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द ग्रेट इंडियन इंटरनेट शटडाउन (The Great Indian Internet Shutdown)

Samsul Ansari February 01, 2024 05:39 190 0

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर से इंटरनेट सेवाओं के निलंबन के आदेश प्रकाशित न किए जाने को लेकर सवाल किया था।

संबंधित तथ्य

  • केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर (J&K) की सरकार ने कई बार कश्मीर में मोबाइल डेटा तक पहुँच को प्रतिबंधित कर दिया है, लेकिन निलंबन आदेश सरकार की वेबसाइटों पर अपलोड नहीं किए गए हैं।
  • किसानों के विरोध प्रदर्शन के बाद हरियाणा सरकार द्वारा पाँच अलग-अलग जिलों में इसी तरह के प्रतिबंधों का आदेश दिया गया। हालाँकि हरियाणा सरकार के आदेश सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं लेकिन सरकारी वेबसाइटों पर अपलोड नहीं किए गए हैं।

अनुराधा भसीन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामला, 2020

  • उद्देश्य: इंटरनेट निलंबन की घटनाओं को केवल उन असाधारण स्थितियों तक सीमित करने का निर्णय लिया गया जहाँ कोई सार्वजनिक आपात स्थिति हो या सार्वजनिक सुरक्षा को खतरा हो।
  • इंटरनेट के माध्यम से सूचना तक पहुँच एक मौलिक अधिकार है: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि इंटरनेट के माध्यम से सूचना तक पहुँच भारतीय संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है।
  • सीमित प्रतिबंध: सरकार द्वारा इंटरनेट पहुँच पर कोई भी प्रतिबंध अस्थायी, सीमित दायरे वाला, वैध, आवश्यक और आनुपातिक होना चाहिए।
  • न्यायपालिका की विचाराधीन शक्ति: इंटरनेट पहुँच को प्रतिबंधित करने वाले सरकारी आदेश न्यायालयों द्वारा समीक्षा के अधीन हैं।

आदेशों के गैर-प्रकाशन संबंधी चिंताएँ और चुनौतियाँ

  • पीड़ित व्यक्ति को न्याय तक पहुँचने की अनुमति नहीं: प्रतिबंध से पीड़ित लोग आदेश के अभाव में किसी आदेश की वैधता पर सवाल उठाने के लिए अदालत का दरवाजा नहीं खटखटा सकते।
  • अवैध प्रतिबंध: न्यायालय सरकार को आदेश प्रस्तुत करने का निर्देश दे सकता है, लेकिन इससे सरकार को प्रतिबंध समाप्त होने तक आदेश प्रस्तुत करने में देरी करने की अनुमति मिल जाएगी। इससे सरकार को अवैध प्रतिबंधों से बचने में मदद मिलती है।
  • सरकार में जनता के विश्वास को कमजोर करता है: इस युग में इंटरनेट एक आवश्यकता है और सार्वजनिक रूप से प्रकट किए गए कारणों के बिना प्रतिबंध विश्वास संबंधी कमी पैदा करते हैं।
  • कोई वैधानिक मान्यता नहीं: केंद्र सरकार ने भी अनुराधा भसीन के निर्देशों को वैधानिक मान्यता प्रदान करने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किया है।
    • वर्ष 2020 में इसने इंटरनेट निलंबन आदेशों को अधिकतम 15 दिनों तक सीमित करने के लिए दूरसंचार निलंबन नियम, 2017 में संशोधन किया।
    • हालाँकि, संशोधन में आदेशों को प्रकाशित करने की बाध्यता शामिल नहीं थी और न ही इन आदेशों की आवधिक समीक्षा करने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश शामिल थे।
  • जागरूकता की कमी: यदि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों को वैधानिक रूप से मान्यता नहीं दी जाती है, तो अधिकारी जागरूकता की कमी के कारण कानून को गलत तरीके से लागू करते हैं, जैसा कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A के साथ अनुभव किया गया है।
  • उदाहरण: मेघालय ने एक RTI आवेदन के जवाब में कहा कि उसे अनुराधा भसीन मामले में सुनाए गए फैसले की जानकारी तक नहीं थी।

