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भारत के कल्याणकारी राज्य का तकनीकी दृष्टिकोण

Lokesh Pal August 07, 2025 03:27 14 0

संदर्भ

भारत की कल्याणकारी प्रणाली, तकनीकी दृष्टिकोण (Technocratic Approach) की ओर बढ़ रही है, जिसमें दक्षता और कवरेज बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी (जैसे- आधार, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, शिकायत पोर्टल) का लाभ उठाया जा रहा है।

कल्याणकारी राज्य (Welfare State) के बारे में

  • कल्याणकारी राज्य एक ऐसी अवधारणा है, जहाँ सरकार अपने नागरिकों के आर्थिक और सामाजिक कल्याण की सुरक्षा तथा संवर्द्धन में केंद्रीय भूमिका निभाती है।
  • राज्य यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी लेता है कि सभी व्यक्तियों को स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, आवास, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा जैसी आवश्यक सेवाओं तक पहुँच प्राप्त हो।

कल्याणकारी विकास का ऐतिहासिक संदर्भ: अधिकार आधारित से तकनीकी कल्याण तक

  • भारत में प्रारंभिक कल्याणकारी राज्य (1990 के दशक से पूर्व)
    • औपनिवेशिक विरासत: स्वतंत्रता से पूर्व भारत में कल्याण को प्रायः दान के रूप में देखा जाता था, जिसमें नागरिकों के कल्याण के प्रति राज्य की जिम्मेदारी सीमित थी।
    • स्वतंत्रता के बाद का काल (1947-1970 का दशक): भारत की कल्याणकारी प्रणालियाँ प्रारंभ में गरीबी उन्मूलन और बुनियादी सामाजिक सेवाओं पर केंद्रित थीं।
      • सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार पर ध्यान केंद्रित किया गया, और पंचवर्षीय योजनाओं ने इन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया।
      • राज्य ने केंद्रीकृत, विवेकाधीन तरीके से कल्याण प्रदान किया, जिसके अंतर्गत राज्य-नेतृत्व आधारित विकास और कल्याणकारी योजनाओं पर परोपकार के कार्यों के रूप में ध्यान केंद्रित किया गया।
  • 1980-1990 के दशक: अधिकार-आधारित कल्याण का उदय
    • राजनीतिक विचारधारा में बदलाव: 1980 के दशक में वैश्विक मानवाधिकार आंदोलनों और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार घोषणा-पत्र से प्रभावित होकर अधिकार-आधारित कल्याणकारी मॉडलों का उदय हुआ।
    • संवैधानिक और कानूनी परिवर्तन: भारतीय संविधान और न्यायपालिका ने सामाजिक कल्याण को एक कानूनी अधिकार के रूप में स्थापित करना शुरू किया।
      • कार्य का अधिकार (मनरेगा): सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 1985 के निर्णय ने आजीविका के अधिकार को अनुच्छेद-21 (जीवन का अधिकार) से जोड़ा।
      • शिक्षा का अधिकार: शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009) ने शिक्षा को बच्चों के मौलिक अधिकार के रूप में संस्थागत रूप दिया।
    • कल्याणकारी कार्यक्रमों का विस्तार: सरकार ने मध्याह्न भोजन योजना, एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (Integrated Child Development Services- ICDS) और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System- PDS) जैसी पात्रता-आधारित योजनाएँ शुरू कीं, जिससे राज्य के उत्तरदायित्व की अवधारणा को बल मिला।
    • नागरिक समाज और राजनीतिक लामबंदी: नरेगा (राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005) और RTI (सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005) अधिकारों तथा राज्य की जवाबदेही की माँग करने वाले जन आंदोलनों की प्रमुख उपलब्धियाँ थीं।
  • 2000 के दशक की शुरुआत: तकनीकी तत्त्वों की शुरुआत
    • दक्षता की ओर परिवर्तन: 2000 के दशक के आरंभ में कल्याणकारी कार्यक्रमों में प्रौद्योगिकी का प्रयोग शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य दक्षता में सुधार और भ्रष्टाचार को कम करना था।
      • आधार (2009), प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) और ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म जैसे कार्यक्रम पारदर्शिता सुनिश्चित करने और लाभों के त्वरित वितरण के साधन बन गए।
  • 2010 का दशक: पूर्ण तकनीकी परिवर्तन
    • तकनीकी कल्याणकारी राज्य: आधार (Aadhaar) और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) प्रणालियाँ लीकेज को कम करने और फर्जी लाभार्थियों को समाप्त करने के लिए डिजाइन की गई थीं। डेटा-आधारित कल्याण केंद्रीय हो गया और बायोमेट्रिक आधारित पहचान ने लाभ वितरण के पारंपरिक तरीकों का स्थान ले लिया।
      • कार्यकुशलता और कवरेज पर आधारित कल्याणकारी वितरण का केंद्रीकृत मॉडल धीरे-धीरे अधिकार-आधारित दृष्टिकोण पर प्रभावी हो गया।
  • 2020 का दशक: तकनीकी कल्याण का समेकन
    • डिजिटल शासन का विस्तार: DBT प्रणाली में 1,206 से अधिक योजनाओं के एकीकृत होने और असंगठित श्रमिकों के लिए ई-श्रम (E-SHRAM) के कार्यान्वयन के साथ, कल्याणकारी शासन अधिक स्वचालित और डेटा-आधारित हो गया है।
      • हालाँकि तकनीकी कल्याण मॉडल का लक्ष्य अधिकतम कवरेज और न्यूनतम रिसाव है, परंतु यह चिंता का विषय है कि मानवीय पहलुओं की उपेक्षा तेजी से बढ़ रही है।

