‘सुरंगम’ प्रणाली प्राचीन समय की जल संचयन प्रणाली है, जो अफगानिस्तान की ‘करेज’ प्रणाली से समानता रखती है।
सुरंगम प्रणाली
‘सुरंगम’ एक पारंपरिक जल संचयन प्रणाली है, जो मुख्य रूप से उत्तरी केरल और दक्षिणी कर्नाटक में पाई जाती है।
इसे ‘सुरंगा’ के नाम से भी जाना जाता है।
इसमें लैटेराइट (Laterite) पहाड़ियों के बीच से खोदी गई एक सुरंग शामिल है, जिससे जल और नमी परिधि से बाहर निकल जाती है।
मेसोपोटामिया की ‘कनातो’ और फारस की करेज प्रणालियों की अवधारणा के समान, सुरंगम को भारत में स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप ढाला गया।
स्थानीय उपयोग: इसका उपयोग उत्तरी मालाबार में घरेलू और कृषि उद्देश्यों के लिए किया जाता है।
‘लैटेराइट’ एक अवसादी चट्टान है, जो वायु और सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने पर कठोर हो जाती है, जिससे यह सुरंगम निर्माण के लिए उपयुक्त हो जाती है।
उत्पत्ति और ऐतिहासिकता
प्रारंभिक सिद्धांतों ने सुरंगम को फारसी ‘करेज’ प्रणालियों से जोड़ा था, लेकिन नए अध्ययनों में स्वदेशी उत्पत्ति का तर्क दिया गया है:
वर्ष 2015 के एक शोध-पत्र में प्रस्तावित किया गया था कि यह प्रणाली संभवतः ‘करहाड़ा’ ब्राह्मण परिवारों द्वारा विकसित की गई थी, जो 17वीं शताब्दी में कासरगोड चले गए थे।
उन्होंने संभवतः लैटेराइट पहाड़ियों में झरनों के दोहन के लिए इस प्रौद्योगिकी को अपनाया होगा तथा जल स्रोत कम होने पर अधिक गहराई तक खुदाई की होगी।
स्थानीय संदर्भ
बुरहानपुर (मध्य प्रदेश), बीजापुर और बीदर (कर्नाटक) की करेज प्रणालियों में फारसी प्रभाव स्पष्ट है, लेकिन इन प्रणालियों से सुरंगम को जोड़ने का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक प्रभाव
दक्कन सल्तनत और मैसूर से संबंध
इस प्रणाली का ज्ञान हस्तांतरण, मुगल और मराठा शासन के दौरान या मैसूर के वोडेयार साम्राज्य के कार्यकाल में हुआ हो सकता है।
टीपू सुल्तान के शासनकाल में मंगलुरु बंदरगाह व्यापार या प्रवास के माध्यम से ज्ञान के आदान-प्रदान की सुविधा हो सकती है।
सांस्कृतिक विरासत
‘करहाड़ा’ ब्राह्मण समुदाय सुरंगम को अपनी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानता है और इसके संरक्षण में सहायता करता है।
करेज प्रणाली के साथ तुलना
समानताएँ: दोनों प्रणालियाँ शुष्क क्षेत्रों में उपयोग की जाने वाली भूमिगत जल चैनल प्रणाली हैं।
असमानताएँ: करेज प्रणाली लंबी सुरंगें होती हैं, जिनमें छिद्र होते हैं, जो फारस जैसे जल-विरल क्षेत्रों में बनाई जाती हैं।
सुरंगम छोटी होती हैं (300 मीटर तक), जिनमें बहुत कम या कोई छिद्र नहीं होता, इन्हें लैटेराइट पहाड़ियों में जल पहुँचाने के लिए डिजाइन किया गया है।
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