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तमिलनाडु का मैंग्रोव कवर विकास एवं कार्बन स्टॉक

Lokesh Pal March 18, 2025 04:12 93 0

संदर्भ

अन्ना विश्वविद्यालय के जलवायु परिवर्तन एवं आपदा प्रबंधन केंद्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, तमिलनाडु में मैंग्रोव वन कवर पिछले कुछ वर्षों में लगभग दोगुना हो गया है, जो वर्ष 2021 में 4,500 हेक्टेयर से बढ़कर वर्ष 2024 में 9,039 हेक्टेयर हो गया है।

मैंग्रोव के बारे में

  • अवस्थिति: मैंग्रोव उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं, यानी 25°N तथा 25°S अक्षांश के मध्य में।
  • मैंग्रोव में तटीय वातावरण की चरम स्थितियों में जीवित रहने के लिए विशेष अनुकूलन होता है।

  • उनके पास जलभराव एवं एनोक्सिक मृदा में जीवित रहने तथा अनुकूलन के साथ खारे पानी के साथ विकास करने की क्षमता होती है।
    • स्टिल्ट जड़ें
    • न्यूमेटोफोर
    • लवण उत्सर्जन ग्रंथियाँ
    • लवण रहित जड़ें
    • विविपेरस बीज
  • विश्व में मैंग्रोव के 24-29 समूह एवं लगभग 70 प्रजातियाँ हैं।
  • वैश्विक संख्या: वर्ष 2020 में, वैश्विक स्तर पर मैंग्रोव वन का अनुमानित 147,359 वर्ग किमी. है, जिसमें से 51% एशिया-प्रशांत में, 29% अमेरिका में एवं 20% अफ्रीका में है।
    • इंडोनेशिया में मैंग्रोव वन का सबसे बड़ा क्षेत्र है, जो कुल वैश्विक मैंग्रोव का 20% है, इसके बाद ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, मैक्सिको एवं नाइजीरिया हैं, जिनमें विश्व का  लगभग आधे से अधिक मैंग्रोव कवर अवस्थित हैं।

भारत एवं मैंग्रोव

  • भारत दक्षिण एशिया में कुल मैंग्रोव कवर का लगभग 3 प्रतिशत हिस्सा रखता है, जिसमें पश्चिम बंगाल में सुंदरबन एवं ओडिशा में भितरकनिका मैंग्रोव विविधता में सबसे समृद्ध हैं।
    • सुंदरबन: यह विश्व के सबसे अधिक जैव विविधता वाले मैंग्रोव वनों में से एक है।
    • यह बंगाल टाइगर, फिशिंग कैट, मैंग्रोव स्नैक, गोलियत हेरॉन, साल्टवाटर क्रोकोडाइल एवं वाटर मॉनिटर लिजार्ड सहित कई प्रकार के जीवों का आवास है।
  • भारत में मैंग्रोव कवर (ISFR 2023)
    • कुल मैंग्रोव कवर: भौगोलिक क्षेत्र का 4,992 वर्ग किमी. (0.15%)।
    • वर्ष 2021 से शुद्ध मैंग्रोव कवर में कमी: 7.43 वर्ग किमी.।
    • कमी: गुजरात में सबसे अधिक कमी (-36.39 वर्ग किमी.)।
    • वृद्धि: आंध्र प्रदेश (+13.01 वर्ग किमी.) एवं महाराष्ट्र (+12.39 वर्ग किमी.)।

