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ग्रीन ग्रोथ की ओर: RBI और ग्रीन टैक्सोनॉमी पर

Lokesh Pal April 30, 2024 05:49 210 0

संदर्भ

हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की नवीनतम मौद्रिक नीति रिपोर्ट ने ‘चरम मौसमी घटनाओं’ और ‘जलवायु संकट’ को प्रधानता दी है।

मौद्रिक नीति

  • यह भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा निर्धारित व्यापक आर्थिक नीति है, जिसमें धन आपूर्ति और ब्याज दर का प्रबंधन शामिल है।

संबंधित तथ्य 

  • जुलाई 2022 में ‘जलवायु जोखिम और सतत वित्त’ पर चर्चा पत्र के साथ शुरुआत करते हुए, RBI ने ग्रीन इकोनॉमी में संक्रमण को संबोधित करने के लिए वृद्धिशील प्रगति की है।
    • यह भी स्वीकार किया है कि भारत को वर्ष 2070 तक अपनी नेट जीरो  लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए 17 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की आवश्यकता है।
  • यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने संपूर्ण यूरोजोन की आर्थिक मूल्य श्रृंखला के लिए ग्रीन टैक्सोनॉमी तैयार करने में सहायता की है।
    • EU टैक्सोनॉमी यह वर्गीकृत करने के लिए एक जटिल प्रणाली है कि अर्थव्यवस्था के किन हिस्सों को सतत निवेश के रूप में विपणन किया जा सकता है। इसमें आर्थिक गतिविधियों के साथ-साथ विस्तृत पर्यावरणीय मानदंड भी शामिल हैं।

RBI की नवीनतम मौद्रिक नीति रिपोर्ट की महत्त्वपूर्ण जानकारी

  • जलवायु और आर्थिक स्थिरता: ‘चरम मौसमी घटनाएँ’ और ‘जलवायु संकट’ न केवल खाद्य मुद्रास्फीति को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि ब्याज दर पर भी व्यापक प्रभाव डाल रहे हैं, जिससे अर्थव्यवस्था की वित्तीय स्थिरता प्रभावित हो रही है।
    • रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक औसत तापमान बढ़ रहा है, साथ ही चरम मौसमी घटनाओं में भी वृद्धि हो रही है, इसका आर्थिक एवं सामाजिक प्रभाव तेजी से स्पष्ट हो रहा है।
    • रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि ‘यदि मुद्रास्फीति संबंधी संकट व्याप्त रहा, तो इससे मुद्रास्फीति के घटने की उम्मीदें कम हो सकती हैं, और RBI को मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिए उच्च ब्याज दरों की आवश्यकता होगी, जिससे उत्पादन में बढ़ोत्तरी करनी होगी।
  • अधिकतम आर्थिक उत्पादन: तटस्थ ब्याज दर केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति संबंधी लाभप्रदयता को संदर्भित करती है जो मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखते हुए अधिकतम आर्थिक उत्पादन बनाए रखने की अनुमति देती है।

प्राकृतिक दर अल्पकालिक वास्तविक ब्याज दर को संदर्भित करती है जो संभावित उत्पादन, समान निवेश और स्थिर मुद्रास्फीति के साथ व्यापार चक्र के संकट की अनुपस्थिति में मजबूत होगी।

    • रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि किसी भी जलवायु शमन नीतियों के अभाव में वर्ष 2050 तक ‘दीर्घकालिक (आर्थिक) उत्पादन’ लगभग 9% कम हो सकता है।
  • न्यू-कीनेसियन मॉडल: रिपोर्ट में ‘न्यू-कीनेसियन मॉडल का उल्लेख किया गया है जिसमें भौतिक जलवायु जोखिम क्षति कार्य शामिल है’ का उपयोग किया जा रहा है जो जलवायु परिवर्तन परिदृश्य के विपरीत जलवायु परिवर्तन के प्रतितथ्यात्मक व्यापक आर्थिक प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए किया जाएगा।

