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जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) में सुधार

Lokesh Pal July 12, 2025 04:05 10 0

संदर्भ

हाल के वर्षों में, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के अंतर्गत जलवायु वार्ताओं में पर्याप्त प्रगति हासिल करने के लिए संघर्ष किया गया है, जिसके परिणाम निराशाजनक रहे हैं तथा वित्त, जवाबदेही और जलवायु न्याय के संदर्भ में चुनौतियाँ जारी हैं।

संबंधित तथ्य

  • बॉन जलवायु सम्मेलन 2025 (Bonn Climate Conference 2025) ने ब्राजील में होने वाले COP-30 से पूर्व गहरे मतभेदों और धीमी प्रगति को उजागर किया, जिससे UNFCCC में तत्काल सुधार की माँग उठी।

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UN Framework Convention on Climate Change-UNFCCC) के बारे में

  • UNFCCC की स्थापना वर्ष 1992 में रियो डी जेनेरियो में आयोजित पृथ्वी शिखर सम्मेलन (Earth Summit) में हुई थी।
  • इसका मुख्य उद्देश्य जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए लगभग 200 देशों को एक साथ लाकर वैश्विक जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान करना है।
    • इन दलों में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश, साथ ही फिलिस्तीन राज्य और होली सी (रोमन कैथोलिक चर्च का केंद्रीय शासी प्राधिकरण, जिसका नेतृत्व रोम के बिशप के रूप में पोप करते हैं, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा के पर्यवेक्षक हैं) और संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश के अलावा अन्य देश नियू और कुक द्वीपसमूह, साथ ही यूरोपीय संघ भी शामिल हैं।

मूल सिद्धांत

  • साझा किंतु विभेदित उत्तरदायित्व (Common but Differentiated Responsibilities-CBDR): विकसित देशों को, जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से अधिक उत्सर्जन किया है, उत्सर्जन कम करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए और विकासशील देशों का सहयोग करना चाहिए।
  • समता (Equity): यह मान्यता है कि विकास के स्तर के आधार पर देशों की अलग-अलग जिम्मेदारियाँ और क्षमताएँ होती हैं।

संस्थागत संरचना

  • पक्षकारों का सम्मेलन (COP): UNFCCC का मुख्य निर्णय लेने वाला निकाय, जो कन्वेंशन के कार्यान्वयन की समीक्षा करने और जलवायु नीति पर निर्णय लेने के लिए प्रतिवर्ष बैठक करता है।
    • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के पक्षकारों के सम्मेलन (COP) में निर्णय आमतौर पर सर्वसम्मति से लिए जाते हैं, अर्थात् सभी पक्षों को बिना किसी औपचारिक आपत्ति के सहमत होना चाहिए।
  • सहायक निकाय
    • वैज्ञानिक एवं तकनीकी सलाह हेतु सहायक निकाय (Subsidiary Body for Scientific and Technological Advice- SBSTA): UNFCCC और पेरिस समझौते के अंतर्गत निर्णय लेने में सहायता के लिए वैज्ञानिक, तकनीकी और पद्धतिगत सलाह प्रदान करता है।
    • कार्यान्वयन हेतु सहायक निकाय (Subsidiary Body for Implementation-SBI): UNFCCC, क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते के कार्यान्वयन का मूल्यांकन और समर्थन करता है, जिसमें प्रगति की निगरानी तथा राष्ट्रीय रिपोर्टों की समीक्षा शामिल है।
  • सचिवालय: जर्मनी के बॉन में स्थित, यह UNFCCC के कार्यों को पूरा करने में मदद करता है।
  • वैश्विक नवाचार केंद्र (2021): जलवायु अनुकूल और लचीले भविष्य के लिए नई तकनीकों तथा समाधानों का समर्थन करता है।

