भारत से)।
    • गैर-हिंदी भाषी राज्य: हिंदी, अंग्रेजी और एक क्षेत्रीय भाषा।
  • NEP 2020 अधिक लचीलापन प्रदान करती है:
    • राज्य कोई भी तीन भाषाएँ चुन सकते हैं, ताकि कोई भी भाषा थोपी न जाए।
    • नीति संस्कृत को बढ़ावा देती है, इसे विकल्प के रूप में शामिल करने को प्रोत्साहित करती है।
    • तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, ओडिया, पाली, फारसी और प्राकृत जैसी अन्य शास्त्रीय भाषाएँ विकल्प के रूप में उपलब्ध होनी चाहिए।

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय ने भाषायी धर्मनिरपेक्षता के विचार को बार-बार बरकरार रखा है, तथा इस बात पर जोर दिया है कि किसी भी वर्ग पर कोई भी भाषा थोपी नहीं जानी चाहिए। जबकि हिंदी को बढ़ावा देने के लिए संवैधानिक आदेश है, क्षेत्रीय भाषाओं को समान संरक्षण प्राप्त है। शिक्षा की भाषा चुनने की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है, जो भारत के बहुलवादी और लोकतांत्रिक लोकाचार को मजबूत करता है।

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