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संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन, 2025 (UNOC3)

Lokesh Pal June 16, 2025 03:25 9 0

संदर्भ

फ्राँस के नीस (Nice) में आयोजित तीसरे संयुक्त राष्ट्र महासागर शिखर सम्मेलन का समापन महत्त्वपूर्ण वैश्विक प्रतिबद्धताओं और ठोस कार्रवाई के आह्वान के साथ हुआ। 

संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन (UNOC3) के बारे में

  • संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन महासागर संरक्षण पर कार्रवाई को आगे बढ़ाने के लिए एक वैश्विक मंच है।
  • उद्देश्य और लक्ष्य
    • सतत् विकास लक्ष्य 14 (SDG 14): ‘जल के नीचे जीवन’ को बढ़ावा देना।
    • महासागर के महत्त्वपूर्ण खतरों का समाधान करना: अत्यधिक मत्स्यन, प्रदूषण (प्लास्टिक अपशिष्ट), जलवायु परिवर्तन (महासागर अम्लीकरण), और आवास का विनाश।
    • महासागर संरक्षण और सतत् ‘ब्लू इकॉनमी’ के लिए वैश्विक भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • आयोजक और प्रतिभागी: संयुक्त राष्ट्र और सदस्य देशों द्वारा सह-मेजबानी की गई।
    • फ्राँस और कोस्टारिका ने वर्ष 2025 सम्मेलन की सह-मेजबानी की।
  • विषय: “महासागर के संरक्षण और सतत् उपयोग के लिए कार्रवाई में तेजी लाना और सभी हितधारकों को संगठित करना”
  • केंद्रीय क्षेत्र
    • समुद्री प्रदूषण (विशेष रूप से प्लास्टिक अपशिष्ट में कमी)।
    • सतत् मत्स्य पालन और अवैध, अप्रतिबंधित और अनियमित मत्स्यन को समाप्त करना।
    • जलवायु-महासागर संबंध (महासागर के तापमान में कमी और अम्लीकरण)।
    • समुद्री जैव विविधता संरक्षण (उदाहरण के लिए, वर्ष 2030 तक 30% महासागरों की सुरक्षा करना)।
    •  ब्लू इकॉनमी (स्थायी महासागर आधारित उद्योग)।
  • पिछले और आगामी महासागर सम्मेलन
    • वर्ष 2017 (न्यूयॉर्क): पहला संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन।
    • वर्ष 2022 (लिस्बन): दूसरा संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन।
    • वर्ष 2028: चिली और दक्षिण कोरिया अगले शिखर सम्मेलन की सह-मेजबानी करेंगे, जिसका उद्देश्य प्रगति को आगे बढ़ाना है।

सम्मेलन के मुख्य परिणाम

  • सम्मेलन का परिणाम, जिसे नाइस महासागर कार्य योजना (Nice Ocean Action Plan) के रूप में जाना जाता है, एक दो-भागीय रूपरेखा (Two-part Framework) है जिसमें एक राजनीतिक घोषणा और 800 से अधिक स्वैच्छिक प्रतिबद्धताएँ शामिल हैं।
    • राजनीतिक घोषणा: जिसका शीर्षक है “हमारा महासागर, हमारा भविष्य: तत्काल कार्रवाई के लिए एकजुट होना”।
      • यह वर्ष 2030 तक महासागर और भूमि के 30% हिस्से की रक्षा करने की वैश्विक प्रतिबद्धताओं की पुष्टि करता है।
      • कुनमिंग-मॉन्ट्रियल (Kunming-Montreal) जैव विविधता समझौते के साथ संरेखित है, और ‘हाई सीज संधि’ (BBNJ) का समर्थन करता है।
      • शांत महासागर के लिए उच्च महत्त्वाकांक्षा गठबंधन: यह एक अंतरराष्ट्रीय पहल है, जिसका उद्देश्य महासागरों में ध्वनि प्रदूषण (Underwater Noise Pollution) को नियंत्रित करना और समुद्री जीवन, विशेषकर स्तनधारियों (जैसे व्हेल और डॉल्फिन) के संरक्षण को सुनिश्चित करना है।
      • कोरल बॉन्ड: इंडोनेशिया और विश्व बैंक ने भित्ति संरक्षण के लिए इस अभिनव वित्तपोषण उपकरण को लॉन्च किया।
      • हाई सीज संधि (BBNJ): 19 और देशों ने समझौते की पुष्टि की, जिससे कुल अनुसमर्थन 50 हो गए जो प्रवर्तन के लिए आवश्यक 60 में से केवल 10 कम है।
    • 800 से अधिक स्वैच्छिक प्रतिबद्धताएँ: सरकारों, गैर सरकारी संगठनों, वैज्ञानिकों और निजी क्षेत्रों की प्रतिज्ञाएँ, जिनमें समुद्री संरक्षण से लेकर सतत् वित्त तक शामिल हैं।
  • चेतावनी
    • 96 देशों ने प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए एक महत्त्वाकांक्षी, कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि के लिए दबाव डालते हुए “नाइस वेक-अप कॉल (Nice Wake-up Call)” का समर्थन किया है।
    • बाध्यकारी समझौते का समर्थन करने का दावा करने के बावजूद भारत इस सूची से पृथक है।
    • इस समझौते में प्लास्टिक उत्पादन को कम करने और हानिकारक प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने सहित पाँच आवश्यक उपायों की रूपरेखा दी गई है।
    • प्लास्टिक संधि पर संयुक्त राष्ट्र वार्ता का अगला दौर अगस्त 2025 में जिनेवा में निर्धारित किया गया है।