भारत और UNFCCC

  • पेरिस समझौते की प्रतिबद्धता: भारत ने वर्ष 2016 में पेरिस समझौते का अनुसमर्थन किया और उत्सर्जन तीव्रता को कम करने तथा नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ाने के लिए महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contributions- NDC) प्रस्तुत किए।
  • ‘ग्लोबल साउथ’ का प्रतिनिधित्व: भारत विकासशील देशों के हितों की रक्षा के लिए जलवायु न्याय, समानता और ‘साझा लेकिन विभेदित उत्तरदायित्वों’ (Common but Differentiated Responsibilities- CBDR) के सिद्धांत का सक्रिय रूप से समर्थन करता है।
  • प्रमुख तंत्रों में भागीदारी: भारत हरित जलवायु कोष, वैश्विक स्टॉकटेक प्रक्रिया और UNFCCC के अंतर्गत ‘लॉस एंड डेमेज फंड’ का हिस्सा है।
  • अनुकूलन और शमन में नेतृत्व: भारत अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन और आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन जैसी अंतरराष्ट्रीय पहलों का समर्थन करता है।

UNFCCC की प्रमुख पहल

  • पेरिस समझौता: एक ऐतिहासिक जलवायु समझौता, जिसका लक्ष्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे सीमित रखना है और इसे पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5°C ऊपर सीमित रखना है।
  • हरित जलवायु कोष (Green Climate Fund-GCF): विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई के विकास का समर्थन करने के लिए UNFCCC के अंतर्गत एक पहल, जो उन्हें जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन में सहायता के लिए धन प्रदान करती है।
  • वैश्विक समीक्षा: एक प्रक्रिया, जो पेरिस समझौते की प्रगति का मूल्यांकन करती है और सामूहिक जलवायु प्रयासों का आकलन करती है।
  • हालिया विकास: जलवायु वित्त पोषण के लिए नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (New Collective Quantified Goal- NCQG) (वर्ष 2035 तक $300 बिलियन) COP29 (बाकू, 2024) में अपनाया गया।

UNFCCC सुधारों की आवश्यकता

  • विश्वसनीयता संबंधी संकट: UNFCCC अपने जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में अपर्याप्त प्रगति के कारण विश्वसनीयता संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहा है।
    • वर्ष 2009 में, कोपेनहेगन में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (COP15) में, विकसित देशों ने जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन में विकासशील देशों की सहायता के लिए वर्ष 2020 तक प्रतिवर्ष 100 बिलियन डॉलर जुटाने का संकल्प लिया था।
    • इन विफलताओं ने इस प्रणाली में विश्वास को कम कर दिया है और इस प्रक्रिया में विश्वास बहाल करने के लिए तत्काल सुधारों की आवश्यकता है।
  • जवाबदेही का अभाव: विकसित राष्ट्र, जलवायु अनुकूलन और शमन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने का वचन देने के बावजूद, बिना किसी निहितार्थ के अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में लगातार विफल रहे हैं।
    • जवाबदेही के इस अभाव ने संबंधों को और तनावपूर्ण बना दिया है और विशेष रूप से निम्न विकासशील देशों में आवश्यक जलवायु कार्रवाई के कार्यान्वयन को धीमा कर दिया है।
  • अत्यधिक नौकरशाही: जलवायु वार्ता की प्रक्रिया धीमी इसलिए हो जाती है क्योंकि इसमें कई मुद्दों पर चर्चा होती है, लंबी वार्ताएँ होती हैं और सभी देशों की सहमति प्राप्त करना आवश्यक होता है।
    • प्रक्रिया को तेज और अधिक कुशल बनाने के लिए टीम के आकार को सीमित करने तथा भाषणों को छोटा करने जैसे प्रयासों का सुझाव दिया गया है।
  • समावेशी भागीदारी के मुद्दे: UNFCCC प्रक्रिया निम्न विकासशील देशों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व करने के लिए संघर्ष कर रही है।
    • सीमित संसाधनों वाले लघु विकासशील देशों को प्रायः इनमें भाग लेने में कठिनाई होती है।
    • उनकी भागीदारी में बाधाओं को कम करने और समावेशिता को बढ़ावा देने के प्रस्तावों पर चर्चा की गई है, लेकिन उन्हें विशेष रूप से उन देशों से भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है, जो यथास्थिति से लाभान्वित होते हैं।
  • जीवाश्म ईंधन हितों का प्रभाव: COP बैठकों में जीवाश्म ईंधन कंपनियों के प्रतिनिधियों की भागीदारी विवाद का विषय रही है।
    • ऐसी चिंताएँ हैं कि ये हित जीवाश्म ईंधन पर निरंतर निर्भरता के पक्ष में परिणामों को प्रभावित करते हैं।
    • उनके प्रभाव को सीमित करने के प्रस्ताव, साथ ही जलवायु कार्रवाई में खराब रिकॉर्ड वाले देशों को COP बैठकों की मेजबानी करने से रोकने के प्रस्ताव, अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया की बढ़ती माँग को दर्शाते हैं।

