9 जून को शपथ ग्रहण समारोह में नरेंद्र मोदी ने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।
शपथ ग्रहण समारोह के बारे में
इसे शपथ ग्रहण समारोह भी कहा जाता है, यह पदभार ग्रहण करने का एक औपचारिक समारोह है, जहाँ पदभार ग्रहण करने वाला व्यक्ति संविधान के प्रति वफादार रहने और अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन करने की शपथ लेता है।
यह समारोह भारत की राजनीतिक सत्ता संरचना का गठन करने वाली रूपरेखा को रेखांकित करता है तथा भारतीय राजनीति में संविधान की सर्वोच्चता की पुष्टि करता है।
शपथ दिलाना: शपथ सरकार के विभिन्न स्तरों पर भिन्न-भिन्न लोगों द्वारा दिलाई जाती है।
राज्यपाल, राज्य स्तर पर मुख्यमंत्रियों एवं राज्य के विधानमंडल के मंत्रियों को शपथ दिलाते हैं।
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों को शपथ दिलाते हैं।
शपथ का संवैधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान की तीसरी अनुसूची: इस अनुसूची में अनुच्छेद-75(4), 99, 124(6), 148(2), 164(3), 188 और 219] शामिल हैं, जिनमें भारत सरकार के तहत विभिन्न कार्यालयों के प्रभारियों द्वारा ली जाने वाली शपथ का पाठ शामिल है।
भारत के केंद्रीय मंत्री, संसदीय चुनाव के उम्मीदवार, संसद सदस्य (MP), सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, राज्य मंत्री, राज्य विधानमंडल चुनाव के उम्मीदवार, राज्य विधानमंडल के सदस्य, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश
शपथ लेने वाले व्यक्ति को या तो ‘ईश्वर के नाम पर शपथ लेनी होगी’ या ‘सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान’ कि वह ‘संविधान के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखेगा।’
भाग V में अनुच्छेद-60
राष्ट्रपति के पद की शपथ: भारत के राष्ट्रपति के पद का निष्ठापूर्वक पालन करना तथा संविधान और कानून का परिरक्षण, सुरक्षा तथा प्रतिरक्षण करना।
शपथों में भिन्नता
अनुच्छेद-164: शपथ का पाठ किसी भी विवेकाधिकार का समर्थन नहीं करता है और इसे बिल्कुल वैसे ही पढ़ा जाना चाहिए जैसा वह है।
अनुच्छेद-164 की धारा 3: किसी मंत्री के अपना पद ग्रहण करने के पूर्व राज्यपाल उसे तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए निर्धारित प्ररूपों के अनुसार पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाएगा।
शपथ को दोबारा दोहराना: यदि कोई व्यक्ति किसी शब्द का गलत उच्चारण करता है या पाठ से भटक जाता है, तो इसे ठीक करने की जिम्मेदारी शपथ दिलाने वाले की होती है।
उदाहरण: राजद नेता को गोपनीयता की शपथ लेते समय एक शब्द का गलत उच्चारण करने के लिए बिहार के राज्यपाल द्वारा सही किया गया था और इस प्रकार उन्हें बिहार में वर्ष 2015 विधानसभा चुनाव के बाद दोबारा शपथ लेने के लिए कहा गया था।
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