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संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी आयोग द्वारा न्यूनतम आहार विविधता (MDD) संकेतक का प्रयोग

Lokesh Pal March 15, 2025 11:33 66 0

संदर्भ

संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी आयोग ने ‘सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 2: जीरो हंगर’ की दिशा में वैश्विक प्रगति की निगरानी के लिए न्यूनतम आहार विविधता (Minimum Dietary Diversity- MDD) संकेतक प्रस्तुत किया।

  • MDD यह सुनिश्चित करने पर केंद्रित है कि खाद्य प्रणालियाँ केवल कैलोरी सेवन के बजाय पौष्टिक एवं संतुलित आहार को प्राथमिकता दें।

सतत् विकास लक्ष्य क्या हैं?

  • सतत् विकास लक्ष्य (SDGs) संयुक्त राष्ट्र द्वारा सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने के लिए निर्धारित 17 वैश्विक लक्ष्य हैं, जिनका लक्ष्य वर्ष 2030 तक एक सतत् भविष्य विकसित करना है।

SDG 2: जीरो हंगर के बारे में

  • इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक भूखमरी को समाप्त करना, खाद्य सुरक्षा प्राप्त करना, पोषण में सुधार करना एवं स्थायी कृषि को बढ़ावा देना है।

SDG 2 के तहत मुख्य लक्ष्य

  • पूरे वर्ष सभी लोगों के लिए सुरक्षित, पौष्टिक एवं भोजन तक पर्याप्त पहुँच सुनिश्चित करना।
  • विशेष तौर पर पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों एवं कमजोर समूहों में सभी प्रकार के कुपोषण को समाप्त करना।
  • अनुकूलित कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देकर सतत् कृषि उत्पादकता में वृद्धि करना।
  • सतत् खाद्य उत्पादन को बनाए रखने के लिए बीजों, फसलों एवं पशुधन की आनुवंशिक विविधता को संरक्षित करना।

जीरो हंगर को प्राप्त करने में प्रगति की निगरानी करने के लिए संकेतक

  • अल्पपोषण की व्यापकता, भूख से पीड़ित लोगों के अनुपात की निगरानी करना।
  • खाद्य असुरक्षा अनुभव पैमाना (FIES), व्यक्तिगत एवं घरेलू स्तर पर खाद्य असुरक्षा को मापना।
  • पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों में बौनेपन एवं कमजोरी की व्यापकता, कुपोषण का आकलन करना।
  • नया संकेतक: न्यूनतम आहार विविधता (MDD), आहार की गुणवत्ता एवं पोषण संबंधी पर्याप्तता का मूल्यांकन करना।

MDD के तहत निगरानी किए जाने वाले आवश्यक खाद्य समूह

  • अनाज।
  • सफेद जड़ें, कंद एवं केले।
  • दालें (बीन्स, मटर, दाल)।
  • नट एवं बीज।
  • दूध एवं दूध से बने उत्पाद।
  • मांस, मुर्गी एवं मछली।
  • अंडे।
  • हरी पत्तेदार सब्जियाँ।
  • विटामिन A से भरपूर फल एवं सब्जियाँ।
  • अन्य फल एवं सब्जियाँ।

न्यूनतम आहार विविधता (MDD) के बारे में

  • MDD संकेतक उपभोग किए गए भोजन की विविधता एवं पोषण गुणवत्ता को मापता है।
  • यह एक बाइनरी (हाँ/नहीं) संकेतक है, जो यह निर्धारित करता है कि किसी व्यक्ति ने पिछले 24 घंटों में दस आवश्यक खाद्य समूहों में से कम-से-कम पाँच का सेवन किया है या नहीं।
  • यह विशेष रूप से दो कमज़ोर जनसंख्या समूहों में आहार की गुणवत्ता का आकलन करता है:
    • बच्चे।
    • प्रजनन आयु वर्ग वाली महिलाएँ।
  • संकेतक को संयुक्त रूप से FAO एवं UNICEF द्वारा प्रबंधित किया जाता है।

