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हालिया केंद्र सरकार के लिए विनिर्माण क्षेत्र 3.0 का स्वरूप

Lokesh Pal July 13, 2024 01:58 138 0

संदर्भ

भारत में नवगठित गठबंधन सरकार को आर्थिक सुधारों, विशेषकर विनिर्माण से संबंधित सुधारों पर अपने प्रयासों को दोगुना करना होगा। 

  • गठबंधन सरकार वह होती है, जिसमें कई राजनीतिक दल एक साथ आते हैं और अक्सर सबसे अधिक सीटें जीतने वाली पार्टी का प्रभुत्व कम कर देते हैं।

भारत में विनिर्माण क्षेत्र (Manufacturing Sector) के बारे में

विनिर्माण, अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न एवं बड़ा हिस्सा है। इसमें अयस्क, लकड़ी और खाद्य पदार्थों जैसे कच्चे माल को संसाधित तथा परिष्कृत करके तैयार उत्पादों जैसे धातु के सामान, फर्नीचर एवं प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में बदलना शामिल है। इन कच्चे माल को किसी अधिक उपयोगी चीज में बदलना मूल्य जोड़ता है।

  • योगदान: भारत में विनिर्माण क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में 16-17% का योगदान देता है।
    • इस क्षेत्र में 27.3 मिलियन से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं।
    • भारत विश्व में तीसरा सर्वाधिक माँग वाला विनिर्माण गंतव्य है और इसमें वर्ष 2030 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात करने की क्षमता है।
  • लक्ष्य: भारत का लक्ष्य मेक इन इंडिया के लक्ष्य के अनुसार, वर्ष 2025 तक अर्थव्यवस्था के उत्पादन में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान 25% तक बढ़ाना है।
  • उपलब्धियाँ: विनिर्माण निर्यात ने वित्त वर्ष 2023 के दौरान 6.03% की वृद्धि के साथ 447.46 बिलियन अमेरिकी डॉलर का अब तक का सबसे अधिक वार्षिक निर्यात दर्ज किया है, जो पिछले वर्ष (वित्त वर्ष 2022) के 422 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड निर्यात को पार कर गया है।
    • वर्ष 2030 तक भारतीय मध्यम वर्ग की वैश्विक खपत में 17% हिस्सेदारी के साथ दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी होने की उम्मीद है।
    • विश्व बैंक की नवीनतम वार्षिक रेटिंग के अनुसार, कारोबार करने में आसानी (ईज ऑफ डूइंग बिजनेस) के मामले में 190 अर्थव्यवस्थाओं में भारत 63वें स्थान पर है।
    • वित्त वर्ष 2025 के पहले दो महीनों में आठ कोर उद्योग सूचकांक में वर्ष-दर-वर्ष 6.5% की वृद्धि हुई, जो मुख्य रूप से कोयला, प्राकृतिक गैस और विद्युत जैसे आवश्यक क्षेत्रों में बढ़ी गतिविधियों से प्रेरित थी।
      • भारतीय अर्थव्यवस्था के आठ प्रमुख क्षेत्र हैं: विद्युत, इस्पात, रिफाइनरी उत्पाद, कच्चा तेल, कोयला, सीमेंट, प्राकृतिक गैस और उर्वरक।

भारत में विनिर्माण क्षेत्र के लिए अवसर

भारत विनिर्माण क्षेत्र में विदेशी निवेश के लिए एक आकर्षक केंद्र है। कई मोबाइल फोन, लक्जरी और ऑटोमोबाइल ब्रांड्स ने देश में अपना विनिर्माण केंद्र स्थापित कर लिया है या स्थापित करने की योजना बना रहे हैं।

  • विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या: भारत वर्ष 2023 में चीन को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया। भारत में विनिर्माण करने वाली कंपनियों के पास एक बहुत बड़ा अंतर्निहित बाजार होगा।
  • अपेक्षाकृत कम श्रम लागत: वर्ल्ड डेटा (World Data) के अनुसार, भारत में श्रमिकों का वेतन/आय चीन से 82% कम है, थाईलैंड से 70% कम है, इंडोनेशिया से 49% कम है तथा वियतनाम एवं फिलीपींस दोनों से 40% कम है।
  • मजबूत श्रम उपलब्धता: भारत में कामकाजी आयु वर्ग की बड़ी आबादी है, जिनमें से अधिकांश इंजीनियर द्विभाषी हैं।
  • चीन प्लस वन रणनीति (China Plus One Strategy): भारत निश्चित रूप से चीन प्लस वन रणनीति का प्रमुख लाभार्थी रहा है, जिसके तहत विनिर्माता उत्पादन के लिए चीन पर अपनी निर्भरता कम कर रहे हैं और अन्यत्र, विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत में विस्तार कर रहे हैं।

