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जलवायु शमन में वृक्षारोपण की प्रभावशीलता

Lokesh Pal June 24, 2024 04:05 145 0

संदर्भ

जर्नल साइंस में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के अनुसार कार्बन हटाने के उद्देश्य से प्रकृति आधारित परियोजनाएँ, विशेष रूप से वनीकरण पर केंद्रित परियोजनाएँ, उतनी प्रभावी नहीं हो सकती हैं, जितनी पहले सोची गई थीं।

पृष्ठभूमि

  • वनस्पति एवं मृदा द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण: वनस्पति एवं मृदा प्रत्येक वर्ष मानव गतिविधियों से 30 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को अवशोषित करते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन और इसके परिणामों को कम किया जाता है।
  • एक नवीन अध्ययन में कुछ कमियों को उजागर किया गया है, जिसमें यह स्पष्ट नहीं है कि यह भंडारण कैसे होता है और इसकी स्थिरता को भी अच्छी तरह से नहीं समझा गया है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • वर्तमान जलवायु मॉडल में कमियाँ: वर्तमान में वृक्षों में संगृहीत कार्बन की दीर्घायु का अनुमान लगाने के लिए प्रयुक्त जलवायु मॉडल में कमियाँ हैं।
    • संभवतः यह मॉडल पौधों में कार्बन के फँसे रहने की अवधि को अधिक आँक रहे हैं तथा वनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को भी  कम आँक रहे हैं।
  • तेजी से वायुमंडलीय वापसी के कारण पौधों में कार्बन भंडारण अवधि कम होती है: पौधे अपेक्षा से अधिक कार्बन अवशोषित करते हैं, लेकिन वे कम समय के लिए संगृहीत कर पाते हैं क्योंकि यह अनुमानित समय से पहले ही वायुमंडल में वापस लौट जाता है।
    • इसलिए, सरकार की कई प्रकृति आधारित कार्बन हटाने की परियोजनाएँ और रणनीतियाँ सीमित हैं।
  • कार्बन चक्र (Carbon Cycles): कार्बन चक्र वायुमंडल और जीवमंडल के बीच पहले की तुलना में अधिक तेजी से चलता है।

प्रयुक्त पद्धति

  • रेडियोकार्बन (Radiocarbon): शोधकर्ताओं ने ग्लोबल कार्बन साइक्लिंग डायनेमिक्स का अध्ययन करने के लिए रेडियोकार्बन (C-14) का उपयोग किया है।
    • परमाणु परीक्षण से रेडियोकार्बन में वृद्धि: यद्यपि रेडियोकार्बन प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होता है, लेकिन 1950 से 1960 के दशक में परमाणु बम परीक्षणों के कारण वायुमंडल में इसके  स्तर में वृद्धि हुई है।
    • C-14 अवशोषण की वैश्विक ट्रैकिंग: इस अतिरिक्त C-14 को दुनिया भर के पौधों द्वारा अवशोषित किया गया था, जिससे शोधकर्ताओं को स्थलीय जीवमंडल में इसके संचय को ट्रैक करने और कार्बन अवशोषण तथा टर्नओवर की दरों का आकलन करने की अनुमति मिली। 
    • कार्बन अपटेक और टर्नओवर का आकलन: इसकी तुलना वर्ष 1963 से 1967 के मध्य संयंत्रों में C-14 के संचय से की गई थी, जब कोई बड़ा परमाणु विस्फोट नहीं हुआ था।
    • प्लांट कार्बन उपयोग की मॉडलिंग: इस मॉडल को इसलिए शामिल किया गया ताकि यह पता लगाया जा सके कि पौधे विश्व स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग कैसे करते हैं तथा वायुमंडल एवं जैवमंडल के बीच कौन-सी अंत:क्रिया होती है?

निष्कर्ष

  • कार्बन चक्र को बेहतर ढंग से समझने की आवश्यकता: जलवायु मॉडल में इस अधिक तीव्र कार्बन चक्र को बेहतर ढंग से समझने और उसका लेखा-जोखा रखने की आवश्यकता है।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन में तेजी से कमी की तत्काल आवश्यकता है।

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