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बॉन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन

Lokesh Pal June 17, 2024 03:16 166 0

संदर्भ

हाल ही में दो सप्ताह तक चले बॉन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का समापन जलवायु वित्त पर नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य पर एक इनपुट पेपर जारी करने के साथ संपन्न हुआ।

संबंधित तथ्य 

  • इस पत्र को एक औपचारिक वार्ता प्रारूप के रूप में विकसित किए जाने की संभावना है, जिस पर बाकू, अजरबैजान में आयोजित UNFCCC के COP 29 में सहमति बन सकती है।

जलवायु वित्त पर एक नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य

  • विषय: नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (New Collective Quantified Goal- NCQG) वर्ष 2015 के पेरिस समझौते द्वारा अनिवार्य 2025 के बाद की अवधि के लिए 100 बिलियन डॉलर से अधिक जलवायु वित्त जुटाने का बढ़ा हुआ लक्ष्य है।
    • बढ़े हुए लक्ष्य या वर्ष 2025 के बाद की अवधि के लिए लक्ष्य को इस वर्ष COP 29 में अंतिम रूप दिया जाना है।
  • बॉन सम्मेलन: जलवायु वित्त पर नए सामूहिक मात्राबद्ध लक्ष्य (New Collective Quantified Goal-NCQG) के तत्त्वों की गहन जाँच को सक्षम करने के लिए एक तकनीकी विशेषज्ञ संवाद (TED10) की मेजबानी की गई। 
  • माँगें एवं सुझाव
    • भारत का प्रस्ताव: भारत ने औपचारिक रूप से प्रस्ताव दिया है कि विकसित देशों को वर्ष 2025 के बाद हर वर्ष कम-से-कम 1 ट्रिलियन डॉलर प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए।
    • अरब देश: अरब देशों ने कहा है कि यह आँकड़ा कम-से-कम 1.1 ट्रिलियन डॉलर होना चाहिए। 
    • अफ्रीकी देशों ने 1.3 ट्रिलियन डॉलर की माँग की है।

जलवायु वित्त संरचना

दायित्व और गतिशीलता

  • अधिदेश: UNFCCC  और पेरिस समझौते के  ‘साझा लेकिन विभेदित जिम्मेदारी और संबंधित क्षमताओं’ के सिद्धांत के अनुसार, UNFCCC  के अनुलग्नक 2 में सूचीबद्ध देशों यानी 25 देशों और यूरोपीय आर्थिक समुदाय को उनकी ऐतिहासिक जिम्मेदारी के कारण जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए  विकासशील देशों को जलवायु वित्त प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
  • वित्त में वृद्धि : इस उद्देश्य के लिए विकसित देशों ने वर्ष 2020 से प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर एकत्र करने के प्रति वचनबद्धता की है। 
  • प्रगति: आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organisation for Economic Cooperation and Development- OECD) की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में पहली बार 100 बिलियन डॉलर का यह लक्ष्य पूरा किया गया है।

आवश्यकता

  • अपर्याप्त वित्तपोषण: UNFCCC  के आकलन के अनुसार, विकासशील देशों को अपने वादे के अनुसार जलवायु कार्रवाई को लागू करने के लिए वर्ष 2023 तथा 2030 के बीच लगभग 6 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता है।
  • जलवायु कार्रवाई को सुविधाजनक बनाना: शमन या अनुकूलन कार्यों को सुविधाजनक बनाने, दैनिक आधार पर जलवायु डेटा एकत्र करने और उनकी रिपोर्टिंग करने के लिए वित्तपोषण तंत्र की आवश्यकता है। विकासशील देशों में इस कार्य  क्षमता का बड़ा अंतर विद्यमान है।
  • अनुकूलन की आवश्यकता: विकासशील देशों को प्रत्येक वर्ष 215 बिलियन डॉलर से 387 बिलियन डॉलर की आवश्यकता है।
  • नेट जीरो के लक्ष्य को प्राप्त करना: स्वच्छ ऊर्जा के लिए वैश्विक संक्रमण को वैश्विक नेट जीरो के लक्ष्य  तक पहुँचने के लिए वर्ष 2030 तक प्रत्येक वर्ष लगभग 4.3 ट्रिलियन डॉलर और उसके बाद वर्ष 2050 तक प्रत्येक वर्ष  लगभग 5 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता है।

