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आर्द्रभूमि संरक्षण को मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता

Lokesh Pal March 03, 2025 03:02 103 0

संदर्भ

हाल ही में मेघालय उच्च न्यायालय द्वारा राज्य में आर्द्रभूमि के संरक्षण की निगरानी के लिए स्वप्रेरित जनहित याचिका दायर करने से आर्द्रभूमि संरक्षण पर पुनः ध्यान केंद्रित हो गया है।

विश्व आर्द्रभूमि दिवस

  • तिथि: प्रत्येक वर्ष 2 फरवरी को मनाया जाता है।
  • उद्देश्य: आर्द्रभूमि संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
  • ऐतिहासिक महत्त्व: 2 फरवरी, 1971 को ईरानी शहर रामसर में आर्द्रभूमि पर कन्वेंशन को अपनाया गया।
  • संयुक्त राष्ट्र की मान्यता: वर्ष 2022 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly- UNGA) द्वारा संकल्प 75/317 को अपनाने के साथ विश्व आर्द्रभूमि दिवस के महत्त्व पर जोर दिया गया, जिसने इसे वैश्विक पालन के रूप में स्थापित किया।
  • विश्व आर्द्रभूमि दिवस, 2024 का विषय: ‘हमारे साझा भविष्य के लिए आर्द्रभूमि की रक्षा करना।

आर्द्रभूमि के बारे में

  • परिभाषा: आर्द्रभूमि एक पारिस्थितिकी तंत्र है, जहाँ भूमि वर्ष के अधिकांश या सदैव जल से संतृप्त रहती है।
    • उदाहरण: दलदल और मैंग्रोव।
  • प्रकार: आर्द्रभूमि निम्नलिखित प्रकार की होती हैं:
    • अंतर्देशीय आर्द्रभूमि: झीलें, नदियाँ, बाढ़ के मैदान, दलदल और मौसमी आर्द्रभूमि।
    • तटीय आर्द्रभूमि: मैंग्रोव, मुहाना, लैगून, मडफ्लैट्स, प्रवाल भित्तियाँ और लवणीय दलदल।
    • कृत्रिम आर्द्रभूमि: जलाशय, नहरें, चावल के खेत, नमक के भंडार तथा अपशिष्ट जल उपचार के लिए निर्मित आर्द्रभूमियाँ।

आर्द्रभूमि की मुख्य विशेषताएँ

  • जल की उपस्थिति: सतही या भूजल के साथ स्थायी या मौसमी हो सकती हैं।
  • जलभृत मिट्टी: कम ऑक्सीजन स्तर वाली संतृप्त मृदा, कार्बनिक पदार्थों से युक्त।
  • विशेष वनस्पतियाँ: ये क्षेत्र जलभराव की स्थितियों के अनुकूल अद्वितीय वनस्पतियों और जीवों की प्रजातियों का समर्थन करते हैं।
    • उदाहरण: नरकट, सेज और मैंग्रोव आदि।
  • जैव विविधता हॉटस्पॉट: मछली, उभयचर, पक्षियों और स्तनधारियों की विविध प्रजातियों का आवास।
  • पारिस्थितिकी भूमिका: बाढ़ नियंत्रण, जल शोधन, कार्बन भंडारण और जलवायु विनियमन में सहायता करता है।

आर्द्रभूमि का महत्त्व

  • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ: आर्द्रभूमि जल शोधन, बाढ़ नियंत्रण, कार्बन पृथक्करण और जैव विविधता के लिए आवास जैसी महत्त्वपूर्ण सेवाएँ प्रदान करती हैं।
    • वे वैश्विक स्तर पर 12.1 मिलियन वर्ग किमी. में फैले हुए हैं और वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में 40.6% का योगदान करते हैं।
  • आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा: वे आजीविका, कृषि, मत्स्यपालन और पर्यटन का समर्थन करते हैं, जो आर्थिक और सामाजिक कल्याण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
    • उदाहरण: कश्मीर घाटी और चेन्नई में बाढ़ जैसी घटनाएँ, साथ ही कलिंग जैसे चक्रवात, सामुदायिक लचीलेपन के लिए आर्द्रभूमि को संरक्षित करने के महत्त्व को रेखांकित करते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन शमन: आर्द्रभूमि कार्बन सिंक और स्रोत दोनों के रूप में कार्य करती हैं, जो जलवायु विनियमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

