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सीमा सुरक्षा बल का प्रादेशिक क्षेत्राधिकार (Territorial Jurisdiction of Border Security Force)

Samsul Ansari January 25, 2024 06:26 133 0

संदर्भ

उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा सीमा सुरक्षा बल (Border Security Force-BSF) के अधिकार क्षेत्र के विस्तार  पर कुछ राज्यों की आपत्ति से जुड़े मुद्दों की जाँच करने का निर्णय लिया है।

संबंधित तथ्य 

  • क्षेत्राधिकार विस्तार की पृष्ठभूमि: केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2021 में एक अधिसूचना जारी कर सीमा सुरक्षा बल अधिनियम, 1968 में संशोधन किया है। इस संशोधन के तहत अंतरराष्ट्रीय सीमा पर BSF के क्षेत्राधिकार को 15 किलोमीटर से बढ़ाकर 50 किलोमीटर तक कर दिया गया है।
  • पंजाब सरकार द्वारा कानूनी चुनौती: पंजाब सरकार ने BSF के परिचालन क्षेत्राधिकार में वृद्धि के फैसले को चुनौती देते हुए, संविधान के अनुच्छेद-131 के तहत केंद्र सरकार के विरुद्ध  मुकदमा दायर किया है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद-131

  • यह भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच या दो या दो से अधिक राज्यों के मध्य विवादों की सुनवाई के लिए उच्चतम न्यायालय को विशेष क्षेत्राधिकार प्रदान करता है।

  • मुद्दों की जाँच: अप्रैल माह में SC के तीन न्यायाधीशों की पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। न्यायालय निम्नलिखित मुद्दों की जाँच करेगा;
    • शक्ति का मनमाना प्रयोग: क्या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना के माध्यम से पंजाब राज्य में BSF के अधिकार क्षेत्र में वृद्धि का निर्णय सीमा सुरक्षा बल अधिनियम, 1968 की शक्ति का मनमाना प्रयोग है?
    • स्थानीय सीमा से परे: क्या BSF के अधिकार क्षेत्र में वृद्धि ‘भारत की सीमाओं से सटे क्षेत्रों की स्थानीय सीमा’ से परे है?
    • विचारणीय कारक: “भारत की सीमाओं से सटे क्षेत्रों की स्थानीय सीमा” का निर्धारण करते समय किन कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
    • राज्यों के साथ समान व्यवहार: क्या BSF अधिनियम, 1968 की धारा 139 (1) के तहत भारत की सीमाओं से सटे क्षेत्रों की स्थानीय सीमा निर्धारित करने के उद्देश्य से सभी राज्यों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए?
    • मूल वाद के तहत चुनौती: क्या 11 अक्टूबर, 2021 की अधिसूचना की संवैधानिकता को संविधान के अनुच्छेद-131 के तहत मूल वाद में चुनौती दी जा सकती है।

सीमा सुरक्षा बल (BSF) के बारे में

  • यह भारत का प्राथमिक सीमा सुरक्षा संगठन है, जो 1 दिसंबर, 1965 को अस्तित्व में आया।
    • BSF को भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा, भारत-बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा (Line of Control-LoC) पर भारतीय सेना के साथ तथा नक्सल विरोधी अभियानों में तैनात किया जाता है।
  • नोडल मंत्रालय: BSF भारत सरकार के गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत सात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (Central Armed Police Forces-CAPFs) में से एक है।
  • BSF की शक्तियाँ : BSF को वर्ष 1969 में, विदेशी अधिनियम, पासपोर्ट अधिनियम, विदेशी मुद्रा कानून और सीमा शुल्क अधिनियम जैसे कुछ कानूनों के संबंध में CrPC के तहत गिरफ्तारी और तलाशी की शक्तियाँ  दी गई थी।
    • यह मादक पदार्थों तथा अन्य निषिद्ध वस्तुओं की तस्करी, विदेशियों के अवैध प्रवेश और किसी अन्य केंद्रीय अधिनियम के तहत दंडनीय अपराधों के मामले में तलाशी तथा  जब्ती करता है।

केंद्र की वर्ष 2011 की अधिसूचना

  • BSF अधिनियम में संशोधन (अक्टूबर 2021)
    • केंद्र सरकार ने BSF अधिनियम, 1968 में संशोधन कर पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी के अधिकार को 15 किमी. से बढ़ाकर 50 किमी. तक कर दिया है।
    • गुजरात में इसे 80 किमी. से घटाकर 50 किमी. कर दिया गया और राजस्थान के लिए इसे 50 किमी. पर बरकरार रखा गया है।

