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औद्योगिक नीति का कोई विकल्प नहीं है। (There Is No Substitute For An Industrial Policy)

Samsul Ansari January 01, 2024 03:28 442 0

संदर्भ 

भारत सरकार ने नई औद्योगिक नीति (New Industrial Policy- NIP),  2023 के कार्यान्वयन को रोक दिया है, जिस पर दो साल से अधिक समय से काम चल रहा था।

संबंधित तथ्य 

  • तीसरी आर्थिक नीति: केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने वर्ष 1991 की नीति को बदलने के लिए औद्योगिक नीति का मसौदा जारी किया था।
    • वर्ष 1956 में पहली और वर्ष 1991 में दूसरी औद्योगिक नीति के बाद यह तीसरी औद्योगिक नीति थी।
  • आर्थिक गतिविधियों में व्यवधान: नई औद्योगिक नीति मुख्य रूप से COVID-19 महामारी के कारण आर्थिक गतिविधियों में व्यवधान एवं आपूर्ति शृंखलाओं में अनिश्चितताओं एवं व्यवधानों से प्रेरित है।
  • NIP 2023 के उद्देश्य: बाह्य झटकों से निपटने के लिए औद्योगिक नीति के इस पुनरुत्थान के दो उद्देश्य हैं:-
    • राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक गतिविधियों को तीव्र करना।
    • औद्योगिक क्षेत्र को लचीलापन प्रदान करने के लिए एक तंत्र तैयार करना।

राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (NMP), 2011

  • इस नीति का लक्ष्य GDP में विनिर्माण क्षेत्र के योगदान को 1980 के दशक से स्थिर 15% से बढ़ाकर कम-से-कम 25% करना तथा 100 मिलियन नई नौकरियाँ उत्पन्न करना था।
  • इसे अपर्याप्त भौतिक बुनियादी ढाँचे, एक जटिल और भ्रष्ट नियामक वातावरण और विनिर्माण विकास में बाधा डालने वाली कुशल जनशक्ति की कमी जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ा है।

मेक इन इंडिया (MII) के बारे में

  • इसे भारत द्वारा सितंबर 2014 में एक मजबूत एवं प्रतिस्पर्द्धी विनिर्माण उद्योग बनाने के उद्देश्य से लॉन्च किया गया था।
  • राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (NMP), 2011 के गतिशील लक्ष्यों पर निर्मित मेक इन इंडिया पहल, ‘भारत को एक वैश्विक डिजाइन और विनिर्माण निर्यात केंद्र में बदलने’ की आकांक्षा रखती है, जिससे मेक इन इंडिया को वैश्विक बाजार में जगह मिल सकती है।

मेक इन इंडिया के प्रमुख्य उद्देश्य

  • विनिर्माण क्षेत्र की विकास दर को 12-14% प्रति वर्ष तक बढ़ाना।
  • वर्ष 2022 तक अर्थव्यवस्था में 100 मिलियन अतिरिक्त विनिर्माण रोजगार सृजित करना।
  • यह सुनिश्चित करना कि वर्ष 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान 25% तक बढ़ जाए।

मेक इन इंडिया का महत्त्व

  • FDI में वृद्धि: भारत में FDI प्रवाह वर्ष 2014-2015 में 45.15 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 83.6 बिलियन डॉलर हो गया।
  • भारत में ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ सुधार: भारत सरकार ने नियामक प्रक्रियाओं को सरल बनाने, नौकरशाही हस्तक्षेप को कम करने और व्यवसायों के लिए अधिक अनुकूल वातावरण बनाने के लिए विभिन्न सुधार लागू किए हैं।
    • विश्व बैंक की नवीनतम वार्षिक रेटिंग के अनुसार, व्यापार करने में सरलता के मामले में भारत 190 अर्थव्यवस्थाओं में 63वें स्थान पर है।
  • श्रम शक्ति को कुशल बनाना: भारत सरकार ने कार्यबल की रोजगार क्षमता बढ़ाने और युवाओं के बीच उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रम शुरू किए हैं।
    • इसके परिणामस्वरूप कुशल श्रम शक्ति का निर्माण हुआ है, जो विनिर्माण उद्योगों की सफलता के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • भारत में स्मार्टफोन विनिर्माण: वर्ष 2014 से 2022 के बीच मोबाइल फोन का स्थानीय विनिर्माण 23% चक्रवृद्धि वार्षिक दर से बढ़ गया है।
    • वर्ष 2014-2022 के दौरान स्थानीय स्तर पर उत्पादित मोबाइल हैंडसेट का संचयी शिपमेंट दो बिलियन से अधिक होने के साथ भारत, चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन विनिर्माण वाला देश बन गया है।
  • खिलौना उद्योग में वृद्धि: घरेलू खिलौना विनिर्माताओं के ईमानदार प्रयासों से वित्त वर्ष 2011-22 में खिलौनों का आयात 70% कम होकर 110 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
  • भारतीय उपभोक्ताओं के बीच स्थानीयता की मानसिकता में वृद्धि: भारतीय उपभोक्ताओं की उपभोग आदतों पर KPMG की रिपोर्ट के अनुसार, सभी आयु समूहों के लगभग 60 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने विदेशी ब्रांडों को स्वदेशी ब्रांडों के साथ बदलने की इच्छा व्यक्त की।

