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हिमालयी राज्यों में अत्यधिक वर्षा का कारण ‘दो मानसूनी प्रणालियों का परस्पर संयुग्मन’

Lokesh Pal September 03, 2025 03:44 45 0

संदर्भ 

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने मानसून गर्त (Monsoon Trough) और एक सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance) के संयुग्मन की चेतावनी दी है, जिससे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में तीव्र वर्षा हो सकती है, जिससे फ्लैश फ्लड, भूस्खलन और नदियों के उफान पर आने का खतरा बढ़ सकता है। 

संबंधित तथ्य

  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने यह भी कहा है कि हालाँकि पारंपरिक बादल फटने (क्लाउडबर्स्ट) की घटनाओं में कोई वृद्धि नहीं हो रही है, लेकिन छोटे स्तर पर ‘बादल फटने’ (क्लाउडबर्स्ट)’ की घटनाएँ बढ़ रही हैं।

अत्यधिक वर्षा होने के पीछे मौसम संबंधी अंतर्क्रिया

  • शामिल मौसमी प्रणालियाँ
    • मानसून गर्त (Monsoon Trough) अपनी सामान्य स्थिति से दक्षिण की ओर गति कर रहा है।
    • उत्तरी पाकिस्तान और उससे सटे पंजाब पर चक्रवाती परिसंचरण (Cyclonic Circulation) के रूप में पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance) बना हुआ है।
    • राजस्थान और मध्य प्रदेश पर अतिरिक्त परिसंचरण अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से नमी खींच रहा है।
  • इन दोनों मानसूनी प्रणालियों (मानसून गर्त और पश्चिमी विक्षोभ) की परस्पर क्रिया का प्रभाव: वायु की दिशा में परिवर्तन, नमी का संग्रहण और अस्थिरता को बढ़ाता है, जिससे हिमालय की तलहटी में व्यापक रूप से अधिक से लेकर अत्यधिक वर्षा होती है।

मानसून गर्त (Monsoon Trough)

  • परिभाषा: पाकिस्तान के ऊपर स्थित निम्न दाब क्षेत्र से लेकर बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत एक विस्तृत निम्न दाब क्षेत्र को ‘मानसून गर्त’ कहा जाता है।
  • प्रकृति: इसकी प्रकृति मानसून परिसंचरण की एक अर्द्ध-स्थायी विशेषता को प्रतिबिंबित करती है।
  • भौगोलिक अभिविन्यास: हिमालय के पूर्व-पश्चिम संरेखण से प्रभावित होता है।
    • खासी-जयंतिया पहाड़ियों के उत्तर-दक्षिण अभिविन्यास से प्रभावित होता है।
  • दोलन: मानसून गर्त का पूर्वी भाग समय-समय पर उत्तर या दक्षिण की ओर खिसकता रहता है।
  • दक्षिण की ओर खिसकने का प्रभाव: भारत के अधिकांश भागों में सक्रिय या प्रबल मानसून की स्थिति उत्पन्न करता है।
  • उत्तर की ओर स्थानांतरित होने का प्रभाव: मध्य और प्रायद्वीपीय भारत में मानसून की अनियमितता का कारण बनता है, जबकि हिमालय की तलहटी में भारी वर्षा होती है और कभी-कभी ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ आ जाती है।

जलवायु परिवर्तन ने हिमालयी राज्यों में चरम मौसम की घटनाओं में किस प्रकार योगदान दिया है?

तापमान में वृद्धि

  • तापमान में त्वरित वृद्धि: वर्ष 2000 के बाद से हिमालय पर्वत के तापमान में वैश्विक औसत से लगभग दोगुना तेजी देखी गई है।
  • वर्षा की तीव्रता में वृद्धि: गर्म हवा में प्रति 1°C वृद्धि पर लगभग 7% अधिक नमी होती है, जिससे भारी, दीर्घकालिक और वर्षा की बारंबारता में वृद्धिहोती है।
  • हिमनदों का सिकुड़ना और झीलों का निर्माण: हिमनदों के तेजी से पिघलने से कई अस्थिर हिमनद झीलें बन गई हैं, जो अतिप्रवाह की संभावना रखती हैं, जिससे ‘ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (GLOF) और भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ रही हैं।

