100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

द ग्रेट इंडियन पाॅवर्टी डिबेट

Lokesh Pal January 14, 2025 03:16 81 0

संदर्भ 

हाल ही में जारी दो रिपोर्टों में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2023-24 में भारत की गरीबी 5 प्रतिशत से नीचे आ जाएगी।

रिपोर्ट के बारे में

  • भारतीय स्टेट बैंक (SBI) रिपोर्ट
    • कार्यप्रणाली: SBI टीम ने संशोधित मिश्रित संदर्भ अवधि (Modified Mixed Reference Period-MMRP) का उपयोग करते हुए नवीनतम वर्ष 2023-24 सर्वेक्षण के आधार पर घरेलू व्यय वितरण का उपयोग किया है।
    • राष्ट्रीय गरीबी दर अब राष्ट्रीय स्तर पर 4-4.5% के बीच है।
      • वित्त वर्ष 2024 में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 4.86% और शहरी क्षेत्रों के लिए 4.09%।

    • गरीबी रेखा: ग्रामीण क्षेत्रों के लिए गरीबी रेखा 1,632 रुपये और शहरी क्षेत्रों के लिए 1,944 रुपये है।
      • इसे दशकीय मुद्रास्फीति और वर्ष 2011 में सुरेश तेंदुलकर समिति द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा में आरोपण कारक के लिए समायोजित किया गया है।
    • ग्रामीण-शहरी अंतर में कमी: शहरी-ग्रामीण अंतर में कमी देखी गई है।
      • इसका श्रेय वर्ष 2023-24 में सर्वेक्षण में पहचाने गए शहरी क्षेत्रों को दिया जाता है, जो वर्ष 2011-12 के समान ही हैं।
    • अतिरिक्त आयाम
      • डेटा एकत्र करने के लिए एक के बजाय तीन मासिक दौरे घरों में किए गए।
      • निःशुल्क प्रावधान शामिल: लैपटॉप/पर्सनल कंप्यूटर, टैबलेट, मोबाइल हैंडसेट, साइकिल, मोटरसाइकिल/स्कूटी, कपड़े (स्कूल यूनिफॉर्म), जूते (स्कूल के जूते, आदि) जैसी वस्तुओं का मुफ्त प्रावधान, साथ ही मुफ्त खाद्य पदार्थ शामिल हैं।
  • घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Household Consumption Expenditure Survey- HCES)
    • कार्यप्रणाली: HCES एक संशोधित मिश्रित संदर्भ अवधि (MMRP) पद्धति का उपयोग करता है।
      • रिकॉल अवधि: वस्तुओं पर व्यय के लिए रिकॉल अवधि का उपयोग किया गया है। 
        • खाद्य पदार्थ: तेल, अंडा, मांस, दूध, सब्जियों और फलों के लिए, रिकॉल अवधि ‘पिछले 7 दिन’ है।
        • कपड़े, बिस्तर, जूते, शिक्षा, टिकाऊ सामान और चिकित्सा जैसी वस्तुओं के लिए, यह ‘पिछले 365 दिन’ है।
        • अन्य वस्तुएँ: रिकॉल अवधि ‘पिछले 30 दिन’ है।
    • ग्रामीण गरीबी: वित्त वर्ष 2024 में यह घटकर 4.86% रह गया, जो वित्त वर्ष 2023 में 7.2% और वित्त वर्ष 2012 में 25.7% था।
    • शहरी गरीबी: वित्त वर्ष 2024 में इसमें 4.09% की गिरावट देखी गई, जो वित्त वर्ष 2023 में 4.6% और वित्त वर्ष 2012 में 13.7% थी।
  • गिरावट का कारण: ग्रामीण गरीबी में कमी आई
    • आबादी के निचले 5% लोगों में खपत में वृद्धि।
    • ग्रामीण गतिशीलता: भौतिक अवसंरचना में सुधार से ग्रामीण गतिशीलता में वृद्धि हुई है, जिससे क्षैतिज (ग्रामीण एवं शहरों के बीच) और ऊर्ध्वाधर आय अंतर (ग्रामीण आय वर्गों के भीतर) दोनों कम हो रहे हैं।
    • अंतर्जात ग्रामीण व्यय: ग्रामीण मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (Monthly Per Capita Expenditure- MPCE) का लगभग 30 प्रतिशत DBT हस्तांतरण, किसानों की आय में वृद्धि, ग्रामीण आजीविका में उल्लेखनीय सुधार जैसी पहलों के कारण ग्रामीण पारिस्थितिकी तंत्र में अंतर्जात है। 
  • आकलन में कमी
    • गरीबी रेखा: SBI की रिपोर्ट तेंदुलकर समिति की गरीबी रेखा पर आधारित है, जिसे दोषपूर्ण कहा जाता है क्योंकि इसमें परिवारों की खपत बास्केट में होने वाले बदलावों को शामिल नहीं किया गया है, जिसके कारण गरीबी का कम अनुमान प्राप्त करने के लिए बहुत कम गरीबी रेखा का उपयोग किया जाता है।
      • SBI की रिपोर्ट में वर्ष 2023-24 के लिए इस्तेमाल की गई गरीबी रेखा ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 55 रुपये प्रतिदिन और शहरी क्षेत्रों के लिए 65 रुपये प्रतिदिन है।
      • नमूना परिवर्तन: समाज के समृद्ध वर्गों को असंगत प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च उपभोग व्यय दर्ज किया गया है, जिससे अनुमान विकृत हो रहे हैं।
      • उदाहरण: दूसरे चरण का वर्गीकरण अब ग्रामीण क्षेत्रों के लिए भूमि एवं शहरी क्षेत्रों के लिए कार स्वामित्व के आधार पर किया जाता है, हालाँकि पहले के अभ्यासों में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए घरेलू स्थिति और घरेलू गतिविधियों तथा शहरी क्षेत्रों के लिए मासिक प्रति व्यक्ति आय के आधार पर विभाजन किया जाता था।
    • बेरोजगारी का परिदृश्य: नौकरी की वृद्धि में गिरावट और उच्च मुद्रास्फीति के साथ वास्तविक मजदूरी व्यावहारिक रूप से गरीबी में वृद्धि का कारण बन रही है।
      • भारत में लगभग 190 मिलियन श्रमिक (वर्ष 2021-22) प्रतिदिन (वर्ष 2010 की कीमतों पर वास्तविक रूप में) केवल 100 रुपये तक कमा रहे हैं, जिन्हें वर्ष 2011-12 में केवल 106.1 मिलियन श्रमिकों की तुलना में ‘पूर्ण गरीब’ (Absolutely Poor) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
    • निष्पक्षता: पुराने मानदंडों का उपयोग करके गरीबी का अनुमान लगाना और उपभोग के बास्केट में बदलावों को ध्यान में न रखना तथा पहले के उपभोग सर्वेक्षणों एवं वर्तमान HCES की कार्यप्रणाली में अंतर प्रक्रिया की निष्पक्षता में विश्वास नहीं स्थापित करता है।
    • ग्रामीण गरीबी का कम अनुमान: ग्रामीण क्षेत्रों के शहरीकृत भागों या संभावित ‘जनगणना कस्बों’ को HCES के शहरी ढाँचे में शामिल किए जाने पर ग्रामीण गरीबी अनुमान से अधिक होने की संभावना है।
    • तुलना संबंधी कठिनाइयाँ: आयामों और पद्धतियों में परिवर्तन लाने से पिछले सर्वेक्षणों के साथ तुलना पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
      • उदाहरण: MMRP 2022-23 और 2023-24 पद्धति में उच्च घरेलू व्यय का अनुमान लगाया गया है, जबकि वर्ष 2011-12 के अनुमान के लिए उपलब्ध MRP डेटा में स्पष्ट रूप से निम्न गरीबी रेखा का उपयोग किया गया है।

