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बीदर की बहमनी वास्तुकला

Lokesh Pal November 11, 2024 03:06 16 0

संदर्भ 

कर्नाटक वक्फ बोर्ड ने ऐतिहासिक बीदर किले के अंदर 17 स्मारकों (जिनमें 16-खंबा मस्जिद, विभिन्न बहमनी शासकों की 14 कब्रें आदि शामिल हैं) को अपनी संपत्ति बताते हुए दावा प्रस्तुत किया है।

बीदर शहर की ऐतिहासिक प्रासंगिकता

  • 1422 ईसवी से 1538 ईसवी के बीच बीदर बहमनी साम्राज्य की राजधानी थी।
    • इसे बहमनियों के नौवें शासक अहमद शाह प्रथम द्वारा गुलबर्गा/कलबुर्गी से बीदर (पहले मुहम्मदाबाद के नाम से जाना जाता था) में स्थानांतरित किया गया था।
  • विकास: बीदर शहर इतिहास के मध्यकालीन काल में विभिन्न राजवंशों के नियंत्रण के साथ विकसित हुआ है, जिसमें पूर्व काकतीय, तुगलक, बहमनी, बरीद शाही, आदिल शाही, मुगल और निजाम शामिल हैं।
  • स्थापत्य शैली: बीदर का स्थापत्य परिदृश्य हिंदू, तुर्की और फारसी कारीगरी का एक अंतर मिश्रण है।
    • बीदर शहर के किले की योजना पंचकोणीय है और पठार के किनारे पर निर्मित की गई है।

बीदर किला (Bidar Fort)

  • इसका निर्माण सर्वप्रथम 10वीं शताब्दी में काकतीय शासक माधव वर्मा द्वितीय द्वारा कराया गया था।
    • विकास: यह किला कई राजवंशों के लिए उल्लेखनीय रहा है, जिनमें बहमनी सल्तनत (1347-1518 ईसवी), बरीद शाही राजवंश (1527-1619 ईसवी), मुगल साम्राज्य (1619-1724 ईसवी) और हैदराबाद के निजाम (1724-1948) शामिल हैं।

  • किले में तीन परत वाली किलेबंदी है, जो 67 एकड़ में फैली है और इसकी परिधि 5.5 किलोमीटर है।
  • आकार: यह एक समचतुर्भुज के आकार का है, जिसमें महल, मस्जिद और आँगन हैं।
  • प्रवेशद्वार: किले में सात भव्य मेहराबदार द्वार हैं, जिनमें से गुंबद दरवाजा और शराजा दरवाजा सबसे महत्त्वपूर्ण प्रवेश द्वार हैं।
    • अन्य द्वार: दिशाओं के आधार पर नामित ये द्वार हैं:- कर्नाटक दरवाजा, मांडू दरवाजा, कल्याणी दरवाजा, कलमदगी दरवाजा, दिल्ली दरवाजा

  • महल: तख्त महल (Takht Mahal) और रंगीन महल (Rangeen Mahal) दोनों ही आयताकार प्रांगणों के चारों ओर बने हैं। किला परिसर में गगन महल (Gagan Mahal) और तरकश महल (Tarkash Mahal) भी हैं, जो खंडहर में तब्दील हो चुके हैं।
    • तख्त महल (सिंहासन स्थल): यह अहमद शाह द्वारा निर्मित शाही महल है और यह शाही निवास था, जिसमें बहमनी लोगों का शानदार सिंहासन रखा गया था, जहाँ कई बहमनी और बरीद शाही सुल्तानों का राज्याभिषेक हुआ था।
    • रंगीन महल: यह गुंबद दरवाजा के पास स्थित है, यह किले में संरक्षित महलों में से एक है, जिसकी दीवारें गहरे काले पत्थर में जड़े गए बेहतरीन गुणवत्ता वाले मोती से सुसज्जित हैं। इस स्मारक के डिजाइन मुस्लिम और हिंदू वास्तुकला दोनों के मिश्रण का प्रतिनिधित्व करते हैं।

