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ट्रेजरी बिल

Lokesh Pal December 31, 2024 04:10 39 0

संदर्भ

RBI के नीलामी कैलेंडर के अनुसार, केंद्र सरकार जनवरी-मार्च, 2024 में ट्रेजरी बिल (Treasury-Bills) या T-बिल के माध्यम से 3.94 लाख करोड़ रुपये उधार लेगी, जो अक्टूबर-दिसंबर में 2.47 लाख करोड़ रुपये से अधिक है।

सरकारी प्रतिभूतियाँ (Government Securities: G-Secs) 

  • सरकारी प्रतिभूतियाँ केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा राजकोषीय घाटे का प्रबंधन करने के लिए जारी किए जाने वाले व्यापार योग्य ऋण उपकरण हैं।
  • प्रकार
    • अल्पावधि: 91 दिन, 182 दिन या 364 दिन की परिपक्वता अवधि वाले ट्रेजरी बिल (T-बिल)।
    • दीर्घावधि: एक वर्ष या उससे अधिक की परिपक्वता अवधि वाले सरकारी बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ।
  • जारीकर्ता: केंद्र सरकार T-बिल और बॉण्ड दोनों जारी करती है।
    • राज्य सरकारें, केवल राज्य विकास ऋण (State Development Loans-SDL) नामक बॉण्ड जारी करती हैं।
  • जोखिम प्रोफाइल: इसे सरकारी समर्थन के कारण जोखिम मुक्त माना जाता है। इसे ‘गिल्ट-एज्ड इंस्ट्रूमेंट्स’ (Gilt-Edged Instruments) कहा जाता है।

T-बिल उधार से संबंधित मुख्य बिंदु

  • उधार लेने का विवरण
    • 91-दिवसीय T-बिल के माध्यम से ₹1.68 लाख करोड़।
    • 182-दिवसीय T-बिल के माध्यम से ₹1.28 लाख करोड़।
    • 364-दिवसीय T-बिल के माध्यम से ₹98,000 करोड़।
  • आपूर्ति में वृद्धि: बाजार में तरलता की कमी के कारण T-बिल उधारी में वृद्धि हुई है।
    • पिछली तिमाही की तुलना में तिमाही उधारी में तेजी से वृद्धि हुई है।
  • नीलामी में लचीलापन: RBI, सरकार के परामर्श से, बाजार की स्थितियों और आवश्यकताओं के आधार पर नीलामी की राशि तथा समय को समायोजित करने के लिए लचीलापन बनाए रखता है।

जीरो-कूपन प्रतिभूति (Zero-Coupon Security)

  • जीरो-कूपन प्रतिभूति एक ऋण साधन है, जो धारक को आवधिक ब्याज (कूपन) का भुगतान नहीं करता है।
  • इसके बजाय, इसे इसके अंकित मूल्य पर भारी छूट पर बेचा जाता है। परिपक्वता पर, निवेशक को बॉण्ड का पूरा अंकित मूल्य प्राप्त होता है।

ट्रेजरी बिल (T-बिल) 

  • विशेषताएँ: ये जीरो-कूपन प्रतिभूतियाँ हैं, जो छूट पर जारी की जाती हैं और परिपक्वता की स्थिति में अंकित मूल्य पर भुनाई जाती हैं। इसे भारत में पहली बार वर्ष 1917 में प्रस्तुत किया गया था।
  • उद्देश्य और उपयोग
    • सरकार द्वारा अल्पकालिक निधि जुटाने के लिए उपयोग किया जाता है।
    • बैंकों द्वारा सांविधिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio- SLR) आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए या RBI के साथ रेपो विनिमय के लिए संपार्श्विक के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

 

  • पात्रता: व्यक्ति, ट्रस्ट, संस्थाएँ और बैंक T-बिल में निवेश कर सकते हैं।
  • बाजार की भूमिका: वित्तीय प्रणाली के अंतर्गत तरलता और वित्तपोषण के प्रबंधन के लिए प्रमुख साधन।
  • खुले बाजार परिचालन (Open Market Operations-OMO): RBI, तरलता का प्रबंधन करने और मुद्रास्फीति को स्थिर करने के लिए सरकारी प्रतिभूतियों को खरीदता या बेचता है।
    • T-बिल प्रायः अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करने के लिए बेचे जाते हैं या तरलता को बढ़ाने के लिए खरीदे जाते हैं।
  • नीलामी तंत्र: RBI सुचारू उधार प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए टी-बिल और जी-सेक के लिए नियमित नीलामी आयोजित करता है।

ट्रेजरी बिल के लाभ और हानियाँ

ट्रेजरी बिल के लाभ

ट्रेजरी बिल के नुकसान 

सुरक्षा और संरक्षा: भारत सरकार द्वारा समर्थित, जिससे ये कम जोखिम वाले निवेश बन जाते हैं। तरलता की कमी: T-बिल के माध्यम से अधिक उधार लेना वित्तीय प्रणाली में तरलता की कमी का संकेत हो सकता है।
तरलता: परिपक्वता से पहले द्वितीयक बाजार में आसानी से बेचा जा सकता है, जिससे निकासी आसान हो जाती है। बाजार संवेदनशीलता: ट्रेजरी बिलों की बढ़ी हुई आपूर्ति से अल्पकालिक ब्याज दरें और बाजार स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
अल्पकालिक निवेश क्षितिज: आपातकालीन निधि या छुट्टियों जैसे अल्पकालिक वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आदर्श। निवेशक संकेंद्रण मुख्य रूप से वित्तीय संस्थाओं द्वारा धारित, खुदरा निवेशकों की भागीदारी को सीमित करता है।
विविधीकरण: कम जोखिम वाली परिसंपत्ति समूह को जोड़कर समग्र पोर्टफोलियो जोखिम को कम करने में मदद करता है। सीमित रिटर्न: उच्च जोखिम वाले अन्य निवेश विकल्पों की तुलना में आमतौर पर रिटर्न कम होता है।

आगे की राह 

  • विविध भागीदारी: जागरूकता अभियानों के माध्यम से T-बिल नीलामी में खुदरा निवेशकों की अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • कुशल तरलता प्रबंधन: संतुलित धन आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए OMO संचालन को सुव्यवस्थित करना।
  • नीतिगत अनुकूलनशीलता: उभरती आर्थिक स्थितियों का जवाब देने के लिए उधार लेने की रणनीतियों में लचीलापन बनाए रखना।
  • बाजार स्थिरता: अल्पकालिक ब्याज दरों और बाजार की गतिशीलता पर बढ़ी हुई T-बिल आपूर्ति के प्रभाव की निगरानी करना।

इन चुनौतियों का समाधान करके तथा प्रभावी मौद्रिक साधनों का लाभ उठाकर सरकार तथा RBI स्थिर उधारी स्थितियाँ तथा सुदृढ़ वित्तीय बाजार परिचालन सुनिश्चित कर सकते हैं।

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