UNOC3 में घोषित प्रमुख प्रतिबद्धताएँ

  • यूरोपीय संघ से €1 बिलियन: महासागर संरक्षण, अनुसंधान और संधारणीय मत्स्यन हेतु।
  • फ्रेंच पोलिनेशिया: विश्व का सबसे बड़ा समुद्री संरक्षित क्षेत्र (5 मिलियन वर्ग किमी.) बनाने की योजना।
  • जर्मनी की €100 मिलियन की पहल: बाल्टिक और उत्तरी समुद्र में जल के नीचे के हथियारों को हटाना।
  • न्यूजीलैंड का $52 मिलियन: प्रशांत महासागर शासन को मजबूत करना।
  • स्पेन के नए समुद्री संरक्षित क्षेत्र: जैव विविधता की सुरक्षा के लिए पाँच नए क्षेत्र।

राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (BBNJ)

  • इसे “हाई सीज संधि” भी कहा जाता है, यह संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) के तहत कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय समझौता है।
  • वर्ष 2023 में अपनाई गई इस संधि का उद्देश्य राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे क्षेत्रों (समुद्र की सतह के लगभग 2/3 भाग को शामिल करते हुए) में समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग को सुनिश्चित करना है।
  • संधि के मुख्य प्रावधान
    • क्षेत्र-आधारित प्रबंधन उपकरण: इसमें उच्च समुद्र पर समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPA) स्थापित करना शामिल है।
    • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA): उच्च समुद्र पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाने वाली गतिविधियों से पहले अनिवार्य आकलन।
    • समुद्री आनुवंशिक संसाधन और लाभ साझाकरण: विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से प्राप्त लाभों के न्यायसंगत साझाकरण के लिए रूपरेखा।
    • क्षमता निर्माण और समुद्री प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: विकासशील देशों को तकनीकी, कानूनी और वैज्ञानिक क्षमता बनाने में मदद करता है।
    • संस्थागत तंत्र: कार्यान्वयन का मार्गदर्शन करने के लिए कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज  (COP) और वैज्ञानिक/तकनीकी निकाय शामिल हैं।
  • वर्तमान स्थिति
    • 50 देशों ने अनुसमर्थन किया (संधि लागू होने के लिए 60 की आवश्यकता है)।
    • 60वें अनुसमर्थन के 120 दिन बाद प्रभावी होता है।
  • भारत की स्थिति
    • सितंबर 2024 में हस्ताक्षर किए, लेकिन भारत के जैव विविधता अधिनियम में लंबित संशोधनों और संसदीय अनुमोदन के कारण अनुसमर्थन में विलम्ब हो रहा है।
    • भारत समुद्री संसाधनों के समान लाभ-साझाकरण पर जोर देता है और कानूनी रूप से बाध्यकारी वैश्विक प्लास्टिक संधि का समर्थन करता है।

संधि का महत्त्व

  • इस संधि का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 30% महासागरों की रक्षा करना है (जो “30 x 30” लक्ष्य का हिस्सा है)।
  • यह गहन समुद्र में खनन, अत्यधिक मत्स्यन और प्लास्टिक प्रदूषण जैसे खतरों को संबोधित करता है।
  • भारत का अनुसमर्थन हिंद महासागर में अपने रणनीतिक हितों और समुद्री संरक्षण में नेतृत्व को देखते हुए महत्त्वपूर्ण है।

भारत की समुद्री पहल

  • समुद्रयान मिशन: वर्ष 2026 तक 6,000 मीटर गहरे समुद्र में मानवयुक्त पनडुब्बी परीक्षण की योजना।
  • ब्लू इकॉनमी: संधारणीय महासागर परियोजनाओं में 80 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश।
  • सहाव पोर्टल: महासागर डेटा शासन के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म।

महासागरों और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के समक्ष चुनौतियाँ

