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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत त्रिभाषा नीति

Lokesh Pal February 27, 2025 03:42 187 0

संदर्भ

तमिलनाडु भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत केंद्र की त्रिभाषा फार्मूला का विरोध कर रहा है और इसे गैर हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी का जबरन आरोपण बताकर खारिज कर रहा है।

तमिलनाडु की द्वि-भाषा नीति

  • तमिलनाडु की वर्ष 1968 में अपनाई गई द्वि-भाषा नीति के अनुसार सरकारी स्कूलों में तमिल और अंग्रेजी अनिवार्य है। 
  • तब से राज्य द्वि-भाषा नीति का पालन कर रहा है, जिसमें केवल CBSE स्कूलों में ही हिंदी पढ़ाई जाती है।

पृष्ठभूमि

  • निधियों को रोकना: केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया (पीएम-श्री) पहल में शामिल करने से इनकार करने के कारण समग्र शिक्षा योजना के तहत तमिलनाडु को मिलने वाली 2,152 करोड़ रुपये की निधि रोक दी है।
  • तमिलनाडु का रुख: तमिलनाडु पीएम श्री योजना में भाग लेने के लिए उत्सुक है।
    • हालाँकि, यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 को लागू करने के लिए अनिवार्य प्रावधानों का कड़ा विरोध करता है।
    • हालाँकि NEP में कहा गया है कि तीसरी भाषा कोई भी भारतीय भाषा हो सकती है, लेकिन राज्य इसे हिंदी हिंदी के जबरन आरोपण के रूप में देखता है।
    • यह अपनी लंबे समय से चली आ रही द्वि-भाषा नीति को जारी रखने पर जोर देता है।

समग्र शिक्षा योजना 

  • समग्र शिक्षा एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे वर्ष 2018 में प्री-स्कूल से कक्षा 12 तक समग्र स्कूली शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रारंभ किया गया था।
  • वित्त पोषण पैटर्न
    • 90:10 (पूर्वोत्तर राज्यों और हिमालयी राज्यों के लिए)।
    • 60:40 (अन्य राज्यों के लिए)।
    • बिना विधानमंडल वाले केंद्रशासित प्रदेशों के लिए 100% केंद्रीय वित्त पोषण।

पीएम श्री योजना 

‘प्रधानमंत्री स्कूल्स फॉर राइजिंग इंडिया’ (PM SHRI) भारत सरकार द्वारा केंद्र प्रायोजित योजना है।

  • उद्देश्य: केंद्र सरकार, राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों और स्थानीय निकायों द्वारा प्रबंधित चयनित मौजूदा स्कूलों को सशक्त करके 14,500 से अधिक स्कूलों का विकास करना।

त्रिभाषा नीति के बारे में

  • परिचय: त्रि-भाषा सूत्र एक शैक्षिक फॉर्मूला है, जिसे पहली बार वर्ष 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में प्रस्तुत किया गया था।
    • इसने गैर-हिंदी भाषी राज्यों में अंग्रेजी और एक क्षेत्रीय भाषा के साथ-साथ हिंदी की शिक्षा को अनिवार्य बना दिया।
  • कोठारी आयोग (वर्ष 1964- 1966) द्वारा दिया गया त्रि-भाषा फॉर्मूला 
    • प्रथम भाषा: यह मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा होगी।
    • द्वितीय भाषा: हिंदी भाषी राज्यों में यह अन्य आधुनिक भारतीय भाषाएँ या अंग्रेजी होगी।
      • गैर-हिंदी भाषी राज्यों में यह हिंदी या अंग्रेजी होगी।
    • तीसरी भाषा: हिंदी भाषी राज्यों में यह अंग्रेजी या कोई आधुनिक भारतीय भाषा होगी।
      • गैर-हिंदी भाषी राज्य में यह अंग्रेजी या कोई आधुनिक भारतीय भाषा होगी।
  • NEP 2020 संशोधन: NEP, 2020 में त्रि-भाषा फार्मूले को बरकरार रखा गया है, लेकिन इसमें लचीलापन भी है।
    • राज्य, क्षेत्र और छात्र भाषाएँ चुन सकते हैं, बशर्ते कम-से-कम दो भाषाएँ भारतीय मूल की भाषाएँ हों।
    • किसी भी राज्य पर कोई भाषा नहीं थोपी गई है।
    • NEP संस्कृत सीखने का समर्थन करती है।