ग्रीन टैक्सोनॉमी के बारे में

  • ग्रीन टैक्सोनॉमी को किसी आर्थिक गतिविधि की स्थिरता प्रामाणिकताएँ और संभावित रैंकिंग का आकलन करने के लिए एक रूपरेखा के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • आवश्यकता: हाल के दशकों में, ग्लोबल वार्मिंग की चुनौतियों एवं पर्यावरणीय गिरावट के अन्य पहलुओं ने वित्तीय क्षेत्र सहित समाज के सभी हितधारकों को पर्यावरणीय स्थिरता की जिम्मेदारी लेने के लिए प्रेरित किया है।
  • उद्देश्य: वित्तीय हितधारकों और अन्य लोगों को यह निर्धारित करने में मदद करना कि उनके अधिकार क्षेत्र के लिए कौन से निवेश को ‘ग्रीन’ लेबल किया जा सकता है।
  • महत्त्व: पर्यावरण के अनुकूल निवेश पर सूचित निर्णय लेने के लिए समर्थन उन परियोजनाओं और गतिविधियों को प्रोत्साहित कर सकता है जो पर्यावरणीय रूप से सतत आर्थिक विकास को बढ़ाने में मदद करती हैं।

ग्रीन टैक्सोनॉमी के सिद्धांत 

विश्व बैंक समूह पर्यावरणीय रूप से सतत गतिविधियों की वर्गीकरण विकसित करने के लिए सिद्धांतों एवं कार्यप्रणाली की सिफारिश करता है।

  • बहुआयामी प्रभाव: ग्रीन टैक्सोनॉमी को इस तरह से विकसित किया जाना चाहिए जिसका हरित वित्त पर बहुआयामी प्रभाव पड़े।
  • पर्यावरणीय उद्देश्य: वर्गीकरण को भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियों (जलवायु परिवर्तन शमन एवं अनुकूलन, प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण, संसाधन दक्षता, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, और पारिस्थितिकी तंत्र/जैव विविधता संरक्षण) पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

  • ऊर्जा, विनिर्माण, परिवहन, कृषि, अपशिष्ट एवं भवन जैसे क्षेत्रों में ये गंभीर चुनौतियाँ हैं। इस प्रकार टैक्सोनॉमी इन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर सकता है ताकि इससे उत्पन्न होने वाले सकारात्मक पर्यावरणीय परिणामों को अधिकतम किया जा सके।
    • भारत में, मात्रात्मक तकनीकी स्क्रीनिंग मानदंडों के विपरीत, सतत कृषि और पशुपालन प्रथाओं के पूर्व-निर्दिष्ट सेट को शामिल करने की आवश्यकता है।
  • मानक मानदंड: टैक्सोनॉमी को राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, पर्यावरणीय कार्रवाई के लिए प्रमुख राष्ट्रीय योजनाओं एवं नीतियों, और राष्ट्रीय मानदंडों एवं मानकों में शामिल किया जाना चाहिए।
    • इंडियन टैक्सोनॉमी को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEF&CC) के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा निर्धारित प्रदूषण मानकों, MOEF&CC और जल शक्ति मंत्रालय द्वारा निर्धारित जल उपभोग मानदंडों और MOEF&CC द्वारा परिभाषित EIA प्रोटोकॉल पर निर्भर रहना चाहिए। 
    • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के मौद्रिक मूल्यांकन का उपयोग पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के नुकसान का आकलन करने के लिए भी किया जा सकता है।
  • नवोन्वेषी: इस तरह की टैक्सोनॉमी हरित परिवर्तन के लिए वैकल्पिक मार्गों के बीच चयन करने की स्वतंत्रता प्रदान करती है।
    • भारत को GHG उत्सर्जन सीमा से संबंधित तकनीकी जाँच मानदंडों के लिए नवीनतम जलवायु विज्ञान का उपयोग करना चाहिए। मानदंड 2°C के बजाय 1.5°C के अनुरूप होना चाहिए।
    • भारत को हरित वित्त के लिए पात्रता निर्धारित करने के लिए अपना स्वयं का स्क्रीनिंग मानदंड स्थापित करना चाहिए।
  • अंतरराष्ट्रीय  मानकों के साथ सामंजस्य में: मौजूदा भारतीय मानकों को घरेलू परिस्थितियों द्वारा प्रदान किए गए दायरे के भीतर अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क के बराबर संशोधित किया जा सकता है।
  • हरित वित्त और प्रकटीकरण मानदंडों की ट्रैकिंग का संरेखण: पारदर्शी और परिभाषित प्रकटीकरण एवं रिपोर्टिंग के माध्यम से हरित वित्त पर नजर रखने की आवश्यकता है।
    • RBI और भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) जैसे नियामकों को वित्तीय बाजार सहभागियों को पर्यावरणीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बाध्य करना चाहिए।
    • कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय को कंपनियों को आर्थिक गतिविधियों द्वारा प्राप्त पर्यावरणीय उद्देश्यों को सूचीबद्ध करने का आदेश देना चाहिए।
  • नियमित समीक्षा और अपडेट: विकास के स्तर, प्रौद्योगिकी, नीति, मानकों और पर्यावरणीय स्थितियों में बदलावों को शामिल करने के लिए समय पर अपडेट की आवश्यकता है।

