100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

द स्टेट ऑफ सोशल जस्टिस इन इंडिया, 2025

Lokesh Pal October 09, 2025 03:34 53 0

संदर्भ

हाल ही में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने ‘द स्टेट ऑफ सोशल जस्टिस इन इंडिया: ए वर्क इन प्रोग्रेस’ (2025) शीर्षक से अपनी प्रमुख रिपोर्ट जारी की।

ILO रिपोर्ट की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1995 का सामाजिक विकास के लिए विश्व शिखर सम्मेलन (कोपेनहेगन)
    • वैश्विक सम्मेलन: सामाजिक विकास के लिए प्रथम विश्व शिखर सम्मेलन में 186 देशों के नेता एकत्रित हुए, जो उस समय का सबसे बड़ा सम्मेलन था।
    • रोजगार पर ध्यान: पूर्ण एवं उत्पादक रोजगार को मानव विकास का मूल आधार तथा गरीबी उन्मूलन एवं सामाजिक समावेशन से इसके संबंध को मान्यता दी गई।

  • जन-केंद्रित विकास: बढ़ती बेरोजगारी, अपूर्ण बुनियादी आवश्यकताओं और सामाजिक बहिष्कार के बीच मानवीय आवश्यकताओं को प्राथमिकता देने वाला एक ढाँचा तैयार करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
  • वर्ष 2025 संदर्भ: नवीनीकृत वैश्विक मूल्यांकन
    • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की समीक्षा: कतर में होने वाले दूसरे विश्व शिखर सम्मेलन (नवंबर 2025) से पूर्व, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने  ‘द स्टेट ऑफ सोशल जस्टिस इन इंडिया: ए वर्क इन प्रोग्रेस’ (2025) रिपोर्ट जारी की, जिसमें तीन दशकों की प्रगति का आकलन किया गया है।
    • नैतिक और कार्यात्मक अनिवार्यता: इस बात पर जोर दिया गया कि शांति, विश्वास, संस्थागत वैधता और मानवीय क्षमता के प्रयोग तथा समावेशी एवं सतत् समाजों के निर्माण के लिए सामाजिक न्याय आवश्यक है।

सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने के चार स्तंभ

  • सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने के लिए ILO का दृष्टिकोण चार स्तंभों पर आधारित है:-
    • मौलिक मानवाधिकार और क्षमताएँ: सामाजिक न्याय के आधार के रूप में बुनियादी स्वतंत्रताएँ और आवश्यक अधिकार सुनिश्चित करना।
    • अवसरों तक समान पहुँच: शिक्षा, प्रशिक्षण और रोजगार की बाधाओं को दूर करना, जिससे सभी को सभ्य जीवनयापन करने में सक्षम बनाया जा सके।
    • उचित वितरण: आर्थिक विकास में न्यायोचित हिस्सेदारी की गारंटी, विशेष रूप से सबसे वंचित वर्गों पर ध्यान केंद्रित करते हुए।
    • उचित परिवर्तन: पर्यावरणीय, डिजिटल और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों का प्रबंधन करने के लिए संस्थानों को अनुकूलित और सुदृढ़ करना।