आर्द्रभूमियों की वैश्विक स्थिति

  • आर्द्रभूमि क्षेत्र में कमी: वर्ष 1900 से अब तक, वैश्विक आर्द्रभूमि का 50% हिस्सा नष्ट हो चुका है। वर्ष 1970 से 2015 के मध्य, आर्द्रभूमि सतही क्षेत्र में 35% की कमी आई है।
  • जैव विविधता में कमी: वर्ष 1970 से अब तक अंतर्देशीय आर्द्रभूमि प्रजातियों में से 81% और तटीय तथा समुद्री प्रजातियों में से 36% की जनसंख्या में कमी आई है।
    • आर्द्रभूमि की वैश्विक हानि दर (-0.78% प्रति वर्ष) प्राकृतिक वनस्पति की हानि दर से तीन गुना अधिक है।
  • विलुप्ति जोखिम: वनस्पतियों और जीव दोनों ही आर्द्रभूमि प्रजातियों के वैश्विक स्तर पर विलुप्त होने का जोखिम बढ़ा रहे हैं।

वैश्विक पहल और रूपरेखा

  • रामसर कन्वेंशन: रामसर कन्वेंशन एक अंतर-सरकारी संधि है, जो आर्द्रभूमि और उनके संसाधनों के संरक्षण तथा बुद्धिमानीपूर्ण उपयोग के लिए राष्ट्रीय कार्रवाई एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए रूपरेखा प्रदान करती है।
    • रामसर दर्शन का केंद्र आर्द्रभूमि का ‘बुद्धिमत्तापूर्वक उपयोग’ है।
    • बुद्धिमत्तापूर्वक उपयोग: सतत् विकास के संदर्भ में पारिस्थितिकी तंत्र का प्रबंधन।
  • मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड, अंतरराष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों की सूची में शामिल उन आर्द्रभूमि स्थलों का रजिस्टर है, जहाँ तकनीकी विकास, प्रदूषण या अन्य मानवीय हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप पारिस्थितिक तंत्र में परिवर्तन हुए हैं, हो रहे हैं, या होने की संभावना है।
    • इसे रामसर सूची के भाग के रूप में रखा गया है।
  • ग्लोबल वेटलैंड आउटलुक (Global Wetland Outlook- GWO): यह रामसर कन्वेंशन की एक रिपोर्ट है, जो दुनिया भर में आर्द्रभूमियों की स्थिति का आकलन प्रदान करती है।
    • यह इन महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी प्रणालियों की सुरक्षा के लिए आवश्यक प्रवृत्तियों, चुनौतियों और संरक्षण प्रयासों पर प्रकाश डालती है।
  • COP14 के मुख्य बिंदु: वर्ष 2022 के रामसर COP-14 ने वैश्विक जैव विविधता लक्ष्यों, जलवायु परिवर्तन रूपरेखाओं और पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पहलों के साथ आर्द्रभूमि संरक्षण को संरेखित करने की आवश्यकता पर बल दिया।
  • अंतर्संबंध: आर्द्रभूमि संरक्षण संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों (SDG), पेरिस समझौते और पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक से जुड़ा हुआ है।

