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UNEP अनुकूलन अंतराल रिपोर्ट, 2025

Lokesh Pal November 01, 2025 02:57 55 0

संदर्भ

UNEP की अनुकूलन अंतराल रिपोर्ट, 2025 जिसका शीर्षक ‘रनिंग ऑन एम्प्टी’ (Running on Empty) है, में बताया गया है कि विकासशील देशों के लिए प्रदान किए जाने वाला अनुकूलन संबंधी वित्त में अत्यधिक अंतराल आजीविका और अर्थव्यवस्थाओं को खतरे में डाल रहा है।

UNEP की अनुकूलन अंतराल रिपोर्ट के बारे में

  • अनुकूलन अंतराल रिपोर्ट, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का वार्षिक प्रमुख प्रकाशन है।
  • यह रिपोर्ट जलवायु अनुकूलन योजना, कार्यान्वयन और वित्तपोषण में वैश्विक प्रगति का आकलन करती है, साथ ही मौजूदा कार्यों और विकासशील देशों की अनुकूलन आवश्यकताओं के बीच बढ़ते अंतराल की पहचान करती है।
  • प्रकाशक: यह रिपोर्ट UNEP-कोपेनहेगन जलवायु केंद्र द्वारा प्रकाशित की गई है।
  • उद्देश्य: यह मूल्यांकन करना कि देश, विशेष रूप से विकासशील देश, तीव्र जलवायु प्रभावों के प्रति कितने प्रभावी रूप से अनुकूलन कर रहे हैं।
    • यह अनुकूलन वित्त अंतराल का भी आकलन करती है और वैश्विक जलवायु नीति, निवेश और लचीलापन निर्माण प्रयासों का मार्गदर्शन करने के लिए अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।

वर्ष 2025 रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  • अत्यधिक वित्तीय घाटा: विकासशील देशों को अनुकूलन के लिए वर्ष 2035 तक वार्षिक रूप से 310-365 अरब अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी।
    • हालाँकि, वर्ष 2023 में केवल 26 अरब अमेरिकी डॉलर ही जुटाए गए थे, जो वास्तविक आवश्यकता से 12-14 गुना कम है।
  • घटती वित्तीय प्रतिबद्धताएँ: अनुकूलन वित्त, वर्ष 2022 में 28 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर वर्ष 2023 में 26 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि वर्ष 2025 तक अनुकूलन वित्त को दोगुना करने संबंधी ग्लासगो जलवायु समझौते का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा।
  • ऋण भार में वृद्धि: अनुकूलन वित्तपोषण का लगभग 58% ऋण-आधारित है, जिसमें गैर-रियायती ऋण भी शामिल है, जिससे विकासशील देशों में असमानता बढ़ रही है और ऋण संबंधी संवेदनशीलता बढ़ रही है।
  • असमान नीति और नियोजन प्रगति: 172 देशों के पास कम-से-कम एक राष्ट्रीय अनुकूलन योजना (NAP) या ढाँचा है, जबकि 36 योजनाएँ पुरानी हो चुकी हैं, जिससे बढ़ते जलवायु जोखिमों के विरुद्ध प्रभावशीलता कम हो रही है।
  • कार्यान्वयन लेकिन सीमित प्रभाव: वैश्विक स्तर पर, मुख्यतः जैव विविधता, कृषि, जल और बुनियादी ढाँचे में 1,600 अनुकूलन कार्यवाहियाँ दर्ज की गई हैं, लेकिन उनमें से कुछ का ही मापनीय परिणामों या दीर्घकालिक लचीलेपन के लिए मूल्यांकन किया गया है।
  • कमजोर निजी क्षेत्र की भागीदारी: निजी क्षेत्र का निवेश लगभग 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष के निम्न स्तर पर बना हुआ है, हालाँकि सहायक नीति तंत्रों और मिश्रित वित्त मॉडल के माध्यम से 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक जुटाने की क्षमता मौजूद है।
  • बाकू-बेलम रोडमैप (2024) में वर्ष 2035 तक कुल जलवायु वित्त में प्रति वर्ष 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की परिकल्पना की गई है और ‘अनुकूलन ऋण जाल’ को रोकने के लिए अनुदान-आधारित वित्तपोषण का आह्वान किया गया है।
    • इस रिपोर्ट में ब्राजील की COP30 अध्यक्षता को अनुकूलन वित्त और पारदर्शिता अंतराल को समाप्त करने के लिए ‘वैश्विक सामूहिक प्रयास’ को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण बताया गया है।

