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गहरे समुद्रीय खनन के विरुद्ध जलवायु संबंधी अभियोग

Lokesh Pal May 30, 2024 04:40 159 0

संदर्भ

हाल ही में पर्यावरणीय कार्यकर्ताओं ने समुद्र तल में खनिज अन्वेषण करने के नॉर्वे के प्रस्ताव को चुनौती देते हुए ओस्लो न्यायालय में एक अभियोग/मुकदमा दायर किया है, जिसमें कहा गया है कि अधिकारियों ने खनन का पर्याप्त प्रभाव मूल्यांकन नहीं किया है।

गहरा समुद्रीय खनन (Deep Sea Mining)

  • परिचय: गहरे समुद्रीय खनन द्वारा समुद्र तल (आमतौर पर 200 मीटर से अधिक की गहराई पर) से खनिज एवं धातु निकालना शामिल है।
    • यह प्रथा नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं जैव प्रौद्योगिकी जैसे उद्योगों को आवश्यक संसाधनों की आपूर्ति सुनिश्चित करती है।
  • गहरे महासागरीय संसाधन: गहरे समुद्र में प्रचुर मात्रा में खनिज एवं धातुएँ हैं जो नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन एवं उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • गहरे समुद्र में खनन के पर्यावरणीय जोखिम: हालाँकि, गहरे समुद्र में खनन महत्त्वपूर्ण जोखिम और अनिश्चितताएँ उत्पन्न करता है। इसके पर्यावरणीय प्रभाव काफी हद तक अज्ञात हैं एवं समुद्री पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता को अपरिवर्तनीय नुकसान पहुँचा सकते हैं, जो पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखते हैं।

संपूर्ण विश्व में जलवायु संबंधी अभियोग

  • जलवायु अभियोग: जलवायु अभियोग कानूनी कार्रवाई का एक रूप है, जिसका उपयोग देशों एवं कंपनियों को उनके जलवायु शमन प्रयासों और जलवायु परिवर्तन में ऐतिहासिक योगदान के लिए जवाबदेह बनाने के लिए किया जा रहा है।
  • उत्पत्ति: जलवायु परिवर्तन मुकदमेबाजी की घटना संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में उत्पन्न हुई, जहाँ बढ़ती जागरूकता और पारिस्थितिक दृष्टिकोण की ओर संक्रमण के कारण ऐसे मामलों की संख्या अधिक है।
    • जूलियाना बनाम संयुक्त राष्ट्र अमेरिका का मामला महत्वपूर्ण था, जहाँ 21 युवाओं के एक समूह ने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की मान्यता और CO2 एवं जीवाश्म ईंधन की प्रगतिशील कमी और उन्मूलन के लिए एक योजना विकसित करने के आदेश की मांग के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका पर अभियोग दायर किया।
  • प्रमुख मामले: अप्रैल में, यूरोप के सर्वोच्च मानवाधिकार न्यायालय ने 64 वर्ष से अधिक उम्र की 2,000 स्विस महिलाओं के एक समूह का पक्ष लिया, जिन्होंने जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने के लिए अपनी सरकार पर अभियोग दायर किया।
    • अगस्त 2023 में, अमेरिका के मोंटाना के युवा वादी अपनी राज्य सरकार के खिलाफ एक मामले में सफल हुए। सरकार को वादी के स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करने का दोषी पाया गया।

भारत में जलवायु संबंधी अभियोग

  • अनुच्छेद 14 एवं जलवायु परिवर्तन: उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि जलवायु परिवर्तन समानता के अधिकार को प्रभावित करता है, यह समझाते हुए कि गरीब समुदाय पर्यावरणीय गिरावट के कारण गंभीर भोजन एवं पानी की कमी से पीड़ित होंगे, जिससे उनके समानता के अधिकार पर असर पड़ेगा।
  • स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार: न्यायालय ने भारतीय कानून में स्वच्छ पर्यावरण के लंबे समय से चले आ रहे अधिकार को मान्यता दी और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों से सुरक्षा के विशिष्ट अधिकार की आवश्यकता पर जोर दिया।

भारत में जलवायु न्यायशास्त्र

  • ग्रामीण मुकदमेबाजी और पात्रता केंद्र बनाम राज्य: अनुच्छेद 21 के तहत स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को मानव गरिमा के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता देना।
    • यह ऐतिहासिक मामला भारत में पहला उदाहरण है, जहाँ उच्चतम न्यायालय ने पर्यावरण संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए अवैध खनन को रोकने के लिए हस्तक्षेप किया।
  • M.C. मेहता बनाम भारत संघ: उच्चतम न्यायालय ने प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा घोषित किया।
  • सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य (1991): सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य (1991) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि जीवन के अधिकार में स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार शामिल है, और पर्यावरण की सुरक्षा एवं संवर्द्धन के लिए सरकार की जिम्मेदारी पर जोर दिया।
    • न्यायलय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार हेतु स्वच्छ वातावरण आवश्यक है।
  • कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड बनाम सी. केंचप्पा: इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने समुद्र स्तर और वैश्विक तापमान में वृद्धि के नकारात्मक प्रभावों को स्वीकार किया।
  • MK रणजीत सिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ: इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि व्यक्तियों के पास ‘जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों से संरक्षित होने का अधिकार’ है, इस अधिकार को अनुच्छेद 14 एवं अनुच्छेद 21 की संयुक्त व्याख्या के माध्यम से समझा जा सकता है।

भारत में जलवायु मुकदमेबाजी की स्थिति

  • न्यायपालिका की भूमिका: भारतीय न्यायपालिका पिछले कुछ समय से जलवायु से जुड़े पर्यावरणीय मुद्दों को संबोधित कर रही है, भले ही इसे स्पष्ट रूप से जलवायु मुकदमेबाजी के रूप में वर्णित न किया गया हो।
    • राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण पर्यावरण संबंधी मामलों पर ध्यान केंद्रित करता है, लेकिन इन मुद्दों से जुड़े मामले अक्सर उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में भी पहुँचते हैं।
  • नई कानूनी मिसालों की संभावना: जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अधिकार पर उच्चतम न्यायालय का फैसला एक नए कानूनी ढाँचे का मार्ग प्रशस्त कर सकता है जो पर्यावरण एवं जलवायु संबंधी चिंताओं के साथ मानवीय और सामाजिक-आर्थिक प्रगति में सामंजस्य स्थापित करेगा।
  • न्यायिक निर्णयों की प्रभावकारिता: जलवायु परिवर्तन पर न्यायालय निर्णयों की प्रभावशीलता के संबंध में संदेह बना रहता है, विशेष रूप से इसके प्रभावों से संबंधित अधिकारों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने में।
  • बाधाएँ: न्यायालय, मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन की जटिल प्रकृति और इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के कारण जलवायु परिवर्तन के मामलों में उतनी सक्रिय भागीदारी नहीं प्रदर्शित कर सकते हैं जितनी वे अन्य पर्यावरणीय मुद्दों के साथ करते हैं।

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