  • सोलह खंभा मस्जिद (16 खंभा मस्जिद): ऐसा कहा जाता है कि इसका निर्माण 1423-24 ई. में कुबली सुल्तानी (Qubli Sultani) द्वारा किया गया था।
    • मस्जिद मूल रूप से एक औपचारिक दर्शक हॉल थी, जिसे बाद में प्रार्थना स्थल में बदल दिया गया। संरचना की छत में एक बड़ा गुंबद है, जो छोटे गुंबदों से घिरा हुआ है।
  • हजार कोठरी (Hazar Kothari): इसे दुश्मनों के हमले के दौरान शासक परिवार के सुरक्षित बाहर निकलने के लिए बनाया गया था। यहाँ एक भूमिगत हॉल है, जो किले की बाहरी दीवार की ओर जाता है।
  • करेज प्रणाली (कनात प्रणाली) [Karez system (Qanat system)]: यह 15वीं शताब्दी में बहमनी सुल्तानों द्वारा शुरू की गई जल आपूर्ति के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक प्राचीन फारसी तकनीक है, जिसने बीदर की कृषि समृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • महमूद गवन मदरसा: इसे 1472 ईसवी में गवन (प्रधानमंत्री/वजीर) द्वारा बनवाया गया था, इसे भारत के सबसे पुराने और सबसे प्रभावशाली इस्लामी शैक्षणिक संस्थानों में से एक माना जाता है। यह संरचना भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archeological Survey of India- ASI) द्वारा संरक्षित है।
    • आवासीय विश्वविद्यालय: इसमें एक मस्जिद, एक पुस्तकालय, व्याख्यान कक्ष और एक खुले प्रांगण के सामने क्वार्टर थे। छात्रों को अरबी, फारसी भाषाएँ, धर्मशास्त्र, दर्शन, खगोल विज्ञान, गणित आदि पढ़ाया जाता था। 

    • मदरसा को ‘शाहीन ग्रुप ऑफ इंस्टिट्यूशंस’ ने एडॉप्ट-ए-हेरिटेज योजना के तहत गोद लिया था और अगस्त 2024 में ASI द्वारा एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे।
  • अष्टुर कब्रें: दस बहमनी शासकों का शाही कब्रिस्तान बीदर शहर के पास अष्टुर गाँव में स्थित है। मकबरे के अंदरूनी हिस्से को दक्कनी एवं एशियाई कला शैली को दर्शाती शानदार पेंटिंग्स से सजाया गया है।
    • पहला मकबरा अहमद शाह का है, इसके बाद अलाउद्दीन अहमद शाह द्वितीय, अलाउद्दीन हुमायूँ शाह, निजामुद्दीन अहमद शाह तृतीय, शम्सुद्दीन मुहम्मद शाह तृतीय और शिहाबुद्दीन महमूद शाह द्वितीय की कब्रें एक पंक्ति में स्थित हैं।
    • चौखंडी मकबरा: यह अहमद शाह के आध्यात्मिक सलाहकार हजरत खलील उल्लाह के सम्मान में बनाया गया एक भव्य मकबरा है।

बहमनी राजवंश

  • यह भारत के दक्कन के पठार में पहली स्वतंत्र मुस्लिम सल्तनत थी, जिसने 1347-1527 ईसवी तक लगभग 200 वर्षों तक शासन किया।
  • संस्थापक: राजवंश की स्थापना 1347 ईसवी में एक अफगान शासक अलाउद्दीन हसन गंगू बहमन शाह ने की थी।
  • राजधानी: गुलबर्गा पहले 75 वर्षों तक राजधानी रही, उसके बाद एक शताब्दी से अधिक समय तक बीदर राजधानी रही।
  • भाषा: आधिकारिक भाषा फारसी थी, और आम भाषाएँ मराठी, दक्कनी, तेलुगु और कन्नड़ थीं।
  • उल्लेखनीय शासक: इस राजवंश में कुल 18 शासक हुए।
    • मुहम्मद शाह प्रथम: अलाउद्दीन बहमन शाह का पुत्र, उसने विजयनगर और वारंगल की हिंदू रियासतों को हराया।
    • फिरोज शाह बहमनी: उसने दौलताबाद के पास एक वेधशाला बनवाई।
    • अहमद शाह प्रथम: जिसे वली (संत) के नाम से भी जाना जाता है, उसने ज्ञान का ऐसा वातावरण बनाया, जिसने दुनिया भर के विद्वानों को आकर्षित किया।

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