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अरावली के लिए खतरा: पर्यावरणीय निम्नीकरण

Lokesh Pal August 19, 2024 02:32 79 0

संदर्भ

‘अर्थ साइंस इंफॉर्मेटिक्स’ (Earth Science Informatics) पत्रिका में प्रकाशित वर्ष 1975 के बाद अरावली पर्वतमाला के भूमि उपयोग की गतिशीलता संबंधी वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार, अरावली पर्वतमाला में व्यापक पारिस्थितिक निम्नीकरण हुआ है। 

अरावली पर्वतमाला (Aravalli Range)

  • भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India- FSI) की रिपोर्ट के अनुसार, अरावली में पहाड़ियाँ तथा पहाड़ियों के निचले हिस्से के चारों ओर एक समान 100 मीटर चौड़ा बफर जोन शामिल है। 
  • संरचना: अरावली पर्वतमाला सबसे पुराने अवशिष्ट पर्वतों में से एक है, जिसका निर्माण प्रोटेरोजोइक युग (2500-541 मिलियन वर्ष पूर्व) के दौरान विवर्तनिकी प्लेटों के अभिसरण से हुआ था। 
  • विस्तार एवं स्थान: यह नई दिल्ली में रायसीना हिल्स से गुजरात में खेड़ब्रह्मा (Khedbrahma) और पालनपुर तक दक्षिण-पश्चिम दिशा में, दक्षिणी हरियाणा और राजस्थान से गुजरते हुए, गुजरात में समाप्त होता है।  
    • इसकी कुल लंबाई लगभग 692 किलोमीटर है।
    • इसका लगभग 80% हिस्सा, जो लगभग 550 किलोमीटर है, राजस्थान राज्य में अवस्थित है।
    • हरियाणा, दिल्ली, गुजरात के भू-भाग में 20% हिस्सा है।

  • ऊँचाई: इसकी ऊँचाई 300 मीटर से 900 मीटर तक है। 
  • पर्वतमालाएँ: दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित: राजस्थान में सांभर सिरोही पर्वतमाला (Sambhar Sirohi Range) और सांभर खेतड़ी पर्वतमाला (Sambhar Khetri Range)। 
  • सबसे ऊँची चोटी: माउंट आबू में गुरु शिखर (1,722 मीटर)।
  • प्राकृतिक भौगोलिक परिदृश्य: अरावली पर्वतमाला एक ऊबड़-खाबड़, चट्टानी और पहाड़ी क्षेत्र है। इसकी विशेषता इसकी ऊबड़-खाबड़ स्थलाकृति, चट्टानी और पहाड़ी परिदृश्य हैं। 
  • नदियाँ: यहाँ प्रवाहित होने वाली प्रमुख नदियाँ बनास, लूनी, साहिबी आदि हैं। 
  • प्रमुख खनिज: ताँबा, जस्ता, संगमरमर, सीसा, चाँदी आदि। 
  • जनजातीय समुदाय: भील, भील-मीणा, मीना, गरासिया, आदि।
  • अरावली पर्वतमाला का महत्व
    • इकोटोन (Ecotone): अरावली, एक अर्द्ध-शुष्क वातावरण में थार रेगिस्तान और गंगा के मैदान के बीच एक इकोटोन क्षेत्र का निर्माण करती है। 
    • जैव विविधता: 300 देशज पौधों की प्रजातियों, 120 पक्षी प्रजातियों तथा सियार और नेवले जैसे विशिष्ट वन्य जीवों का निवास स्थान। 
    • महत्त्वपूर्ण जल निकासी प्रणाली: अरावली ने उत्तर-पश्चिम में सिंधु बेसिन और पूर्व में गंगा बेसिन के बीच जलविभाजक प्रदान किया है। 
    • मरुस्थलीकरण नियंत्रण: यह पूर्व में उपजाऊ मैदानों और पश्चिम में थार रेगिस्तान के बीच एक अवरोधक के रूप में कार्य करती है।
      • अत्यधिक खनन, थार रेगिस्तान के विस्तार से जुड़ा हुआ है।
      • मथुरा और आगरा में लोएस (loess) मृदा की उपस्थिति कमजोर पारिस्थितिक अवरोध के कारण रेगिस्तान के विस्तार का संकेत देती है।
    • जलवायु प्रभाव
      • यह उत्तर-पश्चिम भारत की जलवायु को आकार देती है।
      • मानसून के दौरान, यह नमीयुक्त पवनों को निर्देशित करता है, उप-हिमालयी नदियों को जल प्रदान करने में सहायक होता है और उत्तर भारतीय मैदानों को पुनः समृद्ध करता है। 
      • सर्दियों में, यह उपजाऊ जलोढ़ नदी घाटियों को मध्य एशिया से आने वाली ठंडी पश्चिमी पवनों से बचाता है।
    • माउंट आबू जैन धर्मावलंबियों के लिए एक तीर्थ स्थल है तथा यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है।