COP-30 के बारे में

COP-30, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (United Nations Framework Convention on Climate Change – UNFCCC) के पक्षकारों के सम्मेलन का 30वाँ सत्र है, जो नवंबर 2025 में ब्राजील के बेलेम में आयोजित होने वाला है।

COP-30 का मुख्य क्षेत्र

  • वित्त एक केंद्रीय मुद्दा: COP-30 में एक प्रमुख चर्चा जलवायु वित्त पर केंद्रित होगी, विशेष रूप से यह कि विकसित देश विकासशील देशों के लिए प्रतिवर्ष कम-से-कम 100 अरब डॉलर जुटाने के अपने वादे को कैसे पूरा करेंगे।
    • विकासशील देशों की ओर से विशेष रूप से अनुकूलन परियोजनाओं के लिए इस वित्तपोषण को बढ़ाने का दबाव है।
  •  ‘लॉस एंड डेमेज फंड’  पर अधिक ध्यान:  ‘लॉस एंड डेमेज फंड’ का मुद्दा, विशेष रूप से लघु द्वीपीय देशों और अन्य असुरक्षित देशों के लिए, चर्चाओं में प्रमुखता से बना रहेगा।
    • ‘लॉस एंड डेमेज फंड’  को UNFCCC प्रक्रिया में अधिक प्रभावी ढंग से एकीकृत करने और इन देशों के लिए वित्तीय सहायता का विस्तार सुनिश्चित करने के प्रस्ताव प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
  • अनुकूलन लक्ष्यों को सुदृढ़ बनाना: COP-30 अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य को बढ़ाने पर भी ध्यान केंद्रित करेगा, जिसमें विविध राष्ट्रीय संदर्भों को प्रतिबिंबित करने वाले मानकों और संकेतकों के माध्यम से प्रगति पर नजर रखने पर विशेष जोर दिया जाएगा।
    • चर्चा इस बात पर केंद्रित होगी कि अनुकूलन को राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजनाओं में और अधिक पूर्ण रूप से कैसे एकीकृत किया जाए।

जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध संघर्ष में चुनौतियाँ

  • राजनीतिक मतभेद: जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध संघर्ष में एक प्रमुख चुनौती विकसित और विकासशील देशों के बीच जारी राजनीतिक विभाजन है।
    • जलवायु वित्त, कार्बन सीमा कर और ऐतिहासिक जिम्मेदारियों जैसे मुद्दे प्रायः गतिरोध का कारण बनते हैं।
    • उदाहरण के लिए, LMDC (समान विचारधारा वाले विकासशील देश) ने माँग की है कि उचित बातचीत के बिना कार्बन सीमा कर न लगाए जाएँ, जबकि यूरोपीय संघ जैसे विकसित देशों ने व्यापक जलवायु रणनीतियों के हिस्से के रूप में इन करों पर जोर दिया है।
  • अपर्याप्त जलवायु वित्त: बार-बार किए गए वादों के बावजूद, विकासशील देशों की वित्तीय आवश्यकताओं और विकसित देशों की वास्तविक प्रतिबद्धताओं के बीच एक निरंतर अंतर बना हुआ है।
    • ब्रिक्स समूह सहित विकासशील देशों ने वित्तपोषण तंत्र में अधिक पारदर्शिता और समानता पर जोर दिया है तथा इन वित्तीय वादों को पूरा करने का आह्वान किया है।
    • COP-29 में अपनाए गए NCQG के तहत लक्ष्य को प्राप्त करने के तंत्र और वार्षिक रूप से 1.3 ट्रिलियन डॉलर जुटाने के व्यापक लक्ष्य पर अभी भी कार्य चल रहा है।
  • जीवाश्म ईंधन हित: COP बैठकों में जीवाश्म ईंधन उद्योगों का प्रभाव एक सतत् मुद्दा रहा है, और आरोप है कि उनकी ‘लॉबिंग’ उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के प्रयासों को कमजोर करती है।
    • जलवायु नीति को आकार देने में इन उद्योगों की भूमिका की आलोचना हुई है, खासकर नागरिक समाज समूहों द्वारा, जो एक अधिक निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया का समर्थन करती है।
  • प्रभावी कार्यान्वयन का अभाव: एक अन्य महत्त्वपूर्ण चुनौती जलवायु संबंधी वादों और वास्तविक कार्यान्वयन के बीच का अंतर है।
    • कई देश महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contributions- NDC) निर्धारित करते हैं, लेकिन उन्हें प्राप्त करने के लिए आवश्यक संसाधन और नीतियाँ प्रदान करने में विफल रहते हैं।
    • यह अंतर प्रायः विकासशील देशों के लिए अपर्याप्त वित्तीय सहायता और तकनीकी सहायता की कमी के कारण उत्पन्न होता है।