    • BSF अधिनियम, 1968 की धारा 139(1)(i) केंद्र सरकार को किसी भी केंद्रीय अधिनियम के संबंध में, उसमें निर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए सैन्य बलों के सदस्यों को शक्तियाँ प्रदान करने का अधिकार देती है।
  • BSF की शक्तियों पर प्रभाव
    • BSF का अधिकार क्षेत्र केवल आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code-CrPC), पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 और पासपोर्ट अधिनियम, 1967 के तहत प्राप्त शक्तियों के संबंध में बढ़ाया गया है।
    • एनडीपीएस अधिनियम, शस्त्र अधिनियम, सीमा शुल्क अधिनियम और कुछ अन्य कानूनों के कार्यान्वयन के संबंध में BSF की शक्तियाँ अपरिवर्तित रहेंगी।
      • इन अधिनियमों के तहत पंजाब, असम और पश्चिम बंगाल में सीमा के 15 किलोमीटर के दायरे में BSF की शक्तियाँ बनी रहेंगी तथा गुजरात में ये शक्तियाँ 80 किलोमीटर तक की सीमा तक प्रभावी रहेंगी।

क्षेत्राधिकार में संशोधन के पीछे तर्क

  • परिचालन दक्षता: BSF के अधिकार क्षेत्र के विस्तार से सीमा पार अपराधों पर अंकुश लगाने में मदद के साथ सीमा गश्ती सबंधी कर्तव्य को अधिक प्रभावी ढंग से निर्वहन करने में मदद मिलेगी।
    • BSF के सीमित अधिकार क्षेत्र ने इन राज्यों के भीतर आंतरिक इलाकों में अपराध के प्राथमिक बिंदुओं पर प्रभावी ढंग से काम करने की इसकी क्षमता को सीमित कर दिया है, जिसके कारण कुछ मामलों में  माल की तस्करी और इसमें शामिल नेटवर्क इसकी पहुँच से बच निकलते हैं।
  • सीमा संचालन में एकरूपता: यह पंजाब, पश्चिम बंगाल, गुजरात, राजस्थान और असम के सीमावर्ती राज्यों में BSF के संचालन के लिए “एकरूपता” लाएगा, जहाँ यह अब सीमा से 50 किमी. के क्षेत्र में काम कर सकता है।
  • स्थानीय पुलिस के पास समवर्ती शक्तियाँ : BSF के पास अपराधियों की जाँच करने या मुकदमा चलाने की शक्ति नहीं है, लेकिन उन्हें गिरफ्तार किए गए लोगों और उनके पास से जब्त किए गए प्रतिबंधित पदार्थ को स्थानीय पुलिस को सौंपना होगा।
    • इस प्रकार, स्थानीय पुलिस का क्षेत्राधिकार बना रहेगा। व्यवहार में, BSF कर्मी आमतौर पर पुलिस के साथ समन्वित रूप से कार्य करते हैं, ऐसे में इस बदलाव के बाद भी दोनों के बीच अधिकार क्षेत्र का कोई टकराव नहीं होना चाहिए।
  • मादक पदार्थों और मवेशी व्यापार पर अंकुश: जम्मू-कश्मीर और पंजाब में सीमापार आपराधिक समूहों द्वारा ड्रोन के माध्यम से हथियार और मादक पदार्थों की तस्करी की घटनाओं में वृद्धि देखने को मिली है।
    • इससे पशु तस्करी के खतरे को रोकने में भी मदद मिलेगी क्योंकि तस्कर BSF के अधिकार क्षेत्र के बाहर अंदरूनी इलाकों में शरण लेते हैं।
    • BSF अपने बढ़े हुए क्षेत्राधिकार में विभिन्न मामलों में मादक पदार्थों और मवेशी तस्करी जैसे सीमा पार अपराधों की जाँच करने में सक्षम रही है।

क्षेत्राधिकार के विस्तार में शामिल मुद्दे

  • संघवाद को खतरा: सीमावर्ती राज्यों ने केंद्र सरकार द्वारा की गई कार्रवाई को संघीय सिद्धांतों का उल्लंघन और राज्यों के कानून व्यवस्था क्षेत्राधिकार पर  अतिक्रमण के रूप देखा जाता है।
    • उनका तर्क है कि कानून व्यवस्था राज्य का विषय है और BSF के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाना राज्य सरकार की शक्तियों का हनन है।
    • ये शक्तियाँ संविधान के अनुच्छेद-246 के तहत राज्य सूची की प्रविष्टि 1 और 2 में प्रदान की गई हैं।
    • पंजाब और पश्चिम बंगाल ने विस्तार के विरोध में अपनी-अपनी विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित किए है।

केंद्र सरकार का संवैधानिक विशेषाधिकार

  • अनुच्छेद-355: भारतीय संविधान के अनुच्छेद-355 के अनुसार, केंद्र सरकार किसी राज्य की “बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति” से रक्षा के लिए सशस्त्र बलों को तैनात कर सकती है।
  • अनुच्छेद-356: यदि कोई राज्य, केंद्र सरकार के आदेशों की अवहेलना करता है तो केंद्र सरकार अनुच्छेद-356 के तहत उस राज्य के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है और राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है।

