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भारत में टेलीमेडिसिन

Lokesh Pal April 13, 2024 05:49 219 0

संदर्भ

हैदराबाद के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि नेत्र अस्पताल जाने वाले लगभग 70-80% लोग टेली-परामर्श से लाभान्वित हो सकते हैं।

टेलीमेडिसिन (Telemedicine) के बारे में

  • टेलीमेडिसिन दूरसंचार बुनियादी ढाँचे पर परामर्श और चिकित्सा निदान सहित स्वास्थ्य सेवाओं की दूरस्थ डिलीवरी है, जो मरीजों को शारीरिक रूप से यात्रा करने की आवश्यकता के बिना चिकित्सा देखभाल तक पहुँचने की अनुमति देती है।
  • यह आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल दृष्टिकोण दूर-दूर तक नैदानिक सहायता प्रदान करने के लिए डिजिटल सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाता है।
  • टेलीमेडिसिन कई संदर्भों में डॉक्टरों के साथ व्यक्तिगत परामर्श के लिए एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में उभरा है, क्योंकि यह रोगियों के समय एवं खर्चों को बचाता है यदि वे दूरदराज के क्षेत्रों में स्थित हैं और/या ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं।

केस स्टडी

  • इरोड (Erode) के चेन्नामपट्टी वन क्षेत्र में समुद्र तल से 1,200 मीटर की ऊँचाई पर स्थित एक आदिवासी गाँव कथिरीमलाई लंबे समय से बुनियादी स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं से वंचित था।
  • जिला प्रशासन ने पुन्नगई (Punnagai) लॉन्च किया, जो एक बहु-क्षेत्रीय टेली-सुविधा परियोजना है, जो टेलीमेडिसिन सुविधाएँ प्रदान करने के लिए उच्च गति 5 गीगाहर्ट्ज वायरलेस सिस्टम का उपयोग करती है और कथिरीमलाई को बाहरी दुनिया से जोड़ती है। यह परियोजना ग्रामीणों के लिए ऑनलाइन शिक्षा और कौशल विकास पर भी केंद्रित है।
  • इस प्रकार टेलीमेडिसिन ने देश के सुदूरवर्ती हिस्से में भी विशिष्ट स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की पहुँच को आसान बना दिया।

टेलीमेडिसिन सेवाओं के विभिन्न प्रकार

  • टेलीऑफथैल्मोलॉजी (Teleophthalmology): यह आँखों की देखभाल से संबंधित है और मरीजों को डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से नेत्र रोग विशेषज्ञों से परामर्श करने में सक्षम बनाती है।
  • टेलीडर्मेटोलॉजी (Teledermatology): त्वचा से संबंधित समस्याओं का दूरस्थ निदान और उपचार।
  • टेलीसाइकियाट्री (Telepsychiatry): यह मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से संबंधित है, इसके माध्यम से मनोरोग मूल्यांकन, चिकित्सा सत्र और दवा प्रबंधन दूरस्थ तरीके से प्रदान किया जाता है।
  • टेलीरेडियोलॉजी (Teleradiology): इसके माध्यम से रेडियोलॉजिकल रोगी से संबंधित रिपोर्ट एवं जाँच जैसे- एक्स-रे, सीटी स्कैन और MRI को एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रसारित करना शामिल है।
  • टेलीकार्डियोलॉजी (Telecardiology): दूरस्थ निगरानी और परामर्श के माध्यम से हृदय संबंधी देखभाल प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
  • टेलीपैथोलॉजी (Telepathology): इसमें दूर से पैथोलॉजी का अभ्यास शामिल है। यह निदान, शिक्षा और अनुसंधान के लिए पैथोलॉजी छवि आधारित डेटा के प्रसारण की सुविधा के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करता है।
  • टेलीपीडियाट्रिक्स (Telepediatrics): बाल रोग विशेषज्ञों को बच्चों और उनके माता-पिता से दूर से परामर्श करने की अनुमति देता है।
  • टेली ऑर्थोपेडिक्स (Tele Orthopedics): ऑर्थोपेडिक स्थितियों से संबंधित परामर्श प्रदान करता है।
  • टेली-रीहैबलीटेशन (Tele-rehabilitation): इसका उद्देश्य रोगियों के लिए शारीरिक और मनोवैज्ञानिक पुनर्वास प्रक्रिया में सुधार करना है।
  • टेली-अर्जेंट केयर (Tele-Urgent Care): टेली-अर्जेंट केयर सेवाएँ मरीजों को गंभीर लेकिन गैर-जीवन घातक स्थितियों के लिए तत्काल परामर्श प्राप्त करने की अनुमति देती हैं।