MDD संकेतक का महत्त्व

  • एक महत्त्वपूर्ण डेटा अंतराल को संबोधित करना: पहले, स्वस्थ आहार प्रथाओं की निगरानी के लिए कोई समर्पित SDG संकेतक नहीं था, जिससे वैश्विक पोषण का आकलन करने एवं उसे बेहतर बनाने के प्रयास सीमित हो गए थे।
  • कुपोषण एवं NCDs का मुकाबला करना: अस्वास्थ्यकर आहार कुपोषण एवं गैर-संचारी रोगों (NCDs) का एक प्रमुख कारण है। MDD आहार पैटर्न की निगरानी करने में मदद करता है, स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने के प्रयासों का समर्थन करता है।
  • खाद्य सुरक्षा एवं पोषण को बढ़ाना: आहार विविधता पर ध्यान केंद्रित करके, MDD कैलोरी खपत से पोषक तत्वों की पर्याप्तता पर जोर देता है, जिससे बेहतर स्वास्थ्य परिणाम एवं सतत् खाद्य प्रणालियों को बढ़ावा मिलता है।
  • नीति एवं कार्यक्रम विकास को मजबूत करना: कई देश पहले से ही पोषण नीतियों एवं हस्तक्षेपों का मार्गदर्शन करने के लिए MDD डेटा एकत्र करते हैं। इसे SDG निगरानी में एकीकृत करने से साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने में सक्षम बनाता है।
  • वैश्विक आहार प्रगति का बेंचमार्किंग: MDD आहार की गुणवत्ता में सुधार की निगरानी करने के लिए एक मानकीकृत उपाय प्रदान करता है, जिससे देशों को प्रगति की तुलना करने एवं अपनी रणनीतियों को परिष्कृत करने की अनुमति मिलती है।
  • दीर्घकालिक आहार निगरानी सुनिश्चित करना: सतत् विकास लक्ष्य ढाँचे में MDD को शामिल करने से वर्ष 2030 से आगे भी सतत् निगरानी की संभावना बढ़ जाती है, जिससे वैश्विक स्वास्थ्य एवं खाद्य प्रणाली परिवर्तन में इसकी भूमिका मजबूत होती है।

संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी आयोग (UNSC)

  • UNSC वैश्विक सांख्यिकीय प्रणाली का सर्वोच्च निकाय है जो दुनिया भर के सदस्य देशों के मुख्य सांख्यिकीविदों को एक साथ लाता है।
  • स्थापना: संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी आयोग की स्थापना वर्ष 1946 में हुई थी।
  • UNSC के कार्य
    • यह अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकीय गतिविधियों के लिए सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है।
    • यह सांख्यिकीय मानकों को निर्धारित करने एवं राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनके कार्यान्वयन सहित अवधारणाओं तथा विधियों के विकास के लिए जिम्मेदार है।
    • यह संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी प्रभाग (UNSD) के कार्य की देखरेख करता है।
    • यह संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ECOSOC) के तहत एक आयोग के रूप में कार्य करता है।
  • सदस्यता: आयोग में भौगोलिक प्रतिनिधित्व के आधार पर चुने गए 24 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश शामिल हैं।
    • प्रत्येक सदस्य चार वर्ष का कार्यकाल पूर्ण करता है।
    • भारत 1 जनवरी, 2024 से शुरू होने वाले चार वर्ष के कार्यकाल के लिए UNSC के लिए चुना गया था।
  • मुख्यालय: न्यूयॉर्क, संयुक्त राज्य अमेरिका।
  • वार्षिक सत्र एवं निर्णय लेना: UNSC न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में वार्षिक सत्र आयोजित करता है।

SDG 2 पर भारत की प्रगति

  • भूखमरी कुपोषण: भारत ने भूखमरी को काफी हद तक कम कर दिया है, लेकिन अभी भी चुनौतियों का सामना कर रहा है:-
    • ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 2024: भारत 127 में से 105वें स्थान पर है, जो गंभीर भुखमरी के स्तर को दर्शाता है।
    • कुपोषण: पाँच वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे अविकसित हैं, एवं 32.1% बच्चे अल्प वजन के हैं (NFHS-5)।

भारत में खाद्य सुरक्षा पहल

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत 800 मिलियन से अधिक लोगों को सब्सिडीयुक्त खाद्यान्न प्रदान करता है।
  • PM गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY): COVID-19 महामारी के दौरान मुफ्त खाद्यान्न सहायता प्रदान की गई।
  • मध्याह्न भोजन योजना एवं PM पोषण: कुपोषण से निपटने के लिए स्कूली बच्चों को पौष्टिक भोजन प्रदान करता है।

SDG 2 को प्राप्त करने में चुनौतियाँ

  • खाद्य अपव्यय: भारत खराब भंडारण एवं आपूर्ति श्रृंखला की अक्षमताओं के कारण उत्पादित खाद्यान्न के 40% की हानि का अनुभव करता है।
  • कृषि संकट: छोटे किसान कम आय एवं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जूझ रहे हैं।
  • पोषण संबंधी कमियाँ: विशेष रूप से महिलाओं तथा बच्चों में एनीमिया एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का उच्च प्रचलन।

आगे की राह

  • कुपोषण को दूर करने के लिए खाद्य पदार्थों को सुदृढ़ बनाना। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत फोर्टिफाइड चावल की शुरुआत इस दिशा में एक सराहनीय कदम है।
  • जलवायु-अनुकूल कृषि एवं सतत् कृषि के तरीकों का विस्तार करना।
  • फसल के बाद होने वाले नुकसान को कम करने के लिए ग्रामीण बुनियादी ढाँचे को बढ़ाना।
  • पोषण के बारे में विविध आहार एवं जागरूकता को बढ़ावा देना।

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