अरावली में संरक्षित क्षेत्रों का सकारात्मक प्रभाव

  • अरावली पर्वतमाला में वन्यजीव अभयारण्यों की उपस्थिति का सकारात्मक प्रभाव: मध्य अरावली पर्वतमाला में दो वन्यजीव अभयारण्यों (टोडागढ़ रावली और कुंभलगढ़) की उपस्थिति का पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जहाँ वनों का न्यूनतम क्षरण हुआ है। 
  • दक्षिणी भाग अधिक हरा-भरा: अरावली का दक्षिणी भाग मध्य और ऊपरी भागों की तुलना में अधिक हरा-भरा है, क्योंकि यहाँ अधिक संरक्षित और कम आबादी वाले क्षेत्र हैं, जहाँ मानवजनित दबाव की न्यूनतम संभावना है।

अरावली पर्वतमाला को खतरा

  • वन क्षेत्र में परिवर्तन: वर्ष 1999 से वर्ष 2019 के दौरान, वन क्षेत्र, कुल क्षेत्रफल का 0.9% तक कम हो गया, जो 75,572.8 वर्ग किमी. है। 
    • वर्ष 1999 तक इस पर्वतमाला का 29,915 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र, शुष्क पर्णपाती वनों से आच्छादित था। 
    • वर्ष 2019 में यह घटकर 29,210 वर्ग किमी. रह गया, जिसके परिणामस्वरूप 705 वर्ग किमी. वन लुप्त हो गए।
    • वर्ष 1975 और वर्ष 2019 के बीच अरावली की मध्य श्रृंखला के वन क्षेत्र में 32% की कमी आई है, साथ ही खेती योग्य भूमि में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
  • अवैध उत्खनन: राजस्थान में अरावली की 25% से अधिक और 31 पहाड़ियाँ अवैध उत्खनन के कारण लुप्त हो गई हैं।
    • जयपुर, सीकर, अलवर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़ और राजसमंद जिलों में खनन गतिविधियाँ तीव्र हैं।
  • खनन का प्रचलन और प्रभाव: समुचित औद्योगीकरण और स्थायी आजीविका स्रोतों के अभाव में, समुदाय आय के लिए खनन और सहायक उद्योगों पर निर्भर रहते हैं। 
    • NCR और आस-पास के क्षेत्रों में निर्माण सामग्री की मांग अरावली में खनन गतिविधियों को बढ़ावा देती है। 
  • मानव बस्ती में वृद्धि: मानव बस्ती में निरंतर वृद्धि हो रही है जो वर्ष 1975 में 4.5% से बढ़कर वर्ष 2019 में 13.3% हो गयी है। 
  • कार्बन प्रवाह की दर: कार्बन प्रवाह, एक निर्दिष्ट समय में कार्बन स्टॉक के बीच आदान-प्रदान की गई राशि को संदर्भित करता है, क्योंकि यह भूमि, महासागरों, वायुमंडल और जीवित प्राणियों के बीच कार्बन के आवागमन को रिकॉर्ड करता है। 
    • ऊपरी और निचली अरावली पर्वतमाला के क्षेत्रों में कार्बन प्रवाह की उच्च सकारात्मक दर दर्ज की गई, क्योंकि यहाँ अधिक वर्षा और संरक्षित क्षेत्र देखे गए। इसके विपरीत, मुख्य मध्य श्रेणी में कार्बन प्रवाह की नकारात्मक दर का सामना करने वाले क्षेत्र थार रेगिस्तान के पास हैं। 
  • उन्नत वनस्पति सूचकांक (Enhanced Vegetation Index- EVI): EVI सुदूर संवेदन क्षेत्र में एक स्थानिक उपकरण है जिसका उपयोग वनों की जैवभार और कार्बन अवशोषण क्षमता का अनुमान लगाने के लिए किया जा सकता है। 
    • इसका उपयोग वनस्पति में परिवर्तन का पता लगाकर बड़े क्षेत्रों में वनों के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए भी किया जाता है। 
    • 0 से -0.2 तक का न्यूनतम मान नागौर जिले में आने वाले ऊपरी मध्य अरावली क्षेत्र में दर्ज किया गया। 
  • जैव विविधता की हानि (Biodiversity Loss): तेंदुए, धारीदार लकड़बग्घा, गोल्डन जैकाल, नीलगाय और ताड़ सिवेट सहित विविध वनस्पतियों एवं जीवों की हानि हुई है। 
  • नदियों का सूखना: अरावली से निकलने वाली नदियाँ- जैसे बनास, लूनी, साहिबी और सखी सूख गई हैं।