मैंग्रोव का महत्त्व

  • आपदा शमन: मैंग्रोव कवरेज एक प्राकृतिक अवरोध के रूप में कार्य करता है, जो लहरों के प्रभाव को कम करता है एवं तटीय क्षेत्रों को कटाव से बचाता है।
    • यह अवसादन को स्थिर करता है एवं तटीय बाढ़ को कम करता है, इस प्रकार प्राकृतिक आपदाओं से  सुरक्षा प्रदान करता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र स्थिरता: मैंग्रोव पौधों एवं जंतुओ की विभिन्न प्रजातियों तथा समुद्री जीवों, जिनमें व्यावसायिक रूप से महत्त्वपूर्ण मत्स्य प्रजातियाँ शामिल हैं, के लिए आवास प्रदान करते हैं।
    • सुंदरबन विश्व के सबसे बड़े मैंग्रोव वन में से एक है एवं बंगाल टाइगर तथा गंगा नदी डॉल्फिन जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों का आवास स्थल है।
  • प्राकृतिक फिल्टर: मैंग्रोव वन जल की गुणवत्ता में सुधार करते हैं एवं तलछट, प्रदूषकों तथा अतिरिक्त पोषक तत्त्वों को हटाकर प्राकृतिक फिल्टर के रूप में कार्य करते हैं।
    • वे तटीय समुदायों के कल्याण एवं समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य में भूमिका निभाते हैं।
  • कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन: मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र वायुमंडल से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को अवशोषित कर सकते हैं एवं इसे अपने बायोमास तथा तलछट में सीक्वेस्ट्रेशन नामक प्रक्रिया में संगृहीत कर सकते हैं।
    • वैश्विक स्तर पर, अनुमान है कि वे 22.86 मीट्रिक गीगाटन CO₂ को सोख लेते हैं, जो जीवाश्म ईंधन, भूमि-उपयोग एवं उद्योग से होने वाले वार्षिक CO₂ उत्सर्जन का लगभग आधा है।
  • आजीविका: मैंग्रोव भारत में 9,00,000 मछुआरे परिवारों की आजीविका में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
    • वे हस्तशिल्प मत्स्य पालन का समर्थन करते हैं एवं स्थानीय आबादी के लिए भोजन तथा आय प्रदान करते हैं।
  • पर्यटन एवं मनोरंजन: मैंग्रोव पारिस्थितिकी पर्यटन, पक्षी-दर्शन, कयाकिंग एवं अन्य प्रकृति-आधारित गतिविधियों के अवसर प्रदान करते हैं, जो स्थानीय समुदायों के सतत् आर्थिक विकास का समर्थन कर सकते हैं।

मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ

  • मैंग्रोव पर दबाव: मैंग्रोव प्रति वर्ष 1-2% की वैश्विक हानि दर से लुप्त हो रहे हैं तथा पिछले 20 वर्षों के दौरान यह हानि 35% तक पहुँच गई है।
    • वर्ष 1996 के बाद से, मैंग्रोव कवरेज में 11,700 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है, जो यह गोवा के आकार का तीन गुना क्षेत्र है – जिसमें दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया में सबसे महत्त्वपूर्ण कमी देखी गई है।
  • विविधता में गिरावट: IUCN की रेड लिस्ट के अनुसार, विश्व में 70 मैंग्रोव प्रजातियों में से 11 (16 प्रतिशत) विलुप्त होने के उच्च खतरे में हैं।
    • इनमें से दो प्रजातियाँ, अर्थात् सोनेराटिया ग्रिफिथी (गंभीर रूप से संकटग्रस्त) एवं हेरिटिएरा फोम्स (संकटग्रस्त), भारत में पाई जाती हैं।
  • समुद्र स्तर में वृद्धि: प्रति वर्ष 3 मिलीमीटर से अधिक की दर से बढ़ रहे समुद्र स्तर के कारण तलछट के कटाव और लवणीय दलदली आवासों के नष्ट होने से मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा उत्पन्न हो रहा है।
    • इससे जलप्लावन का दबाव बढ़ता है, जिससे मैंग्रोव भूमि की ओर बढ़ते हैं एवं उन क्षेत्रों में लवणता बढ़ती है।
  • तेल प्रदूषण: तेल रिसाव से मैंग्रोव में विषाक्तता उत्पन्न होती है।
  • प्लास्टिक प्रदूषण: मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को नदियों से समुद्र में अपवाहित होने वाले प्लास्टिक से प्रदूषित होने का खतरा है।
    • दक्षिण-पूर्व एशिया विश्व के किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में नदी जनित प्लास्टिक प्रदूषण से अधिक प्रभावित है।
  • संरक्षण का अभाव: भारत में आरक्षित वनों, अभयारण्यों एवं राष्ट्रीय उद्यानों के बाहर मैंग्रोव खतरे में हैं, क्योंकि उन्हें कानूनी सुरक्षा प्राप्त नहीं है।
  • मीठे पानी में कमी: नदियों पर बाँध बनाए जाने के कारण मीठे पानी के प्रवाह में कमी के कारण मैंग्रोव को नुकसान उठाना पड़ता है।
    • यह प्रभाव विशेष रूप से कावेरी नदी के मुहाने पर अधिक हैं, जहाँ वर्षा भी कम होती है।
  • शहरीकरण: मानव जनसंख्या बढ़ाने के लिए बुनियादी ढाँचे एवं आवास योजनाएँ मैंग्रोव को नष्ट कर रही हैं, क्योंकि शहरी परियोजनाओं के लिए जगह बनाने के लिए मैंग्रोव को सुखाया जा रहा है तथा भूमि को साफ किया जा रहा है।