ILO रिपोर्ट (2025) पर महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि

  • वैश्विक प्रगति
    • बाल श्रम: वर्ष 1995 में 20.6% से घटकर वर्ष 2024 में 7.8% हो गया, जबकि माध्यमिक विद्यालय की शिक्षा पूर्ण करने वालों की संख्या में वर्ष 2000 से वर्ष 2024 तक 22 प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई।
    • गरीबी में कमी: चरम गरीबी 10 में से 4 व्यक्ति (1995) से घटकर 10 में से 1 व्यक्ति (2023) हो गई; कार्यशील गरीबी 27.9% (वर्ष 2000) से घटकर 6.9% (वर्ष 2024) हो गई।
    • श्रम उत्पादकता: प्रति श्रमिक वैश्विक श्रम उत्पादकता में 78% की वृद्धि हुई, जिसमें उच्च-मध्यम आय वाले देशों में 215% की वृद्धि हुई; देशों के बीच उत्पादकता असमानता में 40% की कमी आई।
    • समन्वित नीतिगत प्रभाव: सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देने और असमानताओं को कम करने में सामूहिक नीति कार्रवाई की क्षमता को प्रदर्शित करता है।
  • चुनौतियाँ
    • गरीबी उन्मूलन में कमी: लगभग 80 करोड़ लोग अभी भी 3 अमेरिकी डॉलर प्रतिदिन से कम पर जीवनयापन कर रहे हैं और प्रत्येक चार में से एक व्यक्ति के पास सुरक्षित पेयजल तक पहुँच नहीं है।
    • अत्यधिक असमानताएँ: विश्व में शीर्ष 1% लोगों के पास 20% आय और 38% संपत्ति है।
    • लैंगिक असमानताएँ और अनौपचारिकता: महिलाएँ पुरुषों के वेतन का केवल 78% कमाती हैं, श्रम बल भागीदारी का अंतर वर्ष 1995 से केवल 3 प्रतिशत अंक कम हुआ है और 58% श्रमिक अनौपचारिक रोजगार में हैं।
    • अधिकारों का क्षरण: सामूहिक सौदेबाजी और संघ की स्वतंत्रता के अनुपालन में गिरावट आ रही है, साथ ही विशिष्ट श्रमिक समूहों को अधिकारों से लगातार वंचित किया जा रहा है।
    • सामाजिक सुरक्षा घाटा: वैश्विक आबादी का केवल आधा हिस्सा ही सामाजिक सुरक्षा कवरेज का लाभ उठाता है।
    • तकनीकी और जलवायु जोखिम: लगभग 71% कार्यबल जलवायु संबंधी व्यवधानों का सामना कर रहा है और ऑटोमेशन मौजूदा नौकरियों के एक-चौथाई हिस्से के लिए खतरा है।
    • विश्वास का क्षरण: नागरिकों में यह भावना बढ़ती जा रही है कि उन्हें कोई पुरस्कार नहीं मिल रहा है और वे समाज को अनुचित मानते हैं, जिससे सरकारों, यूनियनों और व्यवसायों में उनका विश्वास कमजोर हो रहा है।
  • निष्पक्ष परिवर्तन के लिए सिफारिशें
    • सामाजिक बदलावों का प्रबंधन: जलवायु, तकनीकी और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों का प्रबंधन न्यायसंगत तरीके से और प्रभाव वितरण में निष्पक्षता के साथ किया जाना चाहिए।

    • संस्थागत रणनीति
      • मौजूदा श्रम संस्थाओं को वर्तमान चुनौतियों के अनुरूप लागू करना।
      • विशिष्ट संक्रमण जोखिमों से निपटने के लिए संस्थाओं को अनुकूलित करना।
      • विभिन्न क्षेत्रों में नीतियों को एकीकृत करने के लिए संस्थाओं का विस्तार करना, यह सुनिश्चित करते हुए कि श्रम और सामाजिक न्याय सामाजिक परिवर्तनों में केंद्रीय भूमिका निभाएँ।

सामाजिक न्याय के बारे में

  • परिभाषा: सामाजिक न्याय संसाधनों, अवसरों और अधिकारों का निष्पक्ष और न्यायसंगत वितरण है, जो यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह किसी भी जाति, लिंग, धर्म, वर्ग या क्षेत्र का हो, सम्मान, स्वतंत्रता तथा विकास के अवसरों तक पहुँच का लाभ उठाए।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य प्रणालीगत भेदभाव को समाप्त करना और केवल औपचारिक समानता से आगे बढ़कर, वास्तविक समानता लाने के लिए परिस्थितियाँ बनाना है।
  • मुख्य आयाम
    • वितरणात्मक न्याय: संसाधनों और धन तक समान पहुँच।
    • प्रक्रियात्मक न्याय: कानूनों, संस्थाओं और निर्णय लेने में निष्पक्षता।
    • पुनर्स्थापनात्मक न्याय: ऐतिहासिक और संरचनात्मक कमियों को दूर करना।

भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय और उसके प्रावधान

  • प्रस्तावना: न्याय की परिकल्पना (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक) भारतीय गणराज्य की आधारशिला के रूप में।
  • मौलिक अधिकार
    • अनुच्छेद-14: विधि के समक्ष समता।
    • अनुच्छेद-15: धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध।
    • अनुच्छेद-16: सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता।
    • अनुच्छेद-17: अस्पृश्यता का उन्मूलन।
  • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत
    • अनुच्छेद-38: न्याय पर आधारित सामाजिक व्यवस्था के माध्यम से कल्याण को बढ़ावा देना।
    • अनुच्छेद-39: समान कार्य के लिए समान वेतन और श्रमिकों एवं बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
    • अनुच्छेद-46: अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देना।
  • मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद-51A): नागरिकों से महिलाओं के प्रति अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करने और सद्भाव को बढ़ावा देने का आग्रह करता है।

सामाजिक न्याय के लिए वैश्विक पहल

  • निष्पक्ष वैश्वीकरण के लिए सामाजिक न्याय पर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन घोषणा (2008): यह चार परस्पर जुड़े स्तंभों को परिभाषित करता है:- 
    • रोजगार सृजन
    • सामाजिक सुरक्षा 
    • सामाजिक संवाद 
    • कार्यस्थल पर अधिकार।
  • संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास एजेंडा 2030: सामाजिक न्याय को सतत् विकास लक्ष्यों जैसे SDG 1 (गरीबी उन्मूलन), SDG 5 (लैंगिक समानता), SDG 8 (सभ्य कार्य और आर्थिक विकास) और SDG 10 (असमानताओं में कमी) से जोड़ता है।
  • विश्व सामाजिक सुरक्षा पहल: सभी व्यक्तियों के लिए बुनियादी सामाजिक सुरक्षा तक सार्वभौमिक पहुँच को बढ़ावा देता है।
  • सामाजिक न्याय के लिए वैश्विक गठबंधन (2024): वैश्विक श्रम परिवर्तनों में निष्पक्षता के लिए नीति समन्वय को मजबूत करने हेतु एक नई अंतरराष्ट्रीय साझेदारी।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के बारे में

  • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना वर्ष 1919 में वर्साय की संधि के तहत हुई थी।
  • उद्देश्य: सामाजिक न्याय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मानव एवं श्रम अधिकारों को बढ़ावा देना, यह इस मूल लक्ष्य पर आधारित है कि श्रम शांति समृद्धि के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्जरलैंड।
  • सदस्य देश: 187 सदस्य देश।
  • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन में भारत की स्थिति: भारत अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का संस्थापक सदस्य था और वर्ष 1922 से इसके शासी निकाय का स्थायी सदस्य रहा है।
  • प्रमुख रिपोर्टें
    • वैश्विक वेतन रिपोर्ट
    • वर्ल्ड ऑफ वर्क रिपोर्ट
    • विश्व रोजगार और सामाजिक परिदृश्य
  • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के कन्वेंशन 138 और 182 बाल श्रम से संबंधित हैं।

सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए भारत की पहल

  • संवैधानिक और कानूनी उपाय
    • अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा, रोजगार और विधायिकाओं में आरक्षण।
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 और नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 जैसे कानून कानून और व्यवहार में समानता को मजबूत करते हैं।
  • कल्याण एवं सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ
    • आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY): गरीब और कमजोर परिवारों को स्वास्थ्य बीमा प्रदान करती है।
    • प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN): लघु और सीमांत किसानों को प्रत्यक्ष आय सहायता प्रदान करती है।
    • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): कामकाजी महिलाओं को मातृत्व लाभ प्रदान करती है।
    • राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (National Social Assistance Programme- NSAP): बुजुर्गों, विधवाओं और दिव्यांगजनों के लिए पेंशन सुनिश्चित करता है।
    • ई-श्रम पोर्टल: सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने के लिए अनौपचारिक और गिग श्रमिकों का पंजीकरण करता है।
  • लैंगिक सशक्तीकरण
    • बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना महिला शिक्षा को बढ़ावा देती है और लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास करती है।
    • नारी शक्ति वंदन अधिनियम (2023) लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करता है, जिससे राजनीतिक सशक्तीकरण को बल मिलता है।
  • शिक्षा और कौशल विकास
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (NEP) समावेशी शिक्षा और महत्त्वपूर्ण कौशल निर्माण पर केंद्रित है।
    • कौशल भारत मिशन और डिजिटल इंडिया पहल का उद्देश्य रोजगार क्षमता को बढ़ाना तथा डिजिटल अंतराल को समाप्त करना है।
    • शिक्षा का अधिकार (RTE): RTI अधिनियम (2009) भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21A के तहत शिक्षा को एक मौलिक अधिकार बनाता है। यह सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करता है।
  • समावेशी डेटा और साक्ष्य-आधारित नीति
    • अगली जनगणना में जातिगत गणना कराने का निर्णय लक्षित सकारात्मक कार्रवाई के लिए सटीक आँकड़े उपलब्ध कराएगा।
    • सामाजिक लेखा-परीक्षण और रियल टाइम डैशबोर्ड के विस्तार से कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता बढ़ेगी।

सामाजिक न्याय का महत्त्व

  • लोकतंत्र का नैतिक आधार: सम्मान, अधिकारों और भागीदारी की समानता सुनिश्चित करता है, लोकतंत्र के नैतिक ढाँचे को मजबूत करता है।
  • समावेशी और सतत् विकास: अवसरों तक समान पहुँच प्रदान करता है, उत्पादकता, नवाचार और आर्थिक लचीलेपन को बढ़ाता है।
  • सामाजिक सामंजस्य और शांति: अलगाव को कम करता है, आपसी विश्वास का निर्माण करता है और राष्ट्रीय सद्भाव को बढ़ावा देता है।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश को अधिकतम करने के लिए आवश्यक: भारत जैसे युवा राष्ट्र के लिए, जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन करने हेतु कौशल और रोजगार तक समान पहुँच अत्यंत महत्त्वपूर्ण है तथा सामाजिक न्याय, विशेष रूप से लैंगिक एवं क्षेत्रीय समानता, यह सुनिश्चित करती है कि लाभांश जनसांख्यिकीय दायित्व न बने।
  • वैश्विक लक्ष्यों के साथ संरेखण: SDG 1 (गरीबी उन्मूलन), SDG 5 (लैंगिक समानता), SDG 8 (सभ्य कार्य), और SDG 10 (असमानताओं में कमी) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का समर्थन करता है।
  • संस्थागत वैधता: निष्पक्ष और न्यायपूर्ण समाजों को अधिक स्थिरता, नागरिक विश्वास और प्रभावी शासन प्राप्त होता है, जिससे संस्थानों की विश्वसनीयता मजबूत होती है।