टेलीमेडिसिन का विकास

  • प्रारंभिक विकास
    • इसरो का टेलीमेडिसिन पायलट प्रोजेक्ट (2001): इसरो ने चेन्नई के अपोलो अस्पताल को आंध्र प्रदेश के अपोलो ग्रामीण अस्पताल से जोड़ने वाला अपना टेलीमेडिसिन पायलट प्रोजेक्ट लॉन्च किया।
    • टेलीमेडिसिन नेटवर्क की स्थापना: 2000 के दशक के मध्य तक, केरल और तमिलनाडु सहित कई राज्यों ने अपने टेलीमेडिसिन नेटवर्क विकसित करना शुरू कर दिया, जो अक्सर इसरो के उपग्रह कनेक्टिविटी द्वारा समर्थित होते थे।
  • विस्तार और एकीकरण
    • राष्ट्रीय टेलीमेडिसिन टास्कफोर्स (2005): केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने पूरे भारत में टेलीमेडिसिन का विस्तार करने के लिए स्वास्थ्य सूचना प्रौद्योगिकी बोर्ड (Health Information Technology Board) के तहत राष्ट्रीय टेलीमेडिसिन टास्कफोर्स (National Telemedicine Taskforce) की स्थापना की। इसने भारत में टेलीमेडिसिन प्रथाओं के लिए दिशा-निर्देश और मानक तैयार किए।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सरकारी संस्थाओं और निजी क्षेत्र के हितधारकों के बीच सहयोग ने टेलीमेडिसिन सेवाओं की पहुँच और तकनीकी आधार का विस्तार किया।
  • नीतिगत समर्थन और विनियमन
    • टेलीमेडिसिन अभ्यास दिशा-निर्देश (2020): COVID-19 महामारी ने  टेलीमेडिसिन सेवाओं की आवश्यकता को बढ़ा कर दिया, जिससे केंद्र सरकार ने मार्च 2020 में ‘टेलीमेडिसिन अभ्यास दिशा-निर्देश’ (Telemedicine Practice Guidelines) जारी किए।
      • इन दिशा-निर्देशों ने पंजीकृत चिकित्सा चिकित्सकों को दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिए कानूनी रूप से सक्षम बनाया।
    • डिजिटल इंडिया पहल: व्यापक डिजिटल इंडिया पहल के हिस्से के रूप में, टेलीहेल्थ सेवाओं का समर्थन करने वाले डिजिटल बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने पर जोर दिया गया।
  • हालिया विकास
    • आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (Ayushman Bharat Digital Mission- ABDM) के साथ एकीकरण: टेलीमेडिसिन सेवाओं को ABDM के साथ एकीकृत किया गया है, जिसका लक्ष्य राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के तहत एक डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना है।
    • COVID-19 महामारी ने टेलीमेडिसिन के उपयोग को काफी हद तक बढ़ावा दिया। सेवा प्रदाताओं एवं उपयोगकर्ताओं दोनों में तेज वृद्धि के साथ, यह महामारी के दौरान स्वास्थ्य देखभाल के प्रबंधन में एक महत्त्वपूर्ण उपकरण बन गया।

ई-स्वास्थ्य (E-health) चिकित्सा सूचना विज्ञान, सार्वजनिक स्वास्थ्य और व्यवसाय के समन्वित नेटवर्क के अंतर्गत एक उभरता हुआ क्षेत्र है, जो इंटरनेट और संबंधित प्रौद्योगिकियों के माध्यम से वितरित या संवर्द्धित स्वास्थ्य सेवाओं एवं सूचनाओं को संदर्भित करता है।

टेलीमेडिसिन उद्योग के विस्तार को प्रेरित करने वाले प्रमुख घटक

  • स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता: असाध्य बीमारियाँ दुनिया भर में अधिक-से-अधिक लोगों को प्रभावित कर रही हैं। इसके अलावा, वृद्ध लोगों की आबादी के कारण घर पर ही रहकर स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता बढ़ गई है।
  • तकनीकी उन्नति: टेलीहेल्थ समाधानों का विस्तार सभी आयु समूहों में मोबाइल उपकरणों और ऑन-डिमांड हेल्थकेयर ऐप्स के प्रसार से भी प्रभावित होता है।
  • रोगियों के लिए आसान निदान: रोगी लगातार ऐसी देखभाल की तलाश में रहते हैं, जो सुलभ और सुविधाजनक हों इसलिए टेलीमेडिसिन ई क्लिनिक चलाने से रोगियों के समय पर निदान में सहायता मिल सकती है।
  • रोगी प्रतिधारण: नए रोगियों को आकर्षित करने के अलावा, यह वर्तमान रोगियों को नियमित रूप से दूरस्थ जाँच और मार्गदर्शन प्राप्त करने में भी सक्षम बनाता है।