दार्शनिक ढाँचे (Philosophical Frameworks)

तकनीकी चेतना (Technocratic Consciousness) [हैबरमास (Habermas)]

  • तकनीकी चेतना (Technocratic Consciousness) शासन में उस परिवर्तन को संदर्भित करती है, जहाँ निर्णय लेने की प्रक्रिया राजनीतिक बहस या लोकतांत्रिक विचार-विमर्श के बजाय तकनीकी विशेषज्ञता, वैज्ञानिक तर्क और आँकड़ों से संचालित होती है।
  • यह नैतिक विचारों और राजनीतिक भागीदारी की तुलना में दक्षता, मापनीयता तथा पूर्वानुमान को प्राथमिकता देती है।
  • उदाहरण: भारत में, आधार प्रणाली तकनीकी चेतना का उदाहरण है, जहाँ एक बायोमेट्रिक डेटाबेस, विचार-विमर्शपूर्ण निर्णय लेने के बजाय, आँकड़ों पर आधारित प्रक्रिया के माध्यम से कल्याणकारी लाभों तक पहुँच निर्धारित करता है।

शासनात्मकता (Governmentality) या (फौकॉल्ट) (Foucault)

  • शासनात्मकता (Governmentality) उन तरीकों को संदर्भित करती है, जिनसे सरकारें तकनीकों, नीतियों और संवाद के माध्यम से जनसंख्या को नियंत्रित और आकार देती हैं।
  • इसमें व्यक्तियों को राज्य द्वारा निर्धारित मानदंडों और नियमों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करके उनकी निगरानी और स्व-नियमन शामिल है।
  • उदाहरण: केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण प्रणाली शासनात्मकता का एक उदाहरण है, जहाँ राज्य जन शिकायतों को नियंत्रित और प्रबंधित करने के लिए डेटा निगरानी तथा प्रतिक्रिया तंत्र का उपयोग करता है, जिससे नागरिकों के व्यवहार एवं प्रतिक्रियाओं को आकार मिलता है।

होमो सैकर (Homo Sacer) अगाम्बेन (Agamben)

  • होमो सैकर (Homo Sacer) उन व्यक्तियों को संदर्भित करता है, जिन्हें कानूनी व्यवस्था से बहिष्कृत कर दिया जाता है और राजनीतिक रूप से महत्त्वहीन माना जाता है।
  • ये व्यक्ति बिना किसी सुरक्षा के सत्ता के अधीन होते हैं और उनकी जान बिना किसी अपराध के ली जा सकती है, क्योंकि वे अपवाद की स्थिति में रहते हैं।

राजनीतिक व्यक्तिपरकता (Political Subjectivity) रैंसिएर (Rancière)