चुनौतियाँ

  • जिम्मेदारी का स्थानांतरण: विकसित देश अपने वादे को पूरा करने के प्रति उत्साहित नहीं हैं और अक्सर इन्हें  तर्क देते तथा अपनी जिम्मेदारियों को दूसरों पर स्थानांतरित करते हुए देखा जाता है कि कई अन्य देश अब 1990 के दशक की शुरुआत की तुलना में आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति में हैं।
  • बोझिल: विकसित देश उन आवश्यकताओं की गंभीर प्रकृति का तर्क देते हैं, जिन्हें सूचीबद्ध देशों के मूल समूह द्वारा पूर्ण करना बड़ी बात है या चुनौतीपूर्ण है
  • आवश्यकताओं में समावेशिता: विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन, तेल समृद्ध खाड़ी देश और दक्षिण कोरिया जैसे अन्य देश अनुलग्नक 2 में शामिल नहीं हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता हैं।
  • सहायता में कटौती: कई आर्थिक रूप से संपन्न देश राजकोषीय दबावों का हवाला देते हुए अपने सहायता बजट में कटौती कर रहे हैं, जबकि विकासशील देश कर्ज से जूझ रहे हैं जिससे जलवायु कार्रवाई पर खर्च करना मुश्किल हो गया है।

जलवायु वित्त

  • जलवायु वित्त का तात्पर्य सार्वजनिक, निजी और वित्त पोषण के वैकल्पिक स्रोतों से प्राप्त स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण से है जो उन शमन और अनुकूलन कार्यों का समर्थन करता है जो जलवायु परिवर्तन को संबोधित करेंगे।
  • संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते में अधिक वित्तीय संसाधनों (विकसित देशों) वाले दलों से उन लोगों को वित्तीय सहायता देने का आह्वान किया गया है जो कम संपन्न और अधिक असुरक्षा का अनुभव करते हैं। 
  • सिद्धांत: धन “सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारी और संबंधित क्षमताओं” के सिद्धांत के अनुसार जुटाया जाता है, जिसके तहत विकसित देशों को UNFCCC के उद्देश्यों को लागू करने में विकासशील देशों की सहायता के लिए वित्तीय संसाधन प्रदान करना होता है।
  • समर्थन
    • शमन: उत्सर्जन को उल्लेखनीय रूप से कम करने के लिए बड़े स्तर  पर निवेश की आवश्यकता है। 
    • अनुकूलन: जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को अनुकूलित करने और प्रभावों को कम करने के लिए महत्वपूर्ण वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है
  • वित्तीय तंत्र
    • वैश्विक पर्यावरण सुविधा (Global Environment Facility- GEF): वर्ष 1994 में कन्वेंशन के लागू होने के बाद से इसने वित्तीय तंत्र की एक परिचालन इकाई के रूप में कार्य किया है।
    • वर्ष 2010 में COP 16 में ग्रीन क्लाइमेट फंड (Green Climate Fund- GCF) की स्थापना की गई।
    • निधि: विशेष जलवायु परिवर्तन निधि (Special Climate Change Fund- SCCF) और अल्प विकसित देश निधि (Least Developed Countries Fund- LDCF), का प्रबंधन GEF द्वारा किया जाता है।
      • अनुकूलन कोष (Adaptation Fund- AF) की स्थापना वर्ष 2001 में क्योटो प्रोटोकॉल के तहत की गई थी।

आगे की राह

  • जलवायु वित्त पर स्पष्टता: विकासशील देश इस बात पर स्पष्टता की मांग करते हैं कि जलवायु वित्त क्या है, उनका जोर है कि विकास वित्त को जलवायु वित्त के रूप में नहीं गिना जाना चाहिए और यह कि धन को ऋण के रूप में प्रदान नहीं किया जाना चाहिए।
  • नई वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करना: जलवायु वित्त के प्रावधान को केवल विकसित देशों से आगे बढ़ाकर कुछ अच्छे प्रदर्शन करने वाले विकासशील देशों को भी शामिल किया जाना चाहिए ताकि जलवायु लक्ष्य को वित्तपोषित किया जा सके और ‘नई आर्थिक वास्तविकताओं’ को प्रतिबिंबित किया जा सके।
  • अधिदेश निर्धारित करना: विकसित देशों को सहयोग करना चाहिए, अधिदेश निर्धारित करना चाहिए, संसाधन जुटाना चाहिए और दाता सरकारों के रूप में अपनी क्षमता में विकास सहयोग के लिए अधिकृत वातावरण और नीति प्राथमिकताओं को परिभाषित करना चाहिए।

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