आगे की राह 

  • जलवायु वित्त में सुधार: ऐसी जलवायु वित्त प्रणालियों में सुधार की अत्यंत आवश्यकता है, जो पारदर्शी और जवाबदेह वित्तपोषण तंत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, ऋणों की तुलना में अनुदानों को प्राथमिकता दें।
    • विकसित देशों को अपनी मौजूदा वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करना होगा और कमजोर देशों के लिए समय पर तथा पूर्वानुमानित वित्तपोषण सुनिश्चित करना होगा।
      • उदाहरण के लिए, अनुकूलन और शमन प्रयासों के लिए धन तक त्वरित और अधिक विश्वसनीय पहुँच प्रदान करने हेतु हरित जलवायु कोष का विस्तार किया जाना चाहिए।
  • प्रतिनिधित्व और समावेशिता में वृद्धि: एक अधिक न्यायसंगत प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए, UNFCCC को जीवाश्म ईंधन कंपनियों के प्रभाव को सीमित करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने चाहिए कि लघु देशों एवं कमजोर समूहों का बेहतर प्रतिनिधित्व हो।
    • वार्ता दलों के आकार को सीमित करना और पारदर्शी भागीदारी सुनिश्चित करना इस प्रक्रिया को अधिक समावेशी बना सकता है।
  • जवाबदेही तंत्रों को सुदृढ़ बनाना: यह सुनिश्चित करने के लिए कि देश अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं का पालन करें, एक अधिक मजबूत तंत्र की आवश्यकता है।
    • आम सहमति पर निर्भर रहने के बजाय बहुमत-आधारित निर्णय लेने का प्रस्ताव वर्तमान गतिरोध को दूर करने में मदद कर सकता है।
    • इसके अतिरिक्त, देशों को अपने वित्तीय और उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्यों को पूरा करने में विफल रहने के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।
  • बहुपक्षीय सहयोग का विस्तार:  UNFCCC प्रक्रिया के पूरक के रूप में अतिरिक्त बहुपक्षीय ढाँचे बनाने से जलवायु लक्ष्यों के कार्यान्वयन में तेजी लाने में मदद मिल सकती है।
    • उदाहरण के लिए, ज्ञान, प्रौद्योगिकी और संसाधनों को साझा करने के लिए क्षेत्रीय जलवायु कार्रवाई मंच स्थापित किए जा सकते हैं, जिससे देशों को अपनी जलवायु कार्रवाई योजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने में मदद मिल सकती है।

निष्कर्ष

वैश्विक जलवायु कार्रवाई के लिए UNFCCC प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण है, लेकिन बढ़ती जलवायु चुनौतियों के बीच इसकी प्रभावशीलता सुनिश्चित करने हेतु इसमें व्यापक सुधारों की आवश्यकता है। COP-30 इन मुद्दों के समाधान और भविष्य के वैश्विक जलवायु प्रयासों की दिशा निर्धारित करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण मंच होगा।

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