  • राज्यों की कानून-व्यवस्था में हस्तक्षेप: यह केंद्र सरकार को राज्यों की कानून व्यवस्था में हस्तक्षेप करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
    • यह पश्चिम बंगाल में “राज्य के लगभग एक-तिहाई हिस्से और भू-राजनीतिक रूप से संवेदनशील उत्तरी बंगाल के अधिकांश हिस्सों को BSF के क्षेत्राधिकार में” रखेगा, जो बांग्लादेश, भूटान और नेपाल की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित है।
    • पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे पंजाब राज्य के “कम से कम नौ जिले” पूरी तरह या आंशिक रूप से BSF के विस्तारित क्षेत्राधिकार के अधीन होंगे।

नागा पीपुल्स मूवमेंट ऑफ ह्यूमन राइट्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामला, 1997

  • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा सशस्त्र बलों की तैनाती की प्रक्रिया संबंधित क्षेत्र में राज्य की शक्तियों को समाप्त नहीं कर सकती है और सुरक्षाबलों को राज्य के भीतर कार्य करने के लिए राज्य का सहयोग लेना चाहिए।

  • सीमा सुरक्षा की भूमिका पर प्रभाव: राज्यों ने तर्क दिया है कि पुलिसिंग सीमा-रक्षक बल के प्राथमिक कार्यक्षेत्र में नहीं आता ऐसे में यह अंतरराष्ट्रीय सीमा पर उनके दायित्व के निर्वहन में BSF की क्षमता को कमजोर कर देगी।
  • केंद्र सरकार को एकतरफा अधिकार नहीं: पंजाब सरकार ने कहा है कि BSF अधिनियम की धारा 139 केंद्र सरकार को उन क्षेत्रों में विस्तार करने की एकतरफा शक्ति नहीं देती है, जो सीमा को नहीं छूते हैं।
    • यह उस ‘स्थानीय सीमा’ के दायरे में नहीं आएगा, जिस तक BSF का अधिकार क्षेत्र बढ़ाया जा सकता है।
  • तस्करी अपराधों पर सीमित प्रभाव: शस्त्र अधिनियम, सीमा शुल्क अधिनियम और एनडीपीएस अधिनियम के तहत BSF के अधिकार क्षेत्र में वृद्धि नहीं की गई है, जो सीमा पर अधिकांश तस्करी अपराधों को कवर करते हैं और कहीं अधिक बड़े अपराधों से निपटते हैं।
  • BSF द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग: ऐसी आशंकाएँ जताई गई हैं कि पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना, BSF के अधिकार क्षेत्र में वृद्धि से उनकी शक्तियों का मनमाना उपयोग हो सकता है और परिणामस्वरूप मानवाधिकारों का उल्लंघन बढ़ सकता है।
    • यह चिंता भी जताई गई है कि इन राज्यों में प्रतिद्वंद्वी नेताओं को झूठे ड्रग्स और हथियार तस्करी के मामलों में फँसाने के लिए शक्तियों का दुरुपयोग किया जा सकता है।

आगे की राह

  • सहयोगात्मक संघवाद: पुलिस क्षमता बढ़ाने और BSF तथा राज्य पुलिस के बीच अधिक सहयोग के लिए आधार तैयार करने की पहल केंद्र एवं राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से की जानी चाहिए।
    • गैर-कानूनी गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए त्वरित कार्रवाई करने के लिए सूचना साझाकरण में वृद्धि के साथ केंद्र और राज्य एजेंसियों के बीच सहयोग की आवश्यकता है।
  • स्मार्ट सीमा प्रबंधन: सभी सुरक्षा एजेंसियों के बीच प्रभावी संचार और समन्वय को सक्षम करने और हथियारों तथा सामानों की अवैध तस्करी को नियंत्रित करने के लिए स्मार्ट बाड़ एवं व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली जैसी तकनीक का उपयोग किया जाना चाहिए।
  • पुलिस सुधार: अंतरराष्ट्रीय  बलों की सुरक्षा करने वाले पुलिस बलों को समकालीन सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है और उन्हें पर्याप्त आधुनिक बुनियादी ढाँचे  से सुसज्जित किया जाना चाहिए।
    • पूरे भारत में पुलिस बलों के पास हथियारों और बुनियादी संचार तथा परिवहन आधुनिक साधनों की कमी है।
    • CAG ऑडिट में राज्य पुलिस बलों के पास हथियारों की कमी पाई गई है। उदाहरण के लिए, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में राज्य पुलिस के पास आवश्यक हथियारों की क्रमशः 75% और 71% की कमी थी।
  • संस्थागत समर्थन: केंद्र और राज्यों के बीच आवश्यक संवाद और परामर्श की सुविधा के लिए अंतर-राज्यीय परिषद और क्षेत्रीय परिषदों का उपयोग किया जाना चाहिए।

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