मेक इन इंडिया के तहत शुरू की गई योजनाएँ

  • प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना: इसे मेक इन इंडिया पहल को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2020-21 में 14 प्रमुख विनिर्माण क्षेत्रों में लॉन्च किया गया था।
    • PLI योजना रणनीतिक विकास क्षेत्रों में घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करती है जहाँ भारत को तुलनात्मक लाभ है।
  • सेमीकंडक्टर्स और डिस्प्ले फैब इकोसिस्टम के लिए संशोधित कार्यक्रम: यह भारत में सेमीकंडक्टर्स और डिस्प्ले विनिर्माण इकोसिस्टम के विकास के लिए एक व्यापक कार्यक्रम है।
  • राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली (NSWS): इसका उद्देश्य निवेशकों को अनुमोदन और मंजूरी के लिए एकल डिजिटल मंच प्रदान करके ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ में सुधार करना है।
  • एक-जिला-एक-उत्पाद (ODOP) पहल: इस पहल का उद्देश्य देश के प्रत्येक जिले से स्वदेशी उत्पादों के प्रचार और उत्पादन की सुविधा के लिए योजना शुरु करना है।
  • प्रधानमंत्री गतिशक्ति कार्यक्रम: यह देश में विनिर्माण क्षेत्रों के लिए मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी के लिए शुरू किया गया कार्यक्रम है।
  • अन्य सुधार उपाय: संबंधित कानूनों में संशोधन, नियमों और विनियमों के बोझिल अनुपालन को सरलीकरण, गैर-अपराधीकरण और डिजिटलीकरण के माध्यम से कम किया गया है, जिससे भारत में व्यापार करना आसान हो गया है।
  • स्थानीय विनिर्माण में गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश पेश किए गए हैं।

मेक इन इंडिया के साथ चुनौतियाँ

  • बढ़ी हुई संरक्षणवादी नीतियाँ: बढ़े हुए टैरिफ के साथ अन्य क्षेत्रों में संरक्षणवादी नीतियों के विस्तार को लेकर चिंताएँ हैं क्योंकि इससे कमी, काला बाजारी और बड़े पैमाने पर किराए की माँग को बढ़ावा मिलता है।
    • हाल ही में भारत ने रक्षा सामग्रियों के निर्माण में आत्मनिर्भरता के लिए 928 सैन्य उपकरणों पर आयात प्रतिबंध लगाया है।
  • पूँजी-सघन उद्योगों के प्रति पूर्वाग्रह: PLI योजना के माध्यम से औद्योगिक नीति अभ्यास पूँजी-सघन उद्योगों के प्रति पक्षपाती है।
    • यह योजना चयनित बड़े और मध्यम स्तर के उद्योगों को सब्सिडी प्रदान करने पर केंद्रित है।
    • उदाहरण के रूप में श्रम-केंद्रित विनिर्माण गतिविधियों में तुलनात्मक लाभ होने के बावजूद ऑटोमोबाइल, फार्मा, उन्नत बैटरी सेल, दूरसंचार उपकरण इत्यादि।
  • विनिर्माण के बजाय असेंबलिंग पर ध्यान देना: मेक इन इंडिया योजना के तहत प्रमुख फोकस नॉक-डाउन किट्स (knocked-down Kits) की असेंबलिंग तक ही सीमित हैं, हालाँकि कई वैश्विक कंपनियों ने देश में इकाइयाँ स्थापित की हैं।
    • नॉक-डाउन किट किसी उत्पाद को असेंबल करने के लिए आवश्यक पुर्जों(पार्ट्स) का एक संग्रह है। ये पुर्जे आम तौर पर एक देश या क्षेत्र में निर्मित होते हैं, फिर अंतिम असेंबली के लिए दूसरे देश या क्षेत्र में निर्यात किए जाते हैं।
    • उदाहरण के रूप में– मोबाइल, दूरसंचार और इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण विनिर्माण, आदि।
  • स्थिर विनिर्माण क्षेत्र: 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध से पूर्वी एशियाई देशों में देखे गए विनिर्माण के महत्त्वपूर्ण विविधीकरण के बावजूद, भारत की विनिर्माण हिस्सेदारी सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 15% पर स्थिर बनी हुई है।
    • अशोक विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर इकोनॉमिक डेटा एंड एनालिसिस के हालिया विश्लेषण के अनुसार, 100 मिलियन विनिर्माण नौकरियों को जोड़ने के बजाय, भारत ने वर्ष 2016-17 और वर्ष 2020-21 के बीच 24 मिलियन नौकरियों के नुकसान की सूचना दी।