इंटरनेट प्रतिबंधों की चिंताएँ और चुनौतियाँ

  • आर्थिक हानि: वर्ष 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था को हुई कुल हानि का 70% से अधिक नुकसान भारत के इंटरनेट प्रतिबंधों के कारण हुआ और भारत दुनिया की इंटरनेट शटडाउन राजधानी के रूप में बदनाम है।
  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: इंटरनेट प्रतिबंध अनुच्छेद-19(1)(a) और अनुच्छेद-19(1)(g) के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
    • यह सूचना के अधिकार का भी उल्लंघन करता है, जो राज नारायण बनाम यूपी राज्य, 1975 मामले में व्याख्यायित सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुच्छेद-19 के तहत एक मौलिक अधिकार है।
    • यह इंटरनेट के अधिकार का भी उल्लंघन करता है, जो फहीमा शिरीन बनाम केरल राज्य मामले में केरल उच्च न्यायालय द्वारा अनुच्छेद-21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।
    • यह प्रेस की स्वतंत्रता के अधिकार का भी उल्लंघन करता है, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने इंडियन एक्सप्रेस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1986) और बेनेट कोलमैन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1972) मामलों में घोषित किया था।
  • अत्यधिक नुकसान: इंटरनेट सूचना, मनोरंजन, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, आजीविका का एक स्रोत है और भारतीय समाज के सदस्यों के लिए आपस में तथा दुनिया भर के साथ संबंध अंतर्स्थापित करने का एक मंच है, हालाँकि आर्थिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक हानि और इस तरह के निलंबन के कारण होने वाली पत्रकारिता किसी भी अनुमानित लाभ से अधिक है।

इंटरनेट प्रतिबंध के पक्ष में तर्क

  • कानून और व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने हेतु: सरकार ने इस आधार पर पहुँच प्रतिबंधित कर दी कि ‘सोशल मीडिया पर उत्तेजक सामग्री’ आम जनता को गुमराह कर सकती है और इसके परिणामस्वरूप कानून अव्यवस्था की स्थिति पैदा हो सकती है।
  • हिंसा को रोकने हेतु: यह वैमनस्यपूर्ण भाषण और फर्जी खबरों के प्रसार को रोकने में मदद कर सकता है, जो हिंसा और दंगों को भड़का सकते हैं।
  • मोबाइल डेटा सेवाओं तक सीमित: इंटरनेट प्रतिबंधों को अक्सर इस आधार पर उचित ठहराया जाता है कि वे मोबाइल डेटा सेवाओं तक सीमित हैं।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: यह राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता को बाह्य खतरों तथा साइबर हमलों से बचाने में मदद कर सकता है।

इंटरनेट प्रतिबंधों के विरोध में तर्क

  • अफवाहों को सत्यापित करने के लिए एक उपकरण: सहायता प्राप्त करने के लिए इंटरनेट एक आवश्यकता है, क्योंकि यह व्यक्तियों और सरकार को सच्चाई का प्रसार करने में सक्षम बनाता है।
    • सरकार को यह समझना होगा कि अफवाहें भी ‘जनता को गुमराह’ कर सकती हैं, लेकिन उन अफवाहों की सत्यता को स्वतंत्र रूप से निर्धारित करने के लिए व्यक्तियों के पास इंटरनेट तक पहुँच नहीं होगी।
  • मोबाइल उपयोगकर्ताओं की बड़ी संख्या: भारतीय दूरसंचार सेवा प्रदर्शन संकेतक पर भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, कुल इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या का 97.02% मोबाइल डिवाइस उपयोगकर्ता हैं।
  • निम्न पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों पर अधिक प्रभाव: चूँकि ब्रॉडबैंड इंटरनेट महंगा बना हुआ है, इसलिए इंटरनेट प्रतिबंध भी निम्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोगों पर अधिक प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।

आगे की राह

  • केवल आपातकालीन स्थितियों में प्रतिबंध: इंटरनेट पर प्रतिबंध आपातकाल के समय लगाया जाना चाहिए, न कि विरोध करने के अधिकार के लोकतांत्रिक अभ्यास को बाधित करने के लिए।
    • अनुराधा भसीन मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को केवल सीमित परिस्थितियों में इंटरनेट का उपयोग प्रतिबंधित करने की अनुमति प्रदान की।
    • संसद ने भी इन प्रतिबंधों की अनुमति केवल सार्वजनिक आपात स्थिति में या सार्वजनिक सुरक्षा को खतरा होने पर ही दी है।
  • विश्व की “इंटरनेट शटडाउन कैपिटल” के टैग से छुटकारा पाने और डिजिटल इंडिया की क्षमता को पूरा करने के लिए कार्यकारी सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का  अधिक निष्ठापूर्वक अनुपालन आवश्यक है।

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