चीन: इसके तीन प्रमुख टेलीमेडिसिन नेटवर्क हैं, जो अविकसित क्षेत्रों में छोटे अस्पतालों और क्लीनिकों को बड़े अस्पतालों से जोड़ते हैं।

मंगोलिया: मंगोलिया की खानाबदोश संस्कृति के कारण मातृ मृत्यु दर अधिक है। यहाँ टेलीमेडिसिन प्रभावी मातृत्व सेवाएँ प्रदान करके समस्या का समाधान करता है।

पाकिस्तान: सेहत कहानी (Story of Health) पहल महिला डॉक्टरों को सशक्त बनाती है, जो प्रैक्टिस के लिए अपना घर छोड़ने में असमर्थ हैं और ये महिला डॉक्टर टेलीमेडिसिन के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा को भी सुलभ बनाती है।

टेलीमेडिसिन के लाभ

  • शहरी-ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल के बीच अंतर को पाटना: टेलीमेडिसिन दूरदराज और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच में सुधार कर सकता है, जहाँ 70% से अधिक भारतीय आबादी रहती है।
  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की ओर कदम: टेलीमेडिसिन सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को सक्षम करने के लिए जीवन भर स्वास्थ्य संवर्द्धन से लेकर रोकथाम, उपचार, पुनर्वास और उपशामक देखभाल तक आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं की पूर्ण निरंतरता प्रदान कर सकता है।
  • लागत में कमी: टेलीमेडिसिन यात्रा और भौतिक बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता को कम करता है, जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य देखभाल की लागत में काफी कमी आती है।
    • एल. वी. प्रसाद आई इंस्टिट्यूट द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि टेलीकंसल्टेशन ने मरीजों को यात्रा और संबंधित खर्चों में प्रति विजिट पर औसतन 370 रुपये से 8,339 रुपये तक बचाया है।
  • कार्बन फुटप्रिंट में कमी: एल. वी. प्रसाद आई इंस्टिट्यूट के इसी अध्ययन में कहा गया है कि टेलीकंसल्टेशन के परिणामस्वरूप रोगियों द्वारा 1,666 किलोमीटर कम यात्रा की गई और तीन महीनों में प्रति मरीज 176.6 किलोग्राम CO2 उत्सर्जन में कमी आई, जिससे पर्यावरणीय स्थिरता में महत्त्वपूर्ण योगदान मिला।
  • दक्षता और समय की बचत: टेलीमेडिसिन त्वरित परामर्श और फॉलो-अप की अनुमति देता है, जिससे रोगियों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं दोनों के लिए समय की बचत होती है।
    • भारत में कई टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्मों पर किए गए एक सर्वेक्षण में बताया गया है कि टेलीपरामर्श के लिए प्रतीक्षा समय आमतौर पर 10 मिनट से कम है।
  • उन्नत रोग प्रबंधन: असाध्य रोगों के लिए निरंतर देखभाल की आवश्यकता होती है और टेलीमेडिसिन बार-बार अस्पताल जाने के बिना नियमित निगरानी और प्रबंधन की सुविधा प्रदान करती है।
    • मधुमेह के रोगियों के लिए, टेलीमेडिसिन के माध्यम से ग्लाइसेमिक नियंत्रण को बेहतर तरीके से प्रदर्शित किया गया है क्योंकि रोगी अपनी उपचार योजनाओं में समायोजन के लिए नियमित रूप से अपने डॉक्टरों से परामर्श कर सकते हैं।
  • विशेषज्ञ देखभाल का विस्तार: भारत के कई क्षेत्रों विशेषकर मनोचिकित्सा और एंडोक्राइनोलॉजी जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है। टेलीमेडिसिन ने मरीजों को लंबी दूरी की यात्रा करने की आवश्यकता के बिना इन विशेषज्ञों तक पहुँच को आसान बना दिया है।
    • उदाहरण के लिए टेलीसाइकियाट्री का तेजी से विस्तार हुआ है और यह COVID-19 महामारी के दौरान महत्त्वपूर्ण मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान कर रही थी।
  • स्वास्थ्य संकट के लिए सहायता: COVID-19 महामारी के दौरान, टेलीमेडिसिन वायरस संचरण के जोखिम को कम करते हुए स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण थी। इसने दूर से ही मरीजों की जाँच और इलाज करने का साधन प्रदान करके स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का समर्थन किया, जिससे अस्पतालों पर बोझ कम हो गया।