  • रैंसिएर (Rancière) लोकतांत्रिक समानता और राजनीतिक व्यक्तिपरकता पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जहाँ सभी व्यक्तियों को राजनीतिक भागीदारी में समान माना जाता है।
  • उनका तर्क है कि लोकतंत्र का अर्थ है सभी को दृश्यमान बनाना और यह सुनिश्चित करना कि सभी नागरिकों को निर्णय लेने में निष्क्रिय विषयों के स्थान पर सक्रिय एजेंटों के रूप में मान्यता दी जाए।

एंटीफ्रैजिलिटी (Antifragility) (तालेब) (Taleb)

  • एंटीफ्रैजिलिटी (Antifragility) उस अवधारणा को संदर्भित करती है, जिसके अनुसार कुछ प्रणालियाँ या संस्थाएँ न केवल समस्याओं से बच जाती हैं, बल्कि वास्तव में उनसे बेहतर भी होती हैं अथवा लाभान्वित होती हैं।
  • तालेब (Taleb) का सुझाव है कि प्रणालियों को मजबूत और लचीला बनाया जाना चाहिए, ताकि वे प्रतिकूल परिस्थितियों में भी फल-फूल सकें, न कि व्यवधान के प्रति संवेदनशील हों।

टेक्नोक्रेट (Technocrat)

  • टेक्नोक्रेट (Technocrat) वह व्यक्ति होता है, जो किसी विशिष्ट क्षेत्र, विशेष रूप से विज्ञान, इंजीनियरिंग, अर्थशास्त्र या प्रौद्योगिकी का विशेषज्ञ होता है और उसे राजनीतिक प्रक्रियाओं के बजाय डेटा-आधारित निर्णय लेने के लिए प्राधिकार के पद पर नियुक्त किया जाता है।

टेक्नोक्रेसी (Technocracy)

  • टेक्नोक्रेसी (Technocracy) शासन की एक ऐसी प्रणाली है, जहाँ निर्णय लेने का कार्य तकनीकी विशेषज्ञों या वैज्ञानिक अभिजात वर्ग द्वारा किया जाता है, जिन्हें निर्वाचित राजनेताओं के बजाय डेटा, इंजीनियरिंग और गणितीय मॉडलों के आधार पर अर्थव्यवस्था तथा समाज का प्रबंधन करने का कार्य सौंपा जाता है।

कल्याण में तकनीकी परिवर्तन

  • कल्याणकारी शासन में तकनीकी बदलाव का तात्पर्य अधिकार-आधारित दृष्टिकोण से डेटा-संचालित, दक्षता-केंद्रित कल्याण वितरण मॉडल की ओर संक्रमण से है।
  • यह परिवर्तन मुख्य रूप से प्रौद्योगिकी, डेटा एल्गोरिदम और केंद्रीकृत डिजिटल प्रणालियों से प्रभावित है।
  • इसका ध्यान स्वचालित और मापनीय प्रक्रियाओं के माध्यम से लीकेज को कम करनेकरने पर है, जो प्रायः पारंपरिक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और राजनीतिक जवाबदेही को दरकिनार कर देता है।

प्रमुख विशेषताएँ

  • डेटा-संचालित एल्गोरिदम और केंद्रीकृत प्रणालियाँ: बायोमेट्रिक पहचान के लिए आधार का उपयोग और कल्याणकारी लाभ प्रदान करने के लिए प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) इस परिवर्तन का केंद्र बिंदु है।
    • DBT प्रणाली में एकीकृत 36 शिकायत पोर्टल और 1,206 योजनाएँ सेवाएँ प्रदान करने में दक्षता की ओर एक परिवर्तन का प्रतीक हैं।
    • ये प्रणालियाँ पारंपरिक नौकरशाही अक्षमताओं को दरकिनार करती हैं और तीव्र, अधिक सटीक कल्याण वितरण का लक्ष्य रखती हैं।
  • दक्षता और कवरेज पर ध्यान: इस तकनीकी दृष्टिकोण का प्राथमिक लक्ष्य उच्च दक्षता और व्यापक कवरेज सुनिश्चित करना है।
    • कल्याणकारी योजनाओं में वृद्धि और छद्म लाभार्थियों का उन्मूलन इस मॉडल का केंद्र बिंदु हैं।
    • यह परिवर्तन इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि कौन समर्थन का हकदार है।
  • लोकतांत्रिक मानदंडों में कमी: यह दृष्टिकोण लोकतांत्रिक विचार-विमर्श की भूमिका को कम करता है और उसकी जगह मापनीय, लेखा-परीक्षण योग्य प्रक्रियाओं को स्थापित करता है।
    • कल्याणकारी वितरण का राजनीतीकरण तेजी से कम होता जा रहा है और नागरिकों को अधिकार-धारक व्यक्तियों के बजाय लेखा-परीक्षण योग्य लाभार्थी माना जाता है।
  • तकनीकी शासन: यह हैबरमास (Habermas) की ‘तकनीकी चेतना’ (Technocratic Consciousness) और फौकॉल्ट (Foucault) की ‘शासनात्मकता’ की अवधारणा (Concept of Governmentality) को दर्शाता है, जहाँ शासन को लोकतांत्रिक संवाद और भागीदारी के बजाय मापनीय, अराजनीतिक तर्कसंगतता द्वारा परिभाषित किया जाता है।
    • यह परिवर्तन एक नवउदारवादी एजेंडे को दर्शाता है, जहाँ राज्य के कार्यों को बाजार-संचालित समाधानों द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है, जो कमजोर आबादी को हाशिए पर डाल सकते हैं।