आगे की राह

  • स्थानीय समुदाय को संरक्षण में शामिल करना: स्थानीय समुदायों को शामिल करना एवं उन्हें सक्षम बनाना दीर्घकालिक सफलता के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • नीति नियोजन: स्थानीय समुदाय की आवश्यकताओं एवं चिंताओं को ध्यान में रखते हुए मैंग्रोव वन के संरक्षण तथा प्रबंधन के लिए एक व्यापक योजना विकसित करना।
  • प्रदूषण निवारण: मैंग्रोव वन के लिए खतरों को कम करने के उपायों को लागू करना, जैसे प्रदूषण को नियंत्रित करना, अवैध कटाई को रोकना एवं तटीय कटाव को कम करना।
  • वनीकरण: वन के आकार को बढ़ाने एवं इसके स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए नए मैंग्रोव पौधे लगाने को प्रोत्साहित करना।
  • सख्त निगरानी: उपग्रह इमेजरी, जल गुणवत्ता परीक्षण एवं जैव विविधता सर्वेक्षण जैसे डेटा का उपयोग करके संरक्षण प्रयासों की प्रभावशीलता की निगरानी करना।
  • मानव गतिविधियों को सीमित करना: मैंग्रोव वनों के आसपास शहरीकरण जैसी मानवीय गतिविधियों को सीमित किया जाना चाहिए।
    • जो लोग आजीविका के लिए मैंग्रोव का उपयोग करते हैं, उन्हें मत्स्यपालन के प्रति संधारणीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
  • जागरूकता: मैंग्रोव क्षरण एवं क्षति से लाभान्वित तथा प्रभावित होने वाली प्रजातियों के ज्ञान को परिष्कृत करना ताकि स्थानीय जैव विविधता पर मैंग्रोव परिवर्तन के प्रभाव को समझा जा सके तथा प्रभावी संरक्षण एवं पुनर्प्राप्ति योजनाएँ विकसित की जा सकें।

निष्कर्ष

तमिलनाडु का मैंग्रोव क्षेत्र वर्ष 2021 में 4,500 हेक्टेयर से लगभग दोगुना होकर वर्ष 2024 में 9,039 हेक्टेयर हो गया है, जिससे कार्बन पृथक्करण एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बढ़ावा मिला है। हालाँकि, समुद्र का बढ़ता स्तर, प्रदूषण तथा शहरीकरण इन महत्त्वपूर्ण तटीय वनों के लिए खतरा बना हुआ है। इस वृद्धि को बनाए रखने एवं मैंग्रोव जैव विविधता की रक्षा के लिए संरक्षण प्रयास, सामुदायिक सहभागिता तथा सख्त निगरानी आवश्यक है।

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