टेलीमेडिसिन की चुनौतियाँ

  • तकनीकी बाधाएँ: भारत की ग्रामीण आबादी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से के पास विश्वसनीय इंटरनेट पहुँच का अभाव है, जो प्रभावी टेलीमेडिसिन के लिए आवश्यक है।
    • भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 तक केवल 34% ग्रामीण भारत में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी है।
  • डिजिटल साक्षरता: भारत के कई हिस्सों में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में वृद्ध आबादी के बीच, डिजिटल साक्षरता का अभाव है। इससे मरीजों की टेलीमेडिसिन सेवाओं का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की क्षमता प्रभावित होती है।
    • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office- NSSO) के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि केवल 20% भारतीय वयस्क ही डिजिटल रूप से साक्षर हैं।
  • बुनियादी ढाँचा और उपकरण उपलब्धता: टेलीमेडिसिन का समर्थन करने के लिए आवश्यक चिकित्सा उपकरण और बुनियादी ढाँचे की कमी, जैसे कि डिजिटल डायग्नोस्टिक उपकरण का अभाव है। यह ग्रामीण क्षेत्रों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेष रूप से मौजूद नहीं होते हैं।
  • विनियामक और कानूनी मुद्दे: भारत में टेलीमेडिसिन को नियंत्रित करने वाले कानूनी ढाँचे में महत्त्वपूर्ण अस्पष्टताएँ हैं, विशेष रूप से दायित्व, डेटा सुरक्षा और सीमा पार मुद्दों से संबंधित।
    • वर्ष 2020 के ‘टेलीमेडिसिन प्रैक्टिस दिशा-निर्देश’ (Telemedicine Practice Guidelines) ने इन्हें संबोधित करना शुरू कर दिया है, लेकिन कई क्षेत्र अभी भी अनियमित बने हुए हैं।
  • गोपनीयता और डेटा सुरक्षा चिंताएँ: टेलीमेडिसिन लेनदेन में रोगी के डेटा की सुरक्षा और गोपनीयता के बारे में चिंताएँ प्रमुख हैं, विशेषकर साइबर हमलों में वृद्धि के संदर्भ में।
    • एक प्रमुख साइबर सुरक्षा फर्म के अध्ययन के अनुसार, भारत में स्वास्थ्य सेवा उल्लंघनों में सिर्फ वर्ष 2020 में 45% की वृद्धि देखी गई।
  • सांस्कृतिक और व्यवहार संबंधी बाधाएँ: भारतीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा आभासी परामर्श के बजाय व्यक्तिगत परामर्श को अधिक प्राथमिकता देता है।
  • मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के साथ एकीकरण: मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल प्रथाओं और प्रणालियों के साथ टेलीमेडिसिन को प्रभावी ढंग से एकीकृत करना एक चुनौती है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड (Electronic Medical Records- EMR) की अंतरसंचालनीयता और मानकीकरण के मुद्दे भी शामिल हैं।
  • देखभाल की गुणवत्ता: टेलीमेडिसिन के माध्यम से देखभाल की गुणवत्ता बनाए रखना, यह सुनिश्चित करना कि यह व्यक्तिगत परामर्श से मेल खाती है, एक चिंता का विषय बना हुआ है।
  • बीमा कवरेज का अभाव: स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों द्वारा टेलीमेडिसिन का कवरेज व्यापक नहीं है, जो इसके उपयोग में बाधा के रूप में कार्य करता है। यदि मरीज अपनी बीमा योजनाओं के दायरे में नहीं आते हैं तो उनके टेलीमेडिसिन विकल्प चुनने की संभावना कम होती है।