कल्याण के लिए अधिकार-आधारित दृष्टिकोण

  • कल्याण के प्रति अधिकार-आधारित दृष्टिकोण भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं जैसी आवश्यक सुविधाओं को दान या अनुकंपा के कार्यों के बजाय नागरिकों के कानूनी अधिकार के रूप में मानता है।
  • यह नागरिकों को अपने अधिकारों का दावा करने का अधिकार देता है और राज्य को उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उत्तरदायी बनाता है।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • कानूनी रूप से लागू करने योग्य अधिकार: इन सेवाओं को विवेकाधीन कल्याण के रूप में नहीं, बल्कि नागरिकों के अधिकार के रूप में स्वीकार किया जाता है।
      • संवैधानिक गारंटी: उदाहरण के लिए, भारतीय संविधान का अनुच्छेद-21 जीवन के अधिकार की गारंटी देता है, जिसकी न्यायिक व्याख्या में भोजन, आश्रय और रोजगार जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को शामिल करते हुए सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार भी शामिल किया गया है।
    • नागरिकों का सशक्तीकरण: नागरिकों को केवल दान प्राप्त करने वाले के रूप में नहीं, बल्कि अधिकार-धारक के रूप में मान्यता दी गई है और वे राज्य से सेवाओं की माँग कर सकते हैं।
      • उदाहरण: RTI अधिनियम नागरिकों को सरकारी पारदर्शिता की माँग करने की अनुमति देता है।
    • व्यवस्थागत अन्याय का समाधान: यह असमानताओं को दूर करने और ऐतिहासिक अन्याय, जैसे वन अधिकार अधिनियम के तहत आदिवासी अधिकारों, को दूर करने पर केंद्रित है।
    • राज्य की जवाबदेही: सरकार आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है और नागरिक सेवाएँ न मिलने पर कानूनी उपाय की माँग कर सकते हैं।
    • सामाजिक न्याय और मानव सम्मान: मौलिक अधिकारों के रूप में गरिमा, सामाजिक न्याय और आवश्यक सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करता है।

कल्याण के लिए अधिकार-आधारित दृष्टिकोण के लाभ

  • कानूनी जवाबदेही: नागरिक कानूनी रूप से अपने अधिकारों को लागू कर सकते हैं।
    • उदाहरण: मनरेगा, नागरिकों को एक निश्चित समय सीमा के भीतर काम न मिलने पर काम तथा बेरोजगारी भत्ते की माँग करने की अनुमति देता है।
  • स्थायित्व: अधिकार स्थायी अधिकार हैं, अस्थायी दान नहीं।
    • शिक्षा का अधिकार (Right to Education- RTE) अधिनियम बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देता है, जिससे शैक्षिक बुनियादी ढाँचे को बनाए रखने और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकार पर आती है।
  • समावेशी विकास: यह सुनिश्चित करता है कि हाशिए पर स्थित समूहों को कल्याणकारी प्रणालियों में शामिल किया जाए।
    • सामाजिक न्याय पहल यह सुनिश्चित करती है कि सभी को, चाहे उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो, समान बुनियादी अधिकारों तक पहुँच प्राप्त हो।
  • जन भागीदारी: नागरिक भागीदारी और सामाजिक लेखा-परीक्षण को प्रोत्साहित करता है।
    • मनरेगा (MGNREGA) और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) जैसे कल्याणकारी कार्यक्रमों में सामाजिक लेखा-परीक्षण समुदायों को कार्यक्रमों की प्रभावशीलता की निगरानी और मूल्यांकन करने में सक्षम बनाता है।