ग्रीन टैक्सोनॉमी की सामग्री को परिभाषित करने के लिए सुझाई गई कार्रवाइयाँ

परिभाषित वर्गीकरण की आवश्यकता

  • सूचना: सूचना विषमता की घटनाओं को कम करना।
  • व्याख्याएँ: हरित वित्त की कई व्याख्याओं को खारिज करना।
  • जोखिम न्यूनीकरण: ग्रीनवाशिंग संबंधी जोखिम कम करना।
  • स्पष्ट समझ: निवेश में अंतर्निहित आर्थिक गतिविधियों के पर्यावरणीय फुटप्रिंट की पारदर्शी स्पष्ट प्रदान करना।
  • निवेशकों के अनुकूल: पर्यावरण को लेकर निवेश संबंधी निर्णय लेने में निवेशकों द्वारा मांगा गया मार्गदर्शन प्रदान करना।
  • प्रत्यक्षता: पूँजी की कमी वाले हरित क्षेत्रों को प्रत्यक्षता प्रदान करना, जिससे उन्हें नवीकरणीय ऊर्जा (जो वर्तमान में भारत में हरित वित्त का 80% हिस्सा है) से दूर अपेक्षित निवेश आकर्षित करने की अनुमति मिलती है।
  • प्रबंधन और निगरानी: यह वित्तीय संस्थानों एवं कंपनियों के लिए उनके वित्तीय प्रोफाइल के पर्यावरणीय अनुपात के प्रबंधन और निगरानी में मानक हो सकता है, जबकि सेबी और RBI जैसे नियामकों को वर्गीकरण के साथ संरेखित प्रकटीकरण को अनिवार्य करके इन संस्थाओं की निगरानी करने की अनुमति मिलती है।
  • मानकीकरण: यह पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) सूचकांकों के निर्माण में शामिल डेटा संग्रह, रिपोर्टिंग और प्रभाव माप पद्धति के मानकीकरण की सुविधा प्रदान कर सकता है।

ग्रीन इकोनॉमी की दिशा में RBI  के प्रयास

  • RBI  का दृष्टिकोण: RBI ने जलवायु जोखिम और सतत वित्त पर जुलाई 2022 के चर्चा पत्र के बाद से ग्रीन इकोनॉमी में परिवर्तन को संबोधित करने के लिए वृद्धिशील प्रगति की है।
  • ग्रीन मेथड: RBI  ने ₹16,000 करोड़ मूल्य के सॉवरेन ग्रीन बांड जारी किए हैं और विदेशी संस्थागत निवेशकों को भविष्य की हरित सरकारी प्रतिभूतियों में भाग लेने की अनुमति देकर संसाधन पूल का विस्तार किया है।

भारत में सॉवरेन ग्रीन बांड (SGrBs)

  • ये एक प्रकार का सरकारी ऋण है जो विशेष रूप से भारत को कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था में बदलने का प्रयास करने वाली परियोजनाओं को वित्तपोषित करता है।
  • दुनिया भर में केंद्रीय बैंक और सरकारें वित्तीय संस्थानों को ग्रीन फ्यूचर की ओर संक्रमण को तेज करने के लिए ग्रीनियम (Greenium) को अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं।
    • हालाँकि, SGrBs पारंपरिक G-Secs की तुलना में कम ब्याज देते हैं, और बैंक द्वारा उनमें निवेश करके छोड़ी गई राशि को ग्रीनियम कहा जाता है।
  • भारत में पहले जारी: RBI ने पिछले साल जनवरी और फरवरी में दो किश्तों में वर्ष 2028 और वर्ष 2033 में परिपक्वता के साथ ₹16,000 करोड़ के  SGrBs जारी किए थे।
  • वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) के तहत वर्गीकरण: इसके अलावा, इन हरित सरकारी-प्रतिभूतियों (G-Secs) को SLR के तहत वर्गीकृत किया गया था।
    • SLR, RBI द्वारा तय की गई एक तरलता दर है जिसे वित्तीय संस्थानों को अपने ग्राहकों को उधार देने से पहले अपने पास रखना चाहिए।