भारत में टेलीमेडिसिन के लिए नियामक ढाँचा

  • टेलीमेडिसिन अभ्यास दिशा-निर्देश, 2020 (Telemedicine Practice Guidelines, 2020): ये टेलीमेडिसिन के लिए एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करते हैं, जिसमें चिकित्सक-रोगी बातचीत, प्रबंधन और उपचार प्रोटोकॉल और रोगी रिकॉर्ड की गोपनीयता तथा सुरक्षा के मानदंड शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 (National Medical Commission Act, 2019): यह अधिनियम भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 को प्रतिस्थापित करता है और टेलीमेडिसिन को प्रभावित करता है, विशेष रूप से टेलीमेडिसिन में संलग्न चिकित्सकों से अपेक्षित मान्यता, नैतिक आचरण और पेशेवर मानकों के संबंध में।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000): यह अधिनियम टेलीमेडिसिन के लिए कानूनी ढाँचे को रेखांकित करता है क्योंकि यह डेटा सुरक्षा और गोपनीयता से संबंधित है। यह इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड को ठीक से सँभालने और संरक्षित करने के दायित्वों को रेखांकित करता है, जो टेलीमेडिसिन के दौरान इंटरैक्शन में रोगी की गोपनीयता बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और नियम, 1945: मुख्य रूप से भारत में दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों के लिए मानकों को विनियमित करते हुए, यह अधिनियम टेलीमेडिसिन को भी प्रभावित करता है, विशेष रूप से टेलीहेल्थ प्लेटफॉर्मों पर दवाओं के नुस्खे और वितरण में।

आगे की राह

  • डिजिटल विभाजन को पाटना
    • बुनियादी ढाँचे का विस्तार: विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और संवेदनशील आबादी के बीच विश्वसनीय इंटरनेट कनेक्टिविटी, किफायती उपकरणों और डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों में निवेश करना।
    • स्थानीय भाषा समर्थन: पहुँच और समावेशिता सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल स्वास्थ्य प्लेटफॉर्मों और संसाधनों का स्थानीयकरण।
    • उपयोगकर्ता के अनुकूल इंटरफेस विकसित करना: ऐसे टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्म डिजाइन करना, जो डिजिटल साक्षरता के विभिन्न स्तरों वाले लोगों के लिए उपयोग में आसान और सुलभ हों।
  • नियामक ढाँचे को मजबूत बनाना
    • स्पष्ट और व्यापक नियम विकसित करना: डेटा गोपनीयता मानकों, सुरक्षा प्रोटोकॉल और डेटा संग्रह, भंडारण और साझाकरण के लिए दिशा-निर्देश स्थापित करना।
    • अंतरसंचालनीयता को बढ़ावा देना: विभिन्न स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के बीच निर्बाध डेटा विनिमय को सक्षम करने के लिए मानकीकृत डेटा प्रारूप और अंतरसंचालनीयता प्रोटोकॉल लागू करना।
    • एक मजबूत नियामक संस्था विकसित करना: नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए टेलीमेडिसिन पारिस्थितिकी तंत्र की देखरेख के लिए जिम्मेदार एक केंद्रीय प्राधिकरण की स्थापना करना।
  • नवाचार और सहयोग को बढ़ावा देना
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना: टेलीमेडिसिन के क्षेत्र में नवाचार में तेजी लाने के लिए सरकार, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, प्रौद्योगिकी कंपनियों और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना।
    • स्टार्टअप और उद्यमियों को समर्थन देना: नवीन टेलीमेडिसिन प्रौद्योगिकियों को विकसित करने वाले स्टार्टअप को फंडिंग, मेंटरशिप और बुनियादी ढाँचा सहायता प्रदान करना।
    • मौजूदा प्लेटफॉर्मों का लाभ उठाना: सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों जैसे मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढाँचे के साथ टेलीमेडिसिन समाधानों को एकीकृत करना।
  • क्षमता निर्माण और विशेषज्ञता
    • प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश: टेलीमेडिसिन प्रौद्योगिकियों का प्रभावी ढंग से उपयोग और प्रबंधन करने के लिए स्वास्थ्य पेशेवरों को आवश्यक कौशल एवं ज्ञान से लैस करना।
    • ज्ञान साझा करने और सहयोग को प्रोत्साहित करना: डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र में हितधारकों के बीच ज्ञान साझा करने और सहयोग की संस्कृति को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

यदि टेलीमेडिसिन संबंधी बुनियादी ढाँचे की कमियों को प्रभावी ढंग से दूर कर दिया जाए तो टेलीमेडिसिन स्वास्थ्य उद्योग में क्रांति ला सकता है और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

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