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अफ्रीकी चीतों का स्थानांतरण

Lokesh Pal February 21, 2025 03:39 16 0

संदर्भ

अफ्रीकी चीतों के भारत में स्थानांतरण से जुड़ी नैतिक, पारिस्थितिकी एवं उनके कल्याण संबंधी चिंताओं की जाँच करने वाले एक नए अध्ययन ने परियोजना की वैज्ञानिक योग्यता तथा दीर्घकालिक व्यवहार्यता के संबंध में सवाल उठाए हैं।

अध्ययन के बारे में

  • शीर्षक: अध्ययन का शीर्षक है, “भारत में एक प्रायोगिक चीता परिचय परियोजना के पर्यावरणीय न्यायिक निहितार्थों को रेखांकित करना” (Delineating the environmental justice implications of an experimental cheetah introduction project in India)
  • प्रकाशन: यह अध्ययन फ्रंटियर्स इन कंजर्वेशन साइंस में प्रकाशित हुआ।
  • संचालन: यह अध्ययन सेंटर फॉर वाइल्डलाइफ स्टडीज (CWS), ब्लड लॉयन्स नॉन प्रॉफिट कंपनी (NPC) एवं यूनिवर्सिटी ऑफ जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ्रीका के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया था।
  • दृष्टिकोण: शोधकर्ताओं ने परियोजना से प्रभावित वंचित लोगों एवं गैर-मानव प्रजातियों दोनों के लिए एक वितरणात्मक, प्रक्रियात्मक तथा मान्यता न्याय दृष्टिकोण लागू किया।
  • साहित्य समीक्षा: शोधकर्ताओं ने मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क (KNP) में एशियाई शेरों एवं अफ्रीकी  चीतों के स्थानांतरण के लिए तैयार की गई रिपोर्टों की समीक्षा की।
  • निष्कर्ष
    • मृत्यु दर: इस परियोजना के पहले चरण में अफ्रीकी चीतों की मृत्यु दर 40%-50% थी, जो 85% की अपेक्षित उत्तरजीविता दर से बहुत कम थी।
    • बिगड़ता शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य: स्थानांतरित किए गए चीतों ने 90 से अधिक रासायनिक स्थिरीकरण तथा नियमित पशु चिकित्सा हस्तक्षेपों के साथ उच्च स्तर के तनाव का अनुभव किया है।
    • पारिस्थितिकी एवं प्रजातिगत अन्याय: स्थानांतरित अफ्रीकी चीतों को भिन्न जलवायु, शिकार प्रजातियों और आवास के अनुकूल होने जैसे महत्त्वपूर्ण तनावों का सामना करना पड़ा है।

    • दोषपूर्ण कार्यप्रणाली: मौद्रिक प्रोत्साहन के लिए आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित लक्ष्यों की पहचान करने पर ध्यान केंद्रित किया गया था और स्थानांतरण, विदेशी प्रजातियों के परिचय, परियोजना स्वीकृति और कथित जोखिमों एवं लाभों के प्रति दृष्टिकोण जैसे सामाजिक मुद्दों की उपेक्षा की गई थी।
    • पारिस्थितिकी रूप से सतत् या नैतिकता का अभाव: दक्षिणी अफ्रीका से चीतों की आपूर्ति न तो पारिस्थितिकी रूप से सतत् है एवं न ही नैतिक है, क्योंकि उच्च मृत्यु दर देखी गई है।
      • चीतों को अभी तक बाड़ों में रखा गया है, जो उनके स्वतंत्र स्वभाव के विपरीत है।
  • सुझाव
    • पशु कल्याण: जंगली जीवों के कानूनी व्यापार से संबंधित सामाजिक एवं पशु कल्याण पर शोध की कमी को दूर करना।
    • मूल्यांकन मानदंड: विविध मूल्यों को पहचानना, संभावित असमान प्रभावों को समझना, ऐतिहासिक समूहों पर ध्यान केंद्रित करना एवं पुनर्वास, विदेशी प्रजातियों की शुरुआत, परियोजना स्वीकृति तथा कथित जोखिम एवं लाभ जैसे सामाजिक मुद्दों की पहचान करना मूल्यांकन मानदंड होना चाहिए।
      • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनिवार्य किए गए सामाजिक ऑडिट का संचालन करना एवं वर्ष 2010 में सर्वेक्षण किए गए संभावित स्थलों का “तेजी से मूल्यांकन” करना।
    • पद्धति में परिवर्तन: संरक्षण की सफलताओं को जन्म एवं मृत्यु की पारिस्थितिकी प्रक्रियाओं से परे जाकर मापा जाना चाहिए, लेकिन एक जानवर के शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभावों का आकलन करना चाहिए।

प्रोजेक्ट चीता के बारे में

  • प्रोजेक्ट चीता एक महत्त्वाकांक्षी वन्यजीव संरक्षण पहल है, जिसका उद्देश्य वर्ष 1952 में विलुप्त हो चुके चीतों को भारत में पुनर्स्थापित करना है।
  • इस परियोजना में अफ्रीकी चीतों को भारत में विशेष रूप से मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित करना शामिल है।
    • कूनो को इसके व्यापक घास के मैदानों एवं पर्याप्त शिकार आबादी के लिए चुना गया था, जो चीतों के लिए एक आदर्श आवास प्रदान करता है।
  • लक्ष्य: भारत सरकार अगले पाँच वर्षों में अफ्रीकी देशों से 50 चीतों को विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों में लाने की योजना बना रही है।
    • पहला ट्रांसकॉन्टिनेंटल वाइल्ड टू वाइल्ड ट्रांसलोकेशन: वर्तमान में, कुल 20 रेडियो कॉलर वाले चीतों को नामीबिया एवं दक्षिण अफ्रीका से मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में लाया गया।
  • उद्देश्य
    • पारिस्थितिकी संतुलन बहाल करना: चीतों को पुनर्स्थापित करना घास के मैदानों के पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने में मदद कर सकता है, क्योंकि वे अपने आवास में शीर्ष शिकारियों के रूप में कार्य करते हैं।
    • जैव विविधता को बढ़ावा देना: चीते शिकार की आबादी को नियंत्रित करके जैव विविधता में योगदान देते हैं, जिससे पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को लाभ होता है।
    • सांस्कृतिक महत्त्व: चीते कभी भारत की प्राकृतिक विरासत का हिस्सा थे एवं उनका पुनः परिचय भारत के लुप्त हो चुके वन्यजीवों की बहाली का प्रतीक है।
  • कार्यान्वयन निकाय: राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA), पर्यावरण मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है।

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