सामाजिक न्याय प्राप्त करने में चुनौतियाँ

  • गहरी और निरंतर असमानता: आय और धन का संकेंद्रण विभिन्न क्षेत्रों, जातियों और वर्गों में अत्यधिक उच्च बना हुआ है, जिससे संरचनात्मक असमानताएँ और भी बढ़ रही हैं।
    • क्षेत्रीय असंतुलन ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में गरीबी को बढ़ाता है क्योंकि शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, बुनियादी ढाँचे और रोजगार तक पहुँच कम है, जिससे सामाजिक गतिशीलता कम बनी रहती है।
    • भारत का गिनी गुणांक 0.288 (वर्ष 2011-12) से कम होकर 0.255 (वर्ष 2022-23) हो गया है, जिससे यह विश्व की समान अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया है।
  • अनौपचारिक और अनिश्चित श्रम बाजार: भारत का 80% से अधिक कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में कार्य करता है, जहाँ रोजगार सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और सभ्य कार्य स्थितियों का अभाव है।
    • स्वचालन और जलवायु परिवर्तन के दोहरे दबाव अकुशल श्रमिकों के लिए और भी खतरा उत्पन्न करते हैं, जिससे औपचारिक और अनौपचारिक अर्थव्यवस्थाओं के मध्य का अंतराल और अधिक होता जा रहा है।
    • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का अनुमान है कि भारत का लगभग 92% कार्यबल अनौपचारिक रूप से कार्यरत है, बिना किसी औपचारिक अनुबंध या सीमित रोजगार सुरक्षा के।
  • लैंगिक और जाति-आधारित भेदभाव: पितृसत्तात्मक मानदंड महिलाओं की स्वायत्तता को सीमित करते हैं, वेतन अंतराल को बनाए रखते हैं और कार्यस्थल पर उत्पीड़न को बढ़ावा देते हैं, जिससे महिला श्रम बल में भागीदारी कम रहती है।
    • साथ ही, जाति और नृजातीयता-आधारित पदानुक्रम शिक्षा, भूमि और नेतृत्व तक पहुँच को प्रतिबंधित करते रहते हैं, जबकि अंतर्विभागीय भेदभाव दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक महिलाओं के प्रति उपेक्षा में वृद्धि करता है।
    • इंडिया जस्टिस रिपोर्ट, 2025 राज्यों में न्याय तक पहुँच में गहरी जातिगत और लैंगिक असमानताओं को प्रदर्शित करती है।
  • गरीबी और आर्थिक भेद्यता: अत्यधिक धन-संकेंद्रण और बहुआयामी गरीबी एक साथ विद्यमान हैं, जहाँ एक बड़ा वर्ग कम वेतन वाले अनौपचारिक कार्य पर निर्भर है।
    • आर्थिक असुरक्षा और मजबूत सामाजिक सुरक्षा तंत्र के अभाव के कारण आर्थिक विकास के बावजूद लाखों लोग अभाव के चक्र में फँसे हुए हैं।
    • विश्व आर्थिक मंच (ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2024) के अनुसार, भारत 146 देशों में 129वें स्थान पर है, जहाँ कुल जेंडर गैप का 64.1% कम हुआ है और आर्थिक भागीदारी (39.8%) और राजनीतिक सशक्तीकरण (28.8%) में समानता विशेष रूप से कम है।
  • नीति और कार्यान्वयन में कमियाँ: हालाँकि भारत में प्रगतिशील कानूनी ढाँचे (भेदभाव-विरोधी कानून, आरक्षण और कल्याणकारी योजनाएँ) हैं, लेकिन इनका कार्यान्वयन नौकरशाही की जड़ता, भ्रष्टाचार और कमजोर जवाबदेही से ग्रस्त है।
    • हाशिए पर स्थित समूहों में प्रायः कानूनी साक्षरता और न्याय तक पहुँच का अभाव होता है, जिससे वे संवैधानिक अधिकारों का लाभ नहीं उठा पाते।
  • अपर्याप्त सार्वजनिक और डिजिटल बुनियादी ढाँचा: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और डिजिटल कनेक्टिविटी तक पहुँच में असमानता बहिष्कार को बढ़ावा देती है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों की भारी कमी, स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी और सीमित डिजिटल पहुँच का सामना करना पड़ रहा है, जिससे तीव्रता से तकनीक संचालित की ओर परिवर्तित होते विश्व में रोजगार और सेवा वितरण में असमानताएँ और भी बदतर हो रही हैं।
  • शासन और विश्वास की कमी: ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ सकारात्मक कार्रवाई का राजनीतीकरण और कल्याणकारी निधियों का दुरुपयोग सामाजिक न्याय के उद्देश्यों को कमजोर करता है।
    • संस्थाओं के प्रति जनता के मोहभंग में वृद्धि और अनुचित सेवा वितरण, निष्पक्षता, शासन और सामाजिक अनुबंध में नागरिकों के विश्वास को कम करता है।
    • भारत न्याय रिपोर्ट 2025 में संस्थागत जवाबदेही की कमी पर प्रकाश डाला गया है, विशेष रूप से पुलिस, जेलों और कानूनी सहायता प्रणालियों में, जिससे न्याय प्रदान करने में नागरिकों का विश्वास कम हो रहा है।