भाषा पर संवैधानिक प्रावधान

  • राजभाषा: अनुच्छेद 343 भारतीय संघ की राजभाषा
    • खंड: (1) संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। 
    • खंड: (2) इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि तक संघ के सभी राजकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिसके लिए उसका प्रयोग किया जा रहा था।
  • संविधान में अलग-अलग राज्यों की आधिकारिक भाषा का उल्लेख नहीं है।
  • अनुच्छेद 345 के तहत राज्य की स्वायत्तता: राज्यों को आधिकारिक उद्देश्यों के लिए हिंदी या क्षेत्रीय भाषाओं सहित एक या अधिक भाषाओं को अपनाने का अधिकार है।
  • हिंदी का प्रचार: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 351 के तहत संविधान संघ को भारत की समग्र संस्कृति के लिए अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में हिंदी को बढ़ावा देने का आदेश देता है।

त्रिभाषा नीति के कार्यान्वयन में भाषाई राजनीति

  • गैर-हिंदी राज्यों में प्रतिरोध
    • तमिलनाडु का विरोध: राज्य ने ऐतिहासिक रूप से हिंदी को लागू करने का विरोध किया है, जिसका इतिहास हिंदी विरोधी आंदोलन (1937, 1965) से जुड़ा है। राज्य द्वि-भाषा नीति (तमिल और अंग्रेजी) का पालन करता है।
    • कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने भी हिंदी को अनिवार्य भाषा के रूप में लागू करने में अनिच्छा जाहिर की है।
  • हिंदी थोपने की धारणा
    • आलोचकों का तर्क है कि यह नीति केंद्र द्वारा हिंदी को बढ़ावा देने वाली है।
  • उत्तर-दक्षिण विभाजन
    • उत्तर भारत में हिंदी प्रमुख भाषा है, लेकिन दक्षिण भारत में तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ जैसी क्षेत्रीय भाषाएँ अधिक प्रभावशाली हैं।
    • दक्षिण में इस नीति को हिंदी-भाषियों के पक्ष में माना जाता है, जबकि उत्तर में कई लोग दक्षिण भारतीय भाषा सीखने की आवश्यकता महसूस नहीं करते हैं।
  • अंग्रेजी की भूमिका
    • अंग्रेजी एक तटस्थ संपर्क भाषा बनी हुई है, जिसका उपयोग कई राज्यों में शिक्षा, शासन और वाणिज्य के लिए व्यापक रूप से किया जाता है।

त्रिभाषा फॉर्मूला लागू करने का महत्त्व

  • राष्ट्रीय एकीकरण: त्रि-भाषा फॉर्मूला राज्यों के बीच संचार को प्रोत्साहित करके भाषाई विभाजन को कम करता है, भारत के विविध भाषाई समूहों के बीच एकता और समझ को बढ़ावा देती है।
  • भाषाई विविधता का संरक्षण: क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल करने को अनिवार्य बनाकर, नीति भारत की समृद्ध भाषाई विरासत की रक्षा और संवर्द्धन करती है, यह सुनिश्चित करती है कि स्थानीय भाषाएँ शिक्षा और संस्कृति में प्रासंगिक बनी रहें।
  • संवर्द्धित संज्ञानात्मक कौशल: कई भाषाएँ सीखने से समस्या-समाधान, रचनात्मकता और स्मृति जैसी संज्ञानात्मक क्षमताओं में सुधार होता है, साथ ही शैक्षणिक लचीलापन भी प्राप्त होता है।
  • आर्थिक लाभ: बहुभाषावाद राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय दोनों ही नौकरी बाजारों में रोजगार क्षमता को बढ़ाता है और श्रमिकों को राज्यों के बीच प्रभावी ढंग से संवाद करने में सक्षम बनाकर श्रम प्रवास का समर्थन करता है।

