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संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ ने म्याँमार में एक और ‘नरसंहारक हिंसा’ की चेतावनी दी

Lokesh Pal July 06, 2024 03:26 152 0

संदर्भ

4 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र के एक विशेषज्ञ ने बताया कि म्याँमार का रखाइन प्रांत (Rakhine State) 8 वर्ष पहले प्रताड़ित किए गए रोहिंग्या अल्पसंख्यकों के खिलाफ ‘नरसंहारक हिंसा’ जैसी भयावह स्थिति का सामना कर रहा है। 

  • कई रोहिंग्या प्रवासी (Rohingya Diaspora) समूहों ने अराकान आर्मी पर रोहिंग्या को भागने के लिए मजबूर करने और फिर उनके घरों को लूटने एवं जलाने का आरोप लगाया। 

म्याँमार विवाद में प्रमुख हितधारक

  • जुंटा शासन (Junta Regime)
    • यह देश की सत्ता पर कब्जा कर लेने के उद्देश्य से सैन्य अधिकारियों का गठित एक समूह होता है। 
    • नेतृत्व: म्याँमार के सैन्य नेता मिन आंग ह्लाइंग (Min Aung Hlaing) के नेतृत्व वाली जुंटा सरकार 
    • फरवरी 2021 तख्तापलट: जुंटा शासन लगभग पूरी तरह से तख्तापलट के माध्यम से सत्ता में आया है। 
    • आंग सान सू की (Aung San Suu Kyi): जुंटा शासन ने उन चुनावों को मान्यता देने से इनकार कर दिया, जिनमें पूर्व स्टेट काउंसलर आंग सान सू की (Aung San Suu Kyi) की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (National League for Democracy- NLD) को भारी बहुमत से जीत मिली थी। 

  • अराकान आर्मी (Arakan Army- AA)
    • यह एक नृजातीय सशस्त्र उग्रवादी समूह है, जिसकी उत्पत्ति म्याँमार के पश्चिमी प्रांत रखाइन से हुई है। 
    • अराकान आर्मी का दावा: अराकान आर्मी का दावा है कि वह प्रांत की नृजातीय रखाइन आबादी की स्वायत्तता के लिए संघर्ष कर रहा है और उसका उद्देश्य पूरे प्रांत पर कब्जा करने का है। 
  • रोहिंग्या
    • रोहिंग्या एक नृजातीय मुस्लिम अल्पसंख्यक समूह है, जो मुख्य रूप से तटीय प्रांत रखाइन में निवास करता है। 
    • उल्लेखनीय है कि रोहिंग्याओं का मूल क्षेत्र बांग्लादेश में हैं और उन्हें ब्रिटिश लोग म्याँमार लेकर आए थे।  
    • उन्हें म्याँमार की बहुसंख्यक बौद्ध आबादी के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। 

जेनोसाइड कन्वेंशन (Genocide Convention)

  • नरसंहार अपराध की रोकथाम और दंड पर अभिसमय (Convention on the Prevention and Punishment of the Crime of Genocide) अर्थात् जेनोसाइड कन्वेंशन (Genocide Convention) अंतरराष्ट्रीय कानून का एक दस्तावेज है, जिसने पहली बार नरसंहार के अपराध को संहिताबद्ध किया। 
  • यह वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाई गई पहली मानवाधिकार संधि थी और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान किए गए अत्याचारों के बाद ‘ऐसा फिर कभी न हो’ (Never Again) के प्रति अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिबद्धता को दर्शाती थी। 
  • अनुसमर्थन (Ratification): भारत ने वर्ष 1959 में इस कन्वेंशन का अनुसमर्थन किया, लेकिन इस विषय पर कोई कानून नहीं है। 
  • नरसंहार (जेनोसाइड) की परिभाषा: जेनोसाइड कन्वेंशन के अनुच्छेद-II में निहित नरसंहार के अपराध की परिभाषा:- 
    • अर्थ: किसी राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को पूर्णतः या आंशिक रूप से नष्ट करने के उद्देश्य से किए गए निम्नलिखित में से कोई भी कार्य: 
      • समूह के सदस्यों की हत्या।
      • समूह के सदस्यों को गंभीर शारीरिक या मानसिक क्षति पहुँचाना।
      • जानबूझकर समूह पर ऐसी जीवन-स्थितियाँ थोपना, जिससे उसका संपूर्ण या आंशिक भौतिक विनाश हो जाए। 
      • समूह के भीतर शिशुओं के जन्म को रोकने के उद्देश्य से उपाय लागू करना। 
      • समूह के बच्चों को जबरन दूसरे समूह में स्थानांतरित करना।

भारत के लिए म्याँमार का क्या महत्त्व है?