कल्याण के लिए अधिकार-आधारित दृष्टिकोण के प्रति चिंता

  • कार्यान्वयन संबंधी समस्याएँ: नौकरशाही संबंधी देरी और अक्षमताएँ, जैसा कि मनरेगा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में देखा गया है।
  • सीमित प्रशासनिक क्षमता: स्थानीय शासन में प्रायः सेवाओं को प्रभावी ढंग से प्रदान करने के लिए संसाधनों का अभाव होता है।
  • राजकोषीय बाधाएँ: राज्य के लिए उच्च लागत, विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसी सार्वभौमिक सेवाओं के लिए।
  • कल्याणकारी योजनाओं का राजनीतीकरण: कल्याणकारी कार्यक्रमों में राजनीतिक लाभ के लिए हस्तक्षेप किया जा सकता है, जिससे उनकी प्रभावशीलता कम हो जाती है।

तुलनात्मक विश्लेषण: तकनीकी बनाम अधिकार-आधारित दृष्टिकोण

पहलू

तकनीकी दृष्टिकोण 

(Technocratic Approach)

अधिकार आधारित दृष्टिकोण 

(Rights-Based Approach)

फोकस दक्षता, कवरेज और रिसाव में कमी कानूनी अधिकार और सामाजिक न्याय
नागरिक भूमिका लेखापरीक्षा योग्य लाभार्थी एजेंसी वाले अधिकार-धारक
गवर्नेंस केंद्रीकृत, डेटा-संचालित विकेंद्रीकृत, सहभागी
जवाबदेही एल्गोरिदम अलगाव, कम राजनीतिक जिम्मेदारी कानूनी निवारण और सामाजिक लेखा परीक्षा
उदाहरण आधार (Aadhaar), डीबीटी (DBT), CPGRAMS मनरेगा (MGNREGA), आरटीआई (RTI), आरटीई (RTE)।