स्कूलों में तीसरी भाषा लागू करने में चुनौतियाँ

  • खराब शिक्षण परिणाम
    • वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (ASER), 2022 के अनुसार, कक्षा V के 60% छात्र कक्षा II के स्तर का पाठ नहीं पढ़ सकते हैं।
    • वर्ष 2023 की रिपोर्ट में बताया गया है कि 14-18 वर्ष की आयु के 25% युवा अपनी क्षेत्रीय भाषा में धाराप्रवाह नहीं पढ़ सकते हैं, और 40% से अधिक अंग्रेजी वाक्यों को पढ़ने में कठिनाई महसूस करते हैं।
  • संसाधन की कमी
    • सरकारी स्कूलों में अतिरिक्त भाषाओं को प्रभावी ढंग से पढ़ाने के लिए योग्य शिक्षकों और बुनियादी ढाँचे की कमी है।
    • यहाँ  तक ​​कि निजी स्कूल, जो आठवीं कक्षा तक तीसरी भाषा पढ़ाते हैं, में भी छात्रों की दक्षता सीमित है।
  • वित्तीय बोझ: राज्य प्राथमिक शिक्षा पर होने वाले व्यय का 85% वहन करते हैं, जबकि केंद्र केवल 15% का योगदान देता है।
    • कुल शिक्षा व्यय सकल घरेलू उत्पाद का 4-4.5% बना हुआ है, जो NEP 2020 के 6% के लक्ष्य से बहुत कम है।
  • हिंदी थोपने की धारणा: गैर-हिंदी भाषी राज्यों में, विशेष रूप से दक्षिण भारत में, इस फॉर्मूले को प्रायः हिंदी को थोपने के एक उपकरण के रूप में देखा जाता है, जिससे प्रतिरोध और राजनीतिक प्रतिक्रिया होती है।
  • संघवाद और राज्य स्वायत्तता: इस फॉर्मूले ने केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति संतुलन के संबंधमें बहस छेड़ दी है।
    • तमिलनाडु जैसे राज्यों ने लगातार त्रि-भाषा फार्मूला को अस्वीकार किया है, अपनी भाषा नीतियों को निर्धारित करने के अपने अधिकार पर जोर दिया है।
  • सांस्कृतिक पहचान: भाषा शिक्षा को मानकीकृत करने के फॉर्मूले के प्रयास को अक्सर क्षेत्रीय संस्कृतियों के लिए खतरे के रूप में देखा जाता है।

आगे की राह 

  • आधारभूत कौशल पर ध्यान देना: सरकारी स्कूलों को आधारभूत संख्यात्मक कौशल के साथ-साथ मातृभाषा/स्थानीय भाषा तथा अंग्रेजी दक्षता में सुधार को प्राथमिकता देनी चाहिए।
  • राज्यों के लिए लचीलापन और स्वायत्तता: भारत की भाषाई विविधता को देखते हुए, स्कूलों के लिए भाषा नीतियाँ तय करने में राज्यों को अधिक स्वायत्तता होनी चाहिए।
  • रचनात्मक संवाद: वित्तपोषण विवादों और नीतिगत असहमतियों को हल करने के लिए केंद्र और तमिलनाडु के बीच रचनात्मक संवाद आवश्यक है।
  • स्वाभाविक रूप से बहुभाषावाद को बढ़ावा देना: वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार, 26% भारतीय द्विभाषी हैं और 7% त्रिभाषी हैं, शहरी क्षेत्रों में यह दर अधिक है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: अंग्रेजी में दक्षता वैश्विक सेवा उद्योगों में भारत की सफलता का एक प्रमुख कारक रही है।
    • यद्यपि अतिरिक्त भारतीय भाषाएँ सीखना वांछनीय है, लेकिन यह अंग्रेजी या क्षेत्रीय भाषा प्रवीणता की कीमत पर नहीं होना चाहिए।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 की मुख्य विशेषताएँ

  • उद्देश्य: NEP, 2020 का उद्देश्य स्कूलों में लचीलेपन, समग्र विकास, कौशल-आधारित शिक्षा और बहुभाषावाद पर ध्यान केंद्रित करके शैक्षिक परिदृश्य को बदलना है।
  • स्कूल संरचना (5+3+3+4)
    • आधारभूत चरण: 5 वर्ष (प्रीस्कूल से ग्रेड 2 तक)
    • प्रारंभिक चरण: 3 वर्ष (ग्रेड 3 से 5 तक)
    • मध्य चरण: 3 वर्ष (ग्रेड 6 से 8 तक)
    • माध्यमिक चरण: 4 वर्ष (ग्रेड 9 से 12 तक)
  • NEP के चार स्तंभ
    • पहुँच: सभी के लिए शिक्षा सुनिश्चित करना।
    • समानता: शैक्षिक अवसरों में अंतर को कम करना।
    • गुणवत्ता: बेहतर शिक्षण परिणामों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • वहनीयता: शिक्षा को लागत-प्रभावी और समावेशी बनाना।
  • त्रि-भाषा फार्मूला 
    • छात्रों को तीन भाषाएँ सीखनी होंगी, जिनमें से कम-से-कम दो भारतीय होनी चाहिए।
    • राज्यों को भाषा चयन में स्वतंत्रता दी गई  है।
  • मातृभाषा आधारित शिक्षा
    • बेहतर समझ और संज्ञानात्मक विकास के लिए घरेलू भाषा में प्रारंभिक स्कूली शिक्षा को प्रोत्साहित किया जाता है।

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