स्वेल तरंग (Swell Waves) ने केरल के तटीय क्षेत्रों में काफी नुकसान पहुँचाया है, जिसके कारण वहाँ रहने वाले तटीय समुदायों को नुकसान उठाना पड़ा है।
संबंधित तथ्य
तटीय समुदायों पर प्रभाव: समुद्री जलस्तर बढ़ने के कारण समुद्री तटों पर कुछ तालाब का निर्माण हो गया है, फलस्वरूप मछुआरों ने शिकायत की है कि जल जमाव से मछली पकड़ने वाले उपकरणों को नुकसान हुआ है।
तिरुवनंतपुरम, कोल्लम, अलाप्पुझा और त्रिशूर जैसे क्षेत्रों में यह स्थिति अधिक गंभीर है।
कोल्लम तट के कई हिस्सों को विनाशकारी ज्वारीय तरंगों का सामना करना पड़ा है, जिसके परिणामस्वरूप तटीय मकानों को काफी नुकसान पहुँचा है तथा कई स्थानीय निवासियों का जीवन प्रभावित हुआ है।
हाई वेव (High Wave) की चेतावनी: भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) ने हाई वेव के खतरे की सूचना जारी कर स्थानीय लोगों को समुद्र तट पर न जाने की चेतावनी दी है।
भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (Indian National Centre for Ocean Information Services- INCOIS)
स्थापना: इसकी स्थापना वर्ष 1999 में एक स्वायत्त निकाय के रूप में की गई थी।
नोडल मंत्रालय: पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences- MoES)
यह संस्था पृथ्वी प्रणाली विज्ञान संगठन (Earth System Science Organisation- ESSO) की एक इकाई है।
अधिदेश: समाज, उद्योग क्षेत्र, सरकार और वैज्ञानिक समुदाय को समुद्री डेटा, सूचना और सलाह संबंधी सेवाएँ प्रदान करना।
स्वेल तरंग (Swell Waves)
परिचय: समुद्र की सतह पर लंबी तरंगदैर्ध्य वाली तरंगों का निर्माण होता है, जिन्हें स्वेल तरंग कहा जाता है। उसका बहाव समुद्री जल और वायु के बीच उपस्थित क्षेत्र से होता है। इसलिए इन्हें प्रायः सतही गुरुत्वाकर्षण तरंगों (Surface Gravity Waves) के रूप में जाना जाता है।
उत्पत्ति: ये तरंगे स्थानीय पवनों से उत्पन्न नहीं होती हैं, बल्कि समुद्र में दूर स्थित मौसम प्रणालियों द्वारा उत्पन्न होती हैं, जहाँ पवन का बहाव समुद्री जल के ऊपर कुछ समय के लिए होता है।
पवन के रुकने, स्थानांतरित होने या तरंगों का पवन के स्रोत से दूर चले जाने के बावजूद भी स्वेल तरंगें अपनी दिशा में गतिमान रहती हैं।
प्रभावित करने वाले कारक: इन तरंगों को प्रभावित करने वाले कई कारक हैं जैसे- पवन की गति, एक ही दिशा में बहने वाली पवन से प्रभावित समुद्र के सतही क्षेत्र और समुद्र के एक निश्चित क्षेत्र में उन पवनों के बहाव का समय।
स्वेल तरंगों की विशेषताएँ
आवृत्तियों की कम सीमा: स्थानीय रूप से उत्पन्न पवन तरंगों की तुलना में स्वेल तरंगों की आवृत्तियों और दिशाओं की सीमा सीमित होती है।
स्वेल तरंगों के बहाव का आकार और दिशा निश्चित होती है, जबकि स्थानीय रूप से उत्पन्न पवन तरंगों के बहाव की दिशा तुलनात्मक रूप से ज्यादा यादृच्छिक/ अनिश्चित होती है।
बहाव की दिशा के संदर्भ में: इन तरंगों की विशेषता के रूप में उस दिशा को चिह्नित किया जाता है, जहाँ वे उत्पन्न होती हैं।
तरंग दैर्ध्य: स्वेल तरंगों की तरंगदैर्ध्य लंबी होती है, किंतु इसकी लंबाई जल निकाय के आकार के साथ परिवर्तित हो सकती है। बावजूद इसके, सामान्य स्थिति में इन तरंगों की तरंगदैर्ध्य 150 मीटर से अधिक नहीं होती हैं।
स्वेल तरंगों की तरंगदैर्ध्य में भी घटना के अनुसार परिवर्तन हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, कभी-कभी सबसे भीषण तूफानों के दौरान 700 मीटर से अधिक लंबी तरंगें उठती हैं।
सामान्य तरंग और स्वेल तरंग के बीच अंतर
सामान्य तरंग (Normal Wave)
स्वेल तरंग (Swell Wave)
समुद्र में होने वाली किसी भी आकस्मिक उथल-पुथल के कारण सामान्य तरंगों की उत्पत्ति होती है।
स्वेल तरंगों की उत्पत्ति अक्सर गहरे जल, रैखिक दिशा, लंबी दूरी तक चलने वाली पवनों के माध्यम से होती है, जो तरंग के विसरण के कारण बाहरी मौसम की घटना के दौरान यादृच्छिक तरंग प्रणाली (Random Wave System) से प्रभावित होती है।
सामान्य तरंगों का रूप, प्रकार, आकार, ऊँचाई, अवधि, दिशा, गति आदि निश्चित नहीं होती है।
स्वेल तरंगें एक निश्चित दिशा में यात्रा करती हैं क्योंकि आमतौर पर इन तरंगों की गति एवं तरंगदैर्ध्य ज्यादा होती हैं, जो समय के साथ स्थिर हो जाती हैं। इन तरंगों की गति और तरंगदैर्ध्य में सह-संबंध होता है।
सामान्य तरंगें स्थानीय मौसम प्रणालियों से प्रभावित होती हैं।
किसी सामान्य तरंग की तुलना में स्वेल तरंग अधिक दूरी तय करती है। साथ ही, ये तरंगें स्थानीय मौसम प्रणालियों से प्रभावित नहीं होती हैं।
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