तकनीकी कल्याण की प्रमुख चुनौतियाँ और आलोचना

  • नागरिक एजेंसी का नुकसान: डेटा-संचालित मॉडल नागरिकों को अधिकार-धारकों के बजाय डेटा बिंदुओं तक सीमित कर देते हैं।
    • चार लाख से अधिक लंबित मामलों वाला सूचना का अधिकार (RTI) संकट, जवाबदेही प्रक्रियाओं में जनता की भागीदारी में कमी को दर्शाता है।
  • कमज़ोर समूहों का बहिष्कार: कल्याणकारी प्रणालियों में एल्गोरिदम संबंधी पूर्वाग्रह हाशिए पर स्थित समूहों को, विशेष रूप से उन लोगों को जिनके पास तकनीक तक पहुँच नहीं है या जो औपचारिक डेटा प्रणालियों से बाहर हैं, बहिष्कृत कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) प्रणालियों में पहचाने गए छद्म लाभार्थी प्रायः हाशिए पर स्थित समुदायों की अनदेखी करते हैं, जिनमें उचित डिजिटल साक्षरता या पहुँच का अभाव होता है।
  • कमजोर जवाबदेही: केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण प्रणाली शिकायतों की दृश्यता को केंद्रीकृत करती है, लेकिन प्रायः अंतर्निहित राजनीतिक जिम्मेदारी को संबोधित करने में विफल रहती है।
    • वर्ष 2022-24 के बीच, लाखों शिकायतों का निपटारा किया गया, लेकिन इन मुद्दों के लिए राजनीतिक जवाबदेही अभी भी अस्पष्ट बनी हुई है और समाधान के लिए कोई स्पष्ट स्थानीय जिम्मेदारी नहीं है।
  • मानव कल्याण पर दक्षता: कल्याणकारी वितरण का दक्षता-प्रथम मॉडल मानवीय गरिमा की अवहेलना कर सकता है।
    • न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ की आधार (2018) संबंध असहमति ने कल्याणकारी कार्यक्रमों को डेटा परिवर्तन तक सीमित करने के विरुद्ध चेतावनी दी, क्योंकि इन कार्यक्रमों में व्यक्तियों के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों का अभाव है।
  • तकनीकी निर्भरता और प्रणालीगत जोखिम: तकनीक पर अत्यधिक निर्भरता प्रणालीगत विफलताओं का कारण बन सकती है।
    • आधार प्रणाली को डेटा उल्लंघन जैसी सुरक्षा चिंताओं का सामना करना पड़ा है, जिससे संवेदनशील जानकारी उजागर हो सकती है।
    • बायोमेट्रिक पहचान में त्रुटियों के कारण लाभों का गलत आवंटन हुआ है।
  • लचीलेपन का अभाव: कल्याणकारी कार्यक्रमों का केंद्रीकृत दृष्टिकोण प्रायः स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहता है।
    • उदाहरण के लिए, कुछ राज्यों में, गलत भूमि रिकॉर्ड या डिजिटल बुनियादी ढाँचे की कमी जैसी स्थानीय चुनौतियों के कारण पीएम किसान योजना किसानों तक नहीं पहुँच पाई।
    • असंगठित श्रमिकों के पंजीकरण हेतु डिजाइन किया गया ई-श्रम पोर्टल ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में प्रभावी रूप से कार्यान्वित नहीं हो पा रहा है, क्योंकि वहाँ के अनेक श्रमिकों के पास स्मार्टफोन या इंटरनेट कनेक्टिविटी जैसी बुनियादी सुविधाओं की पहुँच अब भी सीमित है, जिससे इसकी प्रभावशीलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
  • स्थानीय शासन का पतन: ग्राम पंचायतें, जो पारंपरिक रूप से स्थानीय कल्याण को आकार देने में भूमिका निभाती थीं, केंद्रीकृत मॉडलों के पक्ष में हाशिये पर चली गई हैं।
    • मनरेगा अधिनियम, हालाँकि स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने के लिए बनाया गया था, लेकिन निर्णय लेने और वित्तीय नियंत्रण को केंद्रीकृत करके पंचायतों के अधिकार को सीमित करता है, जैसा कि वर्ष 2013 के CAG ऑडिट में देखा गया था, जिसमें पाया गया था कि पंचायतें श्रम बजट बनाने में विफल रही हैं।
  • कम सामूहिक कार्रवाई: नकद हस्तांतरण (जैसे- पीएम किसान) की ओर बदलाव सामूहिक कार्रवाई के अवसरों को कम करता है।
    • हालाँकि नकद व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रदान करता है, यह समुदाय द्वारा संचालित जवाबदेही की माँग को कम करता है।
    • स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों और सामुदायिक समूहों द्वारा उन कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए एकजुट होने की संभावना कम है, जो अब स्वचालित और व्यक्ति-केंद्रित हैं।

प्रौद्योगिकी और लोकतांत्रिक सिद्धांतों में संतुलन बनाने वाले वैश्विक उदाहरण

एस्टोनिया: ई-सरकार और डिजिटल कल्याण

  • एस्टोनिया ई-सरकारी सेवाओं में अग्रणी है, जो कल्याणकारी कार्यक्रमों सहित विभिन्न प्रकार की सार्वजनिक सेवाओं के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म को एकीकृत करता है।
  • नागरिकों के पास एक डिजिटल पहचान-पत्र होता है, जिससे वे सामाजिक सेवाओं, कर संबंधी जानकारी और यहाँ तक कि ऑनलाइन मतदान भी कर सकते हैं।

फिनलैंड: यूनिवर्सल बेसिक इनकम (Universal Basic Income- UBI) पायलट और डिजिटल सामाजिक कल्याण

  • फिनलैंड ने नागरिकों को एक गारंटीकृत कल्याणकारी उपाय के रूप में बुनियादी आय प्रदान करने की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए एक पायलट यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) कार्यक्रम संचालित किया।
  • इस कार्यक्रम में लाभों के कुशल वितरण और निगरानी को सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग किया गया।

कनाडा: डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा

  • कनाडा की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली चिकित्सा सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच प्रदान करने के लिए जानी जाती है, साथ ही सेवाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड को भी शामिल करती है।
  • इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड (Electronic Health Records- EHR) और टेलीमेडिसिन सेवाओं का उपयोग स्वास्थ्य सेवा तक त्वरित पहुँच सुनिश्चित करने और उपचार के लिए प्रतीक्षा समय को कम करने के लिए किया जाता है।