भारत में आर्द्रभूमि संरक्षण

  • रामसर स्थल: भारत ने 89 रामसर स्थल (2 फरवरी, 2025 तक) निर्धारित किए हैं, जो 1.33 मिलियन हेक्टेयर (कुल आर्द्रभूमि क्षेत्र का 8%) को कवर करते हैं।
  • प्राकृतिक आर्द्रभूमि में कमी: शहरीकरण, प्रदूषण और बुनियादी ढाँचे के विकास के कारण पिछले चार दशकों में प्राकृतिक आर्द्रभूमि में 30% की कमी आई है।
    • भारत की प्राकृतिक आर्द्रभूमि (66.6%) घट रही है, जबकि मानव निर्मित आर्द्रभूमि बढ़ रही है।
  • भारत में आर्द्रभूमि की भीषण हानि: वर्ष 2010 में आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम लागू होने और वर्ष 2017 में उनके संशोधन के बावजूद, भारत की आर्द्रभूमि का क्षरण चिंताजनक दर से जारी है।
    • मुंबई ने वर्ष 1970 से 2014 के बीच अपनी 71% आर्द्रभूमि खो दी।
    • पूर्वी कोलकाता की आर्द्रभूमि वर्ष 1991 से 2021 तक 36% कम हो गई।
    • WWF के एक अध्ययन के अनुसार, चेन्नई ने अपनी 85% आर्द्रभूमि खो दी।

आर्द्रभूमि संरक्षण के लिए सरकारी पहल

  • अमृत ​​धरोहर योजना (वर्ष 2023- वर्ष 2024): केंद्रीय बजट वर्ष 2023-2024 में शुरू की गई अमृत धरोहर योजना का उद्देश्य अगले तीन वर्षों में आर्द्रभूमि का इष्टतम उपयोग करना, जैव विविधता, कार्बन स्टॉक, इको-टूरिज्म और स्थानीय आजीविका को बढ़ाना है।
  • जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय योजना (वर्ष 2013): जलीय पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण के लिए राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम और राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना को मिला दिया गया।
  • आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम (वर्ष 2017): पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरणों की स्थापना की गई, जो आर्द्रभूमि संरक्षण और प्रबंधन के लिए एक कानूनी ढाँचा प्रदान करते हैं।
  • तटीय संरक्षण विनियम: तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना (2018) और द्वीप संरक्षण क्षेत्र अधिसूचना (2011) के माध्यम से तटीय आर्द्रभूमि की सुरक्षा करता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण सुनिश्चित होता है।
  • MoEFCC का आर्द्रभूमि कायाकल्प कार्यक्रम (वर्ष 2020): बेसलाइन डेटा संग्रह, त्वरित आकलन, हितधारक जुड़ाव और प्रबंधन योजना के माध्यम से 500 से अधिक वेटलैंड्स को कवर करता है।
  • नमामि गंगे (वर्ष 2021) के साथ एकीकरण: राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (National Mission for Clean Ganga- NMCG) के तहत आर्द्रभूमि संरक्षण को नदी कायाकल्प से जोड़ता है, गंगा जिलों में 500 से अधिक आर्द्रभूमियों के लिए स्वास्थ्य कार्ड और प्रबंधन योजनाएँ विकसित करता है।
  • राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना (वर्ष 2017- वर्ष 2031): जैव विविधता संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए आर्द्रभूमि संरक्षण को प्राथमिकता देता है, एक राष्ट्रीय आर्द्रभूमि मिशन का समर्थन करता है।

आर्द्रभूमि संरक्षण में चुनौतियाँ

  • विकास दबाव: शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और कृषि विस्तार आर्द्रभूमि क्षरण के प्रमुख कारक हैं।
    • आर्द्रभूमि संरक्षण को प्रायः व्यापक विकास योजनाओं में शामिल नहीं किया जाता।
  • जलवायु परिवर्तन: तापमान में वृद्धि, वर्षा के बदलते पैटर्न और समुद्र स्तर में वृद्धि आर्द्रभूमि की हानि को बढ़ाती है।
  • शासन संबंधी मुद्दे: एकीकृत प्रबंधन की कमी और संरक्षण नीतियों के कमजोर क्रियान्वयन से आर्द्रभूमि संरक्षण में बाधा उत्पन्न होती है।
  • सीमित जागरूकता: आर्द्रभूमि के पारिस्थितिकी और आर्थिक मूल्य को प्रायः कम करके आँका जाता है, जिसके कारण विकास योजना में उनकी उपेक्षा की जाती है।