  • उठाए जाने वाले कदम
    • व्यापक मूल्यांकन: RBI को जलवायु परिवर्तन के कारण आर्थिक और वित्तीय स्थिरता पर मात्रात्मक और गुणात्मक प्रभाव का गहन मूल्यांकन करना चाहिए।
    • समावेशन: इसे एक लेयर्ड ग्रीन टैक्सोनॉमी को आबाद करने के लिए प्रशासनिक परामर्श को प्रोत्साहित करना चाहिए जो भारत के खंडित विकासात्मक प्रक्षेप पथों को प्रतिबिंबित करता है।
    • जोखिमों का शमन: जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था एक सतत भविष्य की ओर बढ़ रही है, वित्तीय प्रणाली में संक्रमणकालीन जोखिमों को कम करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

आगे की राह

  • स्पष्ट परिभाषा: देश के मौजूदा पर्यावरणीय लक्ष्यों, कानूनों, मानकों और लेबलिंग योजनाओं के अनुसार एक टैक्सोनॉमी परिभाषा विकसित की जानी चाहिए।
  • तकनीकी उन्नति: हरित गतिविधियों एवं निवेशों के लिए तकनीकी रूप से सुदृढ़ औचित्य प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

 

  • पर्यावरणीय और सामाजिक जोखिम हेतु: टैक्सोनॉमी में एक पर्यावरणीय उद्देश्य से दूसरे या विभिन्न जनसंख्या समूहों में जोखिम संक्रमण की क्षमता को संबोधित करने के लिए राष्ट्रीय या, यदि प्रासंगिक हो, क्षेत्रीय ढाँचे का वर्णन करने वाला एक अनुभाग शामिल किया जा सकता है।
  • जोखिम शमन योजनाएँ: ये मौजूदा राष्ट्रीय मानकों, नीतियों या विनियमों पर आधारित हैं और उपयोगकर्ताओं को इस बारे में सूचित करेंगी कि इन संभावित जोखिमों को कैसे संबोधित किया जाता है?
  • पर्याप्त निवेश: सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में चुनिंदा निवेशों के लिए टैक्सोनॉमी में एक आधिकारिक दिशानिर्देश होने चाहिए।
    • यह अनुभव किया गया है कि किसी टैक्सोनॉमी को प्रभावी बनाने के लिए, इसे मौजूदा और संभावित नए प्रोत्साहनों (जैसे- राजकोषीय प्रोत्साहन, नरम क्रेडिट लाइनें, गारंटी, आदि) के साथ जोड़ना महत्त्वपूर्ण है। 
    • उदाहरण: स्थायी वित्तीय उत्पादों के लिए पूँजी आवश्यकताओं को कम करना, नियामक कोटा निर्धारित करना (हरित वित्त के वितरण के लिए न्यूनतम वार्षिक लक्ष्य) और ठोस बाजार अनुसंधान के आधार पर पुनर्वित्त दरों को कम करना।
  • अंतरराष्ट्रीय अनुभव से सीखना
    • चीन: चीन बैंकिंग और बीमा नियामक आयोग (CBIRC) और पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना (PBOC) द्वारा जारी अनिवार्य हरित ऋण दिशानिर्देशों के कारण ऊर्जा बचत या उत्सर्जन में कटौती की पेशकश करने वाली परियोजनाओं के लिए हरित ऋण में वृद्धि हुई है।
    • बांग्लादेश: केंद्रीय बैंक द्वारा बैंकों एवं अन्य वित्तीय संस्थानों के लिए हरित वित्तपोषण के लिए न्यूनतम वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करने के बाद बांग्लादेशी बैंकों के हरित ऋण पोर्टफोलियो में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

निष्कर्ष

एक स्पष्ट रूप से परिभाषित और संरचित टैक्सोनॉमी बेहतर जानकारी वाले और अधिक कुशल निर्णय लेने और निवेश के अवसरों पर प्रतिक्रिया का समर्थन कर सकता है जो राष्ट्रीय पर्यावरणीय उद्देश्यों को प्राप्त करने में योगदान देता है। यह भारत के महत्त्वाकांक्षी हरित संक्रमण को प्रभावित करेगा और एक राष्ट्रीय वर्गीकरण की शुरूआत वैश्विक नेट जीरो दृष्टि में अपने योगदान को बढ़ाने की भारत की आकांक्षा को प्रदर्शित करेगी।

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