न्यूजीलैंड: डिजिटल सामाजिक सेवाएँ और अधिकार-आधारित कल्याण

  • न्यूज़ीलैंड की कल्याणकारी व्यवस्था अधिकार-आधारित है और इसमें पहुँच और दक्षता बढ़ाने के लिए डिजिटल उपकरण शामिल हैं।
  • सरकार एक डिजिटल कल्याण प्लेटफॉर्म (जैसे- MyMSD पोर्टल) का उपयोग करती है, जो नागरिकों को सामाजिक सहायता, छात्रों को ऋण और बेरोजगारी लाभ जैसी कल्याणकारी सेवाओं तक पहुँच प्रदान करता है।

आगे की राह

  • राज्यों को सशक्त बनाना: राज्यों को संदर्भ-संवेदनशील कल्याण मॉडल तैयार करने के लिए सशक्त बनाना।
    • कल्याणकारी शासन की केंद्रीय विशेषताओं के रूप में संघवाद और बहुलवाद को मजबूत करना।
  • समुदाय-संचालित प्रभाव लेखा परीक्षा: ग्राम पंचायतों और स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से समुदाय-संचालित प्रभाव लेखा परीक्षा को शामिल करना।
    • केरल का कुदुंबश्री जमीनी स्तर पर कल्याणकारी शासन के लिए एक कार्यात्मक मॉडल के रूप में कार्य करता है।
  • अधिकार-आधारित ढाँचे की पुष्टि: कल्याण को एक कानूनी अधिकार के रूप में सुनिश्चित करना, नागरिक सशक्तीकरण और राज्य की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए अधिकार-आधारित मॉडल को सुदृढ़ करना।
  • स्थानीय शासन को बढ़ावा देना: स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायतों को कल्याणकारी कार्यक्रमों का स्वामित्व लेने के लिए सशक्त बनाना, अधिक संदर्भ-संवेदनशील वितरण के लिए विकेन्द्रीकृत निर्णय लेने को बढ़ावा देना।
  • नागरिक समाज और जवाबदेही: आधारभूत स्तर पर राजनीतिक शिक्षा और कानूनी सहायता क्लीनिकों को बढ़ावा देना।
    • सामुदायिक जवाबदेही को बढ़ावा देना और कल्याणकारी वितरण में मध्यस्थ के रूप में कार्य करने के लिए नागरिक समाज को सशक्त बनाना।
  • मानव-केंद्रित डिजाइन के साथ प्रौद्योगिकी का एकीकरण: यह सुनिश्चित करना कि डिजिटल प्रणालियाँ डेटा गोपनीयता, समावेशिता और नागरिक भागीदारी को प्राथमिकता देना, साथ ही हाशिए पर स्थित समूहों के लिए ऑफलाइन विकल्प भी उपलब्ध कराएँ।
  • जन भागीदारी को बढ़ावा देना: पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार के लिए कल्याणकारी कार्यक्रमों में सामाजिक लेखा परीक्षा और नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • ऑफलाइन सुरक्षा उपाय और पूर्वाग्रह लेखा परीक्षा: मानव प्रतिक्रिया सुरक्षा उपायों सहित ऑफलाइन फॉलबैक तंत्र को मजबूत करना।
    • वैधानिक पूर्वाग्रह लेखा परीक्षा शुरू करना और डिजिटल शासन प्रणालियों के लिए ‘स्पष्टीकरण और अपील का अधिकार’ शामिल करना।

निष्कर्ष 

भारत की कल्याणकारी व्यवस्था एक तकनीकी मॉडल की ओर बढ़ रही है, जिसमें दक्षता और कवरेज में सुधार के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया जा रहा है। हालाँकि इस दृष्टिकोण ने सेवा वितरण को बेहतर बनाया है, लेकिन इससे लोकतांत्रिक मानदंडों और नागरिक एजेंसी को कमजोर करने का जोखिम है। संतुलन बनाने के लिए, अधिकार-आधारित ढाँचे की पुनः पुष्टि की जानी चाहिए और स्थानीय शासन को समावेशी, जवाबदेह तथा मानव-केंद्रित कल्याणकारी व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए सशक्त बनाया जाना चाहिए।

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