  • समुद्र का बढ़ता तापमान: वैश्विक समुद्री सतह का तापमान वर्ष 2025 में रिकॉर्ड ऊँचाई पर पहुँच जाएगा, जिससे बड़े पैमाने पर प्रवाल विरंजन और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान उत्पन्न होगा। 
    • उदाहरण के लिए, भूमध्य सागर वैश्विक औसत से 20% अधिक तेजी से गर्म हो रहा है।
  • महासागरीय अम्लीकरण: महासागर 90% अतिरिक्त ऊष्मा और 30% CO2 उत्सर्जन को अवशोषित करता है, जिससे अम्लीकरण होता है जो प्रवाल और प्लवक जैसे आवरित जीवों को नुकसान पहुँचता है।
  • समुद्री प्रदूषण: 8 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक प्लास्टिक प्रत्येक वर्ष समुद्र में प्रवेश करता है, जिससे अपशिष्ट जमा होता हैं और समुद्री जीवन को नुकसान पहुँचता है।
    • समुद्र में प्लास्टिक के लगभग 200 ट्रिलियन टुकड़े हैं और अगर कोई कार्रवाई नहीं की गई तो वर्ष 2040 तक इसके तीन गुना हो जाने की संभावना है।
  • अत्यधिक मछली पालन और विनाशकारी व्यवहार: वैश्विक मत्स्यन भंडार का 60% से अधिक दोहन किया जाता है, अवैध, अप्रतिबंधित और अनियमित मत्स्यन से संकट और बढ़ जाता है।
    • ‘बॉटम ट्रॉलिंग’ जैसे तरीके समुद्र तल के पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से प्रजातियों (जैसे कछुए, समुद्री पक्षी) को मार देते हैं।
  • जैव विविधता का नुकसान और आवास विनाश: 25% समुद्री प्रजातियों का आवस, प्रवाल भित्तियाँ विरंजन के कारण मर रही हैं, और वर्तमान में स्थिति अधिक खराब है।
  • शासन और वित्तपोषण में कमी: उच्च समुद्र संधि (BBNJ) जैसी संधियों का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय जल की रक्षा करना है, इनका धीमा अनुसमर्थन (जून 2025 तक 60 में से केवल 50 की आवश्यकता है) कार्रवाई में विलंब करता है।
    • SDG 14 (“जल के नीचे जीवन”) को वैश्विक स्थिरता निधि का 0.01% से भी कम प्राप्त होता है, जबकि महासागर अर्थव्यवस्था में प्रतिवर्ष 2.5 ट्रिलियन डॉलर का योगदान करते हैं।

आगे की राह 

  • प्रमुख संधियों के अनुसमर्थन में तेजी लाना: उच्च समुद्र संधि (BBNJ समझौता) को तेजी से आगे बढ़ाना, जिसके लागू होने के लिए 60 देशों के अनुसमर्थन की आवश्यकता है (वर्तमान में जून 2025 तक 50)
    • भारत जैसे देशों को इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विधायी संशोधनों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
  • 30×30 समुद्री संरक्षण लक्ष्य: वर्ष 2030 तक समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPA) का विस्तार करके 30% महासागरों को कवर करना, जैव विविधता हॉटस्पॉट (जैसे, प्रवाल भित्तियाँ, मैंग्रोव) पर ध्यान केंद्रित करना और ‘नो-टेक जोन’ लागू करना।
  • प्रदूषण को उसके स्रोत पर ही रोकना: एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लागू करना और सर्कुलर इकॉनमी (जैसे, पुन: प्रयोज्य पैकेजिंग) को बढ़ावा देना।
  • सतत् महासागर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना
    • ब्लू फूड क्रांति: पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्स्थापित करते हुए प्रोटीन प्रदान करने के लिए पुनर्स्थापक जलीय कृषि (जैसे, समुद्री शैवाल की कृषि, सीप की चट्टानें) का विस्तार करना।
    • CO2 को पृथक करने और तटरेखाओं को सुरक्षित रखने के लिए ‘ब्लू कार्बन’ आवासों (मैंग्रोव, समुद्री घास) में निवेश करना।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार का लाभ उठाना: संरक्षित क्षेत्रों में अवैध मत्स्यन और प्रदूषण पर नजर रखने के लिए AI और ड्रोन का उपयोग करना।
    • प्रवाल भित्ति की पुनर्स्थापना: जलवायु-प्रतिरोधी प्रवाल की बहाली में तेजी लाने के लिए सहायक विकास और 3D-प्रिंटेड भित्ति का उपयोग करना।
  • समुदायों और समानता को सशक्त बनाना: स्थानीय रूप से प्रबंधित संरक्षण के लिए स्वदेशी समूहों (जैसे, कनाडा के MPA, केन्या की महिलाओं नेतृत्व आधारित मत्स्य पालन) के साथ साझेदारी करना।

निष्कर्ष

महासागरों का स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है, लेकिन वित्त पोषण, नीति प्रवर्तन और जन जागरूकता द्वारा समर्थित समन्वित वैश्विक कार्रवाई अभी भी नुकसान को कम कर सकती है। वर्ष 2025 में संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन और COP-30 जैसी प्रमुख घटनाएँ प्रतिबद्धताओं को ठोस प्रगति में बदलने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

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