भारत में विनिर्माण क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता

भारत के विनिर्माण क्षेत्र में वर्ष 2025 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की क्षमता है।

  • शक्तिशाली घरेलू मजबूरियाँ: भारत में रोजगार सृजन की बहुत बड़ी आवश्यकता है। लगभग आधे भारतीय श्रमिक कम उत्पादकता वाली कृषि में फँसे हुए हैं।
    • यदि भारत द्वारा प्रमुख कृषि सुधारों को लागू करने के प्रयास सफल होते हैं, तो कृषि से रोजगार का तेजी से और बड़े पैमाने पर स्थानांतरण हो सकता है।
  • व्यापक घरेलू बाजार और माँग: भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में घरेलू और बाहरी दोनों ग्राहकों की ओर से उनके सामानों की मजबूत माँग देखी गई है।
    • SBI की एक रिपोर्ट के अनुसार, मजबूत माँग और 19 वर्षों में सबसे अधिक भर्ती गतिविधियों के कारण विनिर्माण क्रय प्रबंधक सूचकांक जून 2024 में बढ़ गया।
    • वर्ष 2030 तक भारतीय मध्यम वर्ग की वैश्विक खपत में 17% हिस्सेदारी के साथ दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी होने की उम्मीद है।
  • क्षेत्रीय लाभ: रसायन, फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोटिव, इलेक्ट्रॉनिक्स, वस्त्र आदि जैसे प्रमुख विनिर्माण क्षेत्रों में हाल के वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
    • भारतीय सेलुलर एवं इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (Indian Cellular and Electronics Association- ICEA) का अनुमान है कि भारत में नीतिगत हस्तक्षेप के माध्यम से वर्ष 2025 तक अपनी संचयी लैपटॉप एवं टैबलेट विनिर्माण क्षमता को 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने की क्षमता है।
  • माल व्यापार घाटे का रखरखाव (Maintenance of Goods Trade Deficit): इस धारणा के बावजूद कि भारत ‘व्यापार विरोधी’ है, पिछले 12 महीनों में भारत का वस्तु व्यापार 1 ट्रिलियन डॉलर से थोड़ा अधिक था तथा इस अवधि में घाटा 250 बिलियन डॉलर था। 
    • आयातित आइटम: भारत के आयात में हाइड्रोकार्बन का योगदान एक-चौथाई से अधिक है तथा इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे विनिर्मित सामान इसका एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं।
  • ग्लोबल साउथ के बाजार तक पहुँच: संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, भारतीय विनिर्माण यूरोप से एशिया की ओर वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में स्थानांतरित हो रहा है। 
    • ग्लोबल साउदर्न साझेदारों से भारत की घरेलू अंतिम माँग में विदेशी मूल्य-संवर्द्धन का हिस्सा वर्ष 2005 में 27% से बढ़कर वर्ष 2015 में 45% हो गया।
  • अन्य: आर्थिक विकास को बढ़ावा देना, रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता, प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ, MSME का उत्थान आदि।

भारत में विनिर्माण क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ

विनिर्माण क्षेत्र को सामाजिक और आर्थिक विकास की रीढ़ माना जाता है। हालाँकि, इसे निम्नलिखित विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है:

  • स्वचालन में वृद्धि (Rise in Automation): विनिर्माण क्षेत्र में नवाचार ने मुख्यतः कौशल-पक्षपाती रूप ले लिया है, जिससे अपेक्षाकृत कम शिक्षा वाले श्रमिकों की माँग कम हो गई है।
    • स्वचालन, रोबोट और 3D प्रिंटिंग जैसी नई प्रौद्योगिकियाँ प्रत्यक्ष तौर पर श्रम के स्थान पर भौतिक पूँजी का उपयोग करती हैं।
    • जैसे-जैसे विनिर्माण प्रक्रियाओं में स्वचालन का प्रसार हो रहा है, विनिर्माण श्रमिकों से अपेक्षित कौशल विकसित हो रहे हैं। शारीरिक श्रम और दोहराव वाले कार्यों की आवश्यकता वाली नौकरियाँ कम होती जा रही हैं।
    • विश्व बैंक के अनुसार, भारत के केवल 24% कार्यबल के पास जटिल विनिर्माण नौकरियों के लिए आवश्यक कौशल है, जबकि अमेरिका में यह आँकड़ा 52% और दक्षिण कोरिया में 96% है।
  • वैश्विक गुणवत्ता प्रतियोगिता: कंपनियों को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं द्वारा निर्धारित सटीक गुणवत्ता मानकों के अनुसार उत्पादन करने की आवश्यकता है, जिसका प्रभाव अकुशल श्रम पर पड़ता है और जिसे आसानी से भौतिक पूँजी और कुशल श्रम के स्थान पर प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
    • हालाँकि भारत और अन्य विकासशील देशों की कंपनियों को अधिक श्रम-प्रधान तकनीकों का उपयोग करने का प्रोत्साहन मिलता है, वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्द्धा करने के लिए ऐसी उत्पादन तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता होती है, जो अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में प्रयुक्त तकनीकों से बहुत अधिक भिन्न न हों।
    • पुरानी प्रौद्योगिकी और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे पर निर्भरता, भारतीय निर्माताओं की वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने और अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों को पूरा करने की क्षमता में बाधा डालती है।
  • सीमित वृद्धि: विनिर्माण में बढ़ती कौशल एवं पूंजी-तीव्रता का अर्थ है कि विनिर्माण के औपचारिक क्षेत्रों ने महत्त्वपूर्ण मात्रा में श्रम को अवशोषित करने की क्षमता खो दी है।
    • वे प्रभावी रूप से ‘एन्क्लेव क्षेत्र’ बन गए हैं, जो खनन से बहुत अलग नहीं हैं, जिनमें विकास की संभावनाएँ सीमित हैं और शेष अर्थव्यवस्था के आपूर्ति पक्ष पर बहुत कम सकारात्मक प्रभाव हैं।
  • भारत के विनिर्माण आधार में गिरावट: विश्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र में सापेक्षिक गिरावट आ रही है, जो वर्ष 2022 में सकल घरेलू उत्पाद का केवल 13% ही था।
      • यह वियतनाम (25%), बांग्लादेश (22%), मलेशिया (23%), इंडोनेशिया (18%), मैक्सिको (21%), और चीन (28%) जैसे बाजारों की तुलना में प्रतिकूल है।
      • भारत के निरंतर शहरीकरण के परिणामस्वरूप आने वाले दशकों में करोड़ों कृषि श्रमिक औपचारिक रोजगार की तलाश में शहरों की ओर स्थानांतरित होंगे।
        • कम-कुशल रोजगार सृजन में विफलता भारत की शासन संरचनाओं पर भारी दबाव डाल सकती है। 
  • राज्य और उनका व्यावसायिक वातावरण: राज्यों के कारोबारी माहौल की रैंकिंग जिसे ‘बिजनेस रिफॉर्म्स एक्शन प्लान’ (Business Reforms Action Plan- BRAP) कहा जाता है, को कोविड-19 महामारी के बाद से अपडेट नहीं किया गया है।
    • इसे इसलिए भी कमजोर माना गया क्योंकि इसमें राज्यों की अपनी स्थानीय व्यावसायिक प्रथाओं पर स्वयं रिपोर्टिंग पर ध्यान केंद्रित किया गया था, जो अक्सर वास्तविक निवेशक अनुभवों के विपरीत था।
    • इसके अलावा, जटिल विनियामक वातावरण भारत में विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित करने के इच्छुक व्यवसायों के लिए बाधक के रूप में कार्य करता है।
      • उदाहरण: भारत में भूमि अधिग्रहण एक जटिल प्रक्रिया है, और नीति आयोग का सुझाव है कि भूमि स्वामित्व अधिनियम को अभी विधानमंडल द्वारा पारित किया जाना है।
  • राज्यों की सहमति प्राप्त करना कठिन: राज्यों के लिए आदर्श उद्योग कानून बनाने में मदद करने की केंद्र सरकार की योजना निराशाजनक रही है। सभी राज्यों को विचारशील, पारदर्शी औद्योगिक नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए राजी करना एक कठिन कार्य है।
  • उच्च इनपुट लागत और चीनी प्रतिस्पर्द्धा: RBI के अनुसार, वर्ष 2022 तक भारत में लॉजिस्टिक्स लागत वैश्विक औसत की तुलना में 14% अधिक थी, जो समग्र प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित करती है।
    • इसके अलावा, विश्व व्यापार संगठन के अनुसार, चीन दुनिया का अग्रणी निर्माता बना हुआ है, जो वर्ष 2022 में वैश्विक विनिर्माण उत्पादन का लगभग 30% हिस्सा था।