  • दक्षिण-पूर्व एशिया का प्रवेशद्वार: सीमा: भारत, म्याँमार के साथ 1,643 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है, जो इसे दक्षिण-पूर्व एशिया की अर्थव्यवस्थाओं का प्रवेशद्वार बनाता है। 
  • सामरिक स्थान: ‘मित्र बदले जा सकते हैं, पड़ोसी नहीं’। म्याँमार सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण पड़ोस में स्थित है। 
    • भारत द्वारा शुरू की गई विभिन्न पहलें म्याँमार के साथ संबंधों के महत्त्व को रेखांकित करती हैं:-  
      • नेबरहुड फर्स्ट नीति, एक्ट ईस्ट नीति और SAARC, ASEAN, BIMSTEC और मेकांग गंगा सहयोग (Mekong Ganga Cooperation) जैसे विभिन्न बहुपक्षीय जुड़ाव ने द्विपक्षीय संबंधों में एक क्षेत्रीय आयाम प्रस्तुत किया है। 
  • चीन का मुकाबला (Countering China): भारत के सागर विजन के एक भाग के रूप में, भारत ने म्याँमार के रखाइन प्रांत में सित्तवे बंदरगाह (Sittwe Port) का विकास किया, ताकि चीन के क्यौक्पू बंदरगाह (Kyaukpyu Port) का मुकाबला किया जा सके। 
    • चीन का समर्थन: चीन हमेशा से म्याँमार के सैन्य शासन का करीबी सहयोगी रहा है। इसने जुंटा शासन को वास्तविक मान्यता दे दी है। 
      • बेल्ट एंड रोड पहल: बेल्ट एंड रोड पहल के तहत, चीन अपने भू-आबद्ध युन्नान प्रांत को हिंद महासागर से जोड़ने के लिए रखाइन प्रांत में चीन-म्याँमार आर्थिक गलियारे का निर्माण कर रहा है। 
  • आर्थिक सहयोग – भारत म्याँमार परियोजनाएँ
    • कलादान मल्टी-मॉडल पारगमन परियोजना (Kaladan Multi-modal Transit project): इसमें सड़क-नदी-बंदरगाह कार्गो परिवहन परियोजना शामिल है, जो कोलकाता को म्याँमार के रखाइन प्रांत के सितवे से और फिर म्याँमार की कलादान नदी से मिजोरम तक जोड़ेगी। 
    • एशियाई त्रिपक्षीय राजमार्ग (Asian Trilateral Highway): एशियाई त्रिपक्षीय राजमार्ग भारत को दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से जोड़ेगा। 
      • यह गुवाहाटी से शुरू होकर म्याँमार से होते हुए थाईलैंड तक जाएगा। यह अंततः वियतनाम के हो ची मिन्ह (Ho Chi Minh) शहर को जोड़ेगा। 
  • ऐतिहासिक संबंध: भारत और म्याँमार की बौद्ध विरासत एक जैसी है। म्याँमार के लगभग 90% लोग थेरवाद बौद्ध धर्म (Theravada Buddhism) का पालन करते हैं। 
    • म्यांमार एक ब्रिटिश भारतीय प्रांत था और वर्ष 1937 में ही अलग हुआ था। इसलिए, दोनों देशों के बीच सामाजिक-सांस्कृतिक संबंध हैं। 

म्याँमार में अस्थिरता के बीच भारत की चुनौतियाँ

  • सीमा सील करना (Sealing the Border): म्याँमार के साथ लगती सीमा बिना बाड़ वाली और छिद्रयुक्त (Unfenced and Porous) है। 
    • स्थानीय लोगों के लिए उचित मार्ग के बिना एक देश से दूसरे देश में जाना आसान है।
    • इससे अपराधियों को भारत में अपराध करने के बाद म्याँमार भागने में मदद मिलती है। 
  • पूर्वोत्तर में शांति बनाए रखना: भारत इस क्षेत्र में संघर्ष को बढ़ने से रोकना चाहता ताकि यह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों तक न फैले। 
  • म्याँमार की राजनीतिक स्थिरता भारत के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है: विशेष रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र और इसकी कनेक्टिविटी परियोजनाओं के लिए म्याँमार की राजनीतिक स्थिरता भारत के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।  
    • चूँकि कलादान परियोजना न केवल क्षेत्रीय संपर्क का प्रयास है, बल्कि चीनी प्रभाव का मुकाबला करने और अपने पूर्वोत्तर क्षेत्रों में स्थिरता बढ़ाने के लिए भारत की रणनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। 
  • संघर्ष क्षेत्रों में गैर-राज्य अभिकर्ता के साथ जुड़ना (Engaging with non-state actors in conflict zones): कलादान परियोजना मार्ग के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर अराकान आर्मी का प्रभुत्व और परियोजना को बाधित न करने का उसका आश्वासन संघर्ष क्षेत्रों में गैर-राज्य अभिकर्ताओं के साथ जुड़ने की जटिलताओं को उजागर करता है। 
    • सावधानीपूर्वक संतुलन स्थापित करना: भारत को म्याँमार की संप्रभुता का सम्मान करने और अपने सामरिक हितों की रक्षा के लिए अराकान आर्मी जैसे समूहों के साथ व्यावहारिक रूप से जुड़ने के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता महसूस हो सकती है। 
  • सैन्य जुंटा के साथ संबंधों को बढ़ावा देना: भारत ने सैन्य जुंटा के साथ उनके पिछले शासन के दौरान भी अच्छे संबंधों को बढ़ावा दिया था। 
    • वर्ष 1990 के बाद से: म्याँमार के प्रति भारत की नीति में उन सत्तारूढ़ शक्तियों के साथ जुड़ाव पर जोर दिया गया है, जो पड़ोसी देशों में लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बढ़ावा देने की तुलना में सुरक्षा और राजनीतिक हितों को अधिक महत्त्व देते हैं। 
  • लोकतांत्रिक आदर्शों को कायम रखना (Uphold Democratic Ideals): लोकतांत्रिक क्लब के सदस्य के रूप में, भारत को निरंकुश सैन्य शासकों से दूरी बनाए रखनी होगी, अन्यथा उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा। 
  • नशीले पदार्थों के व्यापार को रोकना: म्याँमार में संघर्ष ने नशीले पदार्थों के व्यापार को बढ़ावा दिया है, क्योंकि इस व्यापार का उपयोग सेना के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष को वित्तपोषित करने के लिए किया जाएगा। 
  • चीनी प्रभाव को कम करना: चीन का म्याँमार के सैन्य शासन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव है। परिणामतः भारत अपने पड़ोस में कठपुतली शासन नहीं देखना चाहेगा जो चीन के संकेतों पर निर्णय लेता हो।

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