अरावली पर्वतमाला में क्षरण/निम्नीकरण के परिणाम

  • पारिस्थितिकीय प्रभाव: अधिक गहराई तक खुदाई या खनन करने से जलभृत क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे जल प्रवाह बाधित होता है और परिणामस्वरूप झीलें सूख जाती हैं तथा नई झीलें बन जाती हैं। 
    • अरावली पर्वतमाला के किनारे प्राकृतिक वन नष्ट होने से मानव-वन्यजीव संघर्ष उत्पन्न हो रहा है। 
    • परिवर्तित प्राकृतिक जल निकासी पैटर्न से सम्पूर्ण NCR क्षेत्र में जल विज्ञान प्रणाली और जल स्तर को खतरा है।
  • अंतर-पीढ़ीगत समानता (Intergenerational Equity): अरावली पर्वतमाला में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भावी पीढ़ियों पर बोझ डालेगा, जिससे अंतर-पीढ़ीगत समानता सुनिश्चित करने के लिए कानूनी ढाँचे की आवश्यकता पर बल दिया गया है। 
  • खनन गतिविधि के प्रभाव
    • जल की कमी: प्राकृतिक जल प्रवाह और भूजल पुनर्भरण में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे निचले इलाकों में जल की कमी हो जाती है, जिसका प्रभाव कृषि और बस्तियों पर पड़ता है। 
    • वायु गुणवत्ता: इससे धूल और सिलिका जैसे प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं, जिससे वायु की गुणवत्ता खराब होती है और आस-पास के समुदायों में श्वसन संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। 
    • मृदा अपरदन और मरुस्थलीकरण: इससे वनस्पति नष्ट हो जाती है, मृदा अपरदन होता है और और ऊपरी मृदा के बह जाने से मरुस्थलीकरण में तेजी आती है।

सुझाव

  • अरावली क्षेत्र का व्यापक ‘लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग’ (Light Detection and Ranging-LiDAR) आधारित ड्रोन सर्वेक्षण 
    • LiDAR सर्वेक्षण में किसी वस्तु या सतह को लेजर से लक्ष्य बनाया जाता है तथा परावर्तित किरण के रिसीवर तक वापस आने में लगने वाले समय को मापा जाता है।
    • इससे अवैध खनन गतिविधियों की पहचान और निवारण में सुविधा होगी तथा प्राधिकारियों को पर्यावरण क्षरण को रोकने के लिए त्वरित कार्रवाई करने में सहायता मिलेगी।
  • सभी प्रकार के खनन पर प्रतिबंध: अरावली पर्वतमाला के भीतर सभी प्रकार के खनन पर प्रतिबंध से शेष पहाड़ियों को और अधिक क्षरण से बचाया जा सकेगा तथा इसके पारिस्थितिक संतुलन और जैव विविधता को संरक्षित किया जा सकेगा।
  • स्पष्ट कानून और दिशा-निर्देश: अनुचित स्वामित्व और भूमि के निजीकरण की प्रक्रिया के बारे में स्पष्ट दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है। किसी क्षेत्र विशेष के लिए वन की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है।
  • वनरोपण की पहल: वनरोपण के प्रयासों से अरावली को उसकी मूल वनस्पति अवस्था में पुनर्स्थापित किया जा सकता है, जैसा कि अरावली जैव विविधता पार्क में किया गया सफल पुनरुद्धार है।
  • अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट (Aravali Green Wall Project): अफ्रीका की ‘ग्रेट ग्रीन वॉल’ से प्रेरित होकर, भारत गुजरात से दिल्ली-हरियाणा सीमा तक 1,400 किमी. लंबी और 5 किमी. चौड़ी हरित पट्टी निर्माण की योजना बना रहा है। 
    • इस पहल का उद्देश्य भूमि क्षरण से निपटना और थार रेगिस्तान के पूर्व की ओर विस्तार को रोकना है।

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