गरीबी अनुमान (Poverty Estimation)

  • MRP पद्धति का उपयोग करके वर्ष 2011-12 के उपभोग व्यय डेटा का उपयोग करके अंतिम आधिकारिक गरीबी अनुमान से पता चला है कि-
    • गरीबी रेखा से नीचे: ग्रामीण आबादी का 25.7 प्रतिशत और शहरी आबादी का 13.7 प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे था।
  • रंगराजन समिति: इसने अनुमान लगाया कि वर्ष 2011-12 में ग्रामीण आबादी का 30.9 प्रतिशत और शहरी आबादी का 26.4 प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे था।

गरीबी आकलन समिति

  • अलघ समिति (1979): इस समिति की स्थापना योजना आयोग (अब नीति आयोग) द्वारा पोषण संबंधी आवश्यकताओं एवं संबंधित उपभोग व्यय के आधार पर शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के लिए गरीबी रेखा निर्धारित करने के लिए की गई थी।
  • लकड़वाला समिति (1993): इस समिति की अध्यक्षता डी. टी. लकड़ावाला ने की और इसने निम्नलिखित सुझाव दिए-
    • उपभोग व्यय की गणना कैलोरी खपत के आधार पर की जानी चाहिए।
    • राज्य-विशिष्ट गरीबी रेखाएँ बनाई जानी चाहिए तथा इन्हें शहरी क्षेत्रों में औद्योगिक श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW) तथा ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-AL) का उपयोग करके अद्यतन किया जाना चाहिए।
    • राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी के आधार पर गरीबी अनुमानों के ‘स्केलिंग’ को बंद किया जाना चाहिए।
  • तेंदुलकर समिति (वर्ष 2009): इसकी अध्यक्षता सुरेश तेंदुलकर ने की थी और इसने निम्नलिखित परिवर्तनों की सिफारिश की थी:-
    • कैलोरी खपत आधारित गरीबी आकलन से हटकर बदलाव।
    • ग्रामीण और शहरी भारत में एक समान गरीबी रेखा बास्केट (PLB)।
    • गरीबी का आकलन करते समय स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर निजी व्यय को शामिल करना।
    • पहले के समान संदर्भ अवधि (Uniform Reference Period-URP) आधारित अनुमानों के विपरीत मिश्रित संदर्भ अवधि (Mixed Reference Period-MRP) आधारित अनुमानों का उपयोग करना।
  • रंगराजन समिति (वर्ष 2014): रंगराजन समिति ने शहरी क्षेत्रों के लिए गरीबी रेखा ₹47 प्रतिदिन और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ₹30 प्रतिदिन निर्धारित की थी।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.