आगे की राह

  • निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता: घरेलू बाजार की अपनी सीमाएँ हैं, इसलिए निर्यात पर भी ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
    • निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार के लिए, उत्पादन लागत को कम करने, गुणवत्ता में सुधार करने और अधिक नवाचार किया जाना चाहिए।
    • उच्च मूल्य विनिर्माण मूल्य शृंखला के भीतर उन खंडों की पहचान करनी चाहिए जहाँ इसकी तुलनात्मक लागत को कम किया जा सके।
    • इसे प्राप्त करने के लिए औद्योगिक नीति को एक इष्टतम औद्योगिक संरचना के साथ संरेखित करना आवश्यक है, जो देश की अंतर्निहित शक्तियों के साथ संरेखित हो, जिसमें श्रम, कौशल और पूँजी की सापेक्ष प्रचुरता शामिल हो।
  • श्रम गहन क्षेत्रों में PLI का विस्तार: चमड़े, परिधान, हल्के इंजीनियरिंग सामान, खिलौने और जूते जैसे श्रम गहन क्षेत्रों को शामिल करने के लिए PLI योजना के दायरे का विस्तार करने की आवश्यकता है।
    • इन क्षेत्रों में अधिकतम स्थानीय मूल्यवर्द्धन होता है, जैसे- कपड़ा, खाद्य उत्पाद आदि।
    • इन क्षेत्रों में घरेलू विनिर्माण को बढ़ाना और रोजगार पैदा करना तथा औद्योगिक क्षमताओं का निर्माण करना महत्त्वपूर्ण है।
    • यद्यपि PLI योजना उच्च-स्तरीय विनिर्माण के लिए लाभकारी है। पारंपरिक विनिर्माण क्षेत्र जनता के लिए रोजगार पैदा करने के लिए सबसे व्यवहार्य विकल्प बना हुआ है।
  • वित्तीय प्रोत्साहन: आत्मनिर्भर भारत के तहत भारत की औद्योगिक रणनीति को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वित्तीय प्रोत्साहन उन क्षेत्रों या फर्मों तक बढ़ाया जाए जो मजबूत घरेलू अंतर-क्षेत्रीय संबंधों को बढ़ावा देते हैं और औद्योगिक उन्नयन की सुविधा प्रदान करते हैं।
    • ये क्षेत्र अर्थव्यवस्था के लिए वास्तविक आर्थिक अधिशेष उत्पन्न करेंगे, जो उत्पादन के कारक के प्रभावी उपयोग के साथ-साथ औद्योगिक संरचनाओं के उन्नयन के लिए उनकी उन्नति में योगदान देंगे।
    • यह अंततः घरेलू विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाएगा, जिससे वैश्विक उत्पादन नेटवर्क में जुड़ने के संभावित अवसर पैदा होंगे।
  • ‘मेक इन इंडिया’ को ‘असेंबल फॉर द वर्ल्ड’ के साथ एकीकृत करना: चीन ने अपने घरेलू विनिर्माण उद्योगों को वैश्विक ‘नेटवर्क उत्पाद‘ कंपनियों के लिए असेंबलिंग इकाइयों के साथ एकीकृत करने का कार्य किया है।
    • दुनिया भर के लिए घटकों को आयात करके और उन्हें चीन में असेंबल करके, चीन ने अभूतपूर्व पैमाने पर नौकरियाँ उत्पन्न कीं।
    • इसी तरह, मेक इन इंडिया में ‘असेंबल इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड’ को एकीकृत करके, भारत अपने निर्यात बाजार में हिस्सेदारी को वर्ष  2025 तक लगभग 3.5 प्रतिशत और वर्ष 2030 तक 6 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है।
    • आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, इससे वर्ष 2025 तक लगभग 4 करोड़ नौकरियाँ और वर्ष 2030 तक लगभग 8 करोड़ नौकरियाँ पैदा हो सकती हैं।