प्रभावी आर्द्रभूमि प्रबंधन के लिए रणनीतियाँ

  • रामसर COP-14 द्वारा अनुशंसित पारिस्थितिकी तंत्र आधारित दृष्टिकोण अपनाना।
    • उदाहरण: प्राकृतिक जल प्रवाह को बनाए रखना, अतिक्रमण को रोकना तथा भूमि-उपयोग परिवर्तनों को विनियमित करना, देशज प्रजातियों की सुरक्षा करना, आक्रामक प्रजातियों को नियंत्रित करना आदि।
  • छोटी और मौसमी आर्द्रभूमियों की सुरक्षा करना: छोटी और मौसमी आर्द्रभूमियों को उनके उच्चतम बाढ़ स्तर पर संरक्षित करने की अत्यंत आवश्यकता है, इसके लिए आधिकारिक अभिलेखों में मानसून के दौरान उनके अधिकतम प्रसार का दस्तावेजीकरण किया जाना चाहिए।
    • उदाहरण: शहरी विस्तार के कारण बंगलूरू की लुप्त होती आर्द्रभूमियाँ मौसमी आर्द्रभूमि की आधिकारिक मान्यता और संरक्षण की आवश्यकता को उजागर करती हैं।
  • निगरानी और प्रशासन को बेहतर बनाना: ट्रैकिंग के लिए उपग्रह डेटा का उपयोग करना, अंतर-विभागीय समन्वय में सुधार करना और स्थानीय समुदायों को शामिल करना।
    • उदाहरण: चिल्का झील निगरानी प्रणाली पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को ट्रैक करने के लिए रिमोट सेंसिंग और सामुदायिक भागीदारी का उपयोग करती है।
  • प्रकृति आधारित समाधानों को बढ़ावा देना: क्षरित आर्द्रभूमि को पुनर्स्थापित करना, उन्हें अपशिष्ट जल उपचार के लिए उपयोग करना, तथा ब्लू-ग्रीन अवसंरचना को एकीकृत करना।
    • जलवायु अनुकूलन और शमन रणनीतियों में आर्द्रभूमि संरक्षण को शामिल करना।
    • उदाहरण: सुंदरबन में मैंग्रोव का पुनर्स्थापन, चक्रवातों और बढ़ते समुद्री स्तर के से निपटने हेतु एक बफर के रूप में कार्य करता है।
  • सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना: आजीविका प्रोत्साहन प्रदान करना, पारिस्थितिकी पर्यटन को बढ़ावा देना और जन जागरूकता बढ़ाना।
    • उदाहरण: मणिपुर में लोकटक झील मछुआरों की सहकारी संस्था आर्द्रभूमि संरक्षण को संधारणीय मछली पकड़ने की प्रथाओं के साथ संतुलित करती है।
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: आर्द्रभूमि में होने वाले परिवर्तनों के व्यापक मानचित्रण और निगरानी के लिए भू-स्थानिक उपकरणों का उपयोग करना और संरक्षण प्रयासों को प्राथमिकता देना।
    • उदाहरण: अहमदाबाद में अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (SAC) द्वारा तैयार किया गया राष्ट्रीय आर्द्रभूमि दशकीय परिवर्तन एटलस, पिछले एक दशक में देश भर में आर्द्रभूमि में होने वाले गतिशील परिवर्तनों के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है।
  • आर्थिक मूल्यांकन: निर्णयन में उनके महत्त्व को उजागर करने के लिए आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के आर्थिक मूल्य का आकलन करना।

निष्कर्ष 

आर्द्रभूमियाँ, संधारणीयता के लिए आवश्यक हैं। एकीकृत नियोजन, नवाचार और वैश्विक सहयोग के माध्यम से उनकी सुरक्षा करना विकास और जलवायु लचीलेपन की कुंजी है।

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