भारत सरकार द्वारा की गई विभिन्न पहल

भारत सरकार ने देश में विनिर्माण क्षेत्र के विकास के लिए स्वस्थ वातावरण को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं। इनमें से कुछ उल्लेखनीय पहल और विकास इस प्रकार हैं:

  • उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (PLI) योजना के लिए आवंटन में वृद्धि: अंतरिम केंद्रीय बजट 2024-2025 में, इसमें पर्याप्त वृद्धि देखी गई, सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम के लिए 360% की वृद्धि के साथ 6,903 करोड़ रुपये और ऑटोमोबाइल क्षेत्र के लिए 623% की वृद्धि के साथ 3,500 करोड़ रुपये हो गया।

  • रक्षा विनिर्माण क्षेत्र के लिए: अंतरिम केंद्रीय बजट 2024-25 में, रक्षा मंत्रालय को 621,541 करोड़ रुपये (74.78 बिलियन अमेरिकी डॉलर) आवंटित किए गए हैं, जो कि पिछले आवंटन 593,538 करोड़ रुपये (71.41 बिलियन अमेरिकी डॉलर) से लगभग 4.72% की उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है।
  • सनराइज इंडस्ट्री के लिए: बजट में सनराइज इंडस्ट्री के लिए 1 लाख करोड़ रुपये (12 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के नवाचार कोष के निर्माण के लिए भी धनराशि आवंटित की गई, जिससे स्टार्टअप उद्योग को पर्याप्त बढ़ावा मिलेगा।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric Vehicles- EV) को बढ़ावा देने के उद्देश्य से: यह EV चार्जिंग नेटवर्क के विस्तार के माध्यम से किया जाएगा, जिससे विनिर्माण एवं रखरखाव में छोटे विक्रेताओं के लिए अवसर उपलब्ध होते हैं।
  • कौशल विकास: ‘स्किल इंडिया डिजिटल डेटा’ के अनुसार, स्किल इंडिया मिशन के मद्देनजर प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (Pradhan Mantri Kaushal Vikas Yojana- PMKVY) के तहत वर्ष 2015 से 1.40 करोड़ से अधिक उम्मीदवारों को प्रशिक्षित किया  गया था।
    • अल्पावधि प्रशिक्षण (Short-term Training- STT) कार्यक्रम में, 42% प्रमाणित उम्मीदवारों को प्लेसमेंट के अवसर मिले, जिसमें 57.42 लाख प्रमाणित उम्मीदवारों में से 24.39 लाख उम्मीदवारों को सफलतापूर्वक नौकरी मिल गई।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिजाइन और विनिर्माण (Electronics System Design and Manufacturing- ESDM) क्षेत्र के लिए: मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी विभिन्न पहलों ने भारत में  ESDM क्षेत्र को बहुप्रतीक्षित बढ़ावा दिया है।
    • इसके अलावा, संशोधित विशेष प्रोत्साहन योजना (Modified Special Incentive Scheme-M-SIPS), इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निधि और इलेक्ट्रॉनिक्स पर राष्ट्रीय नीति 2019 (National Policy on Electronics 2019) जैसे सरकार के प्रयासों को सफलता मिली है।
    • मोबाइल फोन विनिर्माण तथा असेंबलिंग, परीक्षण, मार्किंग और पैकेजिंग इकाइयों सहित निर्दिष्ट इलेक्ट्रॉनिक घटकों में बड़े निवेश को आकर्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिए PLI योजना अधिसूचित की गई है।
  • वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST): कुछ महत्त्वपूर्ण आर्थिक सुधार जिनसे लक्ष्य प्राप्त करने में मदद मिलनी चाहिए थी, उनमें सबसे उल्लेखनीय वर्ष 2017 में वस्तु एवं सेवा कर (GST) की मंजूरी थी, जिसने भारत के राज्य-स्तरीय टैक्स कोडों को काफी हद तक एकीकृत कर दिया।
    • GST से लॉजिस्टिक लागत में 10-12% की कमी आएगी।
  • मेगा निवेश टेक्सटाइल पार्क (मित्रा) योजना: तीन वर्षों में सात विश्वस्तरीय टेक्सटाइल पार्क बनाने की योजना है, ताकि पैमाने और समूहीकरण की अर्थव्यवस्थाओं के माध्यम से वैश्विक उद्योग चैंपियनों को बढ़ावा दिया जा सके।
  • समर्थ उद्योग भारत 4.0: उन्नत विनिर्माण और तीव्र परिवर्तन केंद्रों के माध्यम से विनिर्माण क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिए भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय द्वारा एक पहल।
  • अन्य: श्रम कानूनों का एकीकरण, मेक इन इंडिया 2.0, उदारीकृत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, स्टार्ट-अप इंडिया, आत्मनिर्भर भारत अभियान, विशेष आर्थिक क्षेत्र, MSME अभिनव योजना, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, आदि।