पश्चिमी विक्षोभ की बदलती प्रकृति

  • मौसमी बदलाव: पश्चिमी विक्षोभ, जो कभी मुख्यतः सर्दियों (दिसंबर-मार्च) तक ही सीमित रहते थे, अब पूरे वर्ष आते हैं और अत्यधिक वर्षा करते हैं।
  • नमी का तीव्र होना: वैश्विक तापमान वृद्धि, विशेष रूप से अरब सागर में, इन प्रणालियों में अतिरिक्त नमी प्रवाहित करती है, जिससे हिमालयी राज्यों में वर्षाकी मात्र में वृद्धि होती है।
  • बाढ़ का अधिक जोखिम: विक्षोभों का बढ़ता आयाम कई समुद्रों (भूमध्यसागरीय, काला सागर, कैस्पियन सागर, अरब सागर) से नमी खींचता है, जिससे फ्लैश फ्लड और क्लाउडबर्स्ट (बादल फटने) की घटनाएँ होती हैं।

संवेदनशील स्थलाकृति (Fragile Topography)

  • हिमालय की खड़ी ढलानें और अस्थिर भू-भाग इस क्षेत्र को भूस्खलन, मृदा अपरदन और भारी वर्षा के दौरान बाढ़ के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बनाते हैं।

पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances- WD)

  • परिभाषा: निम्न-दाब प्रणालियाँ, जिन्हें अतिरिक्त-उष्णकटिबंधीय चक्रवात या मध्य-अक्षांश चक्रवात भी कहा जाता है, भूमध्यसागरीय क्षेत्र में उत्पन्न होती हैं और मध्य एशिया से होते हुए पूर्व की ओर बढ़ती हैं।
  • घटना: जनवरी-फरवरी में अधिकतम आवृत्ति के साथ सर्दियों के महीनों (नवंबर-अप्रैल) में सबसे सामान्य होती हैं।
  • विशेषताएँ
    • वाताग्र प्रणालियाँ (Frontal Systems): पश्चिमी विक्षोभ (WD) ध्रुवीय और उपोष्णकटिबंधीय वायुराशियों के संयुग्मन से जुड़े होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप एक वाताग्र सीमा (Frontal Boundary) का निर्माण होता है। इन वायुराशियों के बीच परस्पर क्रिया से बादल बनते हैं और वर्षा होती है।
    • वर्षा और बर्फबारी: मैदानी क्षेत्रों में वर्षा और हिमालय की ऊँचाई पर बर्फबारी होती है, जो जल संसाधनों के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • तापमान में उतार-चढ़ाव: जब पश्चिमी विक्षोभ (WD) गुजरता है तो उसके अग्रभाग की गर्म हवा हट जाती है और पीछे से ठंडी हवा आ जाती है।, जिससे तापमान में उल्लेखनीय गिरावट आती है।

  • भारतीय मौसम पर प्रभाव
    • शीतकालीन वर्षा: यह उत्तर-पश्चिमी राज्यों (जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान) में शीतकालीन वर्षा का मुख्य स्रोत है। यह मौसमी प्रणाली भारत में रबी फसलों के लिए आवश्यक होती है।
    • हिमालय में बर्फबारी: भारी बर्फबारी के कारण वर्षभर नदियों में जल की उपलब्धता बनी रहती है और गर्मियों में जल का निरंतर प्रवाह सुनिश्चित होता है।
    • बाधाएँ: भारी बर्फबारी के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में सड़कें अवरुद्ध हो सकती हैं, विद्युत ढाँचे में अवरोध  उत्पन्न हो सकता है और परिवहन में कठिनाई हो सकती है।

क्लाउडबर्स्ट (Cloudburst) या ‘बादल फटने’ के बारे में  

  • परिभाषा (IMD के अनुसार): 20-30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में एक घंटे के भीतर 10 सेमी या उससे अधिक वर्षा को क्लाउडबर्स्ट (Cloudburst) या ‘बादल फटना’ कहते हैं।
  • ‘लघु स्तर पर बादल फटना’ या ‘मिनी क्लाउडबर्स्ट’ (Mini Cloudburst): जब किसी क्षेत्र में प्रति घंटे 5 सेमी की दर से वर्षा होती है तो उस मानसूनी स्थिति को ‘लघु स्तर पर बादल फटना’ या ‘मिनी क्लाउडबर्स्ट’ (Mini Cloudburst) कहा जाता है ।
  • प्रकृति: यह अत्यंत स्थानीयकृत घटना है, जिनका वर्तमान तकनीक से पूर्वानुमान लगाना असंभव है।
  • हालिया उदाहरण: देहरादून में क्लाउडबर्स्ट (वर्ष 2022), अमरनाथ गुफा (वर्ष 2022)।