भारत और अनुकूलन अंतराल रिपोर्ट

  • जलवायु परिवर्तन पर भारत की राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) और राज्य कार्य योजनाएँ, कृषि, जल और बुनियादी ढाँचे की योजना में अनुकूलन को मुख्यधारा में लाने के UNEP के आह्वान के अनुरूप हैं।
  • भारत को लू, बाढ़ और हिमनदों के पिघलने के कारण अत्यधिक जोखिम का सामना करना पड़ रहा है, जिसके लिए अनुकूलन निवेश में वृद्धि की आवश्यकता है।
  • अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), पर्यावरण के लिए जीवनशैली (LiFE) मिशन जैसी पहलों और G20 प्रेसीडेंसी (2023) के दौरान नेतृत्व के माध्यम से, भारत जलवायु अनुकूलन पर सक्रिय वैश्विक भागीदारी प्रदर्शित करता है।

उपलब्धियाँ और सफलताएँ

  • व्यापक नीतिगत मान्यता: 172 देशों में राष्ट्रीय अनुकूलन ढाँचे हैं, जो विकास की प्राथमिकता के रूप में लचीलेपन की सार्वभौमिक नीतिगत स्वीकृति को दर्शाते हैं।
  • बहुपक्षीय वित्तपोषण में वृद्धि: हरित जलवायु कोष (GCF), वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) और अनुकूलन कोष सहित वैश्विक जलवायु कोषों के लिए वर्ष 2024 में 920 मिलियन अमेरिकी डॉलर वितरित किए गए, जो पिछले पाँच वर्षों के औसत से 86% अधिक है।
  • प्रगति को मुख्यधारा में लाना: अनुकूलन को राष्ट्रीय विकास और राजकोषीय रणनीतियों में, विशेष रूप से लघु द्वीपीय विकासशील राज्यों (SIDS) और अल्प-विकसित देशों (LDC) में, तेजी से एकीकृत किया जा रहा है।

पहचानी गई सीमाएँ

  • अत्यधिक वित्तीय घाटा: वर्तमान वित्तीय सहायता वास्तविक आवश्यकता का बारहवाँ हिस्सा ही पूरा कर पाती है, जिससे विकासशील देशों की क्षमताओं पर भारी दबाव पड़ता है।
  • ऋण-प्रधान वित्तपोषण: ऋण-प्रधान तंत्रों के माध्यम से जलवायु अनुकूलन का प्रयास कमजोर देशों को ऋण-जाल में फँसाने का जोखिम उत्पन्न करता है।
  • सीमित निजी भागीदारी: जोखिम-शमन उपकरणों का अभाव निजी क्षेत्र की भागीदारी में बाधा डालता है।
  • कमजोर निगरानी प्रणालियाँ: कई देशों में निगरानी, ​​मूल्यांकन और अधिगम (Monitoring, Evaluation, and Learning- MEL) ढाँचों का अभाव है, जिससे जवाबदेही और प्रदर्शन की निगरानी करने में बाधा आती है।
  • अपव्यय का जोखिम (Risk of Maladaptation): अलग-थलग तरीके से डिजाइन की गई परियोजनाएँ अनजाने में जलवायु संबंधी भेद्यता को बढ़ा सकती हैं।

रिपोर्ट में प्रमुख सिफारिशें

  • अनुदान-आधारित वित्त की ओर बदलाव: वैश्विक जलवायु वित्त में समानता सुनिश्चित करने के लिए ऋण-प्रधान से अनुदान-आधारित या रियायती वित्तपोषण की ओर संक्रमण।
  • निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करना: अनुकूलन के लिए प्रतिवर्ष 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर की धनराशि प्राप्त करने हेतु सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), गारंटी और मिश्रित वित्त को प्रोत्साहित करना।
  • वित्त प्रणालियों में अनुकूलन को एकीकृत करना: जोखिम-सूचित निर्णयों को बढ़ावा देने के लिए बैंकिंग, बीमा और निवेश तंत्रों में जलवायु लचीलेपन के संकेतकों को शामिल करना।
  • अनुकूलन योजनाओं को नियमित रूप से अद्यतन करना: अद्यतित वैज्ञानिक और सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिए राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं (NAP) का आवधिक संशोधन सुनिश्चित करना।
  • क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना: आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) और ISA जैसे प्लेटफॉर्मों के माध्यम से दक्षिण-दक्षिण साझेदारी और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को मजबूत करना।

निष्कर्ष

UNEP अनुकूलन अंतराल रिपोर्ट 2025 चेतावनी देती है कि जलवायु अनुकूलन औपचारिक घोषणाओं पर नहीं संचालित हो सकता है। अनुकूलन वित्त के अंतराल को पाटना अब एक रणनीतिक वैश्विक अनिवार्यता बन गई है; केवल समान वित्तपोषण, नवाचार और अंतरराष्ट्रीय एकजुटता के माध्यम से ही अनुकूलन प्रयास जलवायु परिवर्तन के तीव्र होते जोखिमों से आगे बढ़ सकते हैं।

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