आगे की राह

भारत का विनिर्माण क्षेत्र वर्ष 2025-26 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की ओर अग्रसर है, जिसका नेतृत्व गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु कर रहे हैं, जिसे ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और कपड़ा उद्योगों में निवेश से बल मिलेगा।

  • नीतिगत ध्यान: उत्पादन के अधिकांश कारक जैसे विद्युत, जल, स्वच्छता, श्रम नियम, भूमि अधिग्रहण नियम तथा पर्यावरण नियम मुख्य रूप से भारत की राज्य सरकारों द्वारा नियंत्रित होते हैं। 
    • इसलिए, भारत सरकार को नीतिगत स्तर पर बहुत अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • रोजगार सृजन पर फोकस: सरकार को अर्द्धचालक और रोबोटिक्स जैसे पूँजी-गहन क्षेत्रों में निवेश पर विशेष रूप से जोर देने के बजाय, कपड़ा, पेपर मिलों और फर्नीचर जैसे रोजगार-सृजन विनिर्माण क्षेत्रों पर अधिक जोर देने पर विचार करना चाहिए।
  • विनिर्माण के लिए व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र: अब एक व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने का समय आ गया है जिसके लिए शिक्षा, प्रशिक्षण और बुनियादी ढाँचे सहित एक सहायक पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता है।
    • वर्ष 1991 के आर्थिक सुधारों में सहायक पारिस्थितिकी तंत्र की इस आवश्यकता को नजरअंदाज कर दिया गया।
  • राज्य-स्तरीय आर्थिक सलाहकार परिषदों की स्थापना: शिक्षा, उद्योग और सरकार के विशेषज्ञों द्वारा गठित, ऐसी परिषद को विनिर्माण प्रोत्साहन और नियामक ढाँचे सहित आर्थिक नीतियों पर राज्य सरकारों को सलाह देने की आवश्यकता होती है।
  • BRAP रैंकिंग की समीक्षा और अद्यतन: स्व-रिपोर्टिंग के साथ-साथ स्वतंत्र मूल्यांकन और ऑडिट को शामिल करने के लिए BRAP में सुधार करना।
    • निवेशकों को विश्वसनीय मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए राज्यों के कारोबारी वातावरण की रैंकिंग में पारदर्शिता और सटीकता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
  • अन्य: संभावित वृद्धि को प्राप्त करने के लिए, बुनियादी ढाँचे में अधिक निवेश, निर्यात-उन्मुख विनिर्माण को प्रोत्साहन, MSME को और अधिक वित्तीय सहायता तथा सरलीकृत एवं सक्षम विनियमन की आवश्यकता है।
  • कौशल विकास पर ध्यान देना: यह विनिर्माण उद्योग में कुशल श्रमिकों की कमी को दूर कर सकता है और इसकी प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त को बढ़ा सकता है।
    • उदाहरण: वियतनाम अपने अपेक्षाकृत बड़े, सुशिक्षित और कुशल श्रम बल के कारण वैश्विक विनिर्माण केंद्र में तब्दील हो गया है।

निष्कर्ष

भारत के राष्ट्रीय चुनाव ने नीति का आकलन एवं पुनर्निर्देशन करने का अवसर प्रदान किया। लेकिन मौजूदा विनिर्माण प्रोत्साहन के पीछे भारत की मुख्य जरूरतें (नौकरियाँ, व्यापार और सुरक्षा) नहीं बदलेंगी। वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए, विशेष रूप से भारत में राज्य स्तर पर, ‘मेक इन इंडिया’ को और गति देने के लिए और अधिक कार्य करने की आवश्यकता है।

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