क्लाउडबर्स्ट (Cloudburst) की विशेषताएँ

  • उच्च-तीव्रता वर्षा: एक घंटे में 100 मिमी. से अधिक वर्षा, जिससे प्रायः ‘फ्लैश फ्लड’ आ जाता है।
    • वर्ष 2010 में लेह में बादल फटने से थोड़े समय में ही मूसलाधार वर्षा हुई, जिससे स्थानीय जल निकासी व्यवस्था बाधित हो गई।
  • स्थानीय प्रकृति: इस घटना का प्रभाव छोटे क्षेत्रों तक सीमित है, आमतौर पर 20-30 वर्ग किमी. से कम।
    • वर्ष 2022 में अमरनाथ यात्रा के दौरान बादल फटने से प्रतिबंधित क्षेत्र में भीषण बाढ़ आई।
  • अल्प अवधि: ये घटनाएँ कुछ मिनटों से लेकर एक घंटे तक ही विद्यमान रहती हैं, लेकिन वर्षा की तीव्रता गंभीर विनाश का कारण बनती है।
    • वर्ष 2021 में उत्तराखंड में बादल फटने की घटना के कारण भारी वर्षा लगभग 30 मिनट तक हुई और आकस्मिक बाढ़ (फ्लैश फ्लड) आ गई थी।
  • नदी में अचानक उफान और बाँध का खतरा: नदी के जल स्तर में तेजी से वृद्धि, बाँधों पर दबाव बढ़ना, जिसके परिणामस्वरूप विनाशकारी बाढ़ आ सकती है।
  • पहाड़ी क्षेत्रों में घटना: पर्वतीय प्रभाव (Orographic Effect) (पहाड़ों द्वारा नम हवा का ऊपर उठना) के कारण हिमालय जैसे पर्वतीय इलाकों में सबसे अधिक बार होता है।
  • पूर्वानुमान का अभाव: अत्यंत अचानक और स्थानीयकृत, जिससे वर्तमान तकनीक से इनका पूर्वानुमान लगाना कठिन हो जाता है।

बादल फटने (क्लाउडबर्स्ट) की क्रियाविधि

  • नमी युक्त हवाएँ: महासागरों या मानसूनी धाराओं से आने वाली गर्म, आर्द्र हवाएँ अंतर्देशीय गति करती हैं और पहाड़ों से टकराने पर ऊपर उठती हैं, जिसे पर्वतीय उत्थापन (Orographic Lift) के रूप में जाना जाता है।
  • वायु का तीव्र उत्थान: पहाड़ी क्षेत्रों में, ढलानदार भू-भाग आर्द्र हवा को बहुत तेजी से ऊपर की ओर धकेलता है।
  • शीतलन और संघनन: जैसे-जैसे वायु ऊपर उठती है, वह तेजी से ठंडी होती जाती है, जिससे जलवाष्प संघनित होकर घने बादलों में बदल जाती है।
  • बादलों का संतृप्त होना (Cloud Saturation): जब बादल नमी से अत्यधिक संतृप्त हो जाते हैं, तो वे जल को और अधिक समय तक धारण नहीं कर पाते हैं।
  • अचानक वर्षा: धीरे-धीरे वर्षा होने के बजाय, संतृप्त बादल थोड़े समय में (एक घंटे के भीतर 100 मिमी. या उससे अधिक) भारी मात्रा में वर्षा करते हैं।

बादल फटने (क्लाउडबर्स्ट) संबंधी प्रवृत्ति

  • ऐतिहासिक आँकड़े: IITM पुणे द्वारा वर्ष 2018 में किए गए एक अध्ययन में वर्ष 1969-2015 के बीच बादल फटने की 28 घटनाएँ दर्ज की गईं।
  • पूर्वानुमान की सीमाएँ: उपग्रह चित्र तीव्र बादल या भारी वर्षा का पता लगा सकते हैं, लेकिन बादल फटने की सटीक घटना की भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं।
  • भू-भाग संवेदनशीलता: यहाँ तक कि 2-5 सेमी. वर्षा भी संवेदनशील भू-भागों में भूस्खलन का कारण बन सकती है, जो इस तरह की मूसलाधार वर्षा के गंभीर प्रभाव को उजागर करती है।

परिणाम और जोखिम

  • उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में आकस्मिक बाढ़ और भूस्खलन की आशंका है, जो पहले से ही संतृप्त मृदा के कारण सुभेद्य हैं।
  • जम्मू में चिनाब नदी के उफान पर होने से भूस्खलन हुआ, जिसमें 30 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए।
  • उफनती नदियाँ निचले इलाकों के कस्बों और शहरों के लिए खतरा उत्पन्न करती हैं।
  • तीर्थयात्रा और पर्यटन मार्गों में व्यवधान, सड़कें अवरुद्ध होने और बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचने की संभावना है।

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