आगे की राह

  • समान संसाधन पुनर्वितरण: प्रगतिशील कराधान लागू करना, वित्तीय अंतराल को पाटने के लिए सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सुरक्षा का विस्तार करना।
    • मुद्रास्फीति से संबद्ध राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन और लक्षित राजकोषीय हस्तांतरण यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि आर्थिक विकास विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों में साझा समृद्धि के रूप में परिवर्तित हो।
  • समावेशी और सुरक्षित रोजगार: श्रम औपचारिकीकरण को बढ़ावा देना, उचित वेतन लागू करना और अनौपचारिक तथा गिग श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना।
    • कौशल प्रशिक्षण, हरित रोजगार सृजन और अनुकूल श्रम नीतियों को कार्यबल को स्वचालन और जलवायु परिवर्तन से प्रेरित बदलावों के लिए तैयार करना चाहिए।
  • लैंगिक और जातिगत समानता: महिलाओं के लिए समान वेतन, कार्यस्थल सुरक्षा और राजनीतिक प्रतिनिधित्व को मजबूत करना।
    • साथ ही, भूमि सुधारों को लागू करना, शिक्षा तक पहुँच बढ़ाना और अनुसूचित जातियों (SC), अनुसूचित जनजातियों (ST) और अल्पसंख्यकों को सशक्त बनाने के लिए उद्यमिता सहायता प्रदान करना, जिससे पीढ़ी-दर-पीढ़ी होने वाला बहिष्कार समाप्त हो।
  • सार्वजनिक सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच: हाशिए पर स्थित आबादी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा और वहनीय आवास में निवेश करना।
    • डिजिटल समावेशन, बुनियादी ढाँचे के विकास और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील शिक्षा के माध्यम से ग्रामीण-शहरी अंतराल को कम करने से अवसर और सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हो सकती है।
  • मजबूत कानूनी और संस्थागत तंत्र: व्यापक भेदभाव-विरोधी कानून लागू करना, स्मार्ट घोषणा प्रणाली को बढ़ावा देना और कमजोर वर्गों के लिए कानूनी सहायता को मजबूत करना।
    • कल्याणकारी योजनाओं के वितरण में जवाबदेही बढ़ाने के लिए पारदर्शी शासन, सामाजिक लेखा परीक्षा और डिजिटल निगरानी सुनिश्चित करना।
  • समुदाय और जमीनी स्तर पर सशक्तीकरण: नागरिक भागीदारी, स्थानीय संवाद और समुदाय-आधारित विकास को प्रोत्साहित करना।
    • जमीनी स्तर पर लामबंदी यह सुनिश्चित करती है कि सामाजिक न्याय नीतियाँ आधारभूत स्थिति को प्रतिबिंबित करें और नागरिकों तथा राज्य के बीच विश्वास का पुनर्निर्माण हो।
  • सांस्कृतिक और नैतिक परिवर्तन: व्यक्तिगत और व्यावसायिक क्षेत्रों में आत्म-चिंतन, सहानुभूति और विविधता को बढ़ावा देना।
    • सामाजिक न्याय के नैतिक आधार को मजबूत करने के लिए समावेशी नेतृत्व, हाशिए पर स्थित अभिव्यक्तियों के प्रतिनिधित्व और नैतिक नागरिकता को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

ILO की ‘द स्टेट ऑफ सोशल जस्टिस इन इंडिया: ए वर्क इन प्रोग्रेस’ (2025) रिपोर्ट प्रगति के साथ विरोधाभास, असमानता और घटते विश्वास के बीच विकास को उजागर करती है। भारत के लिए, सामाजिक न्याय संविधान की आत्मा और लोकतंत्र का मूल है। इसे साकार करने के लिए कार्य संबंधी कल्याण को सशक्तीकरण में, विकास को समावेशिता में और नीति को वास्तविकता में बदलना आवश्यक है, ताकि एक न्यायसंगत, समतामूलक और समावेशी भारत का निर्माण हो, जहाँ शांति और समृद्धि